कहते हैं सच्चा प्यार बड़े नसीब से मिलता है। और इस मामले में मर्द खुद को ज़्यादा ही बदनसीब 'मानते हैं'। तभी तो उनकी ये तलाश 'सारी उम्र' जारी रहती है। और इस तलाश में वो डरते भी रहते हैं कि कहीं सच्चा प्यार मिल न जाये। वजह, जो मज़ा तलाश में है वो सच्चा प्यार पाने में नहीं!
सच्चे प्यार की ऐसी ही तलाश में मेरे एक मित्र भी हैं। पिछले छे महीनों में तीन लड़कियों से वो 'सच्चा प्यार' बता मुझे मिलवा चुके हैं। सच्चे का तो पता नहीं उनका हर प्यार कच्चा ज़रूर साबित हुआ। वजह पूछी तो कहने लगे 'असैसमेंट' में चूक हो जाती है। मतलब-मैंने पूछा।
मतलब ये डियर तुम तो जानते हो बेसिकली मैं इंटरोवर्ट इंसान हूं। जब मैं अपनी पहली गर्ल फ्रैंड से मिला तो मुझे ये बात पंसद आयी कि मेरी तरह वो भी कम बोलती है, सूफी संगीत की शौकीन है और तन्हाईपसंद है। फिर क्या था एक-आध मुलाकात में ही लग गया मुझे ऐसी ही लड़की की तलाश थी। लेकिन....लेकिन क्या ? लेकिन, कुछ ही दिनों में मुझे वो बोर लगने लगी। जब भी डेट पर जाते थे ऐसा लगता था कि कहीं अफसोस करने आये हैं। न बताने के लिए मेरे पास कोई किस्सा और न सुनाने के लिए उसके पास नई बात। हमें रियलाइज़ हुआ कि हम एक जैसे तो ज़रूर बने हैं लेकिन एक दूसरे के लिए नहीं बने! लिहाज़ा हम अलग हो गए।
इस बीच मुझे सुहानी मिली। नाम तो उसका सुहानी था मगर वो किसी सुनामी से कम नहीं थी (घटिया कम्पैरीज़न)! क्या स्पार्क था उसमें। दोस्त के ज़रिये इंट्रोडक्शन हुआ। पहली ही मुलाकात में वो दिलो-दिमाग पर छा गयी। उसकी बोल्ड ड्रैसिंग, ज़बरदस्त कोनफिडेंस, फरार्टेदार अंग्रेज़ी। मुझे मेरा सच्चा प्यार मिल गया था। मगर.......क्या मगर ? मगर कुछ दिनों में मुझे लगने लगा वो काफी लाउड है। मुझ जैसे इंटर्वोर्ट आदमी के लिए उसके साथ अडजस्ट करना आसान नहीं था। उसकी डोमीनेटिंग नेचर परेशान करने लगी थी। इससे पहले की मैं अपना वजूद खोता मैं उससे अलग हो गया।
और मेरे लेटस्ट सच्चे प्यार की तो मत ही पूछो। पहली दोनों गर्लफ्रेंड्स का रीमिक्स थी वो । कब चुप रहना है, कब बोलना है सब पता था उसे। अदा और अक्ल का शानदार कोम्बो थी वो। और फिर........एक रोज़ पता चला प्यार के मामले में वो डैमोक्रेसी में बिलिव करती थी। ऐसी डैमोक्रेसी जहां हर तीन महीने में नया उम्मीदवार चुना जाता था! उसने मुझे छोड़ दिया।
चेहरे पर मायूसी ला मित्र बोला-सच्चे प्यार की तलाश करते-करते मैं थक चुका हूं। सोचता हूं.....क्या सोचते हो ? सोचता हूं अब कुछ वक़्त अपनी बीवी में ही उस सच्चे प्यार को तलाश्ने की कोशिश करूं!
मित्र की हताशा समझ सकता हूं। वैसे भी किसी ने ठीक ही कहा है एक औरत को ज़िंदगी में जब सच्चा प्यार नहीं मिलता तो वो अपनी मां के पास चली जाती है और इसी सूरत में आदमी अपनी बीवी के पास!
नीरज बधवार
शनिवार, 19 अप्रैल 2008
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7 टिप्पणियां:
समझा दो मित्र, बीबी में ही सच्चा प्यार तलाशे वरना तो वो न घर के रहेंगे न घाट के. :)
मित्र से बोलो , भाई समिर जी की बात मान जाये वरना ...
अपने मित्र से कहिये सच्चा प्यार की तलाश जारी रखें. पत्नी में खोजेंगे तो तलाश का क्या होगा? राह में छोटी-मोटी मुश्किलें आती रहती हैं. विचलित होने से काम कैसे चलेगा?......:-)
वसीम साहब का एक शेर है;
जब भी मैं ढूढ़ने निकला कोई नया सूरज
किसी चराग ने आंखों पे उंगलियाँ रख दीं
सारे मर्द ऐसे ही होते हैं,,भँवरे की तरह डाल-डाल फिरना इनकी फितरत में है,,भँवरे बेचारे का तो अस्तित्व खतरे मैं है पर ये मर्द उनकी कमी पूरी करते रहेंगे...
प्यार से बड़ा सच इस दुनिया में कोई नहीं है और सत्य की खोज निरंतर जारी रहती है। अब बताएं इसमें मित्र की क्या ग़लती है अगर वो सच्चे प्यार की तलाश में लगा हुआ है।
Damn! I should not read the ending first....just joking. Some fine writing I have discovered. Enjoyed reading :-)
Kash ki aapke mitra ki Biwi bhi Democracy mein believe karti...3rd Girlfriend ki terah, ek naya pyaar talaash kartin...Bhooley bhatke jab yeh pyar ki talaash mein wapas aate, woh kahti, aap bhi dhoondiye, mein bhi dhoond rahi hun...Great satire :))
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