बुधवार, 6 मई 2009

राजनीति और क्रिकेट का गठजोड़!

क्रिकेट और राजनीति हमारे जीवन के अहम हिस्से हैं। मगर ये देख बहुत अफसोस होता है कि इतने सालों में दोनों ने एक दूसरे से कुछ नहीं सीखा। टीवी पर आइपीएल देखने और राजनीतिक बहसें सुनने के दौरान मैंने महसूस किया कि अगर दोनों एक दूसरे की अच्छाइयां अपना लें तो खुद में बहुत सुधार ला सकते हैं। मतलब राजनीति का क्रिकेटीकरण और क्रिकेट का राजनीतिकरण हो जाए तो मज़ा आ जाए। कैसे? मुलाहिज़ा फरमाएं-

1 ये सभी जानते हैं कि खिलाड़ी भी बिकाऊ हैं और नेता भी। मगर त्रासदी देखिए, खिलाड़ियों की कीमत खेल शुरू होने से पहले लगती है और नेताओं की खेल ख़त्म होने के बाद। मैं पूछता हूं कि अगर क्रिकेटीय प्रतिभाओं को खेल खेलने से पहले अपनी कीमत जानने और लेने का हक़ है तो नेताओं को क्यों नहीं। राजनीतिक प्रतिभाओं से न्याय के लिए ज़रूरी है कि चुनाव से दो महीने पहले इनका भी ऑक्शन हो। चुनाव आयोग की तर्ज पर अलग से एक संस्था बना इच्छुक नेताओं का रजिस्ट्रेशन किया जाए। तमाम राष्ट्रीय और मान्यता प्राप्त पार्टियां उसमें आमंत्रित की जाएं। ऐसा होने पर देश के सभी सैटिंगबाज़, धंधेबाज़, ज़हरउगलू, सेंधमारू एक छत के नीचे बिकने के लिए तैयार होंगे। कोई भी पार्टी ज़रूरत और बजट के आधार पर खरीददारी कर पाएगी। इससे न तो उम्मीदवार उपेक्षा की शिकायत कर पाएंगे औ रन ही पार्टियां संगठनात्मक कमज़ोरी का रोना रो पाएंगी।

2.जहां तक दायरा बढ़ाने की बात है राजनीति के मुकाबले क्रिकेट अब भी काफी पिछड़ा हुआ है। इन सालों में राजनीति व्यवसायीकरण, अपराधीकरण के रास्तों से होते हुई जहां साम्प्रदायिकरण तक पहुंच गई लेकिन, वहीं क्रिकेट सिर्फ व्यवसायीकरण तक ही पहुंच पाया। वक़्त आ गया है कि क्रिकेट भी राजनीति की तर्ज़ पर खुद को नए आयाम दे। राज्य के आधार पर टीम बनाने के बजाए जाति और धर्म के आधार पर टीमें बनाई जाए। ब्रहाम्ण, ठाकुर, कायस्थ, जाट, गुज्जर हर किसी की अलग से टीम हो। इससे होगा ये कि जिन लोगों को 'क्षेत्रीय टीम का विचार' अब तक मैच देखने के लिए प्रेरित नहीं कर पाया वो कम से कम 'बिरादरी के आदमी का हाल' जानने के लिए ही मैच देख लेंगे। वैसे भी जाति जब चुनावी उम्मीदवार की सबसे बड़ी योग्यता हो सकती है तो क्रिकेट में सबसे बड़ा आकर्षण क्यों नहीं।

इसी तरह क्रिकेट में परिवारवाद को बढ़ावा देने के लिए भी नियम बनाए जाएं। बड़े खिलाड़ियों के बेटे रणजी खेले बिना सीधा टेस्ट क्रिकेट खेलें। जैसे कोई बड़ा प्लेयर अगर पंद्रह साल से टेस्ट में नंबर चार पर बैटिंग करता रहा है तो कल को उसके बेटे को भी इसी स्लॉट पर खेलने की छूट दी जाए। जनता भी उसकी परफॉरमेंस भूल उसके पिताजी का नाम याद रखे। जिस तरह राजनीति में खानदानी सीट होती है उसी तरह क्रिकेट में खानदानी स्लॉट की परम्परा स्थापित की जाए।

3.जॉन बुकानन का बहुकप्तान का आइडिया भले ही उनकी टीम में लागू न हो पाया हो, लेकिन देश के मौजूदा राजनीतिक हालात में बहुप्रधानमंत्री का विचार बहुत जल्द लागू हो सकता है। मेरे विचार में 15 सीटों वाली पार्टी का भी वही महत्व है जो 150 सासंदों वाली पार्टी का। लिहाजा गठबंधन में शामिल पार्टियां अपनी कुल संख्या को पांच साल से भाग दें। इसके बाद जो संख्या आए, उतने समय तक हर पार्टी का एक प्रधानमंत्री रहे। मसलन गठबंधन में 20 पार्टियां हैं। पांच साल में साठ महीने हैं। ऐसे में पांच साल के लिए बीस प्रधानमंत्री बनाए जाएं जो क्रमश तीन-तीन महीने तक पीएम की कुर्सी पर बैठे। इससे न सिर्फ फ्रेशनेश बनी रहेगी बल्कि देश की दुर्दशा में सभी मिलकर योगदान दे पांएगे।

4. उदारता के मामले में क्रिकेट राजनीति से काफी कुछ सीख सकता है। जिस तरह राज्यसभा में कलाकारों, लेखकों, पत्रकारों, बुद्धजीवियों को जगह मिलती है उसी तरह क्रिकेट टीम में नहीं मिलती। लिहाज़ा क्रिकेट टीम में नेताओं के लिए कुछ स्थान आरक्षित किए जाएं। बीसीसीआइ की सहमति के बाद ये नियम बने कि जो भी सरकार सत्ता में होगी उसे क्रिकेट टीम में कम से कम तीन पद भरने का हक़ होगा। ऐसे में जो लोग कैबिनेट में जगह नहीं बना पाएंगे उन्हें क्रिकेट टीम में जगह दे दी जाएगी। इस तरह के 'नेता खिलाड़ियों' को कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया जाएगा। मैच खेलने भी वो लाल बत्ती की गाड़ी में आएंगे। बल्लेबाज़ी के वक़्त इन्हें अंडरआर्म गेंद फेंकी जाएगी। चौका-छक्का लगाने पर चीयरलीडर्स की बजाए इनके आवारा और नशेड़ी दोस्तों को नाचने की छूट होगी। तमाम सरकारी विज्ञापनों में भी इन्हें प्राथमिकता दी जाएगी। और अंत में मैंच कोई भी जीते मैच के आख़िर में भाषण यही देंगे।

5 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

रन लेने जेड स्क्यूरिटी के साथ दौड़ेंगे... :)

Abhishek Ojha ने कहा…

क्या खूब सिनर्जी निकाली है आपने इस गठजोड़ में :-) २+२ = ५ हो जायेंगे इस गठजोड़ से.

Pramendra Pratap Singh ने कहा…

क्‍या थिंक है, टैंक क्‍यो नही बना लेते भाई :)

कुश ने कहा…

देश की दुर्दशा में सभी मिलकर योगदान दे पांएगे।


kya khoob dhoya hai neeraj bhai..

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

आज इसका मुख्‍य निचोड़

हरिभूमि में ब्‍लॉगचर्चा के

अंतर्गत भी पढ़ें
और चिट्ठाचर्चा में तो

इसकी चर्चा हो ही चुकी।