बीस-बीस के खेल में सामने आई चार सौ बीसी मेरे लिए उतनी उत्सुकता का विषय नहीं है, जितना इस चार सौ बीसी पर नेताओं की चिंता। लालू, मुलायम जैसे नेता क्रिकेट की बर्बादी पर जब संसद में आंसू बहाते हैं तो इसे देख मगरमच्छ तक असली आंसू बहाने पर मजबूर होता है। चिंता को वाजिब पाकर नहीं, अभिनय में इनके हाथों मात खाकर।
मैं सोचता हूं कि कैसे ये लोग, जिनके खाते में अपने-अपने राज्यों की बीस-बीस साल की बर्बादी है, आज महज बीस-बीस ओवर के एक खेल की बर्बादी पर इतने दुखी हैं। ढाई सौ किलो वजनी शख्स स्वस्थ रहें, मस्त रहें विषय पर जोरदार भाषण दे रहा है।
मैं सोचता हूं कि ये नेता आइपीएल में हुए फर्जीवाड़े को लेकर इतना दुखी क्यों है? क्या उन्हें इस बात का दुख है कि ये फर्जीवाड़ा उनके हाथों नहीं हुआ। क्या उन्हें इस बात की तकलीफ है कि जब धंधेबाजों को ही खेल चलाना है तो हम क्यों नहीं चला सकते? जब हम देश बेच सकते हैं, तो खेल क्यों नही। या फिर उन्हें इस बात का गुस्सा है कि ऐसे खेल का क्या फायदा जिसमें यादव के लड़के को दूसरे के लिए तौलिया ले कर भागना पड़े।
मैं सुप्रीम कोर्ट से गुजारिश करूंगा कि नेताओं को ऐसी किसी भी सभा में घुसने या ऐसे किसी भी मंच पर चढ़ने से रोका जाए जहां नैतिकता, सदाचार या राष्ट्र निर्माण जैसे विषय पर कोई चर्चा हो रही हो। हिंदुस्तान एक लोकतांत्रिक देश है। यहां हर किसी को हर क्षेत्र में यथासम्भव क्षमता और यथासम्भव योग्यता के हिसाब से फर्जीवाड़े का हक है। भगवान के लिए आप उंगली क्रिकेट मत खेलें। उंगली उठाने और करने का काम किसी और पर छोड़ दें।
गुरुवार, 29 अप्रैल 2010
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5 टिप्पणियां:
करारी सी बात,सहलाने के साथ!
कुंवर जी,
यह उंगली आज दैनिक हिन्दुस्तान में सुबह ही पढ़ ली थी, बधाई।
हमारा देश ऊँगली प्रधान देश है..
hello
waah...maja aa gaya subah subah :)
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