बुराइयों का भी अपना अर्थशास्त्र होता है। फिर चाहे वह वेश्यावृत्ति हो या सट्टेबाज़ी। तभी तो दुनिया के बहुत से देशों ने इन पर लगाम लगाने के बजाए इन्हें कानूनी मान्यता दे दी। इससे हुआ ये कि जो पैसा पहले पिछले दरवाज़े से पुलिस और प्रशासन के हाथों में जाता था, वो सरकारी ख़जाने में आने लगा। इससे धंधे में शामिल लोगों को तो सुकून मिला ही, सरकार की भी आमदनी बढ़ी।
अब ये देखते हुए कि भ्रष्टाचार भी हिंदुस्तानी समाज की एक बड़ी बुराई है और अपनी तमाम कोशिशों के बावजूद हम इसे रोकने में कामयाब नहीं हो पा रहे, सरकार को चाहिए कि रोज़-रोज़ की किचकिच से बचने के लिए अब वो इसे कानूनी मान्यता दे दे।
मंत्री से लेकर विधायक तक और अधिकारी से लेकर चपरासी तक, सभी को उनकी औकात के हिसाब से एक निश्चित सीमा तक भ्रष्टाचार करने की छूट दी जाए। मसलन, केंद्रीय मंत्री को छूट हो कि वो एक हज़ार करोड़ तक का घोटाला कर सकेगा जिसमें से दो सौ करोड़ तक का घोटाला टैक्स फ्री होगा और इसके बाद हज़ार करोड़ के घोटाले तक उसे एक निश्चित दर से सरकार को टैक्स देना होगा। साल के आख़िर में उसे फार्म 16 की तर्ज पर फार्म 420 दिया जाएगा। वित्तीय वर्ष के अंत में सीटीआर (करप्शन टैक्स रिटर्न) फाइल करना अनिवार्य होगा जिससे सरकार को पता लग पाए कि अमुक व्यक्ति ने तय सीमा में रहकर भ्रष्टाचार किया है या नहीं। और जिसने भ्रष्टाचार किया है, उसके लिए ये ‘सीटीआर’, अपने भ्रष्टाचार की वैधानिक मान्यता होगी। जैसे ही उस पर कोई घपला करने का आरोप लगाए तो वो ‘सीटीआर’ की कॉपी उसके मुंह पर मारकर कह सके कि मैंने ये सब कुछ कानून की हद में रहकर किया है। इससे घपला करने वाले आदमी की आत्मा पर कोई बोझ भी नहीं रहेगा और सरकार ये सोचकर ही तसल्ली कर लेगी कि टैक्स के बहाने ही सही, उसने अपना कुछ नुकसान तो कम किया।
दूसरी तरफ जब हम घोटालों के अर्थशास्त्र की बात करते हैं तो हमें ये भी समझना होगा कि अगर हर किसी घोटाले से सरकार को नुकसान होता है, तो उस घोटाले के विरोध में होने वाले प्रदर्शनों से निपटने में भी तो उसका अच्छा-खासा पैसा खर्च हो जाता है। मसलन, पचास लाख के घोटाले के विरोध में अगर पांच हज़ार लोग सड़कों पर उतर आएं तो उनसे निपटने के लिए पुलिस के दस हज़ार जवान लगाने पड़ेंगे। अब ये जवान अगर दिनभर उन लोगों से निपटते रहे तो इनकी एक दिन की तनख्वाह जोड़िए। इन पांच हज़ार लोगों को काबू करने के लिए अगर एक रात स्टेडियम में रखना पड़ा तो स्टेडियम का किराया जोड़िए। अब बंदी बनाया है, तो भूखा तो रख नहीं सकते, लिहाजा पांच हज़ार लोगों को रात का खाना खिलाना पड़ेगा। सुबह छोड़ने से पहले चाय देनी होगी।
इसके बाद जिस आदमी पर इल्ज़ाम लगाया है, अगर वो दिन में प्रेस कांफ्रेंस कर दो घंटे अपनी सफाई देगा तो उसे कवर करने वहां दसियों ओबी वैन लगेंगी। बीसियों रिपोर्टर होंगे। बाद में सरकार जांच कमीशन बैठाएगी। उसकी असंख्य बैठकें होंगी। उन अंसख्य बैठकों में बिस्किट-भुजिया के हज़ारों पैकेट खाए जाएंगे। और जब तक जांच कमीशन का रिपोर्ट आएगी, पता चला कि अकेले उस बिस्किट-भुजिया का खर्च ही पचास लाख से ऊपर चला गया और जिस आदमी पर आरोप लगा था उसके खिलाफ भी कोई सबूत नहीं मिला।
और अगर सरकार इस तरह के विरोध-प्रदर्शनों से होने वाली फिज़ूलखर्ची से बचना चाहती है तो उसे भ्रष्टाचार की सीमा तय करते हुए उसे कानूनी मान्यता दे देनी चाहिए। वैसे भी निवेश को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि अभी अच्छी नहीं है। दुनिया क्या सोचेगी कि जिस देश में कल तक पौने दो-दो लाख के घोटाले हुआ करते थे, आज वो कुछ एक लाख के घोटाले पर हाय तौबा मचा रहा है। हो सकता है कि घोटालों की गिरती रकम देख कोई क्रेडिट एजेंसी फिर से भारत की साख गिरा दे। एक मंत्री तो पहले ही कह चुके हैं कि भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलन की वजह से निवेशक भारत से दूर भाग रहे हैं, अगर ऐसा हुआ तो उन्हें सबूत और मिल जाएगा।
(नवभारत टाइम्स 6 नवम्बर, 2012)
2 टिप्पणियां:
सन्नाट व्यंग..
आइना दिखाती पोस्ट
करारा व्यंग
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