शुक्रवार, 14 दिसंबर 2012
जैक फोस्टर, तुमने मुझे मरवा दिया
शुक्रवार, 7 दिसंबर 2012
काश! हम औपचारिक रूप से एलियन होते!
शनिवार, 1 दिसंबर 2012
सम्मान की लड़ाई और लड़ाकों का कम्फ़र्ट ज़ोन
गुरुवार, 22 नवंबर 2012
वो आया, खाया और चला गया!
पानी नहीं, पार्किंग के लिए होगा तीसरा विश्व युद्ध!
शुक्रवार, 16 नवंबर 2012
छुट्टियां लेने का टेलेंट!
शुक्रवार, 9 नवंबर 2012
क़ातिल भी तुम, मुंसिफ भी तुम!
मंगलवार, 6 नवंबर 2012
हज़ार करोड़ तक के घोटालों को मिले कानूनी मान्यता!
शुक्रवार, 2 नवंबर 2012
ईमानदारी का परसेंटेज तय हो!
शुक्रवार, 19 अक्टूबर 2012
प्लीज़! अपनी प्यास घटाओ!
शुक्रवार, 12 अक्टूबर 2012
घोटालेबाज़ों का क्रिएटिव ब्लॉक!
बुधवार, 10 अक्टूबर 2012
आलसियों से बची है दुनिया की शांति!
शुक्रवार, 5 अक्टूबर 2012
प्यार अंधा होता है, वो बर्थ सर्टिफिकेट नहीं देखता!
मंगलवार, 18 सितंबर 2012
राजनीतिक दलों में उठी एफडीआई की मांग!
सोमवार, 17 सितंबर 2012
सरकार जनता को भंग कर दे!
शुक्रवार, 14 सितंबर 2012
सांस्कृतिक अभिव्यक्ति का माध्यम है भ्रष्टाचार
दोस्तों, पहचान का इस बात से कोई ताल्लुक नहीं है कि वो अच्छी है या बुरी। ज्यादा मायने रखता है उस पहचान को बनाने के लिए की गई मेहनत। मसलन अगर कोई आदमी मोहल्ले का सबसे बड़ा गुंडा कहलाता है तो वो छह महीने पहले किसी को एक चपत लगाकर तो गुंडा बना नहीं। इसके लिए उसने सच्ची लगन और निष्ठा से महीनों तक न जाने कितनों की हड्डियां तोड़ी। उसी तरह कोई एक्टर एक हिट फिल्म देकर सुपरस्टार नहीं बनता, इसके लिए उसे दसियों सुपरहिट फिल्में देनी पड़ती है।
मतलब, पहचान कोई ‘हादसा’ नहीं है, ये एक दिशा में किया गया ‘डेलीब्रेट एफर्ट’ हैं। इसलिए जब कोई इंसान या राष्ट्र अपनी पहचान नकारता है, तो मुझे समझ नहीं आता वो चाहता क्या है। सालों तक पहचान बनाने के लिए एक तो तुमने इतनी मेहनत की और जब दुनिया तुम्हें उस रूप में मान्यता देने लगी है, तो तुम नखरे कर रहे हो। और यही मेरी सबसे बड़ी आपत्ति है कि आज जब पूरी दुनिया भ्रष्ट राष्ट्र के रूप में भारत को मान्यता दे रही है, तो हम इतने नखरे क्यों कर रहे हैं। ऐसा करके हम दुनिया से तो अपने सम्बन्ध तो ख़राब कर ही रहे हैं, उस मेहनत का भी अपमान कर रहे हैं जो पिछले साठ सालों में हमारे हुक्मरानों ने की है। वक्त आ गया है कि दुनिया की इस मान्यता के लिए हम उसका शुक्रिया अदा करें और उसे बताएं कि कैसे भ्रष्टाचार हमारे यहां ‘सांस्कृतिक अभिव्यक्ति’ का सबसे बड़ा माध्यम है। उन्हें समझाए कि हमारी लाइफ में भ्रष्टाचार नहीं है बल्कि भ्रष्टाचार हमारे लिए ‘वे आफ लाइफ है’। और ये तमाम बातें निम्नलिखित बिंदुओं के ज़रिए समझाई जा सकती है।
वस्तु से पहले व्यक्ति: ऐसे समय जब दुनिया, दुनिया न होकर एक बहुत बड़ा बाज़ार हो गई है और हर चीज़ बिकने के लिए उपलब्ध है, इसे हमारे संस्कार ही कहे जाएंगे कि आज भी हम हर बिक्री में वस्तु से पहले व्यक्ति को तरजीह देते हैं। तभी तो हम अरबों की कोयला खदानों को ‘जनता के फायदे’ के लिए बिना ऑक्शन के कौड़ियों के भाव बेच देते हैं और दो कोडी के खिलाड़ियों को आईपीएल के ऑक्शन में करोड़ों रूपये दिलवा देते हैं।
‘आम आदमी’ को काल रेट मंहगा नहीं पडे इसलिए टेलीकाम मंत्री स्पेक्ट्रम की बोली नहीं लगवाते और ऊर्जा मंत्री दलील देते हैं कि अगर खदानों की बोली लगाई जाती तो ‘आम आदमी’ को बिजली महंगी पड़ती। अब ध्यान देने लायक बात ये है कि जिसे दुनिया लाखों करोड़ का घोटाला कहते नहीं थक रही, उसके केंद्र में आम आदमी की चिंता है!
अब आम आदमी की चिंता कर अगर हम कुछ नुकसान उठा रहे हैं तो ये हमारी मूर्खता नहीं, हमारे संस्कार हैं और जैसा कि सभी जानते हैं, व्यक्ति हो या राष्ट्र संस्कारवान होने की कुछ कीमत तो सभी को चुकानी ही पड़ती है!
सामाजिक न्याय का अस्त्र: प्रमोशन में आरक्षण के लिए भले ही कुछ लोग राजनेताओं को कोस रहे हो मगर उन्हें ये भी देखना चाहिए राजनीति में भ्रष्टाचार के मौके सभी को देकर हमारे नेता अपने स्तर पर तो उसकी शुरूआत कर ही चुके हैं। तभी तो दलित होने के बावजूद ए राजा पौने दो लाख करोड़ का टेलीकाम स्पैक्ट्रम घोटाले कर देते हैं और आदिवासी होने के बावजूद मधु कोड़ा चार हज़ार करोड़ का मनी लांडरिंग घोटाला। पिछड़ी जाति के लालू यादव एक सौ पचास करोड़ का चारा घोटाला कर भैंसों का निवाली छीन लेते हैं और मुस्लिम होने के बावजूद हसन अली को 80,000 करोड़ की टैक्स चोरी करने में कोई दिक्कत नहीं आती।
अगर इस देश में आप आदमी से पूछे कि क्या कभी उसे उसकी जाति या धर्म की वजह से कोई भेदभाव झेलना पड़ा तो हो सकता है वो आपको दसियों कारण बता दें मगर किसी घपलेबाज़ को शायद ही कभी उसकी जाति या धर्म की वजह से भ्रष्टाचार करने से किसी ने रोका हो।
आर्थिक शक्ति का परिचायक: अगर आपके किसी पड़ोसी के यहां चोरी हो जाए और आपको पता लगे कि चोर उसके यहां से तीस तौले सोना और बीस लाख रुपये नगद ले उड़े तो आपको उसके लिए हमदर्दी बाद में होगी पहले ये ख्याल आएगा साले के पास इतना पैसा था क्या? ठीक इसी तरह हम सालों से खुद के आर्थिक महाशक्ति बनने का दावा कर रहे हैं मगर ट्रेन के सफर के दौरान विदेशी जब देखते हैं कि लाखों भारतीय सुबह सबुह अपनी सारी शक्ति खुले में फ्रेश होने में लगा रहे हैं तो उन दावे की पोल खुल जाती है। वो हमारी बातों पर यकीन नहीं करते। लेकिन जैसे ही वो अख़बारों में पढ़ते हैं कि भारत में पौने दो लाख करोड़ का स्पैक्ट्रम घोटाला हुआ, 1 लाख छियासी हज़ार करोड़ का कोयला घोटाला और 48 लाख करोड़ का थोरियम घोटाला तो उन्हें भी हमारे पैसा वाला होने पर यकीन करना पड़ता है।
अंग्रेज़ लेखक चार्ल्स कोल्टन ने कहा था कि भ्रष्टाचार बर्फ के उस गोले की तरह है जो एक बार लुढ़कने लगता है तो फिर उसका आकार बढ़ता जाता है। 1948 में हुए 80 लाख के जीप घोटाले से लेकर 2012 में 1 लाख छियासी हज़ार करोड़ के कोयला आवंटन घोटाले तक भ्रष्टाचार रूपी ये बर्फ का गोला, गोला न रहकर बर्फ का पहाड़ बन चुका है। पूरे देश पर सफेद चादर बिछी है। ऐसा लगता है मानों मृत उम्मीदों को किसी ने कफन ओढ़ा दिया हो।
शुक्रवार, 3 अगस्त 2012
मूर्खताओं को चाहिए बड़ा मंच!
मैं हमेशा इस बात का पक्षधर रहा हूं कि व्यक्ति हो या राष्ट्र, उसकी एक पहचान होनी चाहिए। अब इस पहचान का इस बात से कोई ताल्लुक नहीं है कि वो अच्छी है या बुरी। इसके लिए ज़रूरी है कि जो मूर्खताएं या करतब अब तक आप छोटे स्तर पर दिखाते रहे हैं, उसे बड़े मंच पर परफॉर्म करें ताकि आपका हुनर ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुंच पाए। जैसे मोटे तौर पर हर हिंदुस्तानी ये जानता है कि हमारे यहां 8 से 10 घंटे बिजली न रहना आम बात है। मगर ‘हमारे यहां घंटों बिजली नहीं रहती’ ये अपने आप में एक कैज़ुअल स्टेटमेंट है, इस पर कोई ध्यान नहीं देने वाला। और इसका नुकसान ये हो रहा है कि रोज़ाना घंटों बिजली गुल रहने के बावजूद विश्व मानचित्र में भारत की ‘पावर कट नेशन’ के तौर पर कोई पहचान नहीं बन पा रही।
ऐसे में क्या किया जाए...किया ये जाए कि नदर्न ग्रिड फेल कर दो...अब एक साथ देश के नौ राज्यों में बिजली चली गई...पूरे देश में हाहाकार मच गया...टीवी से लेकर अख़बार तक हर जगह बिजली गुल रहना सुर्खियां बना...जबकि माई लॉर्ड ध्यान देने लायक बात ये है कि इस कट के दौरान भी रोज़ाना की तरह बिजली सिर्फ आठ से दस घंटे तक ही नहीं आई। तो सवाल ये है कि जो कटौती हमारी सामान्य दिनचर्या का हिस्सा है, उस पर इतना क्लेश क्यों? शायद इसलिए क्योंकि इस बार बिजली गुल रखने का ये गुल हमने एक साथ कई राज्यों में खिला दिया। नतीजा ये हुआ कि एक साथ चारों ओर से सरकार को गालियां पड़ीं। भारत सहित विश्व मीडिया में इसकी चर्चा हुई... भारत को लानत देते हुए दुनिया ने कहा, ‘अरे! ये कैसा देश है जहां घंटो बिजली नहीं रहती’, और आख़िरकार हमने एक ऐसे अवगुण के लिए वर्ल्ड लेवल पर अपनी पहचान बना ली, जो सालों से हममें विद्यमान तो था मगर हम उसे एनकैश नहीं कर पा रहे थे!
और जैसा कि होता है जब आप बड़े मंच पर परफॉर्म करते हैं तो आपको उसका रिवॉर्ड भी बड़ा मिलता है। लगातार दो दिनों तक नदर्न ग्रिड फेल हुआ, आधा देश अंधेरे में डूब गया और इस सबसे खुश होकर कांग्रेस ने ऊर्जा मंत्री सुशील कुमार शिंदे को गृहमंत्री बना दिया। मानो वो संदेश देना चाह रही हो कि लोगों को अंधेरे में रखने का हम क्या इनाम देते हैं!
(दैनिक हिंदुस्तान 3 अगस्त, 2011)
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