जितनी तारीफ की जाये, ज़्यादा है!
तारीफ के मामले में हम हिंदुस्तानी इनकमिंग में यकीन करते हैं और आउटगोइंग से परहेज़। वजह, हम जानते हैं कि तारीफ कर देने का मतलब है सामने वाले को मान्यता देना और ऐसा हम कतई नहीं होने देंगे। हम चाहते हैं कि वो भी उतने ही संशय में जियें जितने में हम जी रहे हैं।
अगर किसी दिन हमारा कोई कलीग ब्रेंडेड शर्ट पहन कर आया है और वो उम्मीद कर रहा है कि हम शर्ट की तारीफ करें तो हमें नहीं करनी है। जैलिसी का पहला नियम ही ये है कि सामने वाला जो चाहता है, उसे मत दो! वो तारीफ सुनना चाहता है आप मत करो। अगर वो तंग आकर खुद ही बताने लगे कि मैंने कल शाम फलां शोरूम से अपने बुआ के लड़के के साथ जा ये शर्ट खरीदी थी तो भी हमें उसके झांसे में नहीं आना। इसके बाद भी वो अगर बेशर्म हो पूछ ही ले बताओ न कैसी लग रही है ? फिर भी आपके पास दो आप्शंस है।
पहला ये कि चेहरे पर काइयांपन ला मुस्कुरा दें, अब ये उसकी सिरदर्दी है इसका मतलब निकाले। दूसरा ये कि अगर आपकी अंतरआत्मा अब भी ज़िंदा है, और वो आपको धिक्कारने लगी है कि तारीफ कर, तारीफ कर..... तो 'ठीक है' कह कर छुटकारा पा लें। लेकिन ध्यान रहे... भूल कर भी आपके मुंह से 'बढ़िया', 'शानदार' या 'डैशिंग' जैसा कोई शब्द फूटने न पाये।
'दुनिया देख चुके' टाइप एक सीनियर ने मुझे बताया हमें तो अपनी प्रेमिकाओं तक की तारीफ नहीं करनी चाहिये। अगर वो ज़्यादा इनसिस्ट करें तो कह दो, डियर, तारीफ 'उस खुदा की' जिसने तुम्हें बनाया, या फिर तुम्हारी तारीफ के लिए 'मेरा पास शब्द नहीं है'। मतलब ये कि या तो आप ऊपर वाले को क्रेडिट दे दें, या फिर ‘सीमित शब्दावली' का बहाना बना अपनी जान छुड़ा लें, लेकिन तारीफ मत करें। वजह, एक बार अगर इमोशनल हो कर आपने प्रेमिका की तारीफ कर दीं, तो वो बीवी बनने के बाद भी उन बातों को 'सच मानकर' याद रखेगी। आप शादी के बाद झूठ बोलने का मोमेंटम बना कर नहीं रख पायेंगे। और फिर वो सारी उम्र आपको 'बदल' जाने के ताने देगी।
यहां तक तो ठीक है। मैंने सीनियर से पूछा मगर सर, हमारी भी तो इच्छा होती है कि कुछ अच्छा करें तो तारीफ हो। फिर? सीनियर तपाके से बोले, बाकी चीज़ों की तरह तारीफ के मामले में भी आत्मनिर्भर बनो! घटिया लेखक होने के बावजूद तुम्हें लगता है कि तुम्हारी किसी रचना की तारीफ होनी चाहिये और आसपास के लोगों में इतनी अक्ल नहीं है तो खुद ही उसकी तारीफ करो! वैसे भी हर रचना समाज के अनुभवों से निकलती है, उसमें समाज का उतना ही बड़ा योगदान होता है, जितना लेखक का। ऐसे में उस रचना की तारीफ कर तुम अपनी तारीफ नहीं कर रहे, बल्कि समाज का ही शुक्रिया अदा कर रहे हो!
मंगलवार, 3 जून 2008
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
9 टिप्पणियां:
वाह मुझे तारीफ करनी चाहिए गूगल की जिन्होने ब्लॉगर बनाया और आपको लिखने का मौका दिया.. और अगर आप मुझसे पूछेंगे की आपका लेख कैसा है.. तो ये है मेरी मुस्कुराहट :) फिर भी अगर आप दोबारा पूछेंगे कैसा लगा? तो मैं यही कहूँगा की ठीक है..
नीरज, आपकी तारीफ के लिए मेरे पास शब्द नहीं भी रहते तो मैं उधार ले लेता...उधार के लिए गुलज़ार साहब के पास जाना पड़ता तो भी चला जाता...:-)
बहुत शानदार! प्रसन्न कर देते हैं आप अपने लेखन से.
:) :)
'बढ़िया', 'शानदार', 'डैशिंग'
ठीक है :-)
अपन पर तो ये बात लागु नहीं होती है.
अपन हर समय आपकी तारीफ़ करते हैं. फ़िर कर देते हैं जी.
बहुत ही अच्छा व्यंग्य लिखा आपने.
बहुत बहुत बधाई.
तारीफ में कंजूसी की समस्या हम भारतीयों की नहीं हम इंसानों की है (जानवरों में भी होती होगी शायद)।
क्या कहूँ तुम्हारी तारीफ में-'मेरा पास शब्द नहीं है'। :)
मेरी तो आत्मा धिक्कारने लगी है...कहना ही पड़ेगा..'बढ़िया', 'शानदार' 'डैशिंग'..:)
एक टिप्पणी भेजें