वैसे तो यह ट्रेंड गाड़ियों में ज़्यादा देखने को मिलता है। किसी कम्पनी ने कोई मॉडल लॉन्च किया। उसकी खूबियों को लेकर बड़े-बड़े दावे किए, मगर जब गाड़ी बाज़ार में उतरी तो उसे वैसा रिस्पॉन्स नहीं मिला। जानकारों ने ख़ामियां बताईं और वो मॉडल वैसा परफॉर्म नहीं कर पाया जैसी उम्मीद थी। लिहाज़ा, कम्पनी तय करती है कि गाड़ी को री-लॉन्च किया जाए। कुछ नए फीचर्स के साथ। पुरानी ख़ामियों को दूर करते हुए।
ठीक इसी तर्ज़ पर अब वक़्त आ गया है कि हम भारत को भी री लॉन्च करें। भारत का नया इम्प्रूव्ड वर्ज़न लाएं, जिसमें पुरानी कमियां न हो, ताकि भारत नामक 'महान् विचार' में लोगों की आस्था फिर से लौटाई जा सके।
जब मैंने अपना ये विचार एक मित्र को बताया तो उनका कहना था कि इसमें कई तकनीकी ख़ामियां हैं। पहली तो ये कि भारत को लेकर दुनिया को जो-जो समस्याएं हैं जैसे, इसका माइलेज, इंजन, सीट-कवर, हैडलाइट, पिकअप अगर सभी सुधार दी गईं तो इस नए मॉडल में ढूंढने पर भी भारत नहीं मिलेगा। तब दुनिया को पता कैसे चलेगा कि ये भारत का ही नया वर्ज़न है या फिर किसी देश ने हाल ही में स्वायत्तता हासिल की है। दूसरा, जब कोई ब्रांड एक बार बदनाम हो जाता है तो उसे फिर से उसी नाम से लॉन्च करने में दिक़्कत आती है। इसके अलावा इन ख़ामियों को दूर करेगा कौन? हम जब इतने सालों में इस देश को नहीं सुधार पाए तो री-लॉन्चिंग के बाद क्या उखाड़ लेंगे।
मैंने कहा, वो कोई इश्यू नहीं है। हम री-लॉन्चिंग का काम आउटसोर्स कर सकते हैं। हम जिस क्षेत्र में जिस भी देश पर निर्भर हैं, उसमें सुधार का काम पूरी तरह से उसी देश को सौंप सकते हैं। भारतीयों को नौकरी कैसे मिले, ये काम हम अमेरिका और ब्रिटेन को आउटसोर्स कर सकते हैं। सुरक्षा को लेकर हमें चीन से सबसे ज़्यादा ख़तरा है लिहाज़ा सुरक्षा का ठेका हम चीन को दे सकते हैं। शिक्षा और खेलों की दशा-दिशा सुधारने के लिए ऑस्ट्रेलिया से कॉन्ट्रेक्ट कर सकते हैं। मनोरंजन उद्योग के लिए अमेरिका में हॉलीवुड से संधि की जा सकती है। कुछ मामलों में अलग-अलग देशों के लोग मिलकर कमेटी भी बना सकते हैं।
तभी मित्र बोला, मगर तुम भूल रहे हो भारत एक लोकतांत्रिक देश है...ऐसे में सरकार का क्या होगा? मैंने कहा...अगर हमें वाकई सुधरना है तो हमें अपना लोकतंत्र भी आउटसोर्स कर देना चाहिए। वैसे भी हर ओर किफायत की बात हो रही है। विदेशी हमें उतने महंगे तो नहीं पड़ेंगे जितने ये देसी पड़ रहे हैं!
मंगलवार, 22 सितंबर 2009
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7 टिप्पणियां:
एकदम दिल से दुआ निकल रही है आपके लिए.....भगवान जी आपकी लेखनी को प्रखर से प्रखरतम करें.....
क्या बात कह दी आपने....दिल बाग़ बाग़ हो गया.......वाह !
तथ्य विचारणीय हैं। आउटसोर्सिंग तो खैर महंगी पड़ेगी लेकिन इसे जस्टिफाई करने के लिए आपने नीचे जो लाइन लिखी है मुफीद और मौज़ूं है। विदेशी हमें उतने महंगे तो नहीं पड़ेंगे जितने ये देशी पड़ रहे हैं। सही है कि विदेशी रिसोर्सेज़ को सही से इस्तेमाल करेंगे तो महंगे नहीं पड़ेंगे।
इतने दिन से कहां से थे महाराज?
kahan padha tha ? kahan padha tha?
haan....
Hindustaan ke editorial main...
..badhiya lekh !!
टिप्पणी इसलिए कर रहा हूँ कि बता दूँ -यहाँ मेरा आना नियमित है।
तारीफ के शब्द, बार बार लिखने में बोरियत लगती है :-)
बी एस पाबला
as usual 100% bang on targat
भीषण आईडिया है. एकदमें सटीक!!
चलिए यह टोटका भी आजमा लेते हैं ...जहाँ इतने आजमाए !!.....वहीँ एक और सही !
बहुत खूब!!!
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