बुधवार, 26 नवंबर 2008

इनाम और ईमान (हास्य-व्यंग्य)

युवराज सिंह को लगातार दूसरे वनडे में ‘मैन ऑफ द मैच’ चुना गया। इनाम के तौर पर बाइक मिली। बाइक पर वो स्टेडियम के चक्कर लगा रहे हैं। किसी ने मासूम जिज्ञासा हवा में उछाली। अरे! युवराज को तो पिछले मैच में भी बाइक मिली थी। अब फिर मिल गई। दो-दो बाइक का वो करेगा क्या?
इससे पहले दूसरी बाइक के ‘सम्भावित इस्तेमाल’ पर बात हो, उन्होंने एक और सवाल दागा। युवराज बाइक रखेगा या कम्पनी को दे, बदले में पैसे ले लेगा ? वैसे भी चालीस-पचास हज़ार रूपये मिल जाएं तो एक ढंग का एलसीडी आ जाएगा!
अधूरे ज्ञान और पूरे जोश के साथ किसी भी विषय पर राय देना हमारा राष्ट्रीय चरित्र है। लिहाज़ा एक और सज्जन बीच में कूदते हैं। कुछ पता न हो तो नहीं बोलना चाहिए! तुम्हें क्या लगता है कि कम्पनी ने बाइक की फुल पेमेंट की होगी। अरे! आधा पैसा कम्पनी देती है बाकी खिलाड़ी को पल्ले से देने पड़ते हैं। अब ये पैसा वो लम-सम दे दें या किस्तों में....ये उसकी मर्ज़ी है।
पहले वाला सहमत होता है। हां यार, मुझे भी यही लग रहा था कि कम्पनियां इतनी दिलेर तो नहीं कि 50 हज़ार की चीज़ ऐंवे ही दे दें। मेरे भाई ने भी बाइक फाइनेंस करवा रखी है। एक किस्त भी इधर-उधर हो जाए तो रिकवरी वाले फोन खड़काना शुरू कर देते हैं। अब जो कम्पनी 1500 की किस्त नहीं छोड़ सकती वो 50 हज़ार की बाइक कैसे लंगर में दे सकती है?
बात पेमेंट से निकल कर दूसरी गाड़ी के ‘सम्भावित इस्तेमाल’ पर लौटती है। पहले वाला-मगर मैं सोच रहा हूं दो-दो बाइक का युवराज करेगा क्या? दूसरा तंज मारता है। तू फिक्र मत कर, तुझे तो नहीं देगा। मुझे तो लगता है ये बाइक वो किम शर्मा के भाई को दे देगा!
पहले वाला आस्तीन चढ़ाता है। तू भी अजीब मूर्ख है। किम शर्मा के भाई को क्यों देगा? उसे तो खुद अभी इतनी बड़ी गाड़ी मिली है। वो कोई कम बड़ा खिलाड़ी है। क्या बात कर रहे हो? कौन है उसका भाई? तुम स्साला रहते कौन-सी दुनिया में हो। ईशांत शर्मा और कौन? सच.....ये तो गजब बात बताई तुमने।
एक-दूसरे का सामान्य ज्ञान भ्रष्ट करने के बाद वो फिर बाइक पर लौटते हैं। मुझे तो लगता है वो ये बाइक किसी दोस्त-यार को दे देगा। दोस्त पर अहसान हो जाएगा और बाइक भी ठिकाने लग जाएगी। स्साला! हमारा ऐसा कोई ढंग का दोस्त क्यों नहीं है। सभी कंगले हमारे ही पल्ले पड़े हैं। इस बात पर दोनों सहमत हैं। युवराज ग्राउंड का चक्कर पूरा करते हैं और ये अपनी कल्पना का। मैं निकल लेता हूं।

1 टिप्पणी:

shama ने कहा…

Aapko iswaqt kewal apne blogpe mera likha" Meree Aaawaaz suno" ye lekh padneke liye aamantrit karne aayee hun...shesh fir....intezaar hai...anya kavitayen aur ek lekh jo Gujraat me hue qaumi fasadonpe likha tha," Pyarki Raah Dikha Duniyako< usebhi zaroor paddhen..mai behad shukrguzar rahungi...
intezaarme