भारतीय पुलिस का इस दर्शन में गहरा यकीन है कि जो दिखता है वो होता नहीं। इसी विश्वास के चलते देश के हर चौराहे पर खड़े पुलिस वाले की कोशिश होती है कि कोई भी 'शरीफ दिखने वाला' आदमी बिना ज़लील हुए गुज़रने न पाए। इसके अलावा ऐसे और भी कई गुण हैं जिनमें भारतीय पुलिस की गहरी आस्था है।
क्वॉलिटी कंट्रोल- ऐसे वक़्त जब क्वॉलिटी कंट्रोल हर कम्पनी के लिए एक बड़ा मसला है, पुलिस महकमा एक अलग पहचान रखता है। आप पायेंगे कि मेरठ का पुलिस वाला जिस कर्कशता का धनी है, जिन गालियों का ज्ञाता है, जिस बेहूदगी का सिकंदर है, इंदौर का पुलिसवाला भी उन तमाम सदगुणों का आत्मसात किये है। इंसानियत के बुनियादी नियमों से जो दूरी आगरा पुलिस की है, उससे ठीक वैसा ही परहेज़ अमृतसर पुलिस को भी है। जिस पल कोई नई गाली बरेली पुलिस लांच करती है, ठीक उसी क्षण मुरादाबाद पुलिस भी अपना सॉफ़्टवेयर अपडेट कर लेती है। बदतमीज़ी के जितने दोहे दिल्ली पुलिस को याद हैं, उतने ही मुम्बई पुलिस ने भी कंठस्थ कर रखे हैं।
समान व्यवहार- हो सकता है आप अपने ऑफिस में सर हों, घर में बड़े भाई या फिर मौहल्ले में नेक आदमी। लेकिन, पुलिसवाले ऐसे किसी वर्गीकरण में यकीन नहीं करते। बाईक साइड में रोकने का इशारा कर पुलिसवाला कहता है चल बे, कागज़ दिखा। देश के तमाम डॉक्टर, इंजीनियर, कवि, लेखक, दादा, नाना, फूफा, चाचा, मामू पुलिस वालों के लिए 'चल बे' हैं। और अगर आपने इस 'चल बे' का विरोध किया तो वो 'अबे' पर आ जायेगा और पायेंगे कि महज़ पांच मिनट में आपका दूसरा नामाकरण हो गया!
महिला सम्मान- ट्रेनिंग के वक्त पुलिस वालों को हिदायत दी जाती है कि महिलाओं को विशेष सम्मान दें और जैसा कि नियम है सम्मान ज़रूरत से ज़्यादा होने पर श्रद्धा में बदल जाता है, श्रद्धा प्यार में तब्दील हो जाती है और प्यार अपने ही हाथों मजबूर हो अभिव्यक्ति तलाश्ता है। इसी कशमकश में बेचारे कुछ ऐसा कह बैठते हैं जिसे सभ्य समाज 'टोंट' कहता है। मेरी गुज़ारिश है आप टोंट का बुरा न मानें। उन बेचारों में भाषा के जो संस्कार हैं, उसमें प्यार अक्सर घटिया अभिव्यक्ति के हाथों शहीद होता रहा है!
पर्या्वरण प्रेम:-पुलिस वालों का पर्यावरण प्रेम भी उन्हें ज़्यादा मामले दर्ज करने से रोकता है। उन्हें लगता हैं जितनी ज़्यादा शिकायते लिखेंगे, उतने ही कागज़ बरबाद होंगे, उतनी ही नई पेड़ों की कटाई होगी और उतना ही पर्यावरण असंतुलन पैदा होगा। ऐसे में किसी घटिया शिकायत को न लिख अगर वो पर्यावरण बचाने में महान योगदान दे सकते हैं तो बुरा क्या है!
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6 टिप्पणियां:
बहुत बढ़िया नीरज भाई.. लगे रहिए..
गुणों की पोटली अच्छी खोली आपने... और गुन भी गिनाइये, ये तो महान भारतीय पुलिस की एक झलकी मात्र है :-)
बहुत बढ़िया और करारा व्यंग्य.
पुलिस व्यवस्था की पोल खोल कर रख दी आपने.
समझ नही आता है कि पुलिस की बातें हो रही या फूलिश की.
क्या बात है, बहुत खूब.
नीरज जी, मैंने एक बहुत बढि़या बात जो आपके लेखन में देखी है कि आप के लेख बिल्कुल ज़मीनी हकीकत से जुड़े होते हैं । इसलिये हर कोई अपने आप को सहज ही इन में लिखी दयनीय/बेबस परिस्थितियों के साथ आईडैंटीफॉय सहज ही कर लेते हैं। यह आप की यूएसपी है।
इसलिये आप बधाई के पात्र हैं।
वाह क्या खूब लिखते हैं आप मजा आ गया सर जी हम कोशिस करेंगे की आप के लेख जरूर पढे.पंकज
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