मज़बूत मंत्री अगर सरकार की ज़रूरत होता है तो विवादित मंत्री विपक्ष की। ऐसे में जब बीजेपी बार-बार ये मांग करती है कि शशि थरूर इस्तीफा दें, तो मुझे तरस आता है। उसकी मांग सोचने पर मजबूर करती है कि क्या वो वाकई इस्तीफे को लेकर गंभीर है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में अगर विपक्ष का यही काम है कि वो वक़्त-वक़्त पर सरकार को शर्मिंदा करे, नीतियों को लेकर उसे कटघरे में खड़ा करे तो ये फिर ये काम तो थरूर बीजेपी से कहीं बेहतर कर रहे हैं।
कुछ साल पहले एक अंतरराष्ट्रीय बल्लेबाज़ ने अनौपचारिक बातचीत में मुझे कहा था कि जैसे ही विपक्षी टीम किसी घटिया गेंदबाज़ को बॉलिंग पर लगाती थी तो मेरी कोशिश होती थी कि उसके ओवर में एक-दो से ज़्यादा चौके न मारे जाएं। उनका कहना था कि ऐसे गेंदबाज़ की एक बार में ज़्यादा पिटाई करने का नुकसान ये होता था कि कप्तान फिर उसे दोबारा गेंद ही नहीं देता था।
ठीक इसी तरह जब भी बीजेपी शशि थरूर मामले पर उनके इस्तीफे को लेकर दबाव बनाए तो उसे ये ध्यान रखना चाहिए कि उसे किस हद तक जाना है। अगर वाकई ज्यादा दबाव बना दिया तो हो सकता है मजबूर होकर सरकार उनसे इस्तीफा मांग ले।
ऐसे ही सबक की ज़रूरत मीडिया को भी है। क्या ज़रूरत है हर बार टीवी पर ये बताने की इनका तो विवादों से पुराना नाता रहा है। ये तो कुछ न कुछ बोलते ही रहते हैं। एक बेलगाम मंत्री अगर विपक्ष की ज़रूरत है तो क्या बड़बोला मंत्री मीडिया की ज़रूरत नहीं है। क्या चैनल महिला आरक्षण के पक्ष में दी गई अच्छी दलीलों से चलेंगे। जी नहीं। यहां ये समझने की ज़रूरत है कि जिस दौर में मनोरजंन ही ख़बर बन गया हो, वहां सबसे बड़ी ख़बर भी वही बन सकता है जिसका मनोरंजन सूचकांक ज्यादा है। और एक अच्छे विवाद से बड़ा मनोरंजन और भला क्या हो सकता है! क्या आइटम मंत्रियों की इस देश को कोई ज़रूरत नहीं है।
शुक्रवार, 16 अप्रैल 2010
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5 टिप्पणियां:
बहुत बढ़िया.
वैसे एक सवाल है. वह अंतर्राष्ट्रीय बल्लेबाज राजनीति में आया कि नहीं अभी तक? न आया हो तो उसे सलाह दें कि जल्दी आये.
तो ये है असली चीयर लीडर्स..
तो मतलब चोली दामन का साथ वाली कहावत इसीलिए बनायीं गयी है
थरूर साहब को कोई क्या कह सकता है क्योंकि ये जनाब तो ख़ुद ही आ बैल मुझे मार में लगे रहते हैं.
AAP Blogger he Hidustan Akhbar k madhyam se pata chala. keep it up.
"आइटम मंत्री " क्या जबरदस्त शब्द ढूंढ कर लाये आप.
बड़ी अच्छी पोस्ट , पर आजकल आप कम ही लिख रहे हैं , भाई शायद धनार्जन पर व्यस्त हो शायद .
वैसे हमारे विपक्ष को धन्यवाद् देना चाहिए शशि थरूर जी का कि कम से कम वो सुस्त या ( मृत ही कह लो )पड़े विपक्ष को मुद्दा तो दे रहे हैं . नहीं तो लगता हैं कि जैसे हमारे यहाँ ना सरकार हैं ना उसकी जवाबदेही हैं किसी के प्रति . और लोकतंत्र जैसा शब्द तो कही हैं नहीं . सच में ऐसा लगता हैं कि पूरी कि पूरी सरकार जैसे एक महिला को ही खुश रखने में दिलचस्पी दिखा रही हैं . माफ़ करे नीरज भाई नीचे वाली पंक्तियो के लिए मैं थोडा मध्यमवर्गीय व्यक्ति भावुक हो गयाहूँ .
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