शनिवार, 7 मार्च 2009

क्या आपने इन्हें कहीं देखा है?

क्या आपने इन्हें कहीं देखा है?

हिंदी सीरियल्स देखते वक्त मेरे ज़हन में अक्सर ये बात आती है कि जो परिवार यहां दिखाया गया है ये देश के किस राज्य के, किस ज़िले के, किस शहर के, किस मोहल्ले में रहता है। जहां भी रहता है, उससे मिल कर मैं कुछ सवाल करना चाहता हूं। इसी चक्कर में मैंने काफी धक्के भी खाये। मगर परिवार मेरे हाथ नहीं लगा। खैर, ये सवाल आप से शेयर करना चाहता हूं। अगर परिवार या इस का कोई सदस्य आपसे मिले तो उससे ज़रुर पूछियेगा।

पेश हैं कुछ मासूम सवाल

सच-सच बताना तुम लोग जन्म लेते हो या आर्डर दे कर बनवाये गये हो। लगता तो यही है परिवार के सभी सदस्य आर्डर दे कर बनवाये गये हैं और वो भी किसी कवि की निगरानी में। हमारे यहां तो ढूंढने पर पूरे मुहल्ले में एक ढंग की लड़की नहीं दिखती और तुम्हारे घर में एक से एक..............चलो छोड़ो। और बावजूद उसके घर में कोई ब्लैंक कोल नहीं आती। जहां एक खूबसूरत लड़की रहती है वहां दिन में कम से कम 15-20 ब्लैंक काल्स तो आती ही हैं।

तुम में से कोई मुझे एलजी या जनता फलैट्स में रहता क्यों नहीं दिखता? यहां तो साला दो कमरों का मकान किराये पर लेने में जान निकल जाती है। लेकिन तुम्हारे घर देख विश्वास करना मुश्किल है कि तुम घर में रहते हो या धर्मशाला में ! इतनी लम्बी गैलरी। लोबी के बीचो-बीच सीढ़ियां। जहां देखों कमरे ही कमरें। इसके बावजूद एक भी किरायेदार नहीं। एक-आध कमरा तो कम-से-कम किराये पर चढ़ाओ।

घर के बीचों-बीच जो डाइनिंग टेबल पड़ी रहती है उसे लेकर भी तुम मुझे जवाब दो। जानते हो तुम्हारी इस डाइनिंग टेबल ने हम भारतीय कितनी हीनता का शिकार हुए हैं। जब भी तुम लोगों को वहां खाना खाते देखते हैं तो दिल करता है कि हम भी परिवार के साथ ऐसे ही खाना खायें। मगर क्या करें.....हमारे घर में डबल बैड रखने की जगह नहीं.....डाइनिंग टेबल कहां रखे ? दूसरा डाइनिंग टेबल ले भी आयें तो हमें इतनी तमीज़ नहीं है कि टेबल पर कैसे खाया जाता है ? हमें तो रजाई में बैठ के खाने की आदत है।

बिना किसी काम-धाम के तुम लोग घर में इतने लिपे-पूते क्यों रहते हो ? क्या सोचते हो कि कहीं कोई बारात का न्यौता न आ जाये। घर में औरतें कद्दू भी काटती हैं तो शिफोन की साड़ी में। यार कुछ तो कपड़े की ग्रेस का ख्याल रखो ? कहीं जाना नहीं तो पजामा पहन के बैठो।

प्रिय, क्या तुम्हारे यहां बिजली का बिल नहीं आता। आता है तो इतने फानूश क्यो लगा रखे हैं ? लगा भी रखे हैं तो हर वक्त जला कर क्यों रखते हो ? किसके लिए इतना दिखावा ? मैंने तुम्हें बिजली का बिल भरने जाते भी कभी नहीं देखा। मुझे लगता है तुमने गली के खम्भे में कुंडी मार रखी है। इसीलिए इतने बेफिक हो। वरना तुम कभी तो घर वालों पर चिल्लाते दिखते.....'देख रहो हो इस बार कितना बिल आया है। सौ बार कहता हूं......कमरे से निकलो तो पंखा बंद कर दो।'

वैसे तो तुम हर मुद्दे पर झगड़ते दिखते हो। लेकिन मैंने तुम लोगों को कभी रिमोट के लिए झगड़ते नहीं देखा। जबकि हर भारतीय घर में 69 फीसदी झगड़े तो रिमोट और पसंद का चैनल देखने के लिए ही होते हैं। तुम्हारे पति को भी तुम्हें कभी इस बात पर डांटते नहीं देखा कि क्या ये हमेशा रोने-धोने वाले नाटक देखती हो। ये सब लो-आईक्यू वाले लोग देखते हैं। चलो डिस्कवरी चैनल लगा दो।

अपने बुज़ुर्गों को सुन्दरता और अमरता का तुम कौन-सा घोल पिलाते हो। किस कम्पनी का च्वयनप्रास खाते हैं वो। प्लीज़ मुझे बताओ। न मैने उन्हें कभी खांसते देखा, न हांफते। न किसी की ज़बान लड़खड़ाती है न किसी को ऊंचा सुनता है। सब एक दम हट्टे-कट्टे। हफ्ते-दर-हफ्ते और निखरते जाते हैं। सब की डॉयलग डिलीवरी भी कमाल की है। किसी के एक्सैंट से नहीं पता चलता कि ये पंजाबी है ? मराठी है ? या बंगाली ? सब शुद्ध ख़ालिस नुक्तों की ज़बान बोलते हैं।

स्वामी दयानंद सरस्वती आज ज़िदा होते तो खूब नाराज़ होते। विधवा विवाह को लेकर जो लिबर्टी उन्होंने तुम्हें दिलवाई, उसका तुम ऐसा हश्र करोगी ये उन्होंने कभी नहीं सोचा होगा। पति की कार अगर खाई में गिरी है, पहले कम-से-कम कन्फर्म तो कर लो कि वो मरा के नहीं। इधर वो मरा नहीं, उधर लगी तुम अखबारों में वर ढूंढनें। तुम शादी कर लेती हो। सम्पूर्ण श्रद्धा से नये पति की हो जाती हो। बच्चा भी होने को है। और ठीक उसी समय तुम्हारा पहला पति, जो लगता है ये सब होने के इंतज़ार में बैठा था, उसी वक़्त आ धमकता है। हैरानी की बात ये है कि तुम हर सीरियल में ये ग़लती करती हो।

बड़े घर, बड़ी गाडी और बड़े मुंह के अलावा तुम लोगों के घाटे भी बड़े-बड़े होते हैं। मिस्टर कपूर और मिस्टर थापा को कभी 5 करोड़ से कम का घाटा नहीं लगता। केबल वाला ढाई सौ से तीन सौ रूपये कर देता है हम लोग केबल कटवा लेते हैं। रिक्शे वाले से दो-दो रूपये के मरने-मारने पर उतारू हो जाते हैं। मगर तुम्हारी....तुम्हारी तो बात ही निराली है। हाय! क्या हमे भी कभी पांच करोड़ का घाटा होगा या हम यूं ही आलू-प्याज के मौल-भाव में ही मर जायेंगे !

21 टिप्‍पणियां:

Aadarsh Rathore ने कहा…

अभिव्यक्त करने का तरीका पसंद आया। लिखते रहें।

Udan Tashtari ने कहा…

बड़ा नाप नाप कर तौला है सिियल परिवारों को. आनन्द आ गया. हर प्रश्न जायज है.

डॉ .अनुराग ने कहा…

ओर उस प्लास्टिक सर्जन को कैसे भूल गए आप ?

शेफाली पाण्डे ने कहा…

inke rishton ko lekar aap bachchon se anginat paheliyaan bhi puchh sakte hain....bachchon ki buddhi aur tark shakti ka vikaas hota hai...

संगीता पुरी ने कहा…

बहुत सटीक प्रश्‍न उठाए हैं आपने ... सब सीरीयलों का यही हाल है ... वास्‍तविकता से दूर सिर्फ चकाचौंध ही दिखाते हें।

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…

हा हा हा..... सचमुच बहुत ही बढिया तरीके से आपने अपने विचारों को व्यक्त किया है.

mehek ने कहा…

ha ha behtarin masum sawal,mast lekh,magar sach kahe serial hamari to jaan hai,chahe dekhne ka samay na mile,magar nayi fashion ka pata milta rehta hai:)

Shikha Deepak ने कहा…

बड़ी शालीनता के साथ बखिया उधेडी है................

बेनामी ने कहा…

एक सटीक व्यंग्य के लिए आप तारीफ के काबिल हैं।

अंदाज पसंद आया आपका, बहुत खूब

Manvinder ने कहा…

सब सीरीयलों का यही हाल है .¯¯¯अंदाज पसंद आया आपका

Anita kumar ने कहा…

हा हा धो डाला सर्फ़ लक्स सब से , मजा आ गया , धन्यवाद

कुश ने कहा…

वाह नीरज भाई.. कमाल कर दिया आपने.. वैसे अनुराग जी से सहमत हू.. प्लास्टिक सर्जन को तो भूल ही गये आप

Fighter Jet ने कहा…

baht khub..hasi roke ke bhi nahi ruk rahi..:)

सागर नाहर ने कहा…

कमाल कर दिया नीरज भाई। मजा आ गया।

आलोक सिंह ने कहा…

एक एक प्रश्न चुन चुन के लिखे है आपने .
बड़ा आनंद आया नीरज जी ,
पहले आपका ब्लॉग क्यों नहीं मिला हमें .आप ऐसे ही लिखते रहे .

विजय वडनेरे ने कहा…

जबरदस्त!!

लिखते लिखते ख्याल आया--कि 'उन' लोगों' को कभी दस्त-पेचिश होती तो दिखी नहीं, सीधे फ़लाना कैंसर या ढिकाने दिल की बीमारी। उसमें भी कभी आँखों के नीचे काले धब्बे नजर नहीं आते हैं।

बहुत अच्छा लिखे हैं।

Atul Sinha ने कहा…

अति आनंदमय, भगवान से दुआ करूंगा की ये शब्द इन सीरियल बनाने वालो के कानो तक अवश्य पहुचे... ताकि वो कुछ तो ज्ञानवर्धक धारवाहिक बनाये... और इन्हें देखने वाले लोग भी ये समझे की जो भी दिखाया जा रहा हैं वो वास्तविकता से कितना परे हैं....

ePandit ने कहा…

मजेदार, ये तो सीरियल-सीरियल की कहानी है। खूब खबर ली है आपने इन सीरियलों की। इन सीरियलों में पात्र करोड़-अरब पति से कम तो होते ही नहीं। और सीरियल ही क्या इन दिनों फिल्में भी ऐसी ही बनती हैं।

हमें याद है कभी दूरदर्शन पर देखने लायक बढ़िया सीरियल आते थे। अब तो इतने बकवास और वास्तविकताओं से कोसों दूर सीरियल आते हैं कि हैरानी होती है कि महिलायें इन्हें कैसे झेलती हैं।

आपका लेखन पसन्द आया। आपका चारा खरीद लिया है, आते रहेंगे अब पढ़ने।

मधुकर राजपूत ने कहा…

तुम लोग हमेशा स्लो मोशन में ही काम क्यों करते हो? चाय की एक प्याली पकड़ाने में तुम्हें 2.25 सेकेंड कैसे लग जाते हैं?

तुम झगड़ा होने पर सामने वाले के गाली देने के बाद हमेशा नागाड़ा बजने का इंतज़ार खत्म होने के बाद ही क्यों रिएक्ट करते हो। यह किस प्रकार की मानसिकता का परिचायक है। या फिर तुम गुस्सा काबू करने की कोई दवा खाते हो।

मुझे हैरत होती है कि रोने पर तुम्हारी आंखें लाल क्यों नहीं होती। तुम्हारी नाक से चिपचिपा पानी क्यों नहीं लीक होता। हम तो चार आंसू गिराने के बाद नाक पोंछ पोंछकर छील डालते हैं।

सीरियल का नाम चाहे खुशनुमा होने पर भी तुम्हारे यहां कलह क्यों बरकरार रहती है? सामाजिक बदलाव वाला सीरियल होने पर भी तुम्हारे मसले कुनबे के बाहर क्यों नहीं निकलते? क्या तुम्हारे कुनबे में बदलाव होने से भारत में सामाजिक परिवर्तन मुमकिन है?

डा. निर्मल साहू ने कहा…

bahut khari-khri ki hai apne

ghar me bhi sutbut me

अनुराग राम ने कहा…

भाई कितना हंसाओगे