गुरुवार, 29 अप्रैल 2010

नेताओं का उंगली क्रिकेट!

बीस-बीस के खेल में सामने आई चार सौ बीसी मेरे लिए उतनी उत्सुकता का विषय नहीं है, जितना इस चार सौ बीसी पर नेताओं की चिंता। लालू, मुलायम जैसे नेता क्रिकेट की बर्बादी पर जब संसद में आंसू बहाते हैं तो इसे देख मगरमच्छ तक असली आंसू बहाने पर मजबूर होता है। चिंता को वाजिब पाकर नहीं, अभिनय में इनके हाथों मात खाकर।
मैं सोचता हूं कि कैसे ये लोग, जिनके खाते में अपने-अपने राज्यों की बीस-बीस साल की बर्बादी है, आज महज बीस-बीस ओवर के एक खेल की बर्बादी पर इतने दुखी हैं। ढाई सौ किलो वजनी शख्स स्वस्थ रहें, मस्त रहें विषय पर जोरदार भाषण दे रहा है।
मैं सोचता हूं कि ये नेता आइपीएल में हुए फर्जीवाड़े को लेकर इतना दुखी क्यों है? क्या उन्हें इस बात का दुख है कि ये फर्जीवाड़ा उनके हाथों नहीं हुआ। क्या उन्हें इस बात की तकलीफ है कि जब धंधेबाजों को ही खेल चलाना है तो हम क्यों नहीं चला सकते? जब हम देश बेच सकते हैं, तो खेल क्यों नही। या फिर उन्हें इस बात का गुस्सा है कि ऐसे खेल का क्या फायदा जिसमें यादव के लड़के को दूसरे के लिए तौलिया ले कर भागना पड़े।

मैं सुप्रीम कोर्ट से गुजारिश करूंगा कि नेताओं को ऐसी किसी भी सभा में घुसने या ऐसे किसी भी मंच पर चढ़ने से रोका जाए जहां नैतिकता, सदाचार या राष्ट्र निर्माण जैसे विषय पर कोई चर्चा हो रही हो। हिंदुस्तान एक लोकतांत्रिक देश है। यहां हर किसी को हर क्षेत्र में यथासम्भव क्षमता और यथासम्भव योग्यता के हिसाब से फर्जीवाड़े का हक है। भगवान के लिए आप उंगली क्रिकेट मत खेलें। उंगली उठाने और करने का काम किसी और पर छोड़ दें।

शुक्रवार, 16 अप्रैल 2010

थरूर को बख़्श दो!

मज़बूत मंत्री अगर सरकार की ज़रूरत होता है तो विवादित मंत्री विपक्ष की। ऐसे में जब बीजेपी बार-बार ये मांग करती है कि शशि थरूर इस्तीफा दें, तो मुझे तरस आता है। उसकी मांग सोचने पर मजबूर करती है कि क्या वो वाकई इस्तीफे को लेकर गंभीर है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में अगर विपक्ष का यही काम है कि वो वक़्त-वक़्त पर सरकार को शर्मिंदा करे, नीतियों को लेकर उसे कटघरे में खड़ा करे तो ये फिर ये काम तो थरूर बीजेपी से कहीं बेहतर कर रहे हैं।

कुछ साल पहले एक अंतरराष्ट्रीय बल्लेबाज़ ने अनौपचारिक बातचीत में मुझे कहा था कि जैसे ही विपक्षी टीम किसी घटिया गेंदबाज़ को बॉलिंग पर लगाती थी तो मेरी कोशिश होती थी कि उसके ओवर में एक-दो से ज़्यादा चौके न मारे जाएं। उनका कहना था कि ऐसे गेंदबाज़ की एक बार में ज़्यादा पिटाई करने का नुकसान ये होता था कि कप्तान फिर उसे दोबारा गेंद ही नहीं देता था।

ठीक इसी तरह जब भी बीजेपी शशि थरूर मामले पर उनके इस्तीफे को लेकर दबाव बनाए तो उसे ये ध्यान रखना चाहिए कि उसे किस हद तक जाना है। अगर वाकई ज्यादा दबाव बना दिया तो हो सकता है मजबूर होकर सरकार उनसे इस्तीफा मांग ले।

ऐसे ही सबक की ज़रूरत मीडिया को भी है। क्या ज़रूरत है हर बार टीवी पर ये बताने की इनका तो विवादों से पुराना नाता रहा है। ये तो कुछ न कुछ बोलते ही रहते हैं। एक बेलगाम मंत्री अगर विपक्ष की ज़रूरत है तो क्या बड़बोला मंत्री मीडिया की ज़रूरत नहीं है। क्या चैनल महिला आरक्षण के पक्ष में दी गई अच्छी दलीलों से चलेंगे। जी नहीं। यहां ये समझने की ज़रूरत है कि जिस दौर में मनोरजंन ही ख़बर बन गया हो, वहां सबसे बड़ी ख़बर भी वही बन सकता है जिसका मनोरंजन सूचकांक ज्यादा है। और एक अच्छे विवाद से बड़ा मनोरंजन और भला क्या हो सकता है! क्या आइटम मंत्रियों की इस देश को कोई ज़रूरत नहीं है।

शुक्रवार, 9 अप्रैल 2010

विरोधियों का डब्ल फॉल्ट!

जब से सानिया मिर्ज़ा ने शोएब मलिक से शादी का एलान किया है लोग तरह-तरह की बातें कर रहे हैं। कुछ का कहना है कि ज्ञात इतिहास में भारत को पहुंचाया गया ये इकलौता ऐसा नुकसान है जिसके बारे में हम दावे से कह सकते हैं कि इसके पीछे पाकिस्तान का हाथ है! वहीं पाकिस्तानी इस बात पर खुश हैं कि भले ही आइपीएल ने ग्यारह पाकिस्तानी खिलाड़ियों को नकारा हो, लेकिन सानिया ने तो एक अरब दस करोड़ भारतीय को नकार के एक पाकिस्तानी को चुना है। वहीं शोएब विरोधियों का कहना है कि सात साल के करियर में उन्होंने जितनी लड़कियों को उन्होंने छकाया है अगर गेंदबाज़ी से उतने बल्लेबाज़ों को छकाया होता तो कहीं के कहीं होते।

इसके अलावा न जाने कितनी बातें दोनों मुल्कों में इन दोनों को लेकर हो रही हैं। मगर सवाल ये है कि इस सबके बीच क्या किसी ने भी असली सानिया और असली टैनिस फैन का पक्ष जानने की कोशिश की।

सानिया का असली फैन किसी पाकिस्तानी या कजाकिस्तानी ही नहीं, वो तो उसकी शादी के ही खिलाफ हैं। जब से उसने ख़बर सुनी है उसे यही लग रहा है कि उसके साथ धोखा हुआ है! सिर्फ सानिया की ख़ातिर बरसों से टेनिस देखते आ रहे इस फैन ने अब टेनिस और सानिया दोनों को ही न देखने की क़सम खा ली है। टेनिस से तो उसका वही सम्बन्ध रहा है जो उदय चोपड़ा का एक्टिंग और राखी सावंत का सौम्यता से है। ऐसे में विरोध इस बात पर करना चाहिए कि भारत में टेनिस की लोकप्रियता के खा़तिर सानिया अभी शादी न करे या फिर कभी शादी न करे। हो सके तो पाकिस्तान सरकार को पेशकश की जाए कि चाहो तो कसाब ले लो, मगर हमारी लड़की हमें लौटा दो!

मगर अफसोस इस मोर्चे पर कोई विरोध दिखाई नहीं देता। उल्टे हम इस बात पर बहस कर रहे हैं कि सानिया को शादी के बाद भारत के लिए खेलना चाहिए या नहीं। दरअसल जो टेनिस के जानकार हैं वो तो मानते हैं कि जैसी टेनिस सानिया अभी खेल रही हैं हमें तो उल्टे ये ज़िद्द करनी चाहिए कि सानिया चाहे तो भी अब हम उसे अब भारत की ओर से नहीं खेलने देंगे। अब तो उसे पाकिस्तान से ही खेलना पड़ेगा! हम नहीं चाहते कि अंतरराष्ट्रीय स्तर वो भारत की और भद्द पिटवाए। खुदा के लिए ये काम हमारी हॉकी टीम के लिए छोड़ दो।....मगर अफसोस इस फ्रंट पर भी कोई विरोध नहीं उठाई जा रही है। आख़िर पेशेवर अंसतुष्ट कब ये बात समझेंगे कि किसी बात पर विरोध करना और किस पर नहीं!

गुरुवार, 1 अप्रैल 2010

महंगाई के रास्ते मोक्ष! (व्यंग्य)

सरकारों को लेकर हमारी नाराज़गी हमेशा बनी रहती है। महंगाई से लेकर भ्रष्टाचार तक हर चीज़ के लिए हम उसे ज़िम्मेदार मानते हैं। हर पार्टी हमें अपनी दुश्मन लगती है। अपनी हर तकलीफ का श्रेय हम उसे देते हैं। मगर ये सब कहतें वक़्त हम शायद ये भूल जाते हैं कि सरकार जो कुछ करती है, हमारी बेहतरी के लिए करती हैं। हर संभव तरीके से हमारा जीना हराम कर दरअसल वो इस जीवन से ही हमारा मोहभंग करवाना चाहती है!

नाम न छापने की शर्त पर एक नेता ने कहा भी कि दरअसल हम चाहते हैं कि आम आदमी जीवन की व्यर्थता को समझे। इसलिए अपने स्तर पर हमसे जो बन पड़ता है, हम करते हैं। भले ही वो सब्ज़ियों से लेकर रसोई गैस के दाम बढ़ाने हों या फिर पानी-बिजली की कटौती हो। हमारी कोशिश रहती है कि आम आदमी का वो हाल करें कि उसे अपने पैदा होने पर अफसोस हो और जिस पल उसके अंदर ये भाव जागृत उसी क्षण उसे मोक्ष का ख्याल आएगा। जन्म-मरन के झंझट से मुक्ति का, मोक्ष ही उसका एक रास्ता दिखेगा। वो सद्कर्मों की तरफ मुड़ेगा, ईश्वर में उसकी आस्था गहरी होगी।

मैंने बीच में टोका, नेताजी आप कैसी बात करते हैं, समाजशास्त्र का नियम है कि समस्या बढेंगी तो समाज में अपराध भी बढ़ेगा। फिर आप कैसे कह सकते हैं कि भूखा और बेरोज़गार इंसान ईश्वर की तलाश में घर से निकलेगा। भूखे पेट तो आदमी शर्ट के बटन नहीं बंद कर सकता वो भला मोक्ष की क्या सोचेगा? नेताजी- तो तुम्हें क्या लगता है हम यहीं उसका जीवन स्वर्ग कर, उसे धर्म के रास्ते से हटा दें। मोक्ष की तलाश तो आम आदमी को करनी ही होगी...यही उसके लिए बेहतर है मगर इससे पहले उसे जीवन से मुक्ति कैसे मिले, उसका इंतज़ाम हम कर देंगे!