tag:blogger.com,1999:blog-64366330042656780852024-03-01T02:07:28.850-08:00व्यंजनाNeeraj Badhwarhttp://www.blogger.com/profile/15197054505521601188noreply@blogger.comBlogger185125tag:blogger.com,1999:blog-6436633004265678085.post-85655896524191045652012-12-14T06:40:00.002-08:002012-12-14T06:40:36.610-08:00जैक फोस्टर, तुमने मुझे मरवा दिया <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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जो लोग हिंदी लेखकों से शिकायत करते हैं कि वो उन्हीं घिसे-पिटे पांच छह विषयों पर कलम चलाते हैं, ट्रैवल नहीं करते, दुनिया नहीं देखते, उन्हें समझना चाहिए कि किसी भी तरह की मोबिलिटी पैसा मांगती है और जिस लेखक की सारी ज़िंदगी दूसरों से पैसा मांगकर गुज़र रही हो, वो मोबाइल होना तो दूर, एक सस्ता मोबाइल रखना तक अफ़ोर्ड नहीं कर सकता।
ये लेख चूंकि फ्रेंच से हिंदी में अनुवाद नहीं है, लिहाज़ा ये स्वीकारने में मुझे भी कोई शर्म नहीं कि हिंदी लेखक होने के नाते ये सारी सीमाएं मेरी भी हैं। मगर इस बीच मेरे हाथ अमेरिकी एडगुरु जैक फोस्टर की किताब ‘हाऊ टू गैट आइडियाज़’ लगी जिसमें उन्होंने बताया कि लेखक को रूटीन में फंसकर नहीं रहना चाहिए। लॉस एंजलिस के साथी लेखक का ज़िक्र करते हुए उन्होंने बताया कि कैसे नौ साल की नौकरी के दौरान कुछ नया देखने के लिए वो रोज़ नए रास्ते से ऑफ़िस जाता था।
ये पढ़ मैं भी जोश में आ गया। पूछने पर ऑफ़िस में किसी ने बताया कि कचरे वाले पहाड़ के बगल में जो मुर्गा मंडी है, उस रास्ते से चाहो तो आ सकते हो। अगले दिन मैं उस सड़क पर था। कुछ ही चला था कि अचानक बड़े-बड़े गड्ढ़े आ गए। गाड़ी हिचकोले खाने लगी। कुछ गड्ढ़े तो इतने बड़े थे कि भ्रम हो रहा था कि यहां कोई उल्का पिंड तो नहीं गिरा। इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाता गाड़ी उछलकर ऐसे ही एक छिपे रुस्तम गड्ढ़े से जा टकराई। ज़ोरदार आवाज़ हुई। ऑफ़िस पहुंचने से पहले गाड़ी गर्म होकर बंद हो गई। मैकेनिक ने बताया कि गड्ढ़े में लगने से इसका रेडिएटर और सपोर्ट सिस्टम टूट गया है। इंश्योरेंस के बावजूद आपका दस-बारह हज़ार खर्चा आएगा! ये सुनते ही गाड़ी के साथ मैं भी धुंआ छोड़ने लगा। दस हज़ार रुपये! मतलब अख़बार में छपे 18-20 लेख। मतलब अख़बार की छह महीने की कमाई और बीस नए आइडियाज़! जबकि मैं तो वहां सिर्फ एक नए आइडिया की तलाश में गया था। हे भगवान! रेंज बढ़ाने के चक्कर में मैं रूट बदलने के चक्कर में आख़िर क्यों पड़ा। रचनात्मकता साहस ज़रूर मांगती है मगर एक आइडिया के लिए दस हज़ार का नुकसान उठाने का साहस, हिंदी लेखक में नहीं है। शायद मैं ही बहक गया था। जैक फोस्टर, तुमने मुझे मरवा दिया!
Neeraj Badhwarhttp://www.blogger.com/profile/15197054505521601188noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-6436633004265678085.post-604114068207230682012-12-07T06:44:00.003-08:002012-12-07T06:44:43.773-08:00काश! हम औपचारिक रूप से एलियन होते!<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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एक राष्ट्र के रूप में भारत के साथ सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि अपनेआप में स्वतंत्र ग्रह न होकर हम इसी धरती का हिस्सा हैं जिसके चलते हमें बाकी राष्ट्रों से मेलमिलाप करना पड़ता है। अंतर्राष्ट्रीय आयोजनों का हिस्सा बनना पड़ता है। अंतर्राष्ट्रीय मापदंड़ों पर खरा उतरना पड़ता है। इस सबके चलते हम सफोकेशन फील करते हैं। हमें लगता है कि हमारी निजता भंग हो रही है। हमारे बेतरतीब होने को लेकर अगर कोई उंगली उठाता है तो हमें लगता है कि वो ‘पर्सनल’ हो रहा है।
हमारी हालत उस शराबी पति की तरह हो जाती है जो कल तक घऱ में बीवी बच्चों को पीटता था और आज वो मोहल्ले में भी बेइज्जती करवाकर घर आया है। अब घर आने पर वो किस मुंह से कहे कि मोहल्ले वाले कितने गंदे हैं क्योंकि पति के हाथों रोज़ पिटाई खाने वाली उसकी बीवी तो अच्छे से जानती है कि मेरा पति कितना बड़ा देवता है। दुनिया देवता समान पति को घर में शर्मिंदा कर देती है। उसके लिए ‘डिनायल मोड’ में रहना कठिन हो जाता है। और नाराज़गी में वो घर बेचकर किसी निर्जन टापू पर चला जाता है। जहां वो ‘अपने तरीके’ से रहते हुए बीवी बच्चों को पीट सके और उसे शर्मिंदा करने वाला कोई न हो।
मगर राष्ट्रों के लिए इस तरह मूव करना आसान नहीं होता। होता तो एक राष्ट्र के रूप में हम भी किसी और ग्रह पर शिफ्ट कर जाते जहां हम अपने तरीके से जीते। विकास नीतियों की आलोचना करते हुए जहां कोई रेटिंग एजेंसी हमारी क्रेडिट रेटिंग न गिराती, सरकारी दखल पर इंटरनेशनल ओलंपिक कमेटी ओलंपिक से बेदखल न करती, ट्रांसपेरंसी इंटरनेशनल जैसी संस्था हमें भ्रष्टतम देशों में न शुमार करती। एमनेस्टी इंटरनेशनल मानवाधिकारों के हनन पर हमें न धिक्कारती।
और अगर कोई उंगली उठाता तो हम उसे विपक्ष का षड्यंत्र बताते, अंतर्राष्ट्रीय एनजीओ का दलाल बताते, संवैधानिक संस्थाओं पर शक करते और आम आदमी के विरोध करने पर उसे 66ए के तहत भावनाएँ आहत करने का दोषी बता गिरफ्तार करवा देते। काश! हम एक स्वतंत्र ग्रह होते तो दुनिया से बेफिक्र, अपने ‘डिनायल मोड’ में जीते और खुश रहते। वैसे भी दुनिया का हिस्सा होते हुए दुनिया को एलियन लगने से अच्छा है, हम औपचारिक रूप से एलियन होते!
Neeraj Badhwarhttp://www.blogger.com/profile/15197054505521601188noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6436633004265678085.post-40708098812695166932012-12-01T08:46:00.001-08:002012-12-01T08:46:17.816-08:00सम्मान की लड़ाई और लड़ाकों का कम्फ़र्ट ज़ोन<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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‘अहम’ आहत होने पर इंसान सम्मान की लड़ाई लड़ता है। वजूद को बचाए रखने के लिए लड़ाई चूंकि ज़रूरी है इसलिए लड़ने से पहले बहुत सावधानी से इस बात का चयन कर लें कि आपको किस बात पर ‘अहम’ आहत करवाना है!
दुनिया अगर इस बात के लिए भारत को लानत देती है कि सवा अरब की आबादी में एक भी शख्स ऐसा नहीं जो सौ मील प्रति घंटा की रफ्तार से गेंद फेंक पाए, तो आपको ये सुनकर हर्ट नहीं होना। भले ही आप मौहल्ले के ब्रेट ली क्यों न कहलाते हों, जस्ट इग्नोर दैट स्टेटमेंट। सम्मान की लड़ाई आपको ये सुविधा देती है कि दुश्मन भी आप चुनें और रणक्षेत्र भी! इसलिए जिस गली में आप क्रिकेट खेलते हैं, उसे अपना रणक्षेत्र मानें और जिस मरियल-से लड़के से आपको बेबात की चिढ़ है, उसे कहिए, साले, तेरे को तो मैं बताऊंगा तू बैटिंग करने आइयो!
ये एक ऐसा नुस्खा है जिसे आप कहीं भी लागू कर, कुछ ढंग का न कर पाने के व्यर्थता बोध से ऊपर उठ सकते हैं। मसलन, आपकी बिरादरी का कोई भी लड़का अगर आठ-दस कोशिशों के बाद भी दसवीं पास नहीं कर पा रहा, आपके समाज में बच्चों के दूध के दांत भी तम्बाकू खाने से ख़राब हो जाते हैं, तो इन सबसे एक पल के लिए भी आपके माथे पर शिकन नहीं आनी चाहिए। पढ़ने के लिए, कुछ रचनात्मक करने के लिए आपको पूरी दुनिया से लोहा लेना होगा और ये काम आपसे नहीं होगा, क्योंकि आप तो सारी ज़िंदगी पब्लिक पार्क की बेंच का लोहा बेचकर दारू पीते रहे हैं।
दुश्मन के इलाके में जाकर हाथ-पांव तुड़वाने से अच्छा है, अपने ही इलाके में दुश्मन तलाशिए। ऐसे में औरत और प्रेमियों से आसान शिकार भला और कौन होगा? आप कह दीजिए... आज से लड़कियां मोबाइल इस्तेमाल नहीं करेंगी, जींस नहीं पहनेंगी, चाउमीन नहीं खाएंगी। लड़के-लड़कियां प्यार नहीं करेंगे। आप फ़रमान सुनाते जाइए और धमकी भी दे दीजिए किसी ने ऐसा किया, तो फिर देख लेंगे। इन फ़रमानों को अपने ‘अहम’ से जोड़ लीजिए। औरत जात आपसे लड़ नहीं सकती। दो प्रेमी पूरे समाज से भिड़ नहीं सकते। आप ऐसा कीजिए और करते जाइए क्योंकि सम्मान की लड़ाई का इससे बेहतर कम्फर्ट ज़ोन आपको कहीं और नहीं मिलेगा।
Neeraj Badhwarhttp://www.blogger.com/profile/15197054505521601188noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-6436633004265678085.post-72328863187894092172012-11-22T21:28:00.002-08:002012-11-22T21:28:33.733-08:00वो आया, खाया और चला गया!<b></b><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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ज़िंदगी में बहुत सी चीज़ें और लोग स्थायी चिढ़ बन हमेशा माहौल में रहते हैं। चाहकर भी हम उनका कुछ उखाड़ नहीं पाते और जो उखाड़ सकते हैं, वो कुछ करते नहीं। ऐसे में मजबूर होकर हम चिढ़ से निपटने के लिए उनका मज़ाक बनाते हैं। चिढ़ का मज़ाक बन जाना और बने रहना व्यवस्था पर उसकी नैतिक जीत है और अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि पिछले 4 सालों से कसाब ऐसी ही नैतिक जीत का आनन्द ले रहा था।
आम आदमी उस पर चुटकुले बनाकर खुश था और वो डाइट कोक के साथ बिरयानी खाकर! ऐसे में जब उसे फांसी दी गई तो बहुतों की तरह मुझे भी यकीन नहीं हुआ। ये जांचने के लिए कि मैं सपना तो नहीं देख रहा, मैंने बीवी से दो बार मुझे नाखून से नोंचने के लिए कहा और उसने रूटीन वर्क समझ बड़ी सहजता से इसे अंजाम दे दिया।
दसियों चैनल पर ख़बर देखने के बाद मैं उसकी मौत को लेकर आश्वस्त तो हो गया मगर तभी अंदर के आशंकाजीवी ने सवाल पूछा कि ऐसा तो नहीं कि कसाब डेंगू से ही मरा हो, और सरकार ने शर्मिंदगी से बचने के लिए बाद में उसे फांसी पर लटका दिया हो। अगर ऐसा है, तो वाकई शर्मनाक है। मच्छर बीएमसी की लापरवाही से पनपा। बीएमसी पर शिवसेना का कब्ज़ा है। लिहाज़ा कसाब की मौत का क्रेडिट कांग्रेस को नहीं, शिवसेना को जाता है। शाम होने तक चूंकि शिवसेना ने ऐसा कोई दावा नहीं किया, लिहाज़ा मैंने भी ज़िद्द छोड़ दी। मगर मन अब भी आशंकाओं से भरा था।
सिवाय अफज़ल गुरू के, कसाब की मौत पर पूरा देश खुश था। उसकी हालत वैसी ही हो गई थी जैसे बड़ी बहन की शादी के बाद सभी छोटी के पीछे पड़ जाते हैं। उसे छोड़ दें तो हर कोई इस काम के लिए सरकार की तारीफ कर रहा था। तभी मुझे लगा कि माहौल का फायदा उठा सरकार फिर से कहीं तेल की कीमतें न बढ़ा दे। सब्सिडाइज़्ड सिलेंडर की संख्या छह से दो न कर दे। कलमाड़ी फिर से आईओसी अध्यक्ष न बन जाएं। मगर रात होते होते ऐसा भी कुछ नहीं हुआ। कसाब आया, खाया और चला गया। मगर मुझे उसके चले जाने पर अब भी यकीन नहीं हो रहा। शायद निराशाभरे माहौल में इंसान को आसमान में छाए बादल भी चिमनी का धुआं लगते हैं।
Neeraj Badhwarhttp://www.blogger.com/profile/15197054505521601188noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6436633004265678085.post-79985849460873071832012-11-22T05:44:00.001-08:002012-11-22T05:44:17.502-08:00पानी नहीं, पार्किंग के लिए होगा तीसरा विश्व युद्ध!<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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हिंदुस्तान में एकमात्र ऐसी जगह जहां मैंने लोगों को बिना किसी तनाव के गाड़ी चलाते देखा है, वो है टीवी विज्ञापन! बंदे ने शोरूम से गाड़ी निकाली और खाली पड़ी सड़क पर बेधड़क चला जा रहा है। तीस सैकेंड के विज्ञापन में उसे न तो कोई रेडलाइट मिलती है, न कोई गड्ढ़ा आता है, न कोई बाइक वाला गंदा कट मारता है और न ही उसके आजू-बाजू से सरिये लहराते कोई हाथ-रिक्शा गुज़रता है। उसका सारा ध्यान बैकग्राउंड में बज रहे जिंगल पर लिप मूवमेंट करने और बगल में बैठी बीवी को देख फ़ेक स्माइल देने में होता है। उस बाप के बेटे को इस बात की रत्तीभर भी फिक्र नहीं कि रास्ते में कहीं कोई भिड़-विड़ न जाए, नई गाड़ी पर कहीं कोई स्क्रैच न मार दे।
ऐसा लगता है शोरूम से गाड़ी खरीदने से पहले उसने ज़िला कलेक्टर को इसकी जानकारी दे दी थी और उन्हीं के आदेश पर शोरूम से लेकर उसके घर तक सारा ट्रैफिक क्लियर करवा दिया गया है ताकि नई गाड़ी खरीदने से हमारे शहज़ादा सलीम के मन में जो कविता उपजी है वो घर पहुंचने से पहले ही गद्य में तब्दील न हो जाए। कहीं उस बेचारे का मूड ख़राब न हो जाए।
तभी मेरी नज़र विज्ञापन में ढल रहे सूरज पर पड़ती है और ख्याल आता है कि कलेक्टर की मेहरबानी से ये घर तो फिर भी पहुंच जाएगा मगर इस वक्त गाड़ी लगाने के लिए क्या इसे सोसाइटी में जगह मिलेगी? नहीं, बिल्कुल नहीं...शोरूम से निकलने के बाद हमारा हीरो गाड़ी लेकर मंदिर जाएगा और घर लौटते-लौटते उसे काफी देर हो चुकी होगी। और ये उम्मीद करना कि इसकी नई गाड़ी के सम्मान में पड़ौसी आज एक पार्किंग खाली छोड़ देंगे, गाड़ी के विज्ञापन में उसके माइलेज के दावे को सच मान लेने जैसी मूर्खता होगी।
घर पहुंचने पर बंदे को पार्किंग मिली या नहीं, विज्ञापन इस बारे में कुछ नहीं बताता। वो उन्हें किसी अनजाने पहाड़ की हसीन वादियों में जिंगल गुनगुनाते छोड़ देता है। ठीक वैसे ही जैसे फिल्म में तमाम संघर्षों के बाद लड़का लड़की की शादी हो जाती है और आख़िर में लिखा आता है, ‘एंड दे लिव्ड हैप्पिली एवर आफ्टर’। जबकि शादी के बाद आज तक कितने लोग हैप्पिली जी पाए हैं, ये बताने की ज़रूरत नहीं। कुछ इसी अंदाज़ में ये विज्ञापन भी ख़त्म हो जाता है और आख़िर में लिखा आता है, ‘एंड दे ड्रोव हैप्पिली एवर आफ्टर’! और मेरा दिल करता है पलटकर पूछूं कि दे ड्रोव हैप्पिली एवर आफ्टर...बट कुड दे पार्क देयर कार ईज़ली एवर आफ्टर!
मैं ऐसा कोई सवाल नहीं पूछता लेकिन जानता हूं कि फिल्मी हीरो के स्टाइल में लड़की को पा लेना कोई बड़ी चुनौती नहीं है, शादी के बाद उससे निभा लेना है। उसी तरह ड्राइविंग स्कूल से पंद्रह दिन में ड्राइविंग सीख लेना और ‘एक मिनट में कार लोन’ पास करने वाले किसी बैंक से लोन ले गाड़ी खरीदना कोई चैलेंज नहीं है; असली चुनौती उस कार के लिए पार्किंग ढूंढना है!
घर से ऑफिस के लिए निकलो तो बचा हुआ असाइनमेंट, धूर्त सहकर्मी, नकचढ़ा बॉस इंसान की चिंताओं में बहुत पीछे होते हैं, सबसे पहले ये सोच-सोचकर उसका खून सूखने लगता है कि क्या ऑफिस पहुंचने पर मुझे पार्किंग मिलेगी! और अगर आप ऑफिस पहुंचने में ज़रा लेट हो गए तो पार्किंग में जगह बनाना, जवानी में किसी खूबसूरत लड़की के दिल में जगह बनाने से ज़्यादा मुश्किल हो जाता है।
मेरा दावा है कि जब एक आदमी वर्कप्रेशर की बात करता है तो उसका 30 फीसदी हिस्सा ऑफिस जाकर खुद के लिए पार्किंग ढूंढने का होता है। व्यक्तिगत जीवन के तनाव का 40 फीसदी सोसाइटी में पार्किंग रिज़र्व न होने से होता है और जब वो कहता है कि आजकल खरीदारी मुश्किल हो गई है तो उसका मतलब महंगाई से नहीं, बाज़ार में पार्किंग न मिलने से होता है!
मेरा मानना है कि ये समस्या इतनी गंभीर है कि ‘व्यावसायिक भविष्यफल’ और ‘प्रेम भविष्यफल’ की तर्ज पर अख़बारों को रोज़ ‘पार्किंग भविष्यफल’ भी देने चाहिए ताकि बंदा घर से निकलने से पहले पार्किंग में आने वाली मुश्किलों के लिए खुद को तैयार कर पाए।
जानकार कहते हैं कि अगर तीसरा विश्वयुद्द हुआ तो पानी के लिए होगा मगर मुझे लगता है इस वक्त पार्किंग की जो स्थिति है उसमें तीसरा विश्वयुद्ध पानी के लिए नहीं, पार्किंग के लिए होगा। हैरानी नहीं होनी चाहिए अगर कल को ख़बर मिले कि किसी बड़े देश ने छोटे देश पर सिर्फ इसलिए हमला कर दिया ताकि उसे अपने पार्किंग लाउंज के तौर पर इस्तेमाल कर पाए! और जिस तरह आजकल चीन नेपाल के साथ नज़दीकी बढ़ा रहा है, मुझे उसका इरादा नेक नहीं लगता!
<b>(नवभारत टाइम्स 22 नवम्बर, 2012)</b>
Neeraj Badhwarhttp://www.blogger.com/profile/15197054505521601188noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6436633004265678085.post-56554120663387841132012-11-16T06:13:00.000-08:002012-11-16T06:13:01.356-08:00छुट्टियां लेने का टेलेंट!<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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जैसे यूनिवर्सिटीज़ में विज़िटिंग प्रोफेसर होते हैं, उसी तरह हर ऑफिस में कुछ विज़िटिंग एम्पलॉई होते हैं। स्थायी होने के बावजूद, ये रोज़ ऑफिस आने की किसी बाध्यता को नहीं मानते। ऐसे लोग ऑफिस तभी आते हैं जब इन्हें ऑफिस की तरफ कुछ काम पड़ता है। और अगर ये दो दिन लगातार दफ्तर आ जाएं तो लोग इन्हें इस हैरानी से देखते हैं कि जैसे दिल्ली की सड़क पर किसी अफ्रीकन पांडा को देख लिया हो।
मगर मेरा मानना है कि ज्यादा छुट्टी लेने वाले यही लोग किसी भी ऑफिस में सबसे ज्यादा क्रिएटिव होते हैं। अब अगर आप हर हफ्ते एक-दो छुट्टी ले रहे हैं तो बॉस को जाकर ये तो नहीं कहते होंगे कि सर, मैं ये वाहियात काम कर-करके थक गया हूं, मुझे छुट्टी चाहिए। न ही हर हफ्ते आपको ये कहने पर छुट्टी मिल सकती है कि मुझे कानपुर से आ रही बुआ की लड़की को लेने स्टेशन जाना है। बुआ की लड़की जो एक बार कानपुर से आ गई है, उसे वापिस कानपुर की ट्रेन में बैठाने के लिए आप ज्यादा से ज्यादा एक छुट्टी और ले सकते हैं। जाहिर है अगली बार छुट्टी लेने के लिए आपको कुछ और बहाना बनाना पड़ेगा।
अब ये तो आपको मानना पड़ेगा कि जो आदमी हर हफ्ते इतने बहाने सोच पा रहा है, उसकी कल्पनाशक्ति अच्छी है। उसका दिमाग विचारों से भरा है। और देखा जाए तो एक तरह से ये काम सप्ताह में दो हास्य कॉलम लिखने से ज्यादा मुश्किल है। कालम लिखने के लिए आपको सिर्फ आइडिया सोचना है जबकि छुट्टी लेने के लिए आपको न सिर्फ आइडिया सोचना है बल्कि पूरी कंविक्शन के साथ बॉस के सामने उसे एग्ज़ीक्यूट भी करना है। मतलब आप जानते हैं कि आप झूठ बोल रहे हैं। बॉस भी जानता है कि आप झूठ बोल रहे हैं। बावजूद इसके बहाना इतना अकाट्य हो, एक्टिंग इतनी ज़बरदस्त हो कि बॉस को भी समझ न आए कि मैं इसे कैसे मना करूं।
ऐसे ही छुट्टी लेने वाले एक साथी कर्मचारी से जब मैंने पूछा कि वो कैसे हर हफ्ते इतने बहाने कैसे सोच पाते हैं, तो उनका जवाब था...मेरे ऊपर कोई वर्कप्रेशर नहीं रहता न इसलिए! वैसे भी बनियान का विज्ञापन कहता है...लाइफ में हो आराम तो आइडियाज़ आते हैं। अब ये आइडिया आते रहें इसीलिए मैं छुट्टियां लेता रहता हूं।
Neeraj Badhwarhttp://www.blogger.com/profile/15197054505521601188noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-6436633004265678085.post-9351456087385072572012-11-09T05:14:00.003-08:002012-11-09T05:14:42.649-08:00क़ातिल भी तुम, मुंसिफ भी तुम!<b></b><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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कहीं न होने के बावजूद राजनीति में शुचिता के अपने मायने हैं। आरोपों का कलंक यहां बहुत बड़ा होता है। ये देखते हुए कि अदालतों पर काम का पहले ही काफी बोझ है, एक नेता ज़्यादा दिन तक खुद को आरोपी कहलवाना अफोर्ड नहीं कर सकता। ऐसे में क्या किया जाए....किया ये जाए कि प्राइवेट सिक्योरिटी की तर्ज पर खुद के लिए प्राइवेट जस्टिस की व्यवस्था की जाए। अपनी ही पार्टी के दो-चार लोग जिनके साथ चाय के ठेले पर आप अक्सर चाय पीने जाते हैं, उन्हें अपने ऊपर लगे आरोपों की जांच करने का ज़िम्मा सौंपा जाए।
उनकी न्यायप्रियता का अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि चाय के साथ एक मट्ठी लेने पर जब वो उसे तोड़ते हैं, तो खुद बड़ा टुकड़ा अपने पास तो नहीं रखते या फिर संसद की कैंटीन में आलू का परांठा लेने पर उसके किस हद तक बराबर हिस्से करते हैं। एक बार जब इन गंभीर मुद्दों पर इंसाफ करने की उनकी काबिलियत से आश्वस्त हो जाएं तो अपने ऊपर लगे आरोपों की जांच शुरू करवा सकते हैं।
अपने लोगों से जांच करवाने एक फायदा ये है कि वो इस बात को समझते हैं कि बुरा इंसान नहीं, हालात होते हैं पर अदालतें ऐसी किसी ‘इमोश्नल अपील’ को काउंट नहीं करतीं। हिंदी फिल्मों के अंदाज़ में कहूं तो अदालत सिर्फ सबूत देखती है। वहीं आपके नज़दीकी लोग सबूत के अलावा आपकी नीयत भी देखते हैं। वो देखते हैं कि आपका इरादा तो नेक था पर बरसात की रात और फायरप्लेस में जल रही आग को देख आप भड़क गए और अनजाने में भूल कर बैठे। नतीजा आप बाइज्ज़त बरी कर दिए जाते हैं और आपके पार्टी प्रवक्ता मीडिया के सामने दावा करते हैं कि हमने उनकी पूरी जांच कर ली है और हम दावे से कह सकते हैं कि उन्होंने कोई गडकरी, सॉरी गड़बड़ी नहीं की!
मेरे पड़ौसी कल ही शिकायत कर रहे थे कि उनका लड़का पढ़ने में बहुत होनहार है मगर पांच साल से दसवीं में फेल हो रहा है। मैंने सवाल किया कि अगर फेल हो रहा है तो होनहार कैसे हुआ, नालायक हुआ। उनका जवाब था... ये तो सीबीएसई का आकलन है, पर मेरी उम्मीदों पर वो हमेशा ख़रा उतरता है। मैं दावा करता हूं कि इस बार सीबीएसई की जगह मुझे उसकी कॉपियां जांचने दी जाएं, वो फर्स्ट डिवीज़न लाकर न दिखाए, तो फिर कहना!
<b>(दैनिक हिंदुस्तान 9 नवम्बर, 2012)</b>
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Neeraj Badhwarhttp://www.blogger.com/profile/15197054505521601188noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6436633004265678085.post-72003060370929224352012-11-06T06:21:00.002-08:002012-11-06T06:21:56.053-08:00हज़ार करोड़ तक के घोटालों को मिले कानूनी मान्यता!<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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बुराइयों का भी अपना अर्थशास्त्र होता है। फिर चाहे वह वेश्यावृत्ति हो या सट्टेबाज़ी। तभी तो दुनिया के बहुत से देशों ने इन पर लगाम लगाने के बजाए इन्हें कानूनी मान्यता दे दी। इससे हुआ ये कि जो पैसा पहले पिछले दरवाज़े से पुलिस और प्रशासन के हाथों में जाता था, वो सरकारी ख़जाने में आने लगा। इससे धंधे में शामिल लोगों को तो सुकून मिला ही, सरकार की भी आमदनी बढ़ी।
अब ये देखते हुए कि भ्रष्टाचार भी हिंदुस्तानी समाज की एक बड़ी बुराई है और अपनी तमाम कोशिशों के बावजूद हम इसे रोकने में कामयाब नहीं हो पा रहे, सरकार को चाहिए कि रोज़-रोज़ की किचकिच से बचने के लिए अब वो इसे कानूनी मान्यता दे दे।
मंत्री से लेकर विधायक तक और अधिकारी से लेकर चपरासी तक, सभी को उनकी औकात के हिसाब से एक निश्चित सीमा तक भ्रष्टाचार करने की छूट दी जाए। मसलन, केंद्रीय मंत्री को छूट हो कि वो एक हज़ार करोड़ तक का घोटाला कर सकेगा जिसमें से दो सौ करोड़ तक का घोटाला टैक्स फ्री होगा और इसके बाद हज़ार करोड़ के घोटाले तक उसे एक निश्चित दर से सरकार को टैक्स देना होगा। साल के आख़िर में उसे फार्म 16 की तर्ज पर फार्म 420 दिया जाएगा। वित्तीय वर्ष के अंत में सीटीआर (करप्शन टैक्स रिटर्न) फाइल करना अनिवार्य होगा जिससे सरकार को पता लग पाए कि अमुक व्यक्ति ने तय सीमा में रहकर भ्रष्टाचार किया है या नहीं। और जिसने भ्रष्टाचार किया है, उसके लिए ये ‘सीटीआर’, अपने भ्रष्टाचार की वैधानिक मान्यता होगी। जैसे ही उस पर कोई घपला करने का आरोप लगाए तो वो ‘सीटीआर’ की कॉपी उसके मुंह पर मारकर कह सके कि मैंने ये सब कुछ कानून की हद में रहकर किया है। इससे घपला करने वाले आदमी की आत्मा पर कोई बोझ भी नहीं रहेगा और सरकार ये सोचकर ही तसल्ली कर लेगी कि टैक्स के बहाने ही सही, उसने अपना कुछ नुकसान तो कम किया।
दूसरी तरफ जब हम घोटालों के अर्थशास्त्र की बात करते हैं तो हमें ये भी समझना होगा कि अगर हर किसी घोटाले से सरकार को नुकसान होता है, तो उस घोटाले के विरोध में होने वाले प्रदर्शनों से निपटने में भी तो उसका अच्छा-खासा पैसा खर्च हो जाता है। मसलन, पचास लाख के घोटाले के विरोध में अगर पांच हज़ार लोग सड़कों पर उतर आएं तो उनसे निपटने के लिए पुलिस के दस हज़ार जवान लगाने पड़ेंगे। अब ये जवान अगर दिनभर उन लोगों से निपटते रहे तो इनकी एक दिन की तनख्वाह जोड़िए। इन पांच हज़ार लोगों को काबू करने के लिए अगर एक रात स्टेडियम में रखना पड़ा तो स्टेडियम का किराया जोड़िए। अब बंदी बनाया है, तो भूखा तो रख नहीं सकते, लिहाजा पांच हज़ार लोगों को रात का खाना खिलाना पड़ेगा। सुबह छोड़ने से पहले चाय देनी होगी।
इसके बाद जिस आदमी पर इल्ज़ाम लगाया है, अगर वो दिन में प्रेस कांफ्रेंस कर दो घंटे अपनी सफाई देगा तो उसे कवर करने वहां दसियों ओबी वैन लगेंगी। बीसियों रिपोर्टर होंगे। बाद में सरकार जांच कमीशन बैठाएगी। उसकी असंख्य बैठकें होंगी। उन अंसख्य बैठकों में बिस्किट-भुजिया के हज़ारों पैकेट खाए जाएंगे। और जब तक जांच कमीशन का रिपोर्ट आएगी, पता चला कि अकेले उस बिस्किट-भुजिया का खर्च ही पचास लाख से ऊपर चला गया और जिस आदमी पर आरोप लगा था उसके खिलाफ भी कोई सबूत नहीं मिला।
और अगर सरकार इस तरह के विरोध-प्रदर्शनों से होने वाली फिज़ूलखर्ची से बचना चाहती है तो उसे भ्रष्टाचार की सीमा तय करते हुए उसे कानूनी मान्यता दे देनी चाहिए। वैसे भी निवेश को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि अभी अच्छी नहीं है। दुनिया क्या सोचेगी कि जिस देश में कल तक पौने दो-दो लाख के घोटाले हुआ करते थे, आज वो कुछ एक लाख के घोटाले पर हाय तौबा मचा रहा है। हो सकता है कि घोटालों की गिरती रकम देख कोई क्रेडिट एजेंसी फिर से भारत की साख गिरा दे। एक मंत्री तो पहले ही कह चुके हैं कि भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलन की वजह से निवेशक भारत से दूर भाग रहे हैं, अगर ऐसा हुआ तो उन्हें सबूत और मिल जाएगा।
<b>(नवभारत टाइम्स 6 नवम्बर, 2012)</b>
Neeraj Badhwarhttp://www.blogger.com/profile/15197054505521601188noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6436633004265678085.post-15038303898036954972012-11-02T08:09:00.003-07:002012-11-02T08:09:29.219-07:00ईमानदारी का परसेंटेज तय हो!<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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ज्यादा ईमानदारी जानलेवा भी साबित हो सकती है। आत्महत्या करना चूंकि विकल्प नहीं है इसलिए जानकार सलाह देते हैं कि ‘व्यवहारिक’ बनो। मतलब ईमानदारी का आह्वान मानों, मगर हालात के हिसाब से भ्रष्ट भी हो जाओ। और यहीं से सारी गड़बड़ शुरू होती है। जो स्वाभाविक तौर पर भ्रष्ट हैं, उन्हें लगता है ‘हमें बदलने की ज़रूरत नहीं’ और जो थोड़े बहुत ईमानदार हैं, वो ‘हालात के हिसाब से’ का ठीक से हिसाब से नहीं लगा पाते।
तभी आप देखते हैं कि मंत्रिमंडल फेरबदल में एक मंत्री को इसलिए अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी क्योंकि उसने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए नज़दीकियों को फायदा पहुंचाया और दूसरे का विभाग इसलिए बदला गया क्योंकि उसने पद पर रहते हुए कुछ ख़ास लोगों को फायदा नहीं पहुंचने दिया। मतलब एक को बेईमानी की सज़ा मिली और दूसरे को ईमानदारी की।
हर मंच से चूंकि आहवान ईमानदारी का ही किया जाता है, इसलिए जो इस फेरबदल से अप्रभावित रहे, वो तय नहीं कर पा रहे कि उन्हें ईमानदारी की कौनसी मुद्रा अपनानी है। अपनी कार्यशैली में ऐसे कौनसे भाव लाने हैं जिससे वो दुनिया को शराफत का पुतला दिखें और अपनी शराफत में इतना भी आक्रामक नहीं होना कि सरकार इस पुतले का ही दहन कर दे।
लिहाज़ा मेरी सरकार से गुज़ारिश है कि वो आज ही ईमानदारी को लेकर एक गाइडलाइन जारी करे। गणितिय विश्लेषण में माहिर कपिल सिब्बल बताएं कि एक मंत्री और नौकरशाह को कितने परसेंट ईमानदार होना चाहिए। कितने प्रतिशत से कम ईमानदार होने पर उसे मंत्रिमंडल से निकाला जा सकता है और कितने फीसद से ज्यादा कर्तव्यनिष्ठ होने पर उसका विभाग बदला जा सकता है।
सरकार, नौकरशाहों को आदेश दे कि तुम्हें किसी भी भ्रष्टाचारी को छोड़ना नहीं है सिवाए...अब इस ‘सिवाए’ के अंतर्गत उन कम्पनियों, रिश्तेदारों, परिचितों के नाम दिए जाएं जिनसे सरकार में बैठे लोगों के नज़दीकी सम्बन्ध हैं। जैसे ही ये लोग कोई ज़मीन हड़पें तो उसका लैंडयूज़ बदलकर उसे ‘एसआरज़ेड’ यानि स्पेशल रिलेटिव ज़ोन की श्रेणी में डाल दिया जाए। और एक बार कोई ज़मीन एसआरज़ेड की श्रेणी में आ जाए तो उस पर भूमि अधिग्रहण के मौजूदा कानून अमान्य माने जाएं।
मेरी सलाह है कि इस गाइडलाइन को आज ही तबादलों की धमकी के साथ तमाम मंत्रियों और अधिकारियों को भेजा जाए। उम्मीद है वो मान जाएंगे। आख़िर ईमानदारी भी तो स्टेबिलिटी चाहती है।
Neeraj Badhwarhttp://www.blogger.com/profile/15197054505521601188noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-6436633004265678085.post-58950444187143027142012-10-19T06:18:00.003-07:002012-10-19T06:18:43.576-07:00प्लीज़! अपनी प्यास घटाओ!<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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चुनावों से पहले हर पार्टी दफ्तर के बाहर कार्यकर्ताओं की फौज लगी रहती है। हर किसी की यही कोशिश होती है कि जैसे-तैसे उसे टिकिट मिल जाए। इसी कोशिश में कार्यकर्ता अक्सर आपस में भिड़ पड़ते हैं। एक-दूसरे के सिर फोड़ देते हैं, गाली-गलौज करते हैं, लहूलुहान हो जाते हैं। और ये सब सिर्फ इसलिए कि किसी तरह उन्हें टिकिट मिल सके और चुनाव जीतकर वो देश की सेवा कर पाएं।
अब अगर आप अपने आसपास नज़र दौड़ाएं तो पाएंगे कि सेवा को लेकर ऐसी मारा-मारी शायद ही कहीं और मची हो। और अगर आप ये सोच रहे हैं कि सिर्फ चुनाव जीतने से राजनीति में लोगों की सेवा करने की तड़प शांत हो जाती है, तो आप ग़लत हैं। कोरा विधायक या सांसद बनने पर इन्हें व्यर्थता बोध सताने लगता है। ये महसूस करते हैं कि सेवा करने के जो ‘मंसूबे’ लेकर ये राजनीति में आए थे, वो तब तक पूरे नहीं हो सकते, जब तक कि इन्हें कोई मंत्री पद न मिल जाए। कुछ को मिल भी जाता है। मगर उनके अंदर का सेवादार इतना डिमांडिंग होता है कि कुछ समय बाद वो किसी महत्वपूर्ण मंत्रालय की मांग करने लगता है। इस तरह ये सिलसिला चलता रहता है। कालांतर में औकात के हिसाब से एक राजनेता राजनीति में सेवा करने की अपनी समस्त संभावनाओं को पा भी जाता है।
मगर फिर किसी रोज़ पता चलता है कि उसने तो गरीब, बेसहारा लोगों की मदद के लिए एक ट्रस्ट भी खोल रखा है। बस, ये जानकर मैं अपने आंसू नहीं रोक पाता। खुद पर कोफ्त होने लगती है। अपने स्वार्थी जीवन पर मेरा सिर घुटने तक शर्म से झुक जाता है। दिल करता है कि इनसे पूछूं, भाई, एक जीवन में तुम इतनी सेवा कैसे मैनेज कर लेते हो। क्या लोगों की सेवा करते-करते तुम्हारा पेट नहीं भरता। तुम्हारी प्यास नहीं बुझती। मैं तो दिनभर में पांच मिनट से ज़्यादा अच्छी बात कर लूं तो मुझे मितली आने लगती है। और एक तुम हो कि...सच बताओ...कहीं तुम विज्ञापन वाली उस अभिनेत्री की बातों में तो नहीं आ गए जो कहती है...अपनी प्यास बढ़ाओ। अगर ऐसा है तो मैं आज ही उससे गुज़ारिश करता हूं कि एक बार तुमसे कह दे...अपनी प्यास घटाओ। प्लीज़ घटाओ...ये देश तुमसे रहम की भीख मांगता है।
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Neeraj Badhwarhttp://www.blogger.com/profile/15197054505521601188noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-6436633004265678085.post-8487133285975447912012-10-12T06:54:00.002-07:002012-10-12T06:54:49.658-07:00घोटालेबाज़ों का क्रिएटिव ब्लॉक!<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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हिंदुस्तान में जैसे ही कोई घोटाला सामने आता है तो आप घपला करने वालों की कल्पनाशक्ति और मौलिकता पर फिदा हो जाते हैं। अकेले बैठे आप यही सोचते हैं कि क्या ऐसा भी हो सकता था, क्या ये भी किया जा सकता था? वाह! ये सब लोग कितने महान और क्रिएटिव हैं। मौका मिले तो ज़रूर इनके चरण स्पर्श करना चाहूंगा।
मगर ये देख अफसोस होता है कि घोटालाशील व्यक्ति घोटाले के दौरान जितना कल्पनाशील होता है, पकड़े जाने पर वो उतना ही मामूली बर्ताव करने लगता है। तभी तो बचाव में हर भ्रष्टाचारी की दलीलें एक सी होती है। मसलन, ‘ये आरोप मेरे खिलाफ एक साज़िश हैं’। आप सोचते हैं, भाई, पांच साल में आम आदमी की तनख्वाह पांच हज़ार नहीं बढ़ी और तुमने अपनी सम्पत्ति पांच हज़ार गुणा बढ़ा ली। ऊपर से कहते हो कि ये आरोप मेरे खिलाफ साज़िश है। अगर ये साज़िश है तो तुम शुक्रिया अदा करो माता रानी का जिसने इस साजिश का शिकार बनने के लिए तुम्हें चुना। वरना तो पांच हज़ार कमाने वाले आदमी को ज़िंदगी ही अपने खिलाफ एक साज़िश लगने लगती है।
वो फिर कहता है कि नहीं, ये आरोप मेरे खिलाफ साज़िश हैं और आप कहते हैं, यार, मज़ा नहीं आया। ऐसा करो तुम दो दिन और ले लो मगर किसी बढ़िया बहाने के साथ आओ। प्लीज़ बी मोर क्रिएटिव। इस लाइन में पंच नहीं है!
वो दो दिन और लेता है और फिर कहता है, ‘मेरे खिलाफ ये आरोप सस्ती लोकप्रियता बटोरने के लिए लगाए गए हैं’। आप अपना सिर पीटते हैं और कहते हैं, क्या हो गया है तुम्हें मेरे काबिल दोस्त। ‘सस्ती लोकप्रियता’ का बहाना तो शाहिद आफरीदी के बर्थ सर्टिफिकेट से भी पुराना है। वैसे भी महंगाई के इस दौर में जब तुम सस्ते या मुफ्त लोन ले सकते हो तो क्या दुनिया सस्ती लोकप्रियता नहीं बटोर सकती। कुछ नया बताओ। आपके बार बार कहने पर भी वो कुछ नया नहीं बता पाता और बताए भी कैसे? इस देश में भ्रष्टाचार करते वक्त आदमी को ये अटूट विश्वास होता है कि वो कभी पकड़ा नहीं जाएगा। इसलिए वो अपनी सारी कल्पनाशक्ति भ्रष्टाचार में तो लगा देता है मगर पकड़े जाने के बाद क्या कहना है, इस बारे में कभी नहीं सोचता। तभी तो जो नवीनता उनके घोटालों में होती है, वो उनके बहानों में नहीं।
Neeraj Badhwarhttp://www.blogger.com/profile/15197054505521601188noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-6436633004265678085.post-62467276933617973912012-10-10T06:42:00.003-07:002012-10-10T06:42:54.851-07:00आलसियों से बची है दुनिया की शांति!<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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अगर आप बेहद आलसी हैं और हर वक्त इस गिल्ट में जीते हैं कि आपका सारा दिन पड़े रहने में बीतता है और कोई भी काम आप वक्त पर नहीं करते तो आपको ज़रा-भी शर्मिंदा होने की ज़रूरत नहीं है। मेरा मानना है कि मौजूदा समय में दुनिया में जो थोड़ी-बहुत शांति बची है, उसका सारा क्रेडिट आलसियों को जाता है।
रजनीश ने कहा भी है, पश्चिम का दर्शन कर्म पर आधारित है और भारतीय दर्शन अकर्मण्यता पर। और अगर आप इतिहास पर नज़र दौड़ाएं तो पाएंगे कि दुनिया का इतना कबाड़ा ‘न करने वालों’ ने नहीं किया, जितना ‘करने वालों ने’ किया है। दरअसल कर्म इक्कीसवीं सदी का सबसे बड़ा संकट है और वैश्विक शांति को लेकर आलसी; इक्कीसवीं सदी की आख़िरी ‘होप’ है। लिहाज़ा आलसियों को कोसने के बजाए, मानव व्यवहार के अध्येताओं को इन शांति दूतों को समझना चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ियां इनसे सबक ले अमन के रास्ते पर आगे बढ़ पाएं।
दरअसल ज़्यादातर आलसी बचपन से ही मानकर चलते हैं कि उनका जन्म कुछ महान करने के लिए हुआ है। नहाने के बाद तौलिये को रस्सी पर सुखाने और खाने के बाद थाली को रसोई में रखने जैसे मामूली काम करने के लिए वो पैदा नहीं हुए। इसलिए वो हमेशा कुछ ‘अलग’ करने की सोचते हैं। मगर इस ‘सोचने’ में उन्हें इतना आनन्द आने लगता है कि वो ‘सोचने’ को ही अपना पेशा बना लेते हैं।
घरवालों की नज़र में जिस समय एक आलसी ‘पड़ा’ होता है, उस समय वो दूसरी दुनिया से कनेक्ट होता है। वो कुछ सोच रहा होता है। उसे साफ-साफ कुछ दिखाई दे रहा होता है। घरवाले सोचते हैं कि उसने चाय पीकर गिलास जगह पर नहीं रखा, मगर वो ये नहीं देख पाते कि ‘शून्य’ में ताकता उनका लाडला उस समय किसी महान नतीजे पर पहुंच रहा होता है। दुनिया की किसी बड़ी समस्या का हल निकाल रहा होता है।
अब सोचना चूंकि इत्मीनान का काम है, इसलिए वो कोई डिस्टरबैंस नहीं चाहते। यही वजह है कि ज़्यादातर आलसी बहस और झगड़े अवोयड करते हैं। उन्हें लगता है कि झगड़ने से सोचने का क्रम टूटेगा। बीवी से झगड़ा होने पर अपनी ग़लती न होने पर भी आलसी माफी मांग लेता है। इस तरह आसानी ने हथियार डालने पर आलसियों की बीवियां अक्सर नाखुश रहती हैं। पति से झगड़ों में कोई चैलेंज न मिलने पर उनमें एक अलग किस्म का डिप्रेशन आने लगता हैं।
इस बारे में मैंने प्रसिद्ध मनोवैग्यानिक चिंटू कुमार से बात की तो उनका कहना था कि दरअसल झगड़ा एक ऐसी क्रिया है जिसके लिए किसी भी व्यक्ति को अपने कम्फर्ट ज़ोन से निकलना पड़ता है। उसके लिए या तो आपको अपना बिस्तर छोड़ना होगा या फिर अपने डेली रूटीन से समझौता करना होगा और दोनों ही बातें आलसी के बस की नहीं।
चिंटू कुमार आगे कहते हैं “हम सभी ये तो कहते हैं कि मोटे लोग स्वभाव से बड़ा मज़ाकिया होते हैं मगर क्या कभी सोचा है, ऐसा क्यों है। दरअसल मोटे लोगों को उनका भारी भरकम शरीर झगड़ने की इजाज़त नहीं देता। ज़्यादा वजन के चलते वो न तो किसी को मार के भाग सकते हैं और न ही किसी के मारने पर भागकर खुद को बचा सकते हैं। इसलिए मोटा व्यक्ति या तो झगड़े की स्थिति पैदा ही नहीं होने देता और अगर कोई और बदतमीज़ी करे, तो बड़ा दिल दिखाते हुए उसे माफ कर देता है। इस तरह अपवाद को छोड़ दें तो पहले आप अपनी अकर्मण्यता की वजह से मोटे हुए और फिर इस मोटापे की वजह से शांतिप्रिय बनें और समाज में ये ख्याति बटोरी कि ‘भाईसाहब तो बड़े मज़ाकिया हैं’, सो अलग!”
मुझे याद है दलाई लामा ने एक दफा कहा था कि ज़्यादातर भारतीय नई जगहों को इसलिए नहीं खोज पाएं क्योंकि वो स्वभाव से आलसी हैं। इसका दूसरा पहलू ये है कि जो लोग नई जगह खोजने गए भी, उन्होंने भी वहां जाकर स्थानीय लोगों को लूटने और उनसे झगड़ने के अलावा क्या गुल खिलाया। सोचें ज़रा...अगर कोलम्बस ज़रा भी आलसी होता तो ये दुनिया आज उससे कहीं अधिक शांत होती, जितनी आज ये है। सच... कोलम्बस की सक्रियता ने हमें मरवा दिया।
Neeraj Badhwarhttp://www.blogger.com/profile/15197054505521601188noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-6436633004265678085.post-6375596512716719572012-10-05T06:16:00.001-07:002012-10-05T06:16:42.590-07:00प्यार अंधा होता है, वो बर्थ सर्टिफिकेट नहीं देखता!<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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हिना रब्बानी खार और बिलावल भुट्टो के अफेयर की ख़बर सामने आने के बाद चारों ओर उसकी आलोचना हो रही है। पर मुझे अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि इन आलोचनाओं में तर्क कम और लोगों की फ्रस्ट्रेशन ज्यादा झलक रही है।
कुछ लोगों का कहना है कि हम तो समझते थे हिना रब्बानी खार पाकिस्तान की ‘एक्सटर्नल अफेयर्स मिनिस्टर’ हैं, मगर वो तो पाकिस्तान की ‘एक्सट्रा मैरिटल अफेयर्स मिनिस्टर’ निकलीं। वहीं कुछ का कहना है कि हिना ने खुद से 11 साल छोटे बिलावल से सम्बन्ध बनाए हैं, अब हमें ये समझ नहीं आ रहा कि वो उनसे शादी करेंगी, या उन्हें गोद लेंगी। वैसे उनकी पहले से दो बेटियां हैं, अगर वो बेटा गोद लेना चाहें, तो बिलावल लड़का बुरा नहीं है!
बहरहाल लोगों की इसी तरह की आलोचनाओं और विवाहेतर सम्बन्धों के बारे में ज्ञान बढ़ाने के लिए मैंने स्थानीय कलंक कथाओं के एक जानकार से बातचीत की। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश:
सर, बिलावल भुट्टो और हिना रब्बानी खार के सम्बन्ध के बारे में आपका क्या कहना है क्योंकि ज़्यादातर लोगों का मानना है कि दोनों की उम्र में 11 साल का फर्क है, इसलिए उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था।
जानकार: बरखुरदार, मुझे नहीं पता कि तुम प्यार के बारे में कितना जानते हो। मगर क्या तुमने सुना नहीं कि प्यार अंधा होता है। ये जात-पांत रंग-रूप कुछ नहीं देखता। अब जब वो जात-पांत नहीं देखता, तो बर्थ सर्टिफिकेट कैसे देख सकता है।
लड़के को अगर लड़की से प्यार हुआ है तो क्या पहला सवाल वो उससे ये पूछेगा, “मैं आपसे प्यार तो करता हूं मगर आप बुरा न मानें तो क्या मैं आपकी दसवीं की मार्कशीट देखकर आपकी उम्र जान सकता हूं। एक बार अगर ये कंफर्म हो जाए कि आप उम्र में मुझसे बड़ी नहीं हैं, तो हम इस प्यार पर आगे बात कर सकते हैं।”
ये कोई कमर्शिल डील नहीं होती बेटा। दिलों का लेन-देन सामान का लेन-देन नहीं है, जहां आप सौदा करने से पहले नियम और शर्तें पढ़ते हैं। ये तो बस हो जाता है।
मैंने कहा, “सर वो तो ठीक है मगर एक शादीशुदा इंसान के अफेयर को आप कैसे जायज़ ठहरा सकते हैं”।
जानकार (खीझते हुए): बच्चे उम्र के साथ-साथ अगर तुम्हारे दिमाग का भी बराबर विकास हुआ होता तो तुम ऐसा सवाल न पूछते!
जी, मतलब?
जानकार:मतलब ये कि मैंने तुम्हें अभी समझाया कि प्यार अंधा होता है। अब जब वो बर्थ सर्टिफिकेट नहीं देख सकता, तो भला मैरिज सर्टिफिकेट कैसे देखेगा...क्या तुम्हें इतनी सी बात भी समझ नहीं आती!
लेकिन सर, विवाहेतर सम्बन्धों से आदमी का वैवाहिक जीवन ख़राब होता है, उसका क्या?
जानकार:ये तुमसे किसने कह दिया। उल्टा एक्सट्रा मैरिटल अफेयर के बाद तो इंसान की वैवाहिक ज़िंदगी पहले से बेहतर हो जाती है। जो बीवी आपको सालों से खुद पर ध्यान न देने का ताना देती है, विवाहेतर सम्बन्धों के बाद आप जब भी उसे देखते हैं, तो आपको गिल्ट होता है। आप मन ही मन सोचते हैं कि ये मैं इसके साथ अच्छा नहीं कर रहा। और इसी गिल्ट से बचने के लिए आप उसे ज़्यादा प्यार करते हैं। बीवी ये सोचकर खुश होती है कि उसने जो 11 सोमवार के व्रत रखे हैं, ये उसका प्रताप है, फव्वारे वाले शनि मंदिर के पंडित जी से जो काला धागा बंधवाया है, उसकी कृपा है।
इस सबका असर ये होता है कि बीवी पहले से ज्यादा धार्मिक हो जाती है और आप ‘आउट आफ गिल्ट’ ही सही, बीवी से प्यार तो करने लगते हैं। वैसे भी मेरा तजुर्बा है, शादी के कुछ साल बाद बिना किसी गिल्ट के बीवी से प्यार किया ही नहीं जा सकता।
हां, विवाहेतर सम्बन्धों को लेकर अगर मेरी कोई शिकायत है, तो वो इसके नाम को लेकर है। अंग्रेज़ी का ‘एक्सट्रा मैरिटल अफेयर’ शब्द कितना खूबसूरत है। कितना म्यूज़िक है इस शब्द में। जबकि हिंदी का ‘विवाहेतर सम्बन्ध’ काफी औपचारिक साउंड करता है। अगर कोई नाम देना ही है तो हमें इसे ‘विवाहेतर सम्बन्ध’ नहीं, ‘विवाहेतर जीवन’ कहना चाहिए। विवाह के इतर जीवन। ऐसा जीवन जिससे एक उबाऊ वैवाहिक जीवन को नया जीवनदान मिलता है!
Neeraj Badhwarhttp://www.blogger.com/profile/15197054505521601188noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-6436633004265678085.post-54474541144923443372012-09-18T23:35:00.002-07:002012-09-18T23:35:23.024-07:00राजनीतिक दलों में उठी एफडीआई की मांग!<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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रिटेल सेक्टर में एफडीआई की मंज़ूरी के बाद जिस तरह की राजनीति हो रही है उससे आम आदमी तंग आ चुका है। वो मांग कर रहा है कि क्यों न राजनीति में भी एफडीआई को मंज़ूरी दे दी जाए ताकि अमेरिका की डेमोक्रेट और इंग्लैंड की लेबर पार्टी भारत में आकर वैसे ही अपनी गतिविधियां संचालित कर पाएं, जैसे वॉल मार्ट या अन्य रिटेल कम्पनियां भविष्य में करेंगी।
जो लोग राजनीति में एफडीआई की बात कर रहे हैं, उनके पास अपने तर्क हैं। इस बारे में मैंने प्रमुख राजनीतिक चिंतक दिलीप शूरवीर से बात की तो उनका कहना था, “देखिए, जब ये कहा जाता है कि भारत में राजनीति धंधा हो गई तो हमारा मतलब होता है कि राजनीति में हर आदमी पैसा बनाने आता है, और उसे किसी के नफे-नुकसान की कोई फिक्र नहीं होती।
दूसरा, अगर आप राजनीतिक दलों पर नज़र डालें तो पाएंगे कि हर जगह बाप की विरासत को बेटा या बाकी रिश्तेदार संभाल रहे हैं। कांग्रेस से लेकर समाजवादी पार्टी और शिवसेना से लेकर डेएमके तक, हर पार्टी में यही नज़ारा है। इस रूप में ये पार्टियां राजनीतिक दल न होकर, राजनीति की दुकानें हैं और पार्टी अध्यक्ष का पद वो गल्ला है, जिसे बाप के बाद बेटा संभालता है।
जैसे मिठाई की, जूस की, किराने की, नाई की दुकान होती है उसी तरह अलग-अलग पार्टियों के रूप में हिंदुस्तान में राजनीति की भी बहुत सारी दुकानें हैं। इसलिए मेरा मानना है कि अगर रीटेल सेक्टर में विदेशी कम्पनियों को आने की इजाज़त दी जा रही है, तो विदेशी राजनीतिक दलों को भी मौका मिलना चाहिए।
वैसे भी एक ग्राहक के नाते हमारे लिए जितना ज़रूरी उचित कीमत और अच्छी क्वॉलिटी की चायपत्ती खरीदना है, उससे कहीं ज़्यादा ज़रूरी है कि अपने लिए ईमानदार और सक्षम राजनेता चुनना। चाय का पैकेट तो फिर भी दस दिन में नया ला सकते हैं, मगर एक बार ख़राब नेता चुनने लिया तो पांच साल तक पछताना पड़ेगा।”
इस पर जब मैंने उनसे पूछा कि मगर विदेशी जब भारत आएंगे तो क्या हमारी जनता उन्हें स्वीकार करेगी, वो तो हमारी भाषा तक नहीं जानते? तो श्री शूरवीर ने कहा, “देखिए पिछले डेढ़ दशक की हमारी राजनीति ने ये साबित किया है कि ‘विदेशी मूल’ हमारे लिए कोई मुद्दा नहीं है। रही बात भाषा की, तो जैसे हमारे बहुत-से नेता रोमन में लिखा भाषण हिंदी में पढ़ते हैं, उसी तरह विदेशी राजनेता भी पढ़ लेंगे।”
“मगर क्या इस तरह का भाषण जनता को समझ आएगा और भाषण ही समझ नहीं आएगा तो फिर आम आदमी अपने नेता से संवाद कैसा करेगा?”
श्री शूरवीर (हंसते हुए), “देखिए श्रीमानजी, गंभीर बात करते-करते अब आप मज़ाक पर उतर आए हैं। अगर हमारे नेता जनता से संवाद करते होते, तो राजनीति में एफडीआई की मांग उठती ही क्यों? वैसे भी बात कर आम आदमी नेताओं को अपनी हालत ही बताएगा और जो हालत उन्हें इतने सालों में देखकर समझ नहीं आ रही है, वो बात करने से भला ज़्यादा कैसे समझ आ जाएगी!”
<b>सशर्त समर्थन को तैयार
</b>
बहरहाल, राजनीति में एफडीआई के बारे में जब हमने एक नेता जी से उनकी प्रतिक्रिया ली तो उनका कहना था कि कोई भी चीज़ एकतरफा नहीं होती। अगर विदेशी राजनीतिक दल भारत आना चाहतें हैं तो उनका स्वागत है, मगर हमारी पार्टियों को भी वहां न सिर्फ जाने की, बल्कि अपने तरीके से राजनीति करने की इजाज़त दी जाए!
मसलन, अगर हमारी पार्टी की लॉस एंजेलिस में कोई सभा है तो हमें छूट मिले कि हम न्यूयार्क से ट्रालियों में लोगों को भरकर लॉस एंजेलिस ला सकें। चुनाव जीतने के बाद लंदन के हर गली-चौराहे पर अपनी मूर्तियां स्थापित कर सकें, यूरोपियन यूनियन की मज़बूती के लिए स्पेन से लेकर फ्रांस तक रथ यात्रा निकाल सकें, और तो और बारबाडोस और मालदीव में जब चाहें किसी भारतीय मूल के किसी दलित परिवार के घर धावा बोलकर खाना खा सकें।
अब अगर वो अपने-अपने देशों में भारतीय नेताओं को ये सब गुल खिलाने देने के लिए तैयार हैं तो जब चाहें भारत आकर हमसे दो-दो हाथ कर सकते हैं!
Neeraj Badhwarhttp://www.blogger.com/profile/15197054505521601188noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6436633004265678085.post-34852511683887803392012-09-17T23:25:00.002-07:002012-09-17T23:25:46.194-07:00सरकार जनता को भंग कर दे!<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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ये कतई ज़रूरी नहीं है कि जनता को ही योग्य सरकार न मिले। ऐसा भी हो सकता है कि सरकार को ही योग्य जनता न मिल पाए। और मुझे अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि हम भारतवासी जनता के रूप में सरकार के योग्य नहीं।
तभी तो सरकार जब बिना बोली के टेलीकॉम स्पेक्ट्रम और कोयला ब्लॉक बेचती है तो हम कहते हैं लाखों करोड़ का घोटाला हुआ है। वो समझाती है कि इससे तुम्हें ही कॉल रेट सस्ती पड़ेगी, सस्ती बिजली मिलेगी, मगर हम नहीं मानते। हम शिकायत करते हैं कि ये राष्ट्रीय संसाधनों के साथ खिलवाड़ है, इसकी उचित कीमत वसूली जानी चाहिए थी।
सरकार अच्छे बच्चे की तरह हमारी बात मान अगले दिन जब डीज़ल और रसोई गैस की कीमत बढ़ाती है तो हम चिल्लाते हैं, अरे, ये तुमने क्या किया।
हमारे ‘ओवररिएक्शन’ को सरकार समझ नहीं पाती और पूछती है, “क्यों अब क्या हुआ, तुमने ही तो कहा था कि राष्ट्रीय महत्व की चीज़ों की उचित कीमत वसूलनी चाहिए।” आम आदमी कहता है,“वो तो ठीक है, मगर हमसे क्यों?”
सरकार को चूंकि अगले चुनाव में आपसे फिर वोट मांगना है इसलिए वो इस ‘हमसे क्यों’ का जवाब नहीं देती। मगर मैं पूछता हूं कि अगर तेल कम्पनियों को रोज़ाना लाखों का घाटा हो रहा है तो ये घाटा आपसे नहीं, तो क्या मिस्र की जनता से वसूला जाएगा?
हर वक्त ये मानते रहना कि सारे बलिदान हम ही कर रहे हैं, खुद को ज़बरदस्ती शहीद मानने वाली बात है। अगर आपको सालभर में सब्सिडी वाले सिर्फ छह सिलेंडर ही मिलेंगे तो उन नेताओं के बारे में भी सोचिए, जिनके ग्यारह-ग्यारह बच्चे हैं। उनके तो सारे सब्सिडाइज्ड सिलेंडर पहले महीने में ही ख़त्म हो जाएंगे।
इसी तरह डीज़ल की बढ़ी कीमतों पर ऐसे लोग भी हायतौबा मचा रहे हैं जो सालों से पेट्रोल कार यूज़ कर रहे हैं। जिस दुख से वो वाकिफ नहीं, उसके बारे में चिल्लाकर भ्रम पैदा कर रहे हैं। इससे समाज में तनाव फैल सकता है। लिहाज़ा मेरा सरकार से अनुरोध है कि सख्त कार्रवाई करते हुए ऐसे लोगों के खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा चलाया जाए तभी वो सुधरेंगे।
ब्रेताल्ड ब्रेस्ट की एक कविता की पंक्ति है, “सरकार इस जनता को भंग कर दे और अपने लिए नई जनता चुन ले”! यूपीए सरकार चाहे तो ब्रेताल्ड की ये सलाह मान सकती है।
<b>(दैनिक हिंदुस्तान, 17 सितम्बर)</b>
Neeraj Badhwarhttp://www.blogger.com/profile/15197054505521601188noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-6436633004265678085.post-56449242489140386402012-09-14T10:57:00.000-07:002012-09-14T10:57:28.190-07:00सांस्कृतिक अभिव्यक्ति का माध्यम है भ्रष्टाचारदोस्तों, पहचान का इस बात से कोई ताल्लुक नहीं है कि वो अच्छी है या बुरी। ज्यादा मायने रखता है उस पहचान को बनाने के लिए की गई मेहनत। मसलन अगर कोई आदमी मोहल्ले का सबसे बड़ा गुंडा कहलाता है तो वो छह महीने पहले किसी को एक चपत लगाकर तो गुंडा बना नहीं। इसके लिए उसने सच्ची लगन और निष्ठा से महीनों तक न जाने कितनों की हड्डियां तोड़ी। उसी तरह कोई एक्टर एक हिट फिल्म देकर सुपरस्टार नहीं बनता, इसके लिए उसे दसियों सुपरहिट फिल्में देनी पड़ती है।
मतलब, पहचान कोई ‘हादसा’ नहीं है, ये एक दिशा में किया गया ‘डेलीब्रेट एफर्ट’ हैं। इसलिए जब कोई इंसान या राष्ट्र अपनी पहचान नकारता है, तो मुझे समझ नहीं आता वो चाहता क्या है। सालों तक पहचान बनाने के लिए एक तो तुमने इतनी मेहनत की और जब दुनिया तुम्हें उस रूप में मान्यता देने लगी है, तो तुम नखरे कर रहे हो। और यही मेरी सबसे बड़ी आपत्ति है कि आज जब पूरी दुनिया भ्रष्ट राष्ट्र के रूप में भारत को मान्यता दे रही है, तो हम इतने नखरे क्यों कर रहे हैं। ऐसा करके हम दुनिया से तो अपने सम्बन्ध तो ख़राब कर ही रहे हैं, उस मेहनत का भी अपमान कर रहे हैं जो पिछले साठ सालों में हमारे हुक्मरानों ने की है। वक्त आ गया है कि दुनिया की इस मान्यता के लिए हम उसका शुक्रिया अदा करें और उसे बताएं कि कैसे भ्रष्टाचार हमारे यहां ‘सांस्कृतिक अभिव्यक्ति’ का सबसे बड़ा माध्यम है। उन्हें समझाए कि हमारी लाइफ में भ्रष्टाचार नहीं है बल्कि भ्रष्टाचार हमारे लिए ‘वे आफ लाइफ है’। और ये तमाम बातें निम्नलिखित बिंदुओं के ज़रिए समझाई जा सकती है।
<b>वस्तु से पहले व्यक्ति</b>: ऐसे समय जब दुनिया, दुनिया न होकर एक बहुत बड़ा बाज़ार हो गई है और हर चीज़ बिकने के लिए उपलब्ध है, इसे हमारे संस्कार ही कहे जाएंगे कि आज भी हम हर बिक्री में वस्तु से पहले व्यक्ति को तरजीह देते हैं। तभी तो हम अरबों की कोयला खदानों को ‘जनता के फायदे’ के लिए बिना ऑक्शन के कौड़ियों के भाव बेच देते हैं और दो कोडी के खिलाड़ियों को आईपीएल के ऑक्शन में करोड़ों रूपये दिलवा देते हैं।
‘आम आदमी’ को काल रेट मंहगा नहीं पडे इसलिए टेलीकाम मंत्री स्पेक्ट्रम की बोली नहीं लगवाते और ऊर्जा मंत्री दलील देते हैं कि अगर खदानों की बोली लगाई जाती तो ‘आम आदमी’ को बिजली महंगी पड़ती। अब ध्यान देने लायक बात ये है कि जिसे दुनिया लाखों करोड़ का घोटाला कहते नहीं थक रही, उसके केंद्र में आम आदमी की चिंता है!
अब आम आदमी की चिंता कर अगर हम कुछ नुकसान उठा रहे हैं तो ये हमारी मूर्खता नहीं, हमारे संस्कार हैं और जैसा कि सभी जानते हैं, व्यक्ति हो या राष्ट्र संस्कारवान होने की कुछ कीमत तो सभी को चुकानी ही पड़ती है!
<b>सामाजिक न्याय का अस्त्र:</b> प्रमोशन में आरक्षण के लिए भले ही कुछ लोग राजनेताओं को कोस रहे हो मगर उन्हें ये भी देखना चाहिए राजनीति में भ्रष्टाचार के मौके सभी को देकर हमारे नेता अपने स्तर पर तो उसकी शुरूआत कर ही चुके हैं। तभी तो दलित होने के बावजूद ए राजा पौने दो लाख करोड़ का टेलीकाम स्पैक्ट्रम घोटाले कर देते हैं और आदिवासी होने के बावजूद मधु कोड़ा चार हज़ार करोड़ का मनी लांडरिंग घोटाला। पिछड़ी जाति के लालू यादव एक सौ पचास करोड़ का चारा घोटाला कर भैंसों का निवाली छीन लेते हैं और मुस्लिम होने के बावजूद हसन अली को 80,000 करोड़ की टैक्स चोरी करने में कोई दिक्कत नहीं आती।
अगर इस देश में आप आदमी से पूछे कि क्या कभी उसे उसकी जाति या धर्म की वजह से कोई भेदभाव झेलना पड़ा तो हो सकता है वो आपको दसियों कारण बता दें मगर किसी घपलेबाज़ को शायद ही कभी उसकी जाति या धर्म की वजह से भ्रष्टाचार करने से किसी ने रोका हो।
<b>आर्थिक शक्ति का परिचायक:</b> अगर आपके किसी पड़ोसी के यहां चोरी हो जाए और आपको पता लगे कि चोर उसके यहां से तीस तौले सोना और बीस लाख रुपये नगद ले उड़े तो आपको उसके लिए हमदर्दी बाद में होगी पहले ये ख्याल आएगा साले के पास इतना पैसा था क्या? ठीक इसी तरह हम सालों से खुद के आर्थिक महाशक्ति बनने का दावा कर रहे हैं मगर ट्रेन के सफर के दौरान विदेशी जब देखते हैं कि लाखों भारतीय सुबह सबुह अपनी सारी शक्ति खुले में फ्रेश होने में लगा रहे हैं तो उन दावे की पोल खुल जाती है। वो हमारी बातों पर यकीन नहीं करते। लेकिन जैसे ही वो अख़बारों में पढ़ते हैं कि भारत में पौने दो लाख करोड़ का स्पैक्ट्रम घोटाला हुआ, 1 लाख छियासी हज़ार करोड़ का कोयला घोटाला और 48 लाख करोड़ का थोरियम घोटाला तो उन्हें भी हमारे पैसा वाला होने पर यकीन करना पड़ता है।
अंग्रेज़ लेखक चार्ल्स कोल्टन ने कहा था कि भ्रष्टाचार बर्फ के उस गोले की तरह है जो एक बार लुढ़कने लगता है तो फिर उसका आकार बढ़ता जाता है। 1948 में हुए 80 लाख के जीप घोटाले से लेकर 2012 में 1 लाख छियासी हज़ार करोड़ के कोयला आवंटन घोटाले तक भ्रष्टाचार रूपी ये बर्फ का गोला, गोला न रहकर बर्फ का पहाड़ बन चुका है। पूरे देश पर सफेद चादर बिछी है। ऐसा लगता है मानों मृत उम्मीदों को किसी ने कफन ओढ़ा दिया हो।
Neeraj Badhwarhttp://www.blogger.com/profile/15197054505521601188noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-6436633004265678085.post-8272844257548239082012-08-03T04:27:00.000-07:002012-08-03T04:32:03.405-07:00मूर्खताओं को चाहिए बड़ा मंच!मैं हमेशा इस बात का पक्षधर रहा हूं कि व्यक्ति हो या राष्ट्र, उसकी एक पहचान होनी चाहिए। अब इस पहचान का इस बात से कोई ताल्लुक नहीं है कि वो अच्छी है या बुरी। इसके लिए ज़रूरी है कि जो मूर्खताएं या करतब अब तक आप छोटे स्तर पर दिखाते रहे हैं, उसे बड़े मंच पर परफॉर्म करें ताकि आपका हुनर ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुंच पाए। जैसे मोटे तौर पर हर हिंदुस्तानी ये जानता है कि हमारे यहां 8 से 10 घंटे बिजली न रहना आम बात है। मगर ‘हमारे यहां घंटों बिजली नहीं रहती’ ये अपने आप में एक कैज़ुअल स्टेटमेंट है, इस पर कोई ध्यान नहीं देने वाला। और इसका नुकसान ये हो रहा है कि रोज़ाना घंटों बिजली गुल रहने के बावजूद विश्व मानचित्र में भारत की ‘पावर कट नेशन’ के तौर पर कोई पहचान नहीं बन पा रही।
ऐसे में क्या किया जाए...किया ये जाए कि नदर्न ग्रिड फेल कर दो...अब एक साथ देश के नौ राज्यों में बिजली चली गई...पूरे देश में हाहाकार मच गया...टीवी से लेकर अख़बार तक हर जगह बिजली गुल रहना सुर्खियां बना...जबकि माई लॉर्ड ध्यान देने लायक बात ये है कि इस कट के दौरान भी रोज़ाना की तरह बिजली सिर्फ आठ से दस घंटे तक ही नहीं आई। तो सवाल ये है कि जो कटौती हमारी सामान्य दिनचर्या का हिस्सा है, उस पर इतना क्लेश क्यों? शायद इसलिए क्योंकि इस बार बिजली गुल रखने का ये गुल हमने एक साथ कई राज्यों में खिला दिया। नतीजा ये हुआ कि एक साथ चारों ओर से सरकार को गालियां पड़ीं। भारत सहित विश्व मीडिया में इसकी चर्चा हुई... भारत को लानत देते हुए दुनिया ने कहा, ‘अरे! ये कैसा देश है जहां घंटो बिजली नहीं रहती’, और आख़िरकार हमने एक ऐसे अवगुण के लिए वर्ल्ड लेवल पर अपनी पहचान बना ली, जो सालों से हममें विद्यमान तो था मगर हम उसे एनकैश नहीं कर पा रहे थे!
और जैसा कि होता है जब आप बड़े मंच पर परफॉर्म करते हैं तो आपको उसका रिवॉर्ड भी बड़ा मिलता है। लगातार दो दिनों तक नदर्न ग्रिड फेल हुआ, आधा देश अंधेरे में डूब गया और इस सबसे खुश होकर कांग्रेस ने ऊर्जा मंत्री सुशील कुमार शिंदे को गृहमंत्री बना दिया। मानो वो संदेश देना चाह रही हो कि लोगों को अंधेरे में रखने का हम क्या इनाम देते हैं!
(दैनिक हिंदुस्तान 3 अगस्त, 2011)Neeraj Badhwarhttp://www.blogger.com/profile/15197054505521601188noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6436633004265678085.post-53401975664912595632011-05-18T08:15:00.000-07:002011-05-18T08:19:00.617-07:00एक आध्यात्मिक घटना!<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEij0Xfj8qoHfwiiox2-6esREJE8_oNSyroKjYdyl44RUIKByo3R4Ozg_WLe-zWG0HOGayQeW6C0zpzobJiAte16LqoY8aJaCp-tqEROt_cVw2uD06F6VztMlCD7CiWTPbFliC3wsClV2S4/s1600/girls.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 200px; height: 175px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEij0Xfj8qoHfwiiox2-6esREJE8_oNSyroKjYdyl44RUIKByo3R4Ozg_WLe-zWG0HOGayQeW6C0zpzobJiAte16LqoY8aJaCp-tqEROt_cVw2uD06F6VztMlCD7CiWTPbFliC3wsClV2S4/s200/girls.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5608075942411725762" /></a><br /><br />आजकल परीक्षा परिणामों का सीज़न चल रहा है। रोज़ अख़बार में हवा में उछलती लड़कियों की तस्वीरें छपती हैं। नतीजों के ब्यौरे होते हैं, टॉपर्स के इंटरव्यू। तमाम तरह के सवाल पूछे जाते हैं। सफलता कैसे मिली, आगे की तैयारी क्या है और इस मौके पर आप राष्ट्र के नाम क्या संदेश देना चाहेंगे आदि-आदि। ये सब देख अक्सर मैं फ्लैशबैक में चला जाता हूं। याद आता है जब मेरा दसवीं का रिज़ल्ट आना था। अनिष्ट की आशंका में एक दिन पहले ही नाई से बदन की मालिश करवा ली थी। कान, शब्दकोश में न मिलने वाले शब्दों के प्रति खुद को तैयार कर चुके थे। तैंतीस फीसदी अंकों की मांग के साथ तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं को सवा रूपये की घूस दी जा चुकी थी और पड़ौसी, मेरे सार्वजिनक जुलूस की मंगल बेला का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे।<br /><br />वहीं फेल होने का डर बुरी तरह से तन-मन में समा चुका था और उससे भी ज़्यादा साथियों के पास होने का। मैं नहीं चाहता था कि ये ज़िल्लत मुझे अकेले झेलनी पड़े। उनका साथ मैं किसी कीमत पर नहीं खोना चाहता था। उनके पास होने की कीमत पर तो कतई नहीं। दोस्तों से अलग होने का डर तो था ही मगर उससे कहीं ज़्यादा उन लड़कियों से बिछड़ जाने का था जिन्हें इम्प्रैस करने में मैंने सैंकड़ों पढ़ाई घंटों का निवेश किया था। असंख्य पैंतरों और सैंकड़ों फिल्मी तरकीबें आज़माने के बाद ‘कुछ एक’ संकेत भी देने लगी थीं कि वो पट सकती हैं। ये सोच कर ही मेरी रूह कांप जाती थी कि फेल हो गया तो क्या होगा! मेरे भविष्य का नहीं, मेरे प्रेम का! या यूं कहें कि मेरे प्रेम के भविष्य का!<br /><br />कुल मिलाकर पिताजी के हाथों मेरी हड्डियां और प्रेमिका के हाथों दिल टूटने से बचाने की सारी ज़िम्मेदारी अब माध्यमिक शिक्षा बोर्ड पर आ गयी थी। इस बीच नतीजे आए। पिताजी ने तंज किया कि फोर्थ डिविज़न से ढूंढना शुरू करो! गुस्सा पी मैंने थर्ड डिविज़न से शुरूआत की। रोल नम्बर नहीं मिला तो तय हो गया कि कोई अनहोनी नहीं होगी! (फर्स्ट या सैकिंड डिविज़न की तो उम्मीद ही नहीं थी) पिताजी ने पूछा कि यहीं पिटोगे या गली में.....इससे पहले की मैं ‘पसंद’ बताता...फोन की घंटी बजी...दूसरी तरफ मित्र ने बताया कि मैं पास हो गया...मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था....पिताजी भी खुश थे...आगे चलकर मेरा पास होना हमारे इलाके में बड़ी 'आध्यात्मिक घटना' माना गया....जो लोग ईश्वर में विश्वास नहीं करते थे, वो करने लगे और जो करते थे, मेरे पास होने के बाद उनका ईश्वर से विश्वास उठ गया!Neeraj Badhwarhttp://www.blogger.com/profile/15197054505521601188noreply@blogger.com16tag:blogger.com,1999:blog-6436633004265678085.post-55021378832861952732011-05-06T23:06:00.000-07:002011-05-06T23:09:19.457-07:00“मैंने ओसामा जी नहीं, ओसामा जीजा जी कहा था!”ओसामा बिन लादेन की मौत और उसके बाद आए दिग्विजय सिंह के बयान पर कुछ वनलाइनर लिखे हैं। आप इन वनलाइनर्स को फेसबुक के फ़ेकिंग न्यूज़ पेज (facebook.com/hindifakingnews) पर भी पढ़ सकते हैं। झेलिए<br /><br />"भले ही ओसामा बिन लादेन हमारे बीच नहीं रहे मगर हमें उनके अधूरे काम को पूरा करना है"-दिग्विजय सिंह<br /><br />ओसामा की पहचान के लिए अमेरिका अब उसका डीएनए टेस्ट करवाएगा मुझे डर है कि कहीं वो नारायण दत्त तिवारी का बेटा न निकले!<br /><br />ओबामा की मौत का स्वागत करते हुए मनमोहन सिंह ने एक बार फिर से सोनिया गांधी के कुशल नेतृत्व की तारीफ की है!<br /><br />अमेरिका का कहना है कि ओसामा की मौत का क्रेडिट महेंद्र सिंह धोनी को जाता है क्योंकि उसी के 'हैलीकॉप्टर शॉट' से अमेरिकी सेना ने प्रेरणा ली थी!<br /><br />अफसोस...ओसामा अपनी वसीयत 2001 में लिख गए अगर 2011 में लिखी होती तो ऐबटाबाद की हवेली दिग्विजय सिंह के नाम कर देते#Osama ji<br /><br />दिग्विजय सिंह का कहना है कि मेरे बयान को तोड़-मरोड़ कर पेश किया है। मैंने ओसामा जी नहीं, ओसामा जीजा जी कहा था!<br /><br />पाकिस्तान एक 'भाड़' प्रभावित देश है। अर्थव्यवस्था से लेकर राजनीति तक यहां हर चीज़ यहां भाड़ में जा रही है!<br /><br />पाकिस्तान ने अपनी कुछ ज़मीन चीन को दे रखी है, कुछ तालिबान ने हथिया ली है और उसके मुताबिक कुछ पर इंडिया ने कब्ज़ा कर रखा है। जब उसे ये नहीं पता कि पाकिस्तान में पाकिस्तान कहां है.... तो ये कैसे पता होता कि ओसामा पाकिस्तान में है!<br /><br />अमेरिकी सेना पर फेंकने के लिए दिग्विजय सिंह जल्द ही पाकिस्तानियों को अपनी अक्ल पर पड़ा पत्थर देंगे!<br /><br />जो लोग कहते हैं कि हमें पाकिस्तान पर हमला कर उसे नष्ट कर देना चाहिए, वो उसे underestimate कर रहे हैं। मुझे पाकिस्तान की 'क्षमता' पर पूरा यकीन है। थोड़ा सब्र रखें... एक दिन वो खुद ही अपने आप को बर्बाद कर लेगा!<br /><br />दिग्विजय सिंह का कहना है कि जब मुझ जैसा आदमी ज़िंदा घूम रहा है तो अफज़ल गुरू को फांसी क्यों दी जाए?<br /><br />आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में पाकिस्तान ठीक वैसे ही अमेरिका के साथ है जैसे वर्ल्ड कप में श्रीसंत इंडियन टीम के साथ थे!<br /><br />पाकिस्तान करे भी तो क्या करे...तालिबान से उसका मन मिलता है और अमेरिका से उसे धन मिलता है!<br /><br />पाकिस्तान का कहना है कि हमारी खुफिया एजेंसियां ओसामा को इसलिए नहीं पकड़ पाईं क्योकि उसे पकड़ने की ट्रेनिंग..... कामरान अकमल ने दी है!<br /><br />दिग्विजय सिंह की सेवाओं से प्रभावित हो कर कांग्रेस आलाकमान ने पिक-ड्रॉप के लिए उन्हें पवन हंस हैलीकॉप्टर देने का फैसला किया है!<br /><br />ओसामा बिन लादेन के डीएनए टेस्ट के बाद अमेरिकी खुफिया एजेंसी इस नतीजे पर पहुंची हैं कि वो दिग्विजय सिंह के बाप हैं!<br /><br />Pigvijay Singh का कहना है कि इसमें मेरी कोई ग़लती नहीं है। कांग्रेस में रहकर मैंने 'जी हुज़ूरी' ही सीखी है इसलिए ओसामा के आगे भी 'जी' लगा बैठा<br /><br />BREAKING NEWS:मारी गयी औरत, जिसके बारे में पहले कहा जा रहा था कि वो ओसामा की बीवी है दरअसल वो अरूंधति राय निकली!<br /><br />क्या आप जानते हैं कि ओसामा का सबसे बड़ा बेटा ओसामा की सबसे छोटी बीवी से ग्यारह साल बड़ा था?<br /><br />अमेरिकी अधिकारी-ख़बर लगी है कि सभी सरकारी इमारतों पर पाकिस्तानी झंडे आधे झुके हैं, क्या आप लोग ओसाम के मरने पर राजकीय शोक मना रहे हैं???? पाक अधिकारी-नहीं जनाब, हमने कुछ नहीं किया...शायद शर्मिंदगी में वो खुद-ब-खुद झुक गए हैं।<br /><br />जिस तरह पाकिस्तान हर मामले में हिंदुस्तान पर इल्जा़म लगाता है। मुझे शक है कि कहीं वो ये न कह दे कि ओसामा पर हमला करने वाले हैलीकॉप्टर्स में से एक दोरजी खांडू का था!<br /><br />Pigvijay Singh भारत के सबसे भरोसेमंद नेता हैं... क्योंकि वो ISI मार्का हैं!<br /><br />बिन लादेन और मनमोहन सिंह में एक समानता तो है। मुसीबत आने पर दोनों ही औरत के पीछे छिपने में यकीन रखते हैं।<br /><br />दिग्विजय सिंह की भौंकने की प्रवृत्ति को देखते हुए जल्द ही उनका BARKO TEST करवाया जाएगा!<br /><br />इस रूप में पाकिस्तान सरकार और मनमोहन सिंह एक जैसे हैं कि दोनों को आख़िर तक कुछ भी पता नहीं रहता!<br /><br />"बार-बार ये न कहो कि ओसामा दुनिया का नम्बर एक आतंकवादी था, मेरा 'इगो' हर्ट होता है"-Pigvijay Singh<br /><br />ख़तरों का खिलाड़ी तो लादेन था ही, जब मारा गया तब भी दो बीवियों के साथ रह रहा था!<br /><br />दिग्विजय सिंह का कहना है कि ओसामा की मौत के लिए अन्ना हज़ारे ज़िम्मेदार हैं। अन्ना की नकल करते हुए ओसामा भी अमेरिका के खिलाफ भूख हड़ताल पर बैठा और मारा गया!<br /><br />ख़तरनाक आतंकवादी ही नहीं, ओसामा दुनिया के इकलौते इंसान भी थे जिसकी अमर सिंह से ज़्यादा सीडी मार्केट में आई थी !<br />प्रिंस चार्ल्स से ओबामा-आपकी बहू हमारे लिए बड़ी शुभ निकली!<br /><br />"ज़्यादा खुश होने की ज़रूरत नहीं है, अभी मैं ज़िंदा हूं"-दिग्विजय सिंहNeeraj Badhwarhttp://www.blogger.com/profile/15197054505521601188noreply@blogger.com14tag:blogger.com,1999:blog-6436633004265678085.post-32667397790310481382011-04-19T00:04:00.001-07:002011-04-19T00:04:45.555-07:00इस शहर में हम भी भेड़ें हैं!ब्लूलाइन में घुसते ही मेरी नज़र जिस शख़्स पर पड़ी है, बस में उसका डेज़ीग्नेशन कन्डक्टर का है। पहली नज़र में जान गया हूं कि सफाई से इसका विद्रोह है और नहाने के सामन्ती विचार में इसकी कोई आस्था नहीं । सुर्ख होंठ उसके तम्बाकू प्रेम की गवाही दे रहे हैं और बढ़े हुए नाखून भ्रम पैदा करते हैं कि शायद इसे ‘नेलकटर’ के अविष्कार की जानकारी नहीं है।<br /><br />इससे पहले कि मैं सीधा होऊं वो चिल्लाता है- टिकट। मुझे गुस्सा आता है। भइया, तमीज़ से तो बोलो। वो ऊखड़ता है, 'तमीज़ से ही तो बोल रहा हूं।' अब मुझे गुस्सा नहीं, तरस आता है। किसी ने तमीज़ के बारे में शायद उसे 'मिसइन्फार्म' किया है!<br /><br />टिकिट ले बस में मैं अपने अक्षांश-देशांतर समझने की कोशिश कर ही रहा हूं कि वो फिर तमीज़ से चिल्लाता है-आगे चलो। मैं हैरान हूं ये कौन सा 'आगे' है, जो मुझे दिखाई नहीं दे रहा। आगे तो एक जनाब की गर्दन नज़र आ रही है। इतने में पीछे से ज़ोर का धक्का लगता है। मैं आंख बंद कर खुद को धक्के के हवाले कर देता हूं। आंख खोलता हूं तो वही गर्दन मेरे सामने है। लेकिन मुझे यकीन है कि मैं आगे आ गया हूं क्योंकि कंडक्टर के चिल्लाने की आवाज़ अब पीछे से आ रही है!<br /><br />कुछ ही पल में मैं जान जाता हूं कि सांस आती नहीं लेना पड़ती है....मैं सांस लेने की कोशिश कर रहा हूं मगर वो नहीं आ रही। शायद मुझे आक्सीज़न सिलेंडर घर से लाना चाहिये था। लेकिन यहां तो मेरे खड़े होने की जगह नहीं, सिलेंडर कहां रखता।<br /><br />मैं देखता हूं कि लेडीज़ सीटों पर कई जेन्ट्स बैठे हैं। महिलाएं कहती हैं कि भाईसाहब खड़े हो जाओ, मगर वो खड़े नहीं होते। उन्होंने जान लिया है कि बेशर्मी से जीने के कई फायदे हैं। वैसे भी 'भाईसाहब' कहने के बाद तो वो बिल्कुल खड़े नहीं होंगे। कुछ पुरुष महिलाओं से भी सटे खड़े हैं और मन ही मन 'भारी भीड़' को धन्यवाद दे रहे हैं!<br /><br />इस बीच ड्राइवर अचानक ब्रेक लगाता है। मेरा हाथ किसी के सिर पर लगता है। वो चिल्लाता है। ढंग से खड़े रहो। आशावाद की इस विकराल अपील से मैं सहम जाता हूं। पचास सीटों वाली बस में ढाई सौ लोग भरे हैं और ये जनाब मुझसे 'ढंग' की उम्मीद कर रहे हैं। मैं चिल्लाता हूं - जनाब आपको किसी ने गलत सूचना दी है। मैं सर्कस में रस्सी पर चलने का करतब नहीं दिखाता। वो चुप हो जाता है। बाकी के सफर में उसे इस बात की रीज़निंग करनी है।<br /><br />बस की इस बेबसी में मेरे अंदर अध्यात्म जागने लगा है। सोच रहा हूं पुनर्जन्म की थ्योरी सही है। हो न हो पिछले जन्म के कुकर्मों की सज़ा इंसान को अगले जन्म में ज़रुर भुगतनी पड़ती है। लेकिन तभी लगता है कि इस धारणा का उजला पक्ष भी है। अगर मैं इस जन्म में भी पाप कर रहा हूं तो मुझे घबराना नहीं चाहिये.... ब्लूलाइन के सफर के बाद नर्क में मेरे लिए अब कोई सरप्राइज नहीं हो सकता !<br /><br />बहरहाल....स्टैण्ड देखने के लिए गर्दन झुकाकर बाहर देखता हूं। बाहर काफी ट्रैफिक है... कुछ समझ नहीं पा रहा कहां हूं। तभी मेरी नज़र भेड़ों से भरे एक ट्रक पर पड़ती है। एक साथ कई भेड़ें बड़ी उत्सुकता से बस देख रही हैं। एक पल के लिए लगा.... शायद मन ही मन वो सोच रही हैं.....भेड़ें तो हम हैं!Neeraj Badhwarhttp://www.blogger.com/profile/15197054505521601188noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-6436633004265678085.post-75368505094287364492011-02-24T20:04:00.001-08:002011-02-24T20:04:58.970-08:00रेलवे स्टेशन का विहंगम दृश्य!मैं कश्मीरी गेट की तरफ से पुदिरे यानि पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन में प्रवेश करता हूं। स्टेशन अपनी तमाम खूबसूरती लिए मेरे सामने हैं। एक नज़र में यक़ीन करना मुश्किल है कि स्टेशन ज़्यादा पुराना है या दिल्ली। पटरियों में फंसे रंग-बिरंगे पॉलीथिन, ज़र्दे के खाली पाउच, प्लास्टिक की बोतलें, पत्थरों पर फाइन आर्ट बनाती पान की पीकें, पपड़ियों से सजी बेरंग दीवारें, अनजान कोनों से आती बदबू, खड़ी गाड़ियों और उखड़े लोगों के बहाए मल और न जाने ऐसी कितनी अदाएं जो अपनी सम्पूर्ण गंदगी के साथ स्टेशन की पुरातात्विकता को ज़िंदा रख रही हैं। ये समझ पाना मुश्किल है कि आख़िर किस ग़लती की सज़ा स्टेशन को दी जा रही है ? संसद में अटका वो कौन सा विधेयक है जिसके चलते यहां झाडू नहीं लग रही ? किस साजिश के तहत देश की विकास योजनाओं में इसे शामिल नहीं किया जा रहा? आखिर क्यों ये आज भी वैसा ही है जैसा कभी राणा सांगा के वक्त रहा होगा ?<br /><br />ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिनके मैं जवाब जानना चाहता हूं। मगर अभी तो ये जानना है कि जिस ट्रेन से जाना है वो किस प्लेटफॉर्म से चलेगी। जैसे तैसे पूछताछ खिड़की पहुंचता हूं। खिड़की पर कोई मौजूद नहीं है। अंदर एक फोन घंटिया बजा-बजा परेशान हो रहा है मगर उसे उठाना वाला कोई नहीं। मैं अंदर आवाज़ देता हूं। यहां वहां पूछता हूं मगर इनक्वायरी विंडों पर मौजूद शख्स का कोई पता नहीं। कैसी विडम्बना है कि मैं गया तो गाडी का पूछने था मगर लोगों से पूछता फिर रहा हूं कि इन्क्वायरी विंडों वाला किधर है?<br /><br />सवाल ये है कि ये इन्क्वायरी विंडों वाला आखिर किधर गया ? क्या ये आज बिना किसको बताये आया ही नहीं, क्या ये ऊपर बने किसी कमरे में आराम फरमा रहा है? क्या ये किसी कोने में बैठा बीडी फूंक रहा है? क्या पिछले दो घंटे से ये 'दो मिनट' के किसी काम पर निकला था? सोचता हूं कि स्टेशन पर गुमशुदा लोगों के जो इश्तेहार लगे हैं वहीं पूछताछ खिड़की के उस शख्स का भी एक इश्तेहार लगा दूं, किसी को दिखे तो बतायें!<br /><br />प्लेटफॉर्म की तलाश में आगे बढ़ रहा हूं। इस बीच भूख लगने लगती है। गाडी चलने में समय है, सोचता हूं कुछ खा लूं। गर्दन घुमा कर देखता हूं। चारों तरफ सेहत के दुश्मन बैठे हैं। कोई भठूरा बेच रहा है तो कोई पकौडा, किसी के पास गंदे तेल में तला समोसा हैं तो किसी के पास पिलाने के लिए ऐसी शिकंजी जिसमें इस्तेमाल की गई बर्फ और पानी का रहस्य सिर्फ बेचना वाला ही जानता है। तमाम चीज़ों की हक़ीकत जानने के बावजूद खाने-पीने के भारतीय संस्कारों के हाथों मजबूर हैं। पहले शिकंज़ी पीता हूं, भठूरे भी खाता हूं, थोड़े पकौडे भी लेता हूं और आधी-कच्ची चाय का भी आनन्द लेता हूं।<br /><br />खाने पीने को लेकर दिल से उठाया गया ये कदम फौरन पेट पर भारी पड़ने लगता है। बाथरूम की तरफ लपकता हूं। दोस्तों, भारतीय रेलवे स्टेशन्स में शौचालय वो जगह होती है जहां सतत जनसहयोग और सफाई कर्मचारियों की अकर्मण्यता से ज़हरीली गैसों का निर्माण किया जाता है। उस पर ये भी लिखा रहता है-स्वच्छता का प्रतीक। ऐसा लगता है मानों....लोगों को चिढ़ाया जा रहा है।<br /><br />खैर, सांस रोके जो करना है वो कर बाहर आता हूं। मुझे अब भी अपने प्लेटफॉर्म की ठीक ठीक जानकारी नहीं है। फिर कोई ओवरब्रिज से दूसरे छोर पर जाने का इशारा करता है। सीढ़ियां बड़ी हैं, सांस छोटी, ऊपर पहुंचने तक हांफने लगता हूं। अभी आयी एक गाड़ी से छूटे लोग पुलिया पर धावा बोल देते हैं। धक्कों का मुफ्त लंगर लग जाता है और आवभगत ऐसी की पूछो मत! मना करने के बावजूद थोड़ा और, थोड़ा और कह पेट भर दिया जाता है। सामान थामे आंख बंद कर मैं किनारे लगता हूं। एक-एक कर तमाम कुकर्म फ्लैशबैक में आंखों से गुज़रने लगते हैं। मेरी लांघी दस हज़ार रेड लाइटें, ब्लूलाइन के बेटिकट सफर, ऑफिस में की सैंकड़ों घंटों की कामचोरी! नहीं प्रभु नहीं....तुम इतने बुरे न्यायाधीश नहीं हो सकते। मेरे मिनी भ्रष्टाचारों की इतनी बड़ी सज़ा! इन दरियाई घोड़ों को रोको प्रभु, रोको!<br /><br />तभी भीड़ छंटती है, सांस आती है, गाड़ी पहुंचती है। एस-सैवन कोच में प्रवेश करता हूं। अंदर वही सब कुछ....मूंगफली के छिलके, पान की पीकें, बिखरी चाय, खाली बोतलें....लगता है निगम के कचरा ढ़ोने वाले ट्रक में बैठ गया हूं और पीछे तख़्ती टंगी है-रेलवे का मुनाफा 90 हज़ार करोड़!Neeraj Badhwarhttp://www.blogger.com/profile/15197054505521601188noreply@blogger.com19tag:blogger.com,1999:blog-6436633004265678085.post-45061012392339076342011-02-07T21:45:00.000-08:002011-02-07T21:46:38.133-08:00द ग्रेट इंडियन वैडिंग तमाशा!ये मेरे मित्र की मति का शहादत दिवस है। आज वो शादी कर रहा है। मैं तय समय से एक घंटे बाद सीधे विवाह स्थल पहुंचता हूं, मगर लोग बताते हैं कि बारात आने में अभी आधा घंटा बाकी है। मैं समझ गया हूं कि शादी पूरी भारतीय परम्परा के मुताबिक हो रही है। तभी मेरी नज़र कन्या पक्ष की सुंदर और आंशिक सुंदर लड़कियों पर पड़ती है। सभी मेकअप और गलतफहमी के बोझ से लदी पड़ी हैं। इस इंतज़ार में कि कब बारात आए और वर पक्ष का एक-एक लड़का खाने से पहले, उन्हें देख गश खाकर बेहोश हो जाए। <br /><br />तभी ध्वनि प्रदूषण के तमाम नियमों की धज्जियां उड़ाती हुई बारात पैलेस के मुख्य द्वार तक पहुंचती है। ये देख कि उनके स्वागत में दस-बारह लड़कियां मुख्य द्वार पर खड़ी हैं, नाच-नाच कर लगभग बेहोश हो चुके दोस्त, फिर उसी उत्साह से नाचने लगते हैं। किराए की शेरवानी में घोड़ी पर बैठा मित्र पुराने ज़माने का दरबारी कवि लग रहा है। उम्र को झुठलाती कुछ आंटियां सजावट में घोडी को सीधी टक्कर दे रही हैं और लगभग टुन्न हो चुके कुछ अंकल, जो पैरों पर चलने की स्थिति में नहीं हैं, धीरे-धीरे हवा के वेग से मैरिज हॉल में प्रवेश करते हैं। <br /><br /><br />अंदर आते ही बारात का एक बड़ा हिस्सा फूड स्टॉल्स पर धावा बोल देता है। मुख्य खाने से पहले ज़्यादातर लोग स्नैक्स की स्टॉल का रुख करते हैं। मगर पता चलता है कि वो तो बारात आने से पहले ही लड़की वालों ने निपटा दीं। ये सुन कुछ आंटियों की बांछे खिल जाती है। उन्हें अगले दो घंटे के लिए मसाला मिल गया। वो चुन-चुन कर व्यवस्था से कीड़े निकालने लगती है। एक को मैरिज हॉल नहीं पसंद आया तो दूसरी को लड़की का लहंगा। मगर मैं देख रहा हूं इन बुराईयों में एक सुकून भी है। ये निंदारस उन्हें उस आमरस से ज़्यादा आनंद दे रहा है, जिसका आने के बाद से वो चौथा गिलास पी रही हैं।<br /><br /><br />इस बीच स्नैक्स न मिलने से मायूस लोग बिना वक्त गंवाए मुख्य खाने की तरफ लपकते हैं। एक प्लेट में सब्ज़ियां, एक में रोटी। फिर भी चेहरे पर अफसोस है कि ये प्लेट इतनी छोटी क्यों है? कुछ का बस चलता तो घर से परात ले आते। कुछ पेंट की जेब में डाल लेते। खाते-खाते कुछ लोग बच्चों को लेकर परेशान हो रहे हैं। भीड़ की आक्रामकता देख उन्हें लगता है कि पंद्रह मिनट बाद यहां कुछ नहीं बचेगा। बच्चा कहीं दिखाई नहीं दे रहा। मगर उसे ढूंढने जाएं भी तो कैसे...कुर्सी छोड़ी तो कोई ले जाएगा। या तो बच्चा ढूंढ लें या कुर्सी बचा लें। इसी कशमकश में उन्हें डर सताता है कि वो शगुन के पैसे पूरे कर भी पाएंगे या नहीं। उनका नियम है हर बारात में सौ का शगुन डाल कर दो सौ का खाते हैं। मगर लगता है कि आज ये कसम टूट जाएगी। <br /><br />तभी वहां खलबली मचती है। कुछ लोग गेट की तरफ भागते हैं। पता चलता है कि लड़के के फूफा किसी बात पर नाराज़ हो गए हैं। दरअसल, उन्होंने वेटर को पानी लाने के लिए कहा था, मगर जब दस मिनट तक पानी नहीं आया तो वो बौखला गए। दोस्त के पापा, चाचा और बाकी रिश्तेदार फूफा के पीछे पानी ले कर गए हैं। पीछे से किसी रिश्तेदार की आवाज़ सुनाई पड़ती है...इनका तो हर शादी-ब्याह में यही नाटक होता है। <br /><br />झगड़े की ज़रूरी रस्म अदायगी के बाद समारोह आगे बढ़ता है। कुछ देर में फेरे शुरू हो जाते हैं। मंडप में पंडित जी इनडायरैक्ट स्पीच में बता रहे हैं कि कन्या पत्नी बनने से पहले तुमसे आठ वचन मांगती है। अगर मंज़ूर हो तो हर वचन के बाद तथास्तु कहो। जो वचन वो बात रहे हैं उसके मुताबिक लड़के को अपना सारा पैसा, अपनी सारी अक्ल, या कहूं सारा वजूद कन्या के हवाले करना होगा। फिर एक जगह कन्या कहती है अगर मैं कोई पाप करती हूं, तो उसका आधा हिस्सा तुम्हारे खाते में जायेगा, और तुम जो पुण्य कमाओगे उसमें आधा हिस्सा मुझे देना होगा....बोलो मंज़ूर है! मित्र आसपास नज़र दौड़ता है.. लगता है...वही दरवाज़ा ढूंढ रहा है जहां से कुछ देर पहले फूफा जी भागे थे!Neeraj Badhwarhttp://www.blogger.com/profile/15197054505521601188noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-6436633004265678085.post-86647367804584772832010-10-18T07:45:00.000-07:002010-10-18T07:48:45.430-07:00तू ही तो मेरा हॉर्न है!दोस्तों, शौक ही नहीं इंसान जिज्ञासा भी कैपेसिटी के हिसाब से पालता है। आप उतने ही जिज्ञासु हो सकते हैं, जितना आपकी बुद्धि अफोर्ड करती है। यही जिज्ञासा आपको हर वक़्त बेचैन करती है। आप शोध-खोज में लग जाते हैं। मसलन, हॉकिंग्स लम्बे समय तक बेचैन रहे कि सृष्टि का निर्माण ईश्वर ने किया या भौतिकी ने। न्यूटन सेब को पेड़ से गिरता देख उसकी वजह जानने में लग गए। वैज्ञानिकों की पूरी टोली आज तक ये जानने में लगी है कि ब्लैक हॉल का निर्माण किन हालात में हुआ। मगर ये सब बड़े लोगों की जिज्ञासाएं हैं। 'मुफ्त धनिए’ के लिए बनिए से झगड़ने में ज़िंदगी गुज़ारने वाला आम आदमी ऐसी चुनौतियां मोल नहीं लेता। <br /><br />उसकी ज़िंदगी और जिज्ञासाएं अलग होती हैं। अपनी ही बात करूं तो सालों से दिल्ली के ट्रैफिक में हिंदी और अंग्रेज़ी के सफर के बावजूद मैं नहीं जान पाया कि लोग हॉर्न क्यों बजाते हैं? वो कौनसे भूगर्भीय, समाजशास्त्रीय और मनोवैज्ञानिक कारण हैं, जो आदमी को हॉर्न बजाने पर मजबूर करते हैं। इन्हीं बातों से परेशान हो मैंने हॉर्नवादकों पर शोध करने का फैसला किया। यहां-वहां भटकने के बजाय मैंने मशहूर हॉर्नवादक दिल्ली के दल्लूपुरा निवासी आहत लाल से मिलना बेहतर समझा। इससे पहले कि आहत से हुई बातचीत का ब्यौरा पेश करूं....बता दूं कि छात्र जीवन से ही आहत को हॉर्न बजाने का खूब शौक था। शुरू में ये सिर्फ शौकिया तौर पर हॉर्न बजाते थे मगर कालांतर में मिली अटेंशन के चलते इन्होंने इस शौक को गंभीरता से लिया। लोकप्रियता का आलम ये है कि आज आसपास के सैंकड़ों गांवों से इन्हें शादियों में हॉर्न बजाने के लिए बुलाया जाता है। पिछले तीन सालों में देश-विदेश में हॉर्नवादन के चार हज़ार से ज्यादा कार्यक्रम दे चुके हैं। उभरते नौजवानों के लिए हॉर्न वादन की वर्कशॉप चलाते हैं। इनसे सीखे छात्र दल्लूपुरा घराने के हॉर्नवादक कहलाते हैं। इन्होंने तो सरकार से मांग तक की थी कि वूवूज़ेला की तर्ज़ पर कॉमनवेल्थ खेलों में ट्रैक्टर-ट्राली के किसी हॉर्न को पारंपरिक वाद्य यंत्र के रूप में शामिल किया जाए।<br /><br /><br />बहरहाल, बिना वक़्त गंवाए मैं बातचीत पेश करता हूं। आहत बताइए, आपकी नज़र में हॉ़र्न बजाने का सबसे बड़ा फायदा क्या है। देखिए, आज देश में जैसे हालात हैं उसमें आम आदमी के हाथ में अगर कुछ है, तो सिर्फ हॉर्न। नौजवान पचास जगह अप्लाई करते हैं, उन्हें नौकरी नहीं मिलती, दस लड़कियों को प्रपोज़ करते हैं मगर कोई हां नहीं कहती। ऐसे में यही नौजवान जब सड़क पर निकलता है तो हॉर्न बजा अपनी फ्रस्ट्रेशन निकालता है। किसी भी लंबी काली गाड़ी को देख यही सोचता है कि जिन कम्पनियों में उसे नौकरी नहीं मिली, हो न हो उन्हीं में से किसी एक का सीईओ इसमें होगा। बाइक के पीछे बैठी लड़की देख उसे चिढ़ होती है कि तमाम टेढ़े-बांके लौंडे लड़कियां घुमा रहे हैं और एक वही अकेला घूम रहा है। इसी सब खुंदक में वो और हॉर्न बजाता है। उसका मन हल्का होता है। आप ही बताइए अब ये हॉर्न न हो तो वो बेचारा नौकरी और छोकरी की फ्रस्ट्रेशन में सुसाइड नहीं कर लेगा? <br /><br />हां, ये बात तो ठीक है मगर आजकल मोटरसाइकिल में जो ट्रक वाला हॉर्न लगावने लगे हैं, उसके पीछे क्या दर्शन है? देखिए, जो जितना कुंठित होगा, उसकी अभिव्यक्ति उतनी ही कर्कश होगी। इसके अलावा ध्यानाकर्षण की इच्छा भी एक वजह हो सकती है। हो सकता है उस बेचारे की बचपन से ख़्वाहिश रही हो कि जहां कहीं से गुजरूं, लोग पलट-पलट कर देखें। मगर उसे इसका कोई जायज़ तरीका न मिल पा रहा हो। अब हर कोई तो सिंगिंग या डांसिंग रिएल्टी शो में जा नहीं सकता। ऐसे में सिर्फ गंदा हॉर्न बजाने भर से किसी को अटेंशन मिल रहा है, तो क्या प्रॉब्लम है। जिस दौर में लोग पब्लिसिटी के लिए अपनी शादी तक का तमाशा बना देते हैं, वहां हॉर्न बजाना कौनसा अपराध है! <br /><br />मैंने कहा-ये तो बड़ी वजहें हो गईं... इसके अलावा...आहत लाल-इसके अलावा छोटे-मोटे तात्कालिक कारण तो हमेशा बने रहते हैं। घर में बीवी से झगड़ा हो गया तो हॉर्न को बीवी की गर्दन समझ ऑफिस तक दबाते जाइए, ऑफिस पहुंचते-पहुंचते सारा गुस्सा छू हो जाएगा। ये समझना होगा कि ज़िंदगी के जिस-जिस मोड़ पर आप मजबूर हैं, वहां-वहां हॉर्न आपके साथ है। ऑफिस में रुके इनक्रीमेंट से लेकर कई दिनों से घर में रुकी सास तक का गुस्सा हॉर्न के ज़रिए निकाल सकते हैं। ज़माने भर का दबाया आदमी भी, हॉर्न दबा अपनी भड़ास निकाल सकता है और ये चूं भी नहीं करता, बावजूद इसके कि ये हॉर्न है! कहने वाले कहते होंगे कि किताबें इंसान की सबसे अच्छी दोस्त हैं मगर इंसान तो यही कहता है...तू ही तो मेरा हॉर्न है! <br /><br />(नवभारत टाइम्स 18,अक्टूबर, 2010)Neeraj Badhwarhttp://www.blogger.com/profile/15197054505521601188noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-6436633004265678085.post-83089011996565825702010-10-02T22:54:00.000-07:002010-10-02T22:55:18.282-07:00सुरेश कलमाडी को मेरी श्रद्धांजलि (भाग-2)कलमाडी जैसे ही बापू की मूर्ति पर फूल चढ़ाने झुके...लाठी से धकेलते हुए आवाज़ आई...दूर हटो बेटा...वरना अहिंसा की कस्म टूट जाएगी!!!<br /><br />बुरा न बोलने की सीख देने वाला गांधी जी का बंदर भी कलमाडी के किस्से सुनकर पेशंस खोने लगा है!!!!!<br /><br />कलमाडी के करनामों से प्रभावित हो भारतीय डाक विभाग जल्द ही उन पर एक 'डाकू टिकट' जारी करने जा रहा है!<br /><br />भारतीय शूटर निशाना लगा रहा था...तमाम भारतीय दर्शक सांसे थामें थे...दिल में बेचैनी..हथेलियों में पसीना...सभी के मन में एक ही दुआ...कुछ भी हो, जैसे भी हो, जो भी हो...बस...शूटर निशाना चूक जाए...वजह-निशाना उस सेब पर लगाना था, जो कलमाडी के सिर पर रखा गया था!!!!!<br /><br />मुसीबत की घड़ी में सब कलमाडी का साथ छोड़ते जा रहे हैं...और क्या ये इत्तेफाक हैं कि खेल गांव में एक के बाद एक सांप निकल कर बाहर आ रहे हैं!!!<br /><br />कलमाडी की इस पेशकश के बाद कि मुझे राम के चरणों में दो गज भी ज़मीन मिल जाए तो मैं खुद को वहां दफन कर लूं...सुना है तीनों पक्षों ने अपनी पूरी ज़मीन छोड़ने का ऐलान कर दिया है!!!<br /><br />ए. सी. नीलसन के ताज़ा सर्वे के मुताबिक चुटकुला बनने में कलमाडी ने संता को पीछे छोड़ दिया है...हद ये है कि लोग अब संता को भी कलमाडी के जोक्स SMS करने लगे हैं!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!<br /><br />वन्य जीव संरक्षण कानून की धारा तीन 'बी' का हवाला देते हुए बीजेपी की वरिष्ठ नेता और गांधी परिवार की दूसरी बहु मेनका गांधी ने धमकी दी है कि कलमाडी को अब किसी ने कुछ कहा तो उसकी खैर नहीं!!!!<br /><br />पत्रकार-सर, अयोध्या पर आए फैसले से जुड़ी आपको सबसे अच्छी बात क्या लगी????कलमाडी-इसका छह दशक बाद आना...मुझे लगता है कि इतना वक़्त तो किसी भी फैसले में लगना ही चाहिए!!!<br /><br />ख़बर-कलमाडी देख रहे हैं ओलंपिक करवाने का सपना...प्रतिक्रिया-वैसे तो सपना देखने का हक़, हर इंसान को है मगर दिक्कत ये है कि ये हक़ इंसान को है!!!!!!!!!!!!!!!!!!<br /><br />तमाम गवाहों और सबूतों के देखने के बाद अदालत इस नतीजे पर पहुंची है कि सुरेश कलमाडी को फांसी पर लटका दिया जाए और साम्प्रदायिक सौहार्द बनाए रखने के लिए विवादित ज़मीन पर उनका मकबरा बने!!!!!<br /><br />किसी ने कलमाडी से पूछा....सर, कौन बनेगा करोड़पति...कलमाडी-मेरी बुआ का लड़का, खेलगांव की कैंटीन का ठेका उसी के पास है!!!<br /><br />जल्द आ रहा फर्जीवाडे पर हिंदुस्तान का पहला REALITY SHOW...कलमाडी होंगे होस्ट...नाम है...क्यों बने रहें करोड़पति!!!!!!!!!!!!!!!!!<br /><br />BREAKING NEWS...KALMADI'S POPULARITY HAS REACHED SUCH 'HEIGHTS' THAT EVEN ALIENS ARE NO LONGER ALIEN TO HIM!!!!.<br /><br />फिरौती के मकसद से डाकुओं के कलमाडी को अगवा कर लिया...तीन दिन काल कोठरी में रखा...चौथे दिन कलमाडी ने बाहर आकर पूछा-क्या हुआ अब तक पैसे नहीं मिले क्या????डाकू-पैसे दो डबल मिले हैं...मगर तुम्हें छोड़ने के नहीं...न छोड़ने के!!!!<br /><br />JAI HO के बाद इंग्लिश डिक्शनरी में शामिल किया जाने वाला अगला शब्द है... SURESH KALMADI और वो भी ADJECTIVE के तौर पर...घटिया के पर्यायवाची के रूप में!!!!<br /><br />शिवराज पाटिल, मधु कोडा, राजा चौधरी, ललित मोदी, शिबु सोरेन, राहुल महाजन, संभावना सेठ, राखी सावंत और रामगोपाल वर्मा कल शाम छह बजे इंडिया गेट पर कलमाडी के समर्थन में कैंडिल मार्च निकालेंगे!!!<br /><br />कलमाडी-तुम जो मेरे पीछे हाथ धो कर पड़े हो...ये तुम्हें बहुत महंगा पड़ेगा...कलमाडी भक्त-सर, मैंने कौनसे आपके टॉयलेट सोप से हाथ धोए हैं...जो महंगा पड़ेगा!!!<br /><br />सर, लोगों ने आप पर इतने जोक मारे, आप भी उन पर कुछ जोक बनाइये...कलमाडी-बनाऊंगा, मगर थोड़ा रूककर...इतनी जल्दी मैं कुछ भी नहीं बनाता!!!!<br /><br />अमिताभ के बाद कलमाडी के साथ डिनर के लिए भी छह लाख की बोली लगी है...फर्क इतना है कि अमिताभ के साथ डिनर के लिए आपको छह लाख देने पड़ेंगे जबकि कलमाडी के साथ डिनर के लिए आपको छह लाख दिए जाएंगे!!!<br />खेल 'गांव' पर सैंकडों करोड़ फूंक, हमने उन देशों को मुंहतोड़ जवाब दिया है जो कहते थे कि भारत अपने 'गांवों' की तरफ ध्यान नहीं देता!<br /><br />एक अच्छी खबर है और एक बुरी...अच्छी ख़बर ये है कि कलमाडी को भारतीय ओलंपिक संघ के अध्यक्ष पद से हटा दिया गया है...और बुरी ख़बर ये है कि उनकी जगह अब ललित मोदी लेंगे!!!!<br /><br />BEST ONE LINER ON KALMADI HAS BEEN TOLD BY KALMADI HIMSELF...N THAT IS...."I AM <br />INNOCENT"!!!<br /><br />पत्रकार-सुना है सर आपकी महेनत की वजह से ही जवाहरलाल नेहरु स्टेडियम इतना खूबसूरत बन पाया....कलमाडी-कहा न...तमाम आरोपों का जवाब मैं 14 अक्टूबर के बाद दूंगा!!!!दोस्तों, बिना सवाल सुनें आजकल कलमाड़ी ऐसे ही जवाब देने के आदी हो गए हैं!!!!<br /><br />मेरी आंखों को क्या हो गया है....KALINDI KUNJ भी पढ़ता हूं तो KALMADI KUNJ दिखाई देता है!<br />लोगों ने भी हद कर दी है...कलमाडी सुबह पार्क में RUNNING कर रहे थे...पीछे से किसी ने आवाज दी...कब तक भागोगे!!!<br /><br />जिस देश में सड़क बनाने के लिए गेम्स होने का इंतज़ार किया जाता है ....विदेशी पूछ सकते हैं....क्या वहां नहाने के लिए भी अपनी शादी का इंतज़ार किया जाता है????<br /><br />खाप 'पंचायत' का कहना है कि मामला चूंकि खेल 'गांव' से जुड़ी गड़बड़ियों का है इसलिए सज़ा भी OWNER KILLING होनी चाहिए!!!!!<br /><br />कलमाडी ने सुसाइड की छह कोशिशे की..सातवीं से पहले आकाशवाणी हुई...तुम्हें ऊपर बुला कर हमने माहौल नहीं ख़राब करना...एनर्जी वेस्ट मत करो!!!<br /><br />हूपर का कहना है कि उन्हें भारत की इज्ज़त से कोई मतलब नहीं है...ये इकलौता ऐसा मामला है जिस पर हूपर और कलमाडी की सोच मिलती है!!!!<br /><br />KALMADI'S BLOOD GROUP....I AM NEGATIVE!!!!<br /><br />कॉमनवेल्थ आयोजकों ने उन भारतीय खिलाड़ियों से माफी मांगी है जिन्हें विदेशी खिलाड़ियों के चलते साफ जगह पर रहना पड़ रहा है!!!<br /><br />कॉमनवेल्थ खेलों से जुड़े तमाम विवादों के बीच कलमाडी इकलौते आदमी है जिन पर कोई विवाद नहीं है, उनकी बेइज्ज़ती होनी चाहिए...इस पर सब सहमत हैं!!!<br /><br />LOCATION जानने के लिए कलमाडी ने मोबाइल का GPRS सिस्टम चैक किया...उसमें लिखा था...YOU ARE AT RECEIVING END!!!!<br /><br />Writer-Director Aatish Kapadia ने साफ किया है कि उनकी आने वाली फिल्म 'खिचड़ी' का कॉमनवेल्थ खेलों की अव्यवस्था से कोई लेना-देना नहीं है!!!!<br /><br />साल 20010...दो लड़के पार्क में बैठे बात कर रहे हैं...पहला- तुम रोज़ी-रोटी के लिए क्या करते हो...दूसरा-सुबह अख़बार बांटता हूं, फिर दस घंटे नौकरी करता हूं, शाम में ट्यूशन पढ़ाता हूं, रात में चौकीदारी करता हूं...मेरी छोड़ों, तुम अपनी बताओ, तुम्हें मैंने कभी कुछ करते देखा नहीं...पहला-यार, क्या बताऊं, आज से दो सौ पीढ़ी पहले... हमारे यहां एक 'सज्जन' हुए थे...वो इतना कमा गए कि हमें कुछ काम करने की ज़रूरत नहीं!!!<br /><br />BREAKING NEWS...कलमाडी को ऐसे बैंक में खाता खुलवाना है, जिसकी नर्क में भी BRANCH हो!!!!!<br /><br />कलमाडी के इस प्रस्ताव के बाद कि आप चाहें तो लंदन ओलंपिक में मेरे अनुभव का फायदा उठा सकते हैं, इंग्लैंड के राजकुमार ने सीधा प्रधानमंत्री को फोन लगाया और कहा...इसे समझा लो...वरना मेरा हाथ उठ जाएगा!!!!!<br /><br />कलमाडी का कहना है कि मैं चोदह तारीख के बाद जवाब दूंगा....कोई उन्हें समझाए... ये मौका जवाब देने का नहीं....जान देने का है!!!<br /><br />किसी ने कलमाडी से पूछा...सुना है सर आप खेलों के बाद ईमानदारी का जीवन बिताएंगे....कलमाडी भन्नाते हुए...पता नहीं स्साला...कौन मेरे बारे में उल्टी-सीधी अफवाहें फैला रहा है!!!!!!!!!!<br /><br />खंडहर हो चुकी इमारत की तरफ इशारा करते हुए एक विदेशी टूरिस्ट ने पूछा ये MONUMENT किसने बनवाया...गाइड-सर, ये MONUMENT नहीं कॉमनवेल्थ खेलों से जुड़ी इकलौती इमारत है, जो वक़्त पर पूरी हो गयी थी!!!!<br /><br />BIRTHDAY PARTIES में जिस तरह बच्चे फंक्शन के बाद गुब्बारा घर ले जाने की ज़िद्द करते हैं उसी तरह कलमाडी की ज़िद्द है कि खेल ख़त्म होने के बाद 40 करोड़ का गुब्बारा उन्हें घर ले जाने दिया जाए!!!<br /><br />कलमाडी का कहना है कि सरकारी गोदामों में रखे गेंहूं की तरह अगर सरकारी खज़ाने में रखे पैसे को वो वक़्त पर न खाते तो वो भी सड़ने लगता!!!!!!!!<br /><br />पर्यटक रूठे, पुल टूटे, उम्मीदें मरी, मगर मच्छरों के अलावा एक चीज़ जो आख़िर तक ज़िंदा रही ....वो है DEADLINE!!!!!!!<br /><br />आय से अधिक सम्पत्ति...ज़रूरत से कम शर्म....यही है कलमाडी का मर्म!!!!<br /><br />(nirajbadhwar@gmail.com)Neeraj Badhwarhttp://www.blogger.com/profile/15197054505521601188noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-6436633004265678085.post-20674283301439328502010-09-25T23:28:00.000-07:002010-09-25T23:31:21.134-07:00सुरेश कलमाडी को मेरी श्रद्धांजलि!!!दोस्तों, कलमाडी ने भले ही फजीहत की ज़िम्मेदारी कल ली हो मगर इस देश ने उनकी फजीहत का ठेका बहुत पहले ही ले लिया था...हालांकि ये बात जब मैंने कलमाडी को बताई तो उनका कहना था कि किसने दिया तुम्हें ये ठेका...सारे ठेके तो मैंने खुद अपने रिश्तेदारों को दिए हैं!!!बहरहाल पिछले दिनों FACEBOOK पर कलमाडी पर कुछ ONE LINER और JOKE लिखे हैं...आप भी मुलाहिज़ा फरमाएं...<br /><br />पेट ख़राब होने की शिकायत ले कलमाडी डॉक्टर के पास पहुंचे...डॉक्टर-क्या आजकल बाहर से ज़्यादा खाना हो रहा है...कुछ देर सोचने के बाद कलमाडी....हां सर, घर से बाहर निकलते ही मुझे गालियां खानी पड़ती हैं!!!.................डॉक्टर...ओफ्फ फो....ये तो ऐसी प्रॉब्लम है...जिस पर मैं चाहकर भी आपको 'परहेज़' नहीं बता सकता!!!!!!!<br /><br />कलमाडी ने साधा इंग्लैंड पर निशाना....कहा अंग्रेज़ों ने अगर हमें वक़्त पर आज़ाद कर दिया होता तो आज इतने काम अधूरे नहीं पड़े होते!!!<br /><br />कलमाडी 'साहब' घर पहुंचे तो काफी भीग चुके थे...बीवी ने चौंक कर पूछा...इतना भीगकर कहां से आ रहे हैं...क्या बाहर बारिश हो रही है...कलमाड़ी-नहीं....तो फिर...कलमाड़ी-क्या बताऊं...जहां से भी गुज़र रहा हूं...लोग थू-थू कर रहेहैं!!!!!<br /><br />कलमाडी साहब ने अपना मेल बॉक्स चैक किया...जो मैसेज उसमें थे उसकी डिटेल नीचे दे रहा हूं<br />1.ASIF ALI ZARDARI & OSAMA BIN LADEN WANT TO BE YOUR FRIEND ON FACEBOOK 2.RAKHI SAWANT,RAHUL MAHAJAN & RAJA CHAUDHARY ARE NOW FOLLOWING YOU ON TWITTER 3 LATE HARSHAD MEHTA &VEERAPAN WANT TO BE YOUR PAL FROM HELL & LAST BUT NOT THE LEA...ST...PAKISTAN CRICKET TEAM INVITES YOU TO BE THEIR BETTING COACH!!!<br /><br />वैधानिक चेतावनी:-गर्भवती महिलाएं और कमज़ोर दिल के लोग इसे न पढें....पीपली लाइव को ऑस्कर में भेजे जाने के बाद कलमाडी ने मांग की है कि कॉमनवेल्थ थीम सांग को भी ऑस्कर के लिए भेजा जाए...उसमें क्या बुराई है!!!!<br />रहमान का कहना है कि उन्होंने पांच करोड़ थीम सॉंग कम्पोज़ करने के नहीं, खेलों से जुड़ अपनी छवि ख़राब करवाने के लिए है...गाना तो कलमाडी के ड्राईवर ने बनाया है!!!<br /><br />BREAKING NEWS...कलमाडी को 'लोकप्रियता' का अंदाज़ा मोबाइल कम्पनियों को भी हो गया है...उनका फोन BUSY जाने पर अब आवाज़ आती है...जिस ज़लील आदमी से आप बात करना चाह रहे हैं वो अभी व्यस्त है...पता नहीं स्साला क्या कर रहा है!!<br /><br />ये तय हुआ कि कलमाडी को सज़ा-ए-मौत दी जाए...मगर दिक्कत ये है कि उन्हें फांसी पर लटकाने के लिए जल्लाद कहां से लाया जाए...दुनिया के सबसे बड़े जल्लाद तो वो खुद हैं...सरकार खुद कसाब को फांसी पर लटकाने के लिए कलमाडी की मदद लेने वाली थी... रही बात ज़हर का इंजेक्शन देने की...अब बाहर से उन्हें ज़हर देकर मारने की बात तो बहुत बचकानी है!!! कलमाडी ने तो खुद एक्सिडेंट में घायल दो नेवलों को ज़हर की दो बोतल देकर उनकी जान बचाई है...आख़िर भाई ही भाई के काम आता है!!<br /><br />कलमाडी अपने नाम में मौजूद'कल' की वजह से भी सारे काम 'कल' पर टालते रहे हैं...उनका नाम या तो आजमाडी या फिर अभीमाडी होना चाहिए था!!! मैं जानता हूं कि ये घटिया पैरेडी है मगर जिस आदमी पर की जा रही है...उसे भी तो देखो!<br /><br />कलमाडी की 'IMAGE' इस हद तक ख़राब हो चुकी है कि किसी EDITING SOFTWARE में भी IMPROVE नहीं हो सकती!!!<br /><br />बेइज्ज़ती की इंतहा...कलमाडी के कुत्ते ने उन्हें देख पूंछ हिलाना बंद कर दिया है!<br /><br />दोस्तों, रात को जूतों की एक माला कलमाडी के पोस्टर पर डाली थी...सुबह उठ कर देखा रहा हूं तो उसमें से दो जूते गायब हैं!<br />पेंटर-WHITEWASH करवाएंगे...कलमाडी-नहीं, अभी पिछले महीने ही घर में करवाया है...पेंटर-सर मैं घर की नहीं आपके मुंह की बात कर रहा हूं!!!<br /><br />BREAKING NEWS...कलमाडी की बढ़ती 'बदनामी' से प्रभावित हो कांग्रेस ने तय किया है कि नए-पुराने सभी पाप उन्हीं के सिर डाले जाएं...इसी कड़ी में पहला शिगुफा..........अर्जुन सिंह या राजीव गांधी नहीं...एंडरसन को भगाने के पीछे सुरेश कलमाडी का हाथ था!!!<br /><br />अधूरी तैयारियों से परेशान कलमाडी ने अपना सिर पीटा...कहा स्साला कोई भी अपना वादा नहीं निभाता...आतंकी कह गए थे...खेल नहीं होने देंगे...पता नहीं कहां रह गए???<br /><br />BREAKING NEWS...ख़बर है कि पिछले तीन दिनों में एक लाख लोगों ने नाम परिवर्तन की सूचना अखबारों में दी है....और क्या ये महज़ इत्तेफाक है कि इन सभी के नाम सुरेश हैं!!!<br /><br />BREAKING NEWS...साइक्लिंग इवेंट से इतने खिलाड़ियों ने नाम वापिस ले लिए हैं कि अब इस स्पर्धा में कांस्य पदक नहीं दिया जा सकता...वजह...सिर्फ दो खिलाडी़ ही भाग ले रहे हैं!!!<br /><br />BREAKING NEWS...इंग्लैंड ने कहा है कि जब तक खेल गांव की हालत नहीं सुधरती वे होटल में ही ठहरेंगे...ये सुन कलमाडी ने कल से ही इंग्लैंड के फ्लैट किराए पर चढ़ा दिए हैं!<br />बाहरी लोगों के दिल्ली आने से परेशान शीला दीक्षित के लिए इससे बड़ी खुशख़बरी और क्या हो सकती है कि एक-के-बाद-एक विदेशी खिलाड़ी दिल्ली आने से मना कर रहे हैं!!!<br /><br />SWISS GOVERNMENT को शक़ है कि SWISS BANK ने कलमाडी के पास SAVING ACCOUNT खुलवा रखा है!<br /><br />BREAKING NEWS....कलमाडी को काटने के लिए मच्छरों का कल एक एवेंट होना था...मगर...आख़िरी वक़्त पर ज्यादातर मच्छरों ने अपना नाम वापिस ले लिया है!<br /><br />कुकर्मों के लिए माफी मांगते हुए सुरेश कलमाडी भगवान की मूर्ति के सामने दंडवत हो गए...मन में माफी मांगी...आंख खोली तो देखा...भगवान खुद कलमाडी के सामने दंडवत थे...बोला...बच्चा...रहम करो...जाओ यहां से...<br />किसी ने GOOGLE में 'SURESH KALMADI' टाइप किया...सामने से जवाब आया...बच्चा... दुनिया ने इस पर 'रिसर्च' कर ली और तुम अब तक इसे 'सर्च' करने में लगे हो!!<br /><br />BREAKING NEWS...कलमाडी का कहना है कि उनके साथ धोखा हुआ है...पहले उन्हें बताया गया था कि खेल दो हज़ार दस में नहीं दस हज़ार दो में होने हैं!<br /><br />BREAKING NEWS...भारत में हो रही कलमाडी की ज़लालत को देखते हुए एंजलिना जोली ने उन्हें ADOPT करने का फैसला किया है!!!<br /><br />कलमाडी ने हाथ दे कर रिक्शे वाले को रोका और पूछा...बस स्टैंड चलना है...कितने पैसे दोगे???<br /><br />पाकिस्तान ने प्रस्ताव दिया है कि अगर विदेशी खिलाड़ी भारत आने में सुरक्षित महसूस नहीं कर रहे तो COMMONWEALTH GAMES पाकिस्तान में करवा खेल गांव की गंदगी देखकर इंग्लैंड के कुछ अधिकारियों ने सवाल पूछा कि क्या स्लमडॉग मिलिनेयर की शूटिंग यहीं हुई थी???<br /><br />आदत से मजबूर अधिकारियों ने अधूरे कामों को पूरा करने के लिए नई DEADLINE 31 अक्टूबर तय कर दी थी!!!<br />NCERT ने कक्षा छह की किताब से 'चालाक लोमड़ी' का चैप्टर निकाल उसकी जगह 'चालाक कलमाडी' का नया चैप्टर जोड दिया है मगर....कुछ लोगों का सोचना है कि इतने छोटे बच्चों को ये सब पढ़ाना क्या ठीक रहेगा?<br /><br />BREAKING NEWS...कलमाडी को भारत रत्न दिए जाने की मांग के बीच पाक सरकार ने कलमाडी को निशान-ए-पाकिस्तान सम्मान से नवज़ाने का फैसला किया है...उसका मानना है कि भारत की जितनी बदनामी वो पिछले साठ सालों में नहीं कर पाए उससे ज्यादा इस शख्स ने पिछले छह दिनों में करवा दी है!<br /><br />इतने प्रस्तावों के बीच अयोध्या विवाद पर एक और प्रस्ताव...न मंदिर...न मस्जिद...कलमाडी का कहना है कि विवादित ज़मीन पर नया खेल गांव बनाया जाए!<br /><br />आज़ादी की लड़ाई के सबसे बड़े सिपाही महात्मा गांधी के जन्मदिन के अगले दिन... गुलामी के सबसे बड़े प्रतीक कॉमनवेल्थ खेलों का जश्न शुरू हो रहा है...क्या इससे बड़ी शर्मिंदगी कुछ और हो सकती है!<br /><br />HEART BREAKING NEWS.. अफ्रीकी देश TOKELAU ने भी कॉमनवेल्थ खेलों में न आने की धमकी दी है...अब और बर्दाश्त नहीं कर सकता...जा रहा हूं...क्वींस बैटन से आत्मदाह करने...<br />टूटती छतें, ढहते पुल, ऊफनती यमुना...BREAKING NEWS...विदेशी खिलाड़ियों के बाद विदेशी आतंकियों ने भी सुरक्षा कारणों से दिल्ली आने से मना कर दिया है!!!<br /><br />कॉमनवेल्थ से जुड़ी तमाम बुरी ख़बरें देखकर दिल्ली शहर डूब मरना चाहता है और क्या ये महज़ इत्तेफाक है कि यमुना में कभी भी बाढ़ आ सकती है!<br /><br />दिल्ली की सुरक्षा ख़ामी का इससे बड़ा सबूत और क्या हो सकता है कि सुरेश कलमाडी अब तक ज़िंदा घूम रहा है!<br />सोमालियाई लूटेरों ने कलमाडी को CHIEF CONSULTANT नियुक्त किया!<br /><br />नाम पर सहमति न बन पाने के कारण कलमाडी साहब के हाथ से एक कुकरी शो का ऑफर निकल गया...चैनल शो का नाम 'खाना-खजाना' रखना चाहता था और कलमाडी इस ज़िद्द पर अड़े थे कि उसका नाम 'खाना खा जाना' रखा जाए!<br />वेटर-साहब, क्या खाएंगे?<br /><br />कलमाडी-स्साला, अब भी तुम्हें ये बताना पड़ेगा कि हम क्या खाएंगे।<br /><br />दिल्ली की रिकॉर्डतोड़ बारिश से प्रभावित हो, प्रधानमंत्री ने मणिशंकर अय्यर को बद्दुआ मामलों का प्रभारी बना दिया है!<br /><br />कुकरी शो का ऑफर भले ही हाथ से निकल गया हो मगर कलमाडी साहब को FAIR & LOVELY का विज्ञापन मिल गया है...पंचलाइन है...धूप ही नहीं, कर्मों से काले हुए मुंह भी करे साफ!<br /><br />कॉमनवेल्थ खेलों को भारत की शान बताने वाले अफसरों की ख्वाहिश है कि उनको मुखाग्नि भी क्वींस बेटन से दी जाए!<br /><br />कलमाडी साहब दिल के बड़े नेक हैं...मैंने उनसे कहा सर, माफ कर दो... मैंने आप पर इतने जोक बनाए...वो बोले बेटा, मैंने कुछ 'नहीं बनाने' पर भी माफी नहीं मांगी और तुम 'बनाने' पर मांग रहे हो!!!<br /><br />"सुरेश कलमाडी एक ईमानदार, कुशल, मेहनती और देशभक्त आदमी है। उस जैसा सच्चा आदमी आज तक इस देश ने नहीं देखा...पूरे देश को उस पर नाज़ है" ....ऐसी ही फनी और मज़ेदार चुटकुलों के लिए SMS करें...5467 पर!<br /><br />AND LAST BUT NOT THE LEAST…..कलमाडी की 'लोकप्रियता' का आलम ये है कि लोग दिल्ली के बाद मुन्नी की बदनामी के लिए भी उन्हें ही कसूरवार ठहरा रहे हैं!!!Neeraj Badhwarhttp://www.blogger.com/profile/15197054505521601188noreply@blogger.com7