सोमवार, 28 अप्रैल 2008

तबीयत नहीं, नीयत है ख़राब! (हास्य-व्यंग्य)

ऑफिस पहुंचा तो पता चला वो आज भी नहीं आ रहीं। सुबह फोन कर उन्होंने बताया कि 'अचानक' उनकी तबीयत ख़राब हो गई। इस हफ्ते दूसरी बार उनकी 'अचानक' तबीयत खराब हुई है। और अगर मैं ठीक हूं तो पिछले एक साल में 63 बार 'अचानक' तबीयत खराब होने की वजह से वो छुट्टी ले चुकी हैं। 'अचानक' की इस कंसिस्टेंसी से मैं हैरान हूं। संडे की उनकी छुट्टी रहती है और इसे 'इतेफाक' ही कहा जायेगा कि या तो वो शनिवार को बीमार पड़ती हैं या सोमवार को। और ये 'इतेफाक' भी अब इतनी बार हो चुका है कि इसकी हम भविष्यवाणी तक कर सकते हैं!

उनकी इस बीमारी पर बहुत से लोगों ने रिसर्च की मगर हाथ कुछ नहीं लगा। लोग समझ नहीं पा रहे ‘वीकली बेसिस’ पर आने वाली ये कौन सी बीमारी है जो जितनी तेज़ी से उन्हें अपने आगोश में लेती है, उतनी ही जल्दी छोड़ भी देती है। हंसती-खेलती वो ऑफिस से जाती हैं, हंसती-खेलती ही लौटती हैं। इस बीच वो बीमार पड़ती हैं और रिकवर भी कर जाती हैं!

हममें से बहुतों की तमन्ना है कि हम भी इस तरह ‘अचानक’ बीमार पड़ें, मगर ज़्यादातर इसे अफोर्ड नहीं कर सकते। वजह, इस तरह बीमार पड़ने के लिए बॉस से मेल बढ़ाना पड़ता है और अगर आप मेल हैं, और आपका बॉस भी मेल है तो ये मेल कभी नहीं बढ़ सकता है। आप रियलाइज़ करते हैं कि जिस समाज में महिला उत्पीड़न की इतनी बात की जाती है, वहां आदमी की 'असल औकात' ये है कि वो ज़रा-सा झूठ बोल एक टु्च्ची बीमारी भी अफोर्ड नहीं कर सकता!

पूरी स्थिति पर मैंने एक ईमानदार चिंतन किया और सोचा कि मेरी असल तकलीफ क्या है ? क्या मैं अचानक बीमार नहीं पड़ सकने की अपनी ‘सीमा’ से परेशान हूं या मुझे इस बात का अफसोस है कि मैं बॉस नहीं हूं? बहुत सोचने पर निष्कर्ष निकाला कि भाषा को लेकर मेरा प्यार ही मेरी असली पीड़ा है।

मुझे 'अचानक' और 'इतेफाक' शब्दों के खिलाफ षड्यंत्र की बू आ रही है। 'अचानक' शब्द के साथ अगर कंसिस्टेंसी जुड़ जायेगी और इतेफाक के बारे में भविष्यवाणी होने लगेगी तो इन दोनों शब्दों का अस्तित्व ही मिट जायेगा। नहीं-नहीं मैं ऐसा नहीं होने दूंगा। मगर मैं कर भी क्या सकता हूं?

अपने ब्लॉग के माध्यम से (अगर कोई पढ़ रहा है तो) मैं सरकार से निवेदन करना चाहता हूं कि ऐसे लोग जिनकी 'अचानक' तबीयत ख़राब होती है, दरअसल इनकी तबीयत नहीं, नीयत ख़राब होती है। इसलिए मेरी गुज़ारिश है कि कि इन लोगों की 'नीयत' को इनकी तबीयत का हिस्सा माना जाये, और जब भी इनकी नीयत ख़राब हो इन्हें इस आधार पर छुट्टी लेने का हक़ दिया जाये कि इनकी तबीयत ख़राब है। मतलब नीयत ख़राब होने पर इन लोगों को मेडिकल लीव दी जाये। इस तरह इनका काम भी हो जायेगा और भाषा की गरिमा भी बनी रहेगी।

4 टिप्‍पणियां:

कुश ने कहा…

जिस समाज में महिला उत्पीड़न की इतनी बात की जाती है, वहां आदमी की 'असल औकात' ये है कि वो ज़रा-सा झूठ बोल एक टु्च्ची बीमारी भी अफोर्ड नहीं कर सकता!

बहुत बढ़िया बात. .सीधा सटीक व्यंग्य.. आपकी शैली पसंद आई.. और भी लेख पढ़ुंगा आपकी ब्लॉग पर फिलहाल यहा टिप्पणी दे रहा हू..

Alpana Verma ने कहा…

'अचानक' शब्द के साथ अगर कंसिस्टेंसी जुड़ जायेगी और इतेफाक के बारे में भविष्यवाणी होने लगेगी तो इन दोनों शब्दों का अस्तित्व ही मिट जायेगा।'

बहुत बढ़िया !!!क्या विश्लेषण किया है!
बहुत ही रोचक व्यंग्य लिखा है.

रवीन्द्र प्रभात ने कहा…

अत्यन्त रोचक , अच्छा लगा !

Udan Tashtari ने कहा…

जिस समाज में महिला उत्पीड़न की इतनी बात की जाती है, वहां आदमी की 'असल औकात' ये है कि वो ज़रा-सा झूठ बोल एक टु्च्ची बीमारी भी अफोर्ड नहीं कर सकता!


-क्या बात है!! बहुत सुन्दर एवं रोचक.