जिस तरह ताने मारने के लिए, चुगली करने के लिए और मज़ाक उड़ाने के लिए होता है, उसी तरह सलाह देने के लिए होती है। हर आदमी सलाहों की फैक्ट्री खोले बैठा है। सलाहों के गोदाम भरे पड़े हैं। इस रूट में सारा ट्रैफिक वन-वे है। इस क्नेक्शन में सारी कॉल्स आउटगोइंग हैं। सलाहों के मैसेज सेंड किये जा रहे हैं लेकिन डिलीवरी रिपोर्ट नहीं आ रही। पूरे माहौल में सलाह ही सलाह है। दम घुटने लगा है। सलाह प्रदूषण हो गया है। ज़रूरत है, 'सलाह नियंत्रण मशीनें' लगाई जायें। रास्ते में रोक लोगों की जांच की जाए कि कहीं कोई ज़्यादा सलाह तो नहीं छोड़ रहा!
पूरा मुल्क सलाहों की रणभूमि में तब्दील हो गया है। हर तरफ सलाहों के तीर छोड़े जा रहे हैं। मूर्ख समझदार से सलाह कर रहा है। मूर्ख, मूर्ख से भी सलाह कर रहा है। मूर्ख अपने अनुभव से मूर्खतापूर्ण सलाह दे रहे हैं। मूर्ख उन सलाहों को मान वैसी ही मूर्खता कर रहे हैं। तमाम मूर्खताओं पर परम्पराओं के लेबल चिपके हैं। लिहाज़ा सभी खुश है!
जिस तरह डाकू लोगों को लूटते हैं। बाप, बच्चों की अक़्ल लूट रहे हैं। बच्चे पेड़ से बंधे हैं। मुंह में कपड़े ठूंसे हुए हैं। बच्चे बेहाल है। लेकिन बाप सलाह दे कर रहेगा क्योंकि उसके बाप ने भी उसे सलाह दी थी। बच्चे सलाह मान रहे हैं, फ़ेल हो रहे हैं। वो नहीं जानते उन सलाहों की एक्सपायरी डेट आ गयी है!
प्रकृति के आधार पर सलाह देने वालों को तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता है-
-शौकिया सलाहदाता
-स्वयंभू बुद्धिजीवी सलाहदाता
और पेशेवर सलाहदाता
हममें से ज़्यादातर शौकिया यानी 'एमेच्योर' सलाहदाता की श्रेणी में आते हैं। इनमें सलाह देने की विशेष उत्कंठा नहीं होती। न ही ये सलाह देने के लिए माहौल बनाते हैं। लेकिन मौका मिले तो चूकते नहीं हैं।
दूसरी श्रेणी स्वयंभू बुद्धिजीवी सलाहदाताओं की है। हर शहर में ये 10 से 15 प्रतिशत के बीच पाये जाते हैं। आम आदमी से दो अख़बार ज़्यादा पढ़ते हैं। वक़्त निकाल कर गीता के कुछ उपदेश रटते हैं और किसी भी न समझ आने वाली बात को, कबीर या तुलसीदास के दोहे का हिंदी रूपांतरण बता, लोगों को धमकाते हैं। ओए गुरु!
सलाह के रंगमंच पर ये शुरूआत तो आत्मसंशय से करते हैं, लेकिन दाद मिलने के बाद ओवरएक्टिंग शुरू कर देते हैं। ज़बरदस्ती की छूट लेने लगते हैं। राह चलतों पर घात लगाकर हमला करते हैं। पढ़ने वालों को कहते हैं, धंधा करो। धंधा करने वालों को समझाते हैं कि 'जीवन के और भी मायने हैं' और जीवन समझने में लगे लोगों को धिक्कारते हैं, 'किस फिज़ूल के काम में लगे हो, भला आज तक कोई जान पाया है जीवन क्या है!' समझो गुरू समझो!
आपके सुख-दुख से इन्हें कोई सरोकार नहीं। इन्हें बस सलाह देनी है। सलाह देना ही इनका जीवन है। इसी में ये पूर्णता महसूस करते हैं। ऐसे लोग सामाजिक दायरे के जिस टापू में रहते हैं, वहां ऐसे आठ-दस लोगों की पहचान कर ही लेते हैं जो इनकी सलाहों के परमानेंट ग्राहक बन पाये।
तीसरी श्रेणी में आते हैं पेशेवर सलाहदाता। ऐसे सलाहदाता जिनके पास सलाह देने का लाइसेंस हैं। इनमें करियर काउंसलर हैं, मनोविज्ञानी हैं, डाइटिशयन हैं। लेकिन विडम्बना है कि हम आधों को हिंदी के नाम तक नहीं दे पाये हैं। ये सब पैसे लेकर सलाह देते हैं लेकिन हम अपने मौहल्ले की किसी भी मुफ्त क्लिनिक में अपना इलाज, 'बड़े भाई' या 'दुनिया देख चुके' सरीख़े किसी शख़्स से करवा लेते हैं। लेकिन ये सलाहदाता परवाह नहीं करते। उदारीकरण से लाभान्वित हुए कुछ चुनिंदा लोग इनके 'मोटे ग्राहक' हैं।
दिल कर रहा है सलाह पर और लिखूं मगर मित्र सलाह दे रहा है कि लोगों को बहुत पका लिया इससे पहले की वो झड़ कर गिर पड़े, रुक जाओ। मैं रुकता हूं, आप पढ़ें।
शुक्रवार, 11 जुलाई 2008
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5 टिप्पणियां:
नीरज साहब, हमें तो खुजली है सलाहें देने की, हमें किस खांचे में फिट कीजियेगा?
बहुत सही. वैसे आया हूँ तो आपको एक सलाह दे दूँ. आप ऐसे ही लिखते रहे.
अजी आप की सलाह सिर माथे पर,आगे से किसी की सलाह नही मानुगां अमल आप की सलाह से शुरु करता हु,आईदा भी अपनी सलाह बिना सलाह के देते रहे, मुफ़्त मे कुछ भी देदो,हम से मागंना मत.क्यो कि लेना तो आसान हे देना कठीन हे
han sahi hai. ab aapki baat hi manege.
bahut khub..maza aa gaya :)
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