मंगलवार, 28 जुलाई 2009

मुसीबतों का इंद्रधनुष!

बारिश के बाद अगली सुबह है। मैं ऑफिस के लिए घर से निकला हूं। कुछ दूरी पर ही बर्बादी का ट्रेलर दिखने लगा है। नालियां ख़तरे के निशान से ऊपर बह रही हैं। गटरों में हाई टाइड है। ये देख लोगों की हवा टाइट है। सड़क की हालत पर गश खा कुछ पेड़ सड़क पर ही गिरे पड़े हैं। यहां-वहां लटकते लैम्प पोस्ट मानो उनके दुख में शरीक हो रहे हैं। वहीं गंदे पानी पर तैरते रंग-बिरंगे पॉलिथीन सड़क को इंद्रधनुषी लुक दे रहे हैं।

दोनों ओर से लबलबाती नालियों ने सड़क को पूरी तरह आगोश में ले लिया है। ये बताना मुश्किल है कि सड़क कहां है और सड़क के पासपोर्ट में पहचान चिह्न के रूप में दर्ज, स्थायी गड्ढ़े कहां! ऐसे ही एक छुपे रूस्तम गड्ढे से अनजान शख़्स बाइक सहित उसमें धंस जाता है। तभी सड़क क्रॉस करने की कोशिश में एक कैब उसके आगे आ जाती है। उधर, कैब के सामने ब्लूलाइन बस आ जाती है। स्थिति का फायदा उठा लोहे के एंगल हवा में लहराता एक हाथ रिक्शा वहां से निकलता है। एंगल की दहशत से लोग गाड़ियां पीछे करते हैं और पीछे खड़ी गाड़ी से टकरा जाते हैं। अगले दस मिनट तक वो एक-दूसरे के परिजनों को याद कर गुस्से का इज़हार करते हैं।

देखते ही देखते वहां मिनी गृहयुद्ध के हालात बनने लगते हैं। लोगों की ज़बान से भी लम्बा ट्रैफिक जाम लग जाता है। सामने वाले की गर्दन समझ गाड़ियों के हॉर्न ज़ोर-जोर से दबाए जाने लगते हैं। हवा में गूंजते बीसियों बेसुरे हॉर्न और लहराती गालियां कोरस में मानो यमराज को न्यौता देती हैं। आप समझ जाते हैं कि आपका वक्त आ गया। तभी आपके हाथ से गाड़ी का हैंडल फिसलता है, जूते में गंदा पानी घुसता है। हॉर्न की आवाज़ पर भी यमराज नहीं आ रहे और आप सोचते हैं कि क्यों न इसी जूते के पानी में डूब कर अपनी जान दे दूं या फिर जूता उतार वहां खड़े लोगों को दे मारूं। वैसे भी उसे भिगोने की ज़रूरत नहीं है।

जो बारिश दिल के तार छेड़ती है, वही नकारा निगम की बदौलत व्यवस्था को तार-तार कर रही है। बिना डूब मरे ही नर्क का अहसास करवा रही है। अच्छा होता कि मैं मोटरसाइकिल की जगह मोटरबोट फाइनेंस करवा लेता। बारिश के लिए लाख तड़पता पर उसकी दुआ न मांगता। एक हाथ से बाइक संभाल और दूसरे को आसमान की तरफ उठा मजबूर इंसान यही दुआ मांगता है कि हे प्रभु! बारिश के साथ मुसीबतों का भार भी देना है तो बेहतर होगा कि नगर निगम का प्रभार भी तुम ही संभाल लो।

10 टिप्‍पणियां:

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

सही जूता फेंक कर मारा है
पर निशाने पर लगे तब न
बहुत बेशर्म हैं नगर निगम
पालिका वाले।

Udan Tashtari ने कहा…

नगर निगम तो उन्हीं के भरोसे चल रहा है, जितना भी चल रहा है/.

Unknown ने कहा…

kamaal kar diyaji...................
ha ha ha ha ha ha ha ha

संगीता पुरी ने कहा…

शहर के बरसात के हालात को देखते हुए सटीक शीर्षक दिया है आपने .. सच में बहुत मुश्किल हो जाती होगी जिंदगी।

सौरभ के.स्वतंत्र ने कहा…

गजब लिखारिष्ट..ब्लौगीयाते रहिये...लतियाते रहिये..मजा आ गया..नब्बे मन नब्बे.

मधुकर राजपूत ने कहा…

सही कहे हो गुरू। मजा आ गया। एक लंबा सा उपन्यास लिखो यार। रागदरबारी जैसा कालजयी। सच में खूब बिकेगा। आपके लेखन में समसामयिकता, आधुनिकता है। कुल मिलाकर वो जेनर है जो किसी काल के लेखक की लेखनी में होता है। एक लेखक उस काल के समाज का परिचय, शासन व्यवस्था, भाषा, शैली का प्रतिनिधित्व करता है। आपमें वो बात है। लिख डालो एक बड़ा सा उपन्यास। सबसे पहला खरीददार मैं।

डॉ .अनुराग ने कहा…

तभी कहूँ दिल्ली के लोग बारिश में भी रोमांटिक नहीं होते !!!!!!

कुश ने कहा…

अच्छा तो निगम चल भी रहा है..

एक और धुआधार पोस्ट

आलोक सिंह ने कहा…

बारिश के साथ मुसीबतों का भार
बस प्रभु तुम इतना और करो उपकार
बारिश करने से पहले करो निगम का उद्धार
नही सहा जाता बारिश के बाद के मारा-मार

प्रमोद ताम्बट ने कहा…

बहुत बढ़िया व्यंग्य है। साधुवाद ।

प्रमोद ताम्बट
भोपाल