एक महीने के अंदर ही अमिताभ बच्चन ने हमें बताया कि कैसे ब्लॉगिंग दुश्मनों को निपटाने का एक कारगार माध्यम हो सकता है। अपने ब्लॉग पर पहले उन्होंने शत्रुघ्न सिन्हा को हड़काया। केबीसी के आंकड़े दे शाहरुख को पटखनी दी। फिर ज़मीन मामले पर सलीम खान को लताड़ा और सिनेमा में सिगरेट के प्रतिबंध पर रामदौस की भी ख़बर ली। मतलब कंटेंट के हिसाब से ये ब्लॉग कम और जंगी जहाज ज्यादा लग रहा था।
अमिताभ के ब्लॉग पर शोध जारी ही था कि इस बीच आमिर खान ने अपने ब्लॉग पर डिटेल दी कि उनके कुत्ते का नाम शाहरुख कैसे पड़ा? सुभानल्लाह!!!!! उनके चाहने वाले बाकी सब तो जान ही चुके थे। अपने सत्रह अफेयर और दो शादियों के बारे में वो सब बता चुके। यही एक सनसनीखेज ख़बर बाकी रह गई थी और इक सुबह उन्हें लगा चलो... अपने फैन्स का ज्ञानवर्धन किया जाए!
वाकई, बदनीयत तो उस चलताऊ औरत की तरह होती है जिसे आप सौ दरवाज़ों में बंद रखें फिर भी वो बाहर झांक ही लेती है। सब को दिख ही जाती है!
खैर, मुझे आमिर-अमिताभ से कोई शिकायत नहीं है। मेरा तो मानना है इसी तर्ज पर तमाम बड़े लोगों को अपने झगड़े निपटाने और सफाई देने के लिए ब्लॉग खोल लेने चाहिए।
इसी क्रम में सबसे पहले अर्जुन सिंह ब्लॉग बनांए। नाम रखें-‘छूटे तीर’ डॉट ब्लॉगस्पॉट। पहली पोस्ट में वो बिना लाग लपेट माफी मांगे। गांधी-नेहरु परिवार के प्रति वफादारी का ट्रैक रिकॉर्ड बतांए। हो सके तो इस रिकॉर्ड को फिर बजाएं। चापलूसी से जुड़ी महत्ववपूर्ण घटनाओं और तिथियों का ज़िक्र करें। चमचागिरी के चार दशकों के अपने कार्यकाल को ग्राफिक्स के माध्यम से समझाएं और पार्टी से पूछें कि जब चापलूसी ने इतने सालों में मुझे इतना कुछ दिया है तो उम्र के इस पड़ाव पर मैं ट्राइड एंड टेस्टिड फार्मूला क्यों त्याग दूं?
इसके अलावा के पी एस गिल भी झट से एक ब्लॉग बना लें। अपने चाहने वालों को (जिस भी ग्रह पर वो हों) बताएं कैसे इस ज़ालिम दुनिया ने उनके साथ ज़्यादती की। ‘बाकी रह गए’ अपने कामों का ज़िक्र करें। (अपने अलावा) उन लोगों के नाम बताएं जिनके चलते भारतीय हॉकी का बेडागर्क हो गया है। उस पर्वत की भौगोलिक स्थिति बताएं जहां से वो भारतीय हॉकी के लिए संजीवनी लाने वाले थे मगर उनकी फ्लाइट कैंसिल करवा दी गई।
उस क्षेत्र-विशेष का नाम भी बताएं जहां अब वो अपनी सेवाएं देना चाहते हैं!
इनके अलावा ऐसे तमाम बड़े लोग जिन्हें लगता है ब्लॉगिंग बेलगाम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता या रचनात्मकता का माध्यम नहीं, बल्कि पर्सनल स्कोर सैटल करने का ज़रिया है वो जल्द से जल्द ब्लॉग बना लें। ये मंच उनके चरण-कमलों को तरस रहा है!
गुरुवार, 22 मई 2008
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4 टिप्पणियां:
सही कहा नीरज भाई.. आजकल तो ब्लॉग युद्ध चल रहा है.. हर जगह
आपका ब्लॉग पढ़ती हूं और आलस पर आपके दो व्यंग्य बढि़या लगे। आज का भी ठीक है लेकिन इसमें एक लाइन ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया-ये चलताऊ औरत क्या होती है, इसकी परिभाषा स्पष्ट कर सकते हैं क्या,,,
बहुत बढ़िया. एक ठो भज्जी का भी बनवा दो. :)
अच्छी सलाह है, भगवान् करे आपकी सोच अर्जुन सिंह तक पहुचे :-)
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