सोमवार, 7 दिसंबर 2009

लेखक और बीवी!

कोई भी लेखक दस-बीस फीसदी प्रतिभा और सत्तर-अस्सी फीसदी गलतफहमी के दम पर ही लेखक बनता है। ये अहसास और जबरन खुद पर थोपी गई ये ज़िम्मेदारी कि मेरा जन्म कुछ महान करने के लिए हुआ है, लेखक को हमेशा रोज़मर्रा के छोटे-मोटे काम करने से रोकता है। वो मानता है कि बडे़ लोग हमेशा अपने काम की वजह से जाने जाते हैं न कि इसलिए नहाने के बाद तौलिया रस्सी पर डालते हैं या नहीं, या फिर बचपन में मौहल्ले की दुकान से कभी किराना लाए या नहीं।

यहां तक तो सब ठीक है। मगर दिक्कत वहां आती है जब यही लेखक शादी कर बैठता है। वो कचंनबाला जो इसी लेखक की क्रिएटिविटी के गुण गाते नहीं थकती थी, उसे क्या पता कि रचनात्मकता हमेशा पैकेज डील में आती है। जो शख्स उसे दुनिया का सबसे होनहार और अक्लमंद इंसान लगता था, शादी के महज़ तीन महीने में ही वो उसे एलियन लगने लगता है। हर पल वो यही सोचती है कि कोई इंसान इतना गंदा कैसे रह सकता है! इतने चलताऊ रवैये के साथ कैसे जी सकता है! और यहीं से...जी हां दोस्तों, ठीक यहीं से वो प्रक्रिया शुरू होती है जो सालों से रास्ता भटकी लेखक की अक्ल को ठिकाने लाने का काम करती है।

आप अगले लेख के लिए विषय तलाश रहे हैं और बीवी रसोई से आवाज़ लगाती है...ज़रा इधर आना... लाइटर नहीं मिल रहा। आप लेखन से क्रांति की अलख जगाना चाहते हैं, वो लाइटर से चूल्हा जलाना चाहती है। आप सोच रहे हैं कि समाज में अपराध के मामले बढ़ते जा रहे हैं...वो बताती है कि पेस्ट कंट्रोल करवा लेते हैं…अलमारियों में कीड़े-मकौड़े बढ़ते जा रहे हैं। आप दिल का छू ले, ऐसा भाव तलाश रहे हैं...वो फिक्रमंद है कि सब्जी के भाव फिर बढ़ गए हैं!

आप दस दिन तक बीवी की डांट खाने के बाद पिछले कमरे का पंखा ठीक करवाते हैं...पता चला कि अगले दिन उसी कमरे की ट्यूब खराब हो गई। ट्यूब ठीक भी नहीं हुई थी कि दो दिन बाद बाथरूम में सीलन आ जाती है। बिग बाज़ार चलो...महीने का राशन लाना है। इस संडे को मुझे चांदनी चौक वाली बुआ से मिलवा लाओ। अगली छुट्टी पर मौसी के बेटे सोनू को घर बुला लेते हैं। एक ही शहर में रहता है...आज तक कभी बुलाया नहीं...

इस सब के बावजदू समीक्षक ताना कसते हैं...लेखक अपना बेहतरीन शुरू के सालों में ही देता है...बाद में तो सब खुद को ही रिपीट करते हैं। बनियान का विज्ञापन ठीक कहता है...लाइफ में हो आराम तो आइडियाज़ आते हैं। आराम हो तब न...

18 टिप्‍पणियां:

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

नीरज जी बनियान का नाम भी बतला देते तो शायद मुंबई से ढेरों खरीद लाता यहां पर सस्‍ती मिलती हैं

कुश ने कहा…

बनियान का विज्ञापन है की जिंदगी का फलसफा.. बहुत खूब !

वैसे भाभीजी की कम्प्लेन तो नहीं कर रहे है आप?

अनिल कान्त ने कहा…

ha ha ha ha :)
gr8 one !!

कुश भैया का कहत हैं ? कहीं सच तो नाहीं

rashmi ravija ने कहा…

नीरज जी...आप जरा उन महिलाओं का सोचिये जो कहानी टाइप करती रहती हैं और साथ ही दिमाग में चलता रहता है...रात को खाने में क्या बनाना है,या दूध उबालना बाकी है,मेथी तो साफ़ की ही नहीं....मशीन में कपड़े यूँ ही पड़े हैं....उसपर पति आवाज लगाता है...'एक कप चाय देना जरा'...बच्चों के रोने और झगड़ने का संगीत तो बैकग्राउंड में चलता ही रहता है उन्हें कोई चुप नहीं कराता कि .'अरे ममी काम कर रही है,शोर मत करो'
....भुक्तभोगी अकेले आप ही नहीं हैं बन्धु :)

रंजन (Ranjan) ने कहा…

कहानी घर घर की!!!

बेनामी ने कहा…

बेचारे लेखक की व्यथा!

बी एस पाबला

36solutions ने कहा…

आपके चिंतन के सा‍थ ही रश्मि जी की टिप्‍पणी भी चिंतनीय है.
खैर ....., पोस्‍ट पढकर थोडा सुकून मिला कि मैं अकेले नहीं झेल रहा हूं यह सब. हा हा हा.

सागर ने कहा…

aaj hindustan mein chapi thi... padhi...

मधुकर राजपूत ने कहा…

अमां कमाल कर दिया गुरु।

Neeraj Badhwar ने कहा…

रश्मि जी का कहना ठीक है। मगर पुरूष (और कुछ हद तक लेखक)होने के नाते मैं इस विषय पर तो कभी नहीं लिखता-लेखक और पति! हां, ये ज़िम्मा महिलाएं संभालें।

Neeraj Badhwar ने कहा…

रश्मि जी का कहना ठीक है। मगर पुरूष (और कुछ हद तक लेखक)होने के नाते मैं इस विषय पर तो कभी नहीं लिखता-लेखक और पति! हां, ये ज़िम्मा महिलाएं संभालें।

Neeraj Badhwar ने कहा…

रश्मि जी का कहना ठीक है। मगर पुरूष (और कुछ हद तक लेखक)होने के नाते मैं इस विषय पर तो कभी नहीं लिखता-लेखक और पति! हां, ये ज़िम्मा महिलाएं संभालें।

Udan Tashtari ने कहा…

लेखक अपना बेहतरीन शुरू के सालों में ही देता है...ये तुम्हारे शुरु के साल कब तक चलेंगे भाई??

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

@ साले सब शुरू में ही बनते हैं
वे ही जिंदगी भर साथ चलते हैं
बाद में कोई साला साला नहीं बनना चाहता
इसलिए शुरू के ये सभी साल
जीवन भर चलें
मेरी कामना है नीरज जी
सदा बेहतरीन ही लिखें।

रंजना ने कहा…

AAPKI POST AUR RASHMI JI KI TIPPANI MILAKAR BAAT POOREE HUI...

KUL MILAKAR BAAT KO YAHI HUI....RACHNATMAKTA KI TO KOI KADAR HI NAHI HAI YAAR....

रंजना ने कहा…

WAISE CHIRAAG TALE HAMESHA HI ANDHERA RAHA KARTA HAI.....NAHI?????

वीरेंद्र रावल ने कहा…

the great indian wedding tamasha or ab ye lekhak or biwi wali post , aapne dil khush kar diya .
Due to restriction of time i am forced to praise by single comment for two posts. I hope you will not mind neeraj bhai

Fighter Jet ने कहा…

ha ha ha...ye bat lekhak hi nahi balki har shadi shida bhuktbhogie ke liye jayad tharti hai