मौसमी बीमारियों की तरह इस देश में बहुत से मौसमी रोने भी हैं। मसलन, हर साल आने वाली बाढ़ के बाद डिज़ास्टर मैनेजमेंट की बात की जाये, हर आतंकी हमले के बाद सुरक्षा एजेंसियों पर जानकारी न होने का इल्ज़ाम लगे, हर विदेशी दौरे में हार के बाद देश में तेज़ पिचें बनाने की ज़रूरत महसूस की जाये और हर रेल हादसे के बाद रेलों की जर्जर व्यवस्था के आधुनिकीकरण की मांग उठे।
मतलब जब कुछ किया जाना चाहिये तब सोए रहें और हादसा हो जाने पर छाती पीटें कि हाय! हमने ये कर लिया होता तो कितना अच्छा होता।
अब सवाल ये है कि किसी भी मसले को लेकर हम प्रो-एक्टिव क्यों नहीं रहते ? आखिर लकीर पिटने को हमने अपना राष्ट्रीय चरित्र क्यों बना लिया है ?
दोस्तों, मुझे लगता है इस मामले में हमें हिंदी लेखकों और उनमें भी व्यंग्यकारों से सबक लेना चाहिये। इस देश का हिंदी व्यंग्यकार जितना प्रो-एक्टिव है उतना अगर सरकार और बाकी संस्थाएं भी हो जाएं तो सारी समस्या हल हो जाये। मैं ऐसे-ऐसे लेखकों को जानता हूं जो मॉनसून आते ही डेंगू पर व्यंग्य लिख लेते हैं और कुछ अतिउत्साहित तो भेज भी देते हैं और फिर फोन कर संपादक को समझाते फिरते हैं कि किस तरह आप इसका इस्तेमाल सितम्बर महीने के तीसरे हफ्ते में कर सकते हैं। क्या हुआ जो अभी जुलाई ही शुरु हुआ है।
अभी कल एक सम्पादक ऐसे एक इक्तीस मार खां लेखक के बारे में बता रहे थे जिसने परमाणु डील पर लेफ्ट के समर्थन को लेकर उन्हें दो लेख भेज दिए और अलग से लिख भी दिया कि अगर लेफ्ट समर्थन वापिस ले और सरकार गिर जाए तो ये वाला लेख छाप सकते हैं और अगर समाजवादी पार्टी के समर्थन से बच जाए तो ये वाला । मैंने पूछा लेकिन इसमें क्या दिक्कत है। संपादक बोले दिक्कत......दिक्कत ये है कि लेख भले ही कितना घटिया हो, लेखक तो मानकर चलता है कि दोनो ही छपने लायक हैं!
ये तो हुई बात सम्पादक की। फिर मैं एक ऐसे ही एक इक्तीस मार खॉ प्रो-एक्टिव लेखक से मिला। मैंने उनके इस नज़रिये की वजह पूछी तो बोले डियर, आज के दौर में सब कुछ इंस्टेंट कॉफी की तरह है। अब सरकार इंस्टेंट कार्रवाई करे न करे, एक लेखक के लिए ज़रूरी है कि वो इंस्टेंट रिएक्शन के लिए तैयार रहे। आपको हमेशा एंटीसिपेट करते रहना पड़ता है कि क्या हो सकता है ? लेखक की इस सोच से मैं काफी प्रभावित हुआ। मैंने कहा अच्छा सर, अब जाने से पहले ये भी बता दीजिये हाल- फिलहाल आपने क्या लिखा है? हाल-फिलहाल तो मैंने एशिया कप के फाइनल में भारतीय टीम की हार पर लिखा है.....फिर थोड़ा रूककर बोले हैरान मत हो....जीत पर भी लिखा है।
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7 टिप्पणियां:
हा हा हा दुरुस्त फरमाया आपने
बहुत बढ़िया लिखा है, नीरज. हर बार की तरह.
बहुत खूब !
लेखक काबिले तारीफ हैं, मेरी तरह। देखिए मैं भी यह टिप्पणी महीनों पहले लिख किसी सही लेख पर चेपने के प्रयास में थी, आज अवसर मिला तो कैसे फटाफट चिपका दी। फिट बैठी ना !
घुघूती बासूती
bilkul sahi. likhate rhe.
दो तरह की टिप्पणी लिखी थी, कौन सी चिपकाऊँ..ठहरो..आज पढ़कर चिपकाता हूँ. :)
बढ़िया लिखा है.
"...भारतीय टीम की हार पर लिखा है.....फिर थोड़ा रूककर बोले हैरान मत हो....जीत पर भी लिखा है। ..."
बराबरी पर नहीं लिखा? बारिश की वजह से मैच रद्द होने पर नहीं लिखा? कैसा रद्दी लेखक है वो?
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