सोमवार, 19 जुलाई 2010

भारत का विदेशी मूल!

कम्पनियों के नतीजे भी अच्छे आ रहे हैं, नौकरियां भी बढ़ी हैं, औद्योगिक विकास दर में भी इज़ाफा हो रहा है, मानसून भी ठीक रहने की उम्मीद है और बाकी तमाम चीज़ें जिन्हें ‘स्थानीय कारण’ माना जाता है, ठीक हैं, बावजूद इसके शेयर बाज़ार ऊपर नहीं जा रहा। जानकार बताते हैं कि जब तक यूरोप में हालात नहीं सुधरते तब तक हमारे यहां भी स्थिति डांवाडोल रहेगी। ग्रीस की अर्थव्यवस्था को जब तक आर्थिक मदद की थोड़ी और ग्रीस नहीं लगाई जाती, भारत में भी हालात सुधरने वाले नहीं है।

ये सब देख-सुन मैं सदमे में चला जाता हूं। देश की इस बेचारगी पर मुझे तरस आता है। हमारे किसी भी अच्छे या बुरे के पीछे कारण के रूप में हम ही पर्याप्त क्यों नहीं है? हर क्षेत्र में एक विदेशी हाथ या वजह का होना क्या ज़रूरी है। कहने को सरकार में एक विदेश मंत्रालय है और एक विदेश मंत्री भी। मगर विदेश नीति क्या होगी ये अमेरिका तय करेगा। साल में कितनी अच्छी फिल्में बनेंगी, ये इस बात पर निर्भर करता है कि नकल किए जा सकने लायक हॉलीवुड में कितनी नई फिल्में बनती हैं। हर खेल में सुधार का एक मात्र मूलमंत्र है-विदेशी कोच की तैनाती।


फैशन से भाषा तक हर शह विदेशी हो गई है। दारू के अलावा इस देश में देसी के नाम पर कुछ नहीं बचा है। देसी कट्टों से लेकर देसी बम तक सब आउटडेटिड हो गए हैं। टोंड दूध के ज़माने में आम आदमी को तो देसी घी तक मयस्सर नहीं है। देश को लूटने वाले नेता भी अपना पैसा विदेशी बैंकों में जमा करवाते हैं। अतीत के अलावा भारत पास कुछ भी भारतीय नहीं बचा है। कुछ लोगों को जैसे ये नहीं समझ आता कि ज़िंदगी का क्या किया जाए, भारत शायद दुनिया का इकलौता देश है जो साठ साल में ये नहीं जान पाया कि आज़ादी का क्या किया जाए!

5 टिप्‍पणियां:

कुश ने कहा…

भारत शायद दुनिया का इकलौता देश है जो साठ साल में ये नहीं जान पाया कि आज़ादी का क्या किया जाए!

ये व्यंग्य ही तो है नीरज भाई.. बहुत कमाल

Fighter Jet ने कहा…

kya gajab....kya khub likha hai...Manmohan sayad ye padh pata to sayd uski bhi 60 sal ki buddhi khulti..sayd...par Manmohan se pahle janta jage tabhi kutch ho skata hai...

Jas B ने कहा…

Bahut sahi kaha aapne...sab kuch firangi deshon par nirbhar karta hai ke wo kya chahenge, ussi hisaab se hamare yahan tarraki hogi...

Aap sahi keh rahe hain ke pehnawa, khana-peena sab videshi ho gaya hai...is baar April mein jab main India gayi to maine dekha ke videshi type ke pehrawe ki ek dukaan ka naam "Virsa" rakha hua hai. Mujhe videshi style ke kapdon se aapatti nahin, jiska jo man karta hai pehne, lekin bhagwaan ke liye waise kapdon ko apna "Virsa" (Punjabi for "culture") to na batayein!
Ek aur dukaan pe likha hua dekha, "Dressing for dating or ditching", ab batayiye ke kya message hum log de rahe hain nayi peedi ko...phir log mujhe dakiyanoosi vicharon wala batate hai...

राकेश जैन ने कहा…

murabba dale to kaisa rahega, aur sath saal bad khayenge....chhichhore neta JI.

:) Nice one

राकेश जैन ने कहा…

murabba dale to kaisa rahega, aur sath saal bad khayenge....chhichhore neta JI.

:) Nice one