tag:blogger.com,1999:blog-6436633004265678085.post302342267792806877..comments2024-03-01T02:07:26.107-08:00Comments on व्यंजना: लेखक का ख़त!Neeraj Badhwarhttp://www.blogger.com/profile/15197054505521601188noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-6436633004265678085.post-59978519206842618972010-06-10T06:02:00.085-07:002010-06-10T06:02:00.085-07:00नीरज भाई ,
मुझे lagta हैं बेचारे संपादक की गलती नह...नीरज भाई ,<br />मुझे lagta हैं बेचारे संपादक की गलती नहीं हैं , लेखक महोदय पहले कम पैसों में लेख लिखते थे और अब महंगाई को देखकर "रेट" को लेकर " negotiation " में दिक्कत होगी . सच में बेचारे संपादको को लेखको की monoply ने मजबूर किया होगा . <br /> आप पैसे को लेकर एक बार मीटिंग कीजिये और थोड़ी सस्ती दरो पर काम करने का भरोसा दिलाये फिर देखिये , आतंकवादी घटनाओ में कैसे ब्रेकिंग न्यूज़ में आपके कोलम के साथ आपका मुस्कराता चमकता चेहरे भी दिखेगा .वीरेंद्र रावलhttps://www.blogger.com/profile/09408103952722535771noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6436633004265678085.post-26261678992257775982010-06-10T02:43:56.834-07:002010-06-10T02:43:56.834-07:00परमजीत जी ने सटीक उत्तर दे दिया है आपके पत्र का......परमजीत जी ने सटीक उत्तर दे दिया है आपके पत्र का...रंजनाhttps://www.blogger.com/profile/01215091193936901460noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6436633004265678085.post-10150330943967466652010-06-09T02:18:03.601-07:002010-06-09T02:18:03.601-07:00लगता है ऊपर कोई चायनीज संपादक भड़क गया हैलगता है ऊपर कोई चायनीज संपादक भड़क गया हैकुशhttps://www.blogger.com/profile/04654390193678034280noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6436633004265678085.post-44909146122051993392010-06-09T00:42:44.701-07:002010-06-09T00:42:44.701-07:00niceniceRandhir Singh Sumanhttps://www.blogger.com/profile/18317857556673064706noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6436633004265678085.post-68291666781494273532010-06-08T23:26:27.073-07:002010-06-08T23:26:27.073-07:00नीरज भाई। सही चिंतन। परंतु चिट्ठियां लिखने का पारि...नीरज भाई। सही चिंतन। परंतु चिट्ठियां लिखने का पारिश्रमिक नहीं मिलता है और न मिलने की संभावना है जबकि श्रम पूरा ही लगता है। चिट्ठीलेखकों का तो सदा से शोषण ही किया जाता है और किया ही जाता रहेगा।अविनाश वाचस्पतिhttps://www.blogger.com/profile/05081322291051590431noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6436633004265678085.post-35804684941669861242010-06-08T23:08:11.241-07:002010-06-08T23:08:11.241-07:00लेखक मोहदय,
आपका खत प्रकाशित कर दिया गया है...भले...लेखक मोहदय,<br /><br />आपका खत प्रकाशित कर दिया गया है...भले ही आपने शिकायत की है । लेकिन आप शायद नही जानते कि हमारे पास रोज हजारों की संख्या मे खत और लेख आते हैं....यदि हम सभी के लेख और खत छापने लगें तो पूरा एक ग्रंथ रोज छापना पड़ेगा। आशा है आप हमारी मजबूरी समझ गए होगें ।<br /><br />संपादक<br />ब्लॉगजगत<br /><br />:))परमजीत सिहँ बालीhttps://www.blogger.com/profile/01811121663402170102noreply@blogger.com