इस देश में कुछ हस्तियों को देखकर एहसास होता है कि उनका अपने काम में मन नहीं लग रहा। वक़्त आ गया है कि वो पेश बदल लें। इस सूची में पहला नाम है युवराज सिंह का। कहा जाता है कि बचपन में क्रिकेट उनका पहला प्यार नहीं था। पिता के दबाव में वो क्रिकेट खेलने लगें। हाल-फिलहाल उनका खेल देख यही लग रहा है कि पिता के दबाव का असर उन पर से जाने लगा है। जिस शिद्दत से वो हर उपलब्ध मौके पर नाचते हैं...उसे देखते हुए यही सलाह है कि उन्हें क्रिकेट छोड़, कोई ऑर्केस्ट्रा ग्रुप ज्वॉइन कर लेना चाहिए। और चाहें तो अपने नचनिया मित्र श्रीसंत को भी साथ ले लें।
इसी तरह फिल्मी दुनिया में राम गोपाल वर्मा की हर फिल्म देख यही लगता है कि वो प्रतिभा से नहीं, अपनी ज़िद्द से फिल्म निर्देशक रह गए हैं। एक बाल हठ है...कि मैं फिल्में बनाऊंगा। फिल्म में कहानी और थिएटर में दर्शकों का होना तो कोई शर्त है ही नहीं। उदय चोपड़ा को देख भी यही लगता है कि किसी भावुक क्षण में पिता से किए वादे को निभाने के चक्कर में आज भी एक्टिंग कर रहे हैं। वरना तो सम्पूर्ण राष्ट्र की यही मांग है...हमारे अभिनेता कैसा हो...जैसा भी हो..उदय चोपड़ा जैसा न हो।
वहीं शरद पवार साहब...आईसीसी के चीफ भी बनने वाले हैं। आईपीएल में टीम खरीदने के अरमान भी रखते हैं मगर एक जगह, जहां उनका दिल नहीं लगता, वो है कृषि मंत्रालय। उनका मानना है कि जिस देश में साठ फीसदी लोग कृषि पर निर्भर हैं, उस मंत्रालय को आज भी पॉर्ट टाइम जॉब की तरह लिया जा सकता है। ममता बैनर्जी भी उस कर्मचारी की तरह बेमन से काम कर रही हैं, जिसकी नयी नौकरी लगने वाली है और पुरानी में उसका दिल नहीं लग रहा। और मालिक भी जानता है कि वो नोटिस पीरियड पर है!
गुरुवार, 10 जून 2010
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
5 टिप्पणियां:
सुंदर पोस्ट
हम क्या कहे.. हमें तो खुद रिप्लेस करने वाले है मालिक..
आईये पढें ... अमृत वाणी।
सुन्दर अच्छी है
नीरज भाई ! सराहनीय प्रयास ,
शरद पवार और ममता बनर्जी के लिए सही कहा कि एक को कृषि प्रधान देश में कृषि मंत्री होना पार्ट टाइम लगता हैं और एक तो हमेशा ही पक्ष में रहकर विपक्ष की सही भूमिका अदा करती हैं . " नोटिस पीरियड " वाली बात बिलकुल सही हैं .
एक टिप्पणी भेजें