रविवार, 10 जनवरी 2010

समस्या भी तो एक संभावना है।(व्यंग्य)

रेड लाइट पर रुकते ही मेरी नज़र सड़क किनारे पानी की पाइप लाइन पर पड़ती है। आज फिर इसमें लीकेज हो रहा है। पिछले एक महीने में ये नज़ारा मैं तीसरी बार देख रहा हूं। बड़ी-सी जलधारा फूट रही है और आसपास लोगों का हुजूम उमड़ा हुआ है। एक भाई वहीं कपड़े धोने के साबुन से नहा रहा है, तो दूसरा अपनी लूंगी पर पानी डाल उसे उसके पैदाइशी रंग में लाने की कोशिश कर रहा है। वहीं खाली डिब्बों में पानी भरने के लिए औरतों में मारकाट मची है। साथ आए अधनंगे बच्चे पाइप लाइन से फूटता फव्वारा देख ताली बजा रहे हैं। एक बारगी लगता है कि पूरी कायनात ही मानो पाइप लीकेज का मंगलोत्सव मना रही है।

ग्रीन लाइट होने पर मैं गाड़ी आगे बढ़ाता हूं। ज़हन में पहला ख़्याल यही आता है कि ज़रूरी नहीं कि समस्या हर किसी के लिए समस्या ही हो। वो न जाने कितने ही लोगों के लिए सम्भावना (सेठ नहीं) भी हो सकती है। नगर निगम की काहिली की वजह से भले ही लोगों को पानी न मिले, मगर उसी की ऐसी लापरवाही के चलते लोगों को पानी मिल भी जाता है। कभी-कभार खुद समस्या ही समस्या के समाधान में पोइटिक जस्टिस करती है।


कुछ समय पहले टीवी पर ख़बर देखी कि किसी हाईवे पर सब्जियों से लदा एक ट्रक हादसे का शिकार हो गया। आदत के मुताबिक प्रशासन ने घंटों तक हादसे की सुध नहीं ली। ट्रक वहीं हाईवे पर पड़ा रहा। इलाके के लोगों को जैसे ही ट्रक पलटने का पता चला, वे वहां आने लगे... घायलों को अस्पताल ले जाने नहीं, सब्जियां बटोरने। देखते-ही-देखते लोग ट्रक से सारी सब्जियां उड़ा ले गए। प्रशासन ने भले ही शाम तक रास्ता साफ नहीं किया, लेकिन लोगों ने दोपहर तक सारा ट्रक साफ कर दिया। महंगाई के इस दौर में ऐसा मौका फिर कहां मिलना था… और मिलता भी तो पता नहीं वो जगह उनके गांव से कितनी दूर होती!

मगर ऐसा नहीं है कि हर दफा गरीब आदमी ही ऐसी सम्भावनाओं का फायदा उठाए। वैश्विक मंदी की आड़ में दुनियाभर में कम्पनियों ने जो चांदी काटी, वो किसी से छिपी नहीं है। एचआर डिपार्टमेंट के लिए तो वैश्विक मंदी स्वर्ण युग की तरह थी। दुनिया जानती है कि उस दौरान कैसे धर्मेंन्द्र स्टाइल में उन्होंने चुन-चुन कर लोगों को निपटाया। मंदी अमेरिका से चली भी नहीं थी कि अमरावती में लोगों से इस्तीफे दिलवा दिए गए। जो कम्पनियां प्रभावित नहीं हुईं उन्होंने भी मंदी की आड़ में तीस-तीस फीसदी तनख्वाह काट लीं। कई कम्पनियों ने तो मंदी न जाने के लिए बाकायदा हवन तक करवाए। उनकी यही रणनीति थी कि हर वक़्त मंदी का हौवा दिखाओ...नौकरी से निकाले जाने का माहौल बना कर रखो...भले ही मत निकालो...लेकिन इस डर में कोई ये तो नहीं पूछेगा कि सर, अगला इनक्रीमेंट कब होगा!

और आख़िर में मुझे ओबामा की पाकिस्तान को दी नसीहत याद आती है कि वो (पाकिस्तान) आंतकवाद को ब्लैकमेलिंग के औजार की तरह इस्तेमाल न करें। मेरा मानना है कि एक मुल्क के रूप में पाकिस्तान ऐसा अव्यवाहारिक नहीं कि ऐसी नसीहतों से शर्मिंदा हो जाए। होगा आतंकवाद दुनिया के लिए सबसे बड़ा खतरा...कहते होंगे लोग इसे सभ्यताओं का संघर्ष...मगर उसके लिए तो वो उधार का अनंत आकाश है। कंगाली से निपटने का क्रेडिट कार्ड है। उसका तो यही मंत्र है...आतंकवाद की फसल उगाओ और बाद में उसे जलाने का पैसा मांगो। फिर भले ही आग खेत में लगे या पूरे घर में, उसके लिए तो आतंकियों का वजूद अपने वजूद को बचाए रखने का सिर्फ एक ज़रिया है।

7 टिप्‍पणियां:

मधुकर राजपूत ने कहा…

बढ़िया भाईसाब, लोकल समस्या से ग्लोबल समस्या का अटैचमेंट कर दिया। पाइप से पाकिस्तान तक।

सागर ने कहा…

Bahut achcha lekh... sabko lapet liya... dil ki baat bhi keh di.

वीरेंद्र रावल ने कहा…

neeraj bhai jo aapne recession ki baat ki vo vyangya bhi hai or yatharth bhi . jitna hum company employees ko loota gaya vo bhi apne aap me record hai or top management ne khoob paisa banaye.

nice post!!!!!!!!!!!!

रंजना ने कहा…

एक एक शब्द सही.....अंदाजे बयां की क्या कहूँ......बस ला जवाब !!!

एक घटना याद हो आई...यहाँ हमारे शहर में दूसरी जनवरी को शहर में इंट्री पॉइंट पर शराब से भरा एक ट्रक चित्त हो गया..शायद ड्राईवर साहब ने भी चढ़ा रखी होगी. दो पुलिस वाले दौड़ते हुए कौओं की हुजूम की तरह उसपर झपटे पड़े लोगों को डंडे से खदेड़ने में लगे हुए थे..पर रेसियो तो दो धनों और लगभग चार सौ हाथों का था....और तो और जब सड़क वाले बोतल साफ़ हो गए तो बड़े नाले में गिरे बोतलों पर लोग टूट पड़े और उस गन्दगी में जो उतरा वह वहीँ से पचास पचास रुपये में बोतल बेचने लगा...यह सारा नजारा लोकल टी वी चैनल पर दिखाया जा रहा था...क्या दृश्य था...क्या कहूँ...आप अंदाजा लगा ही सकते हैं...

Fighter Jet ने कहा…

waah ..kya khub kahi..aur Ranjana ji ne bhi kya khub udahran diya..man prasan ho gaya :)

Jas B ने कहा…

bahut khoob...

Telkom University ने कहा…

What are the potential consequences of the recurring water pipe leaks described in the scene, considering the impact on the community and individuals involved?Telkom University