बताने की ज़रुरत नहीं है कि सरकारें करने का नहीं कहने का खाती है। और आज जब महंगाई के चलते आम आदमी का खाना मुश्किल हो रहा है, सरकार बहानेबाज़ी के फ्रंट पर भी मुंह की खा रही है। उससे कुछ भी कहते नहीं बन रहा। आख़िर क्या हो गया हमारे नेताओं की रचनात्मकता को? ‘जादू की छड़ी नहीं है’, टाइप एक आध बयान आए भी लेकिन बात बनी नहीं। लालू जी ने भी महंगाई के पीछे बीजेपी समर्थित व्यापारियों का हाथ बताया, लेकिन ये बात भी विपक्ष पर हमला कम और ‘एसएमएस जोक’ ज़्यादा लगी। बहरहाल, सरकार का ये आत्मसमर्पण मुझसे देखा नहीं जा रहा और मैंने तय किया है कि इस बारे में उसकी कुछ मदद करुं। मैं जानता हूं वो महंगाई से जनता को तो नहीं बचा सकती। लेकिन मेरी सलाहें मान ले तो वो महंगाई से ‘खुद को’ ज़रुर बचा सकती है।
1-कुछ लोगों का कहना है कि सरकार को महंगाई की ख़बर इतनी देर से इसलिए लगी क्योंकि ज़्यादातर सांसद और विधायक तो संसद और विधानसभा की कैंटीनों में भयंकर सब्सिडी वाला खाना खाते हैं। उन्हें लगता रहा कि जितना सस्ता खाना यहां मिलता है उतना ही बाहर भी मिलता होगा। बहरहाल, मेरा सरकार से निवेदन है कि वो अपनी तमाम सांसदों को आदेश कि संसद का सत्र शुरु हो चुका है। इसलिए जितने दिनों तक सत्र चले वो रोज़ाना पचास सौ लोगों का खाना संसद की कैंटीन से पैक करवा कर ले जाएं। और टिफिनों में भर-भर कर अपने-अपने इलाकों में पुहंचाए। हो सकता है खाना पहुंचने तक ठंडा हो जाए लेकिन इस पर भी लोग नाराज़ नहीं होंगे। अब आप बताएं जिनके लिए खाने की याद तक बासी हो चुकी हो, वो भला बासी खाने की क्या शिकायत करेंगे!
2-अंत्योदय योजना की तरह एक ‘केलेंडर और पोस्टर योजना’ शुरु की जाए। लोग सब्ज़ियों की शक़्ल न भूल जाए इसलिए इनके पोस्टर छपवा कर घर-घर पहुंचाए जाएं। इसके पीछे मक़सद यही हो कि मंहगाई में आप भले ही शिमला मिर्च खा न सकें, कम से कम रसोई में इसका पोस्टर तो लगा सकते हैं। पोस्टर छपवाने में ज़्यादा खर्चा न आए इसके लिए हर इलाके में उसी कम्पनी से करार किया जाए जो किसानो की कर्ज़माफी के बड़े-बड़े होर्डिंग्स छाप रही है। इससे डिस्काउंट मिलेगा। साथ ही सब्ज़ियों और दालों की तस्वीरों वाले केलेंडर भी राशन की दुकानों पर उपलब्ध करवाये जाएं। ताकि रेहडी पर सब्ज़ियां देख आम आदमी नोस्टैलजिक फील न करे और महीना बदलने का साथ ही वो कलेंडर में ‘आंख का ज़ायका’ भी बदल सके।
3-सब्ज़ियों के साथ-साथ दूध भी आम आदमी की पहुंच से बाहर हो रहा है। बड़ों की तो विशेष बात नहीं, बच्चों को इसकी ख़ासी ज़रुरत होती है। ऐसे में सरकार पोलियो ड्राप्स की तरह ‘दूध ड्राप्स’ पिलाने के लिए मिशन दूध शुरु करें। महीने में एक दिन तय करे जब लोग अपने बच्चों को नज़दीकी केन्द्रों पर ले जा कर दूध ड्राप्स पिलवायें। और लगे हाथ चाय के लिए कुछ बूंदें साथ ले आएं। इसका स्लोगन भी ‘दो बूंद ज़िंदगी की’ रखा जाए। ये बात अलग है कि इससे बच्चों को ज़िंदगी मिले न मिले, सरकार को ज़रुर मिलेगी।
4-भूखे आदमी का दिमाग भी कम चलता है। लिहाज़ा अगर सरकार अगले डेढ़ सौ सालों तक भी ये समझाती रहेगी कि महंगाई इसलिए बढ़ी है क्यों कि कच्चे तेल की कीमत एक सौ बीस डॉलर प्रति बैरल हो गई है तब भी लोग नहीं समझेंगे। वायदा कारोबार के लिए बीजेपी पर हमला करने और अमेरिकी मंदी का हवाला देने से भी बात नहीं बनेगी। ज़रुरत है सरकार ज़िले से लेकर पंचायत स्तर के तमाम पार्टी मुख्यालयों को हिदायत दे कि अपने-अपने इलाकों में नुक्कड़ नाटकों के ज़रिये लोगों को ये कारण समझाएं। इसके लिए पार्टी के नाटकबाज़ कार्यकर्ताओं की मदद ली जाए। उन्हें निर्देश दिए जाएं कि राहुल बाबा को कृष्ण, और सोनिया गांधी को मां दुर्गा के रुप में दिखाने वाले पोस्टर बनाने का काम छोड़कर फौरन इन नाटकों की तैयारी की जाए। नाटक ख़त्म होने तक लोग रुके रहें इसलिए आख़िर में चाय मट्ठी का बंदोबस्त किया जाए।
5-और आख़िर महंगाई सबसे ज़्यादा हल्ला करने वाले वामदलों को सरकार कटघरे में खड़ा करें। उससे पूछा जाए तुम लोग दिन-रात चीन की चम्मचागिरी में बिताते हो उसका आखिर क्या फायदा क्या? उससे पूछो बाकी सस्ते सामानों की तरह क्यों नहीं वो सस्ती सब्ज़ियां भी भारत को बेचता। उसे समझाओ कि अलार्म क्लोक बेचना बंद करे, हम हिंदुस्तानी वैसी भी लेट उठते हैं, कुछ भेजना ही है तो सस्ती सब्ज़िया भेजो।
7 टिप्पणियां:
"उसे समझाओ कि अलार्म क्लोक बेचना बंद करे, हम हिंदुस्तानी वैसी भी लेट उठते हैं, कुछ भेजना ही है तो सस्ती सब्ज़िया भेजो।"
खाना खाएँगे तब तो नींद आएगी. नींद ही न आए तो अलार्म क्लाक की जरूरत किसे है? सारे के सारे सुझाव धाँसू हैं. सरकार (अगर कहीं है तो) को इन सुझावों पर गौर करना चाहिए...:-)
नीरज जी अच्छे व्यंग्य के लिये साधुवाद
महंगाई की मार ने मध्यम वर्गीय की नींद हराम कर दी है, आपके सुझाव वाकई लाजबाव हैं, लेकिन क्या करें साहब चिंदम्बर ने जनता को दिगम्बरं कर दिया है, पहली बार ब्लाग पर आने का सौभाग्य मिला है आगे भी आते रहना पड़ेगा, कुछ बात ही ऐसी है। आप उचित समझें तो मेरे दैनिक अखबार में आपके प्रस्तुत आलेख-व्यंग्य प्रकाशित करने की स्वीकृति दीजियेगा । अखबार स्थानीय दैनिक है, सीहोर से प्रकाशित होता है, ब्लाग पर देखियेगा । शेष शुभ ।
बहुत ही शानदार सुझाव हैं। सुझाव क्रमांक ३ लागू होनेे में अब ज्यादा देर नहीं है, जिस हिसाब से महंगाई बढ़ रही है, ज्यादा दिन दूर नहीं है जब दूध की रिफिल ( जैसी बोल प्वाईंट पैन में आती है) मिलने लगेगी।
रोज सुबह एक रिफिल खरीद कर उसे दो बच्चों को चटा कर खुश होना होगा।
हमने सब्जियो के जायके वाली दो दो ग्राम की टाफ़िया बनाई है जिन्हे खानेसे आपको सब्जियो का स्वाद याद रहेगा लगे हाथो सरकार चाहे तो इन्हे भी हम से खरीद कर फ़्री मे बाट सकती है इससे हमे सब्जिया खाने के पैसे मिल जायेगे और जनता को सब्जियो का स्वाद :)
आप सब की तरफ से बताए गए सुझाव बेहद मज़ेदारा है। उम्मीद करते हैं सरकार ख़्याल करेगी। और 'सीहोर फुरसत' जी जहां तक प्रस्तुत आलेख को आपने अख़बार में प्रकाशित करने की बात की है तो मैं बताना चाहूंगा कि यहां दिए सभी लेख पहले हिंदुस्तान या फिर नवभारत टाइम्स में प्रकाशित हो चुके हैं। आपने इस तरह की इच्छा ज़ाहिर की इसके लिए धन्यावाद। वैसे यही बात कहने मैं आपके ब्लॉग पर भी गया था, मगर वहां मुझे कॉमेंट के लिए कोई लिंक नहीं दिखा। ये सोच कर यहीं लिख रहा हूं शायद दोबारा आएं तो पढ़ लें।
मजेदार,काश सरकार को समझ आजाये..
खाना खाएँगे तब तो नींद आएगी. नींद ही न आए तो अलार्म क्लाक की जरूरत किसे है?
ये वाली बात बिल्कुल सही है
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