गुरुवार, 17 अप्रैल 2008

कौन कहता है हम रचनात्मक नहीं हैं!

कल ही मित्र बता रहा था कि वो सिटी बस में कभी पांच का टिकिट नहीं लेता। पहले वो दो का टिकिट लेता है फिर जब टिकिट ख़त्म हो जाता है तो दोबारा दो का टिकिट ले लेता है। इस तरह से वो पांच रूपये का सफर चार में तय करता है और हर दिन दो रूपये बचाता है!


मित्र की बात सुन सोचने लगा कि ख्वामखाह दुनिया कहती है हम रचनात्मक नहीं है ? सोचने और करने को लेकर हमारे पास कुछ नया नहीं है। मुझे लगता है इससे बेहूदा इल्ज़ाम लगाया ही नहीं जा सकता। इस देश में कहीं भी नज़र डालें आपको रचनात्मकता के सुबूत मिल जायेंगे।

मसलन, एक अमेरिकी और यूरोपीय दिमाग कभी नहीं जान सकता कि अगर आपके घर के आगे की नाली ब्लॉक हो गई हैं तो क्या किया जाये ? लेकिन भारतीय दिमाग जानता है। वो ये कि सड़क के बीचों-बीच एक नाली खोद लें, ताकि आपकी तरफ की नाली का पानी, आपकी मेहनत से बनाई नाली से होता हुआ, सड़क के दूसरी तरफ की नाली में जा मिले! मुझे नहीं लगता ड्रेनज समस्या से निजात पाने का ऐसा 'आत्मनिर्भर तरीका' दुनिया का कोई और नागरिक इजाद कर सकता था!

घरों में लगे बिजली मीटर रोकने में भी भारतीयों ने अपनी रचनात्मक प्रतिभा का पूरा परिचय दिया है। भले ही जीवन में सफल होने का एक भी तरीका हमें न पता हों, लेकिन, बिजली मीटर रोकने के 373 तरीकें हम बता सकते हैं। सुनने में तो यहां तक आया कि अमेरिका परमाणु करार पर तमाम भारतीय एतराज़ दूर करने के लिए तैयार है, बशर्ते, भारत उस महान आत्मा को उसे सौंप दें, जिसने दुनिया को बताया कि एक्स-रे शीट से भी बिजली मीटर रोका जा सकता है!

साथ ही 'दो बटा तीन चाय' का फार्मूला भी पूरी तरह भारतीय है। चाय के ठेले पर पहुंचे तीन रचनात्मक दिमाग, जो अगले आधे घंटे में उन तीस लोगों को निपटाने वाले हैं, जिन्हें वो पहले भी तीन हज़ार बार, तैंतीस हज़ार कोणों से निपटा चुके हैं, सोचते हैं कि भाई, बुराई करने के लिए ये ज़रूरी नहीं कि तीन लोग, तीन कप ही चाय पियें। अगर दो कप चाय तीन कपों में डलवा ली जाये तो भी निंदा कर्म पर कोई आंच नहीं आने वाली।

इसके अलावा एक वाक्या जिसके बारे में जब भी सोचता हूं तो आंखें 'भारतीय होने के' गर्व से छलछला उठती हैं। कुछ बरस पूर्व एक रूसी कम्पनी ने भारतीय कम्पनी से बड़ी तादाद में जूते ख़रीदें। कुछ वक्त बाद कम्पनी ने पाया कि जो जूते उसे बेचे गए हैं, उसके सौल में तरबूज़ का छिलका लगा हुआ है! अदालत ने इस मामले में भारतीय कम्पनी को जुर्माना भी ठोका। लेकिन मैं पूछता हूं क्या किसी ने एक पल के लिए भी उस भारतीय प्रतिभा के बारे में सोचा जिसने दुनिया को बताया कि एक अदने 'तरबूज के छिलके' की ये नियति भी हो सकती है!

(नोट-आपने भी अपने आसपास ऐसी किसी रचनात्मकता को देखा हो तो शेयर करें। आख़िर ये महान भारतीय प्रतिभाओं को जानने-समझने का मामला है।)

3 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

जो भी आपसे कहता है झूठ बोलता है. :)

सागर नाहर ने कहा…

सड़क के बीचों-बीच एक नाली खोद लें, ताकि आपकी तरफ की नाली का पानी, आपकी मेहनत से बनाई नाली से होता हुआ, सड़क के दूसरी तरफ की नाली में जा मिले!
बहुत ही बढ़िया आईडिया बताया है आपने..आजमाना ही पड़ेगा। और हाँ वह मीटर रोकने के एकाद नुस्खे बता देते तो कुछ काम बन जाता.. बदले में रोज दो टिप्पणियां आपको कर देते :P

कुश ने कहा…

आज आपकी ब्लॉग पर काफ़ी समय व्यतीत किया.. ये लेख बहुत ही उम्दा है.. आपकी शैली निराली है.. इस लेख ने काफ़ी गुदगूदाया,, लिखते रहे..