शनिवार, 26 अप्रैल 2008

मच्छर को बनाएं राष्ट्रीय कीट (हास्य-व्यंग्य)

भारत में हम जिस भी चीज को राष्ट्रीय महत्व से जोड़ते है, बाद में उसका बेड़ा गर्क हो जाता है। हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है लेकिन देश में कुछ लोग सिर्फ इसलिए कत्ल किए जा रहे हैं कि वे हिंदी भाषी हैं। इसे न बोलना ही आज गर्व का विषय हो गया है। मोर हमारा राष्ट्रीय पक्षी है और आज हालत यह है कि मोर बिरादरी जेड श्रेणी की सुरक्षा मांग रही है। हॉकी के एनकाउंटर के लिए भले ही गिल क्रेडिट ले रहे हों, लेकिन हॉकी की शहादत के पीछे असली वजह उसका राष्ट्रीय खेल होना ही है। वहीं खुद को राष्ट्रपिता का वारिस बताने वालों ने साठ साल से ' गांधी ' को तो पकड़ रखा है, लेकिन ' महात्मा ' को भूल बैठे हैं।
मतलब पहले किसी भी चीज को सिर-आंखों पर बैठाओ, फिर सिगरेट के ठूंठ की तरह पैरों तले मसल दो। मेरा मानना है कि जब यह सिद्धांत इतना सीधा है तो क्यों न हम तमाम बड़ी समस्याओं को राष्ट्रीय महत्व से जोड़ दें, वे खुद-ब-खुद खत्म हो जाएंगी। इस दिशा में हमें सबसे पहले मच्छर को राष्ट्रीय कीट घोषित करना चाहिए।
सरकार घोषणा करे कि राष्ट्रीय कीट होने के नाते मच्छरों का संरक्षण किया जाए। उसे ' गंदगी बढ़ाओ, मच्छर बचाओ ' टाइप कैम्पेन चलाने चाहिए। निगम कर्मचारियों को आदेश दिए जाएं कि वे अपनी अकर्मण्यता में सुधार लाएं। जिस गली में पहले हफ्ते में दो बार झाडू लगती थी, वहां महीने में एक बार से ज्यादा झाडू न लगे। गंदगी बढ़ाने के लिए पॉलिथीन के इस्तेमाल को प्रोत्साहन दिया जाए ताकि अधूरी चौपट सीवर व्यवस्था पूरी तरह चौपट हो पाए। गटर-नालियां जितने उफान पर होंगी, उतनी तेजी से मच्छर बिरादरी फल-फूल पाएगी। मच्छर को चीतल के समान दर्जा दिया जाए और प्रावधान किया जाए कि एक मच्छर मारने पर पांच साल का सश्रम कारावास और दो लाख का आर्थिक दण्ड दिया जाएगा। कानून का आम आदमी में खौफ पैदा करने के लिए ' एक मच्छर आदमी को जेल भिजवा सकता है ' टाइप थ्रेट कैम्पेन भी चलाए जाएं। इसके लिए किसी बड़े स्टार की सहायता ली जा सकती है।
किसी सिलेब्रिटी को मच्छर अम्बेसडर घोषित किया जा सकता है। आप इसे कोरी बकवास न समझें। आपको जानकर हैरानी होगी कि जब इस योजना को मैंने सरकार के सामने रखा तो उसने फौरन देश के 156 जिलों में प्रायोगिक तौर पर इसे लागू भी कर दिया और जो नतीजे आए वे बेहद चौंकाने वाले थे।
निगम कर्मचारियों तक जैसे ही सरकार का फरमान पहुंचा उनका खून खौल उठा। उन्होंने तय किया कि अब वे कभी अपनी झाडू पर धूल नहीं चढ़ने देंगे। जो कर्मचारी पहले सड़क पर झाडू नहीं लगाते थे, वो खुंदक में अपने घर पर भी सुबह-शाम झाडू लगाने लगे। वहीं पॉलिथीन का ज्यादा इस्तेमाल करने के सरकारी आदेश के बाद महिलाएं पति की पुरानी पैंट का थैला बनाकर बाजार से सामान लाने लगीं। शाही घरानों के़ लड़कों ने, जो पहले जंगल में शेर का शिकार करने जाते थे, अब जीपों का मुंह शहर के गटरों की तरफ कर दिया। अब वह बंदूक के बजाय शिकार पर बीवी की चप्पलें ले जाने लगे और उनसे चुन-चुनकर मच्छर मारने लगे। इस सबके बीच उन लोगों की मौज हो गई जो एक वक्त कमजोर डील-डौल के चलते मच्छर कहलाते थे, अब वो इसे कॉम्प्लीमेंट की तरह लेने लगे।
खैर, नतीजा यह हुआ कि लागू करने के महज तीन महीने के भीतर ही योजना बुरी तरह फ्लॉप हो गई और सभी 156 जिले पूरी तरह मच्छरों से मुक्त करवा लिए गए। योजना की असफलता से उत्साहित कुछ लोगों ने प्रस्ताव रखा है कि इसी तर्ज पर भ्रष्टाचार को राष्ट्रीय आचरण और दलबदल को राष्ट्रीय खेल घोषित किया जाए। इसी तरह 'अतिथि देवो भव' का स्लोगन बदलकर 'अतिथि छेड़ो भव' किया जाए। ऐसा करने पर ही इन समस्याओं से मुक्ति मिल पाएगी।

4 टिप्‍पणियां:

आलोक ने कहा…

मात्रा के अनुसार तो मच्छर ही राष्ट्रीय कीट-योग्य है

Shiv Kumar Mishra ने कहा…

बहुत जबरदस्त सुझाव है, नीरज. बहुत बढ़िया लिखा है. वाह!

Arun Arora ने कहा…

काहे नही नेताओ को राष्ट्रीय जीव घोषित कराय देते हो :)

Abhishek Ojha ने कहा…

जी बिल्कुल ठीक कहा आपने... मच्छर ही राष्ट्रीय कीट का हकदार है... ये भी देखें:
http://ojha-uwaach.blogspot.com/2008/04/blog-post_08.html