शनिवार, 25 सितंबर 2010

सुरेश कलमाडी को मेरी श्रद्धांजलि!!!

दोस्तों, कलमाडी ने भले ही फजीहत की ज़िम्मेदारी कल ली हो मगर इस देश ने उनकी फजीहत का ठेका बहुत पहले ही ले लिया था...हालांकि ये बात जब मैंने कलमाडी को बताई तो उनका कहना था कि किसने दिया तुम्हें ये ठेका...सारे ठेके तो मैंने खुद अपने रिश्तेदारों को दिए हैं!!!बहरहाल पिछले दिनों FACEBOOK पर कलमाडी पर कुछ ONE LINER और JOKE लिखे हैं...आप भी मुलाहिज़ा फरमाएं...

पेट ख़राब होने की शिकायत ले कलमाडी डॉक्टर के पास पहुंचे...डॉक्टर-क्या आजकल बाहर से ज़्यादा खाना हो रहा है...कुछ देर सोचने के बाद कलमाडी....हां सर, घर से बाहर निकलते ही मुझे गालियां खानी पड़ती हैं!!!.................डॉक्टर...ओफ्फ फो....ये तो ऐसी प्रॉब्लम है...जिस पर मैं चाहकर भी आपको 'परहेज़' नहीं बता सकता!!!!!!!

कलमाडी ने साधा इंग्लैंड पर निशाना....कहा अंग्रेज़ों ने अगर हमें वक़्त पर आज़ाद कर दिया होता तो आज इतने काम अधूरे नहीं पड़े होते!!!

कलमाडी 'साहब' घर पहुंचे तो काफी भीग चुके थे...बीवी ने चौंक कर पूछा...इतना भीगकर कहां से आ रहे हैं...क्या बाहर बारिश हो रही है...कलमाड़ी-नहीं....तो फिर...कलमाड़ी-क्या बताऊं...जहां से भी गुज़र रहा हूं...लोग थू-थू कर रहेहैं!!!!!

कलमाडी साहब ने अपना मेल बॉक्स चैक किया...जो मैसेज उसमें थे उसकी डिटेल नीचे दे रहा हूं
1.ASIF ALI ZARDARI & OSAMA BIN LADEN WANT TO BE YOUR FRIEND ON FACEBOOK 2.RAKHI SAWANT,RAHUL MAHAJAN & RAJA CHAUDHARY ARE NOW FOLLOWING YOU ON TWITTER 3 LATE HARSHAD MEHTA &VEERAPAN WANT TO BE YOUR PAL FROM HELL & LAST BUT NOT THE LEA...ST...PAKISTAN CRICKET TEAM INVITES YOU TO BE THEIR BETTING COACH!!!

वैधानिक चेतावनी:-गर्भवती महिलाएं और कमज़ोर दिल के लोग इसे न पढें....पीपली लाइव को ऑस्कर में भेजे जाने के बाद कलमाडी ने मांग की है कि कॉमनवेल्थ थीम सांग को भी ऑस्कर के लिए भेजा जाए...उसमें क्या बुराई है!!!!
रहमान का कहना है कि उन्होंने पांच करोड़ थीम सॉंग कम्पोज़ करने के नहीं, खेलों से जुड़ अपनी छवि ख़राब करवाने के लिए है...गाना तो कलमाडी के ड्राईवर ने बनाया है!!!

BREAKING NEWS...कलमाडी को 'लोकप्रियता' का अंदाज़ा मोबाइल कम्पनियों को भी हो गया है...उनका फोन BUSY जाने पर अब आवाज़ आती है...जिस ज़लील आदमी से आप बात करना चाह रहे हैं वो अभी व्यस्त है...पता नहीं स्साला क्या कर रहा है!!

ये तय हुआ कि कलमाडी को सज़ा-ए-मौत दी जाए...मगर दिक्कत ये है कि उन्हें फांसी पर लटकाने के लिए जल्लाद कहां से लाया जाए...दुनिया के सबसे बड़े जल्लाद तो वो खुद हैं...सरकार खुद कसाब को फांसी पर लटकाने के लिए कलमाडी की मदद लेने वाली थी... रही बात ज़हर का इंजेक्शन देने की...अब बाहर से उन्हें ज़हर देकर मारने की बात तो बहुत बचकानी है!!! कलमाडी ने तो खुद एक्सिडेंट में घायल दो नेवलों को ज़हर की दो बोतल देकर उनकी जान बचाई है...आख़िर भाई ही भाई के काम आता है!!

कलमाडी अपने नाम में मौजूद'कल' की वजह से भी सारे काम 'कल' पर टालते रहे हैं...उनका नाम या तो आजमाडी या फिर अभीमाडी होना चाहिए था!!! मैं जानता हूं कि ये घटिया पैरेडी है मगर जिस आदमी पर की जा रही है...उसे भी तो देखो!

कलमाडी की 'IMAGE' इस हद तक ख़राब हो चुकी है कि किसी EDITING SOFTWARE में भी IMPROVE नहीं हो सकती!!!

बेइज्ज़ती की इंतहा...कलमाडी के कुत्ते ने उन्हें देख पूंछ हिलाना बंद कर दिया है!

दोस्तों, रात को जूतों की एक माला कलमाडी के पोस्टर पर डाली थी...सुबह उठ कर देखा रहा हूं तो उसमें से दो जूते गायब हैं!
पेंटर-WHITEWASH करवाएंगे...कलमाडी-नहीं, अभी पिछले महीने ही घर में करवाया है...पेंटर-सर मैं घर की नहीं आपके मुंह की बात कर रहा हूं!!!

BREAKING NEWS...कलमाडी की बढ़ती 'बदनामी' से प्रभावित हो कांग्रेस ने तय किया है कि नए-पुराने सभी पाप उन्हीं के सिर डाले जाएं...इसी कड़ी में पहला शिगुफा..........अर्जुन सिंह या राजीव गांधी नहीं...एंडरसन को भगाने के पीछे सुरेश कलमाडी का हाथ था!!!

अधूरी तैयारियों से परेशान कलमाडी ने अपना सिर पीटा...कहा स्साला कोई भी अपना वादा नहीं निभाता...आतंकी कह गए थे...खेल नहीं होने देंगे...पता नहीं कहां रह गए???

BREAKING NEWS...ख़बर है कि पिछले तीन दिनों में एक लाख लोगों ने नाम परिवर्तन की सूचना अखबारों में दी है....और क्या ये महज़ इत्तेफाक है कि इन सभी के नाम सुरेश हैं!!!

BREAKING NEWS...साइक्लिंग इवेंट से इतने खिलाड़ियों ने नाम वापिस ले लिए हैं कि अब इस स्पर्धा में कांस्य पदक नहीं दिया जा सकता...वजह...सिर्फ दो खिलाडी़ ही भाग ले रहे हैं!!!

BREAKING NEWS...इंग्लैंड ने कहा है कि जब तक खेल गांव की हालत नहीं सुधरती वे होटल में ही ठहरेंगे...ये सुन कलमाडी ने कल से ही इंग्लैंड के फ्लैट किराए पर चढ़ा दिए हैं!
बाहरी लोगों के दिल्ली आने से परेशान शीला दीक्षित के लिए इससे बड़ी खुशख़बरी और क्या हो सकती है कि एक-के-बाद-एक विदेशी खिलाड़ी दिल्ली आने से मना कर रहे हैं!!!

SWISS GOVERNMENT को शक़ है कि SWISS BANK ने कलमाडी के पास SAVING ACCOUNT खुलवा रखा है!

BREAKING NEWS....कलमाडी को काटने के लिए मच्छरों का कल एक एवेंट होना था...मगर...आख़िरी वक़्त पर ज्यादातर मच्छरों ने अपना नाम वापिस ले लिया है!

कुकर्मों के लिए माफी मांगते हुए सुरेश कलमाडी भगवान की मूर्ति के सामने दंडवत हो गए...मन में माफी मांगी...आंख खोली तो देखा...भगवान खुद कलमाडी के सामने दंडवत थे...बोला...बच्चा...रहम करो...जाओ यहां से...
किसी ने GOOGLE में 'SURESH KALMADI' टाइप किया...सामने से जवाब आया...बच्चा... दुनिया ने इस पर 'रिसर्च' कर ली और तुम अब तक इसे 'सर्च' करने में लगे हो!!

BREAKING NEWS...कलमाडी का कहना है कि उनके साथ धोखा हुआ है...पहले उन्हें बताया गया था कि खेल दो हज़ार दस में नहीं दस हज़ार दो में होने हैं!

BREAKING NEWS...भारत में हो रही कलमाडी की ज़लालत को देखते हुए एंजलिना जोली ने उन्हें ADOPT करने का फैसला किया है!!!

कलमाडी ने हाथ दे कर रिक्शे वाले को रोका और पूछा...बस स्टैंड चलना है...कितने पैसे दोगे???

पाकिस्तान ने प्रस्ताव दिया है कि अगर विदेशी खिलाड़ी भारत आने में सुरक्षित महसूस नहीं कर रहे तो COMMONWEALTH GAMES पाकिस्तान में करवा खेल गांव की गंदगी देखकर इंग्लैंड के कुछ अधिकारियों ने सवाल पूछा कि क्या स्लमडॉग मिलिनेयर की शूटिंग यहीं हुई थी???

आदत से मजबूर अधिकारियों ने अधूरे कामों को पूरा करने के लिए नई DEADLINE 31 अक्टूबर तय कर दी थी!!!
NCERT ने कक्षा छह की किताब से 'चालाक लोमड़ी' का चैप्टर निकाल उसकी जगह 'चालाक कलमाडी' का नया चैप्टर जोड दिया है मगर....कुछ लोगों का सोचना है कि इतने छोटे बच्चों को ये सब पढ़ाना क्या ठीक रहेगा?

BREAKING NEWS...कलमाडी को भारत रत्न दिए जाने की मांग के बीच पाक सरकार ने कलमाडी को निशान-ए-पाकिस्तान सम्मान से नवज़ाने का फैसला किया है...उसका मानना है कि भारत की जितनी बदनामी वो पिछले साठ सालों में नहीं कर पाए उससे ज्यादा इस शख्स ने पिछले छह दिनों में करवा दी है!

इतने प्रस्तावों के बीच अयोध्या विवाद पर एक और प्रस्ताव...न मंदिर...न मस्जिद...कलमाडी का कहना है कि विवादित ज़मीन पर नया खेल गांव बनाया जाए!

आज़ादी की लड़ाई के सबसे बड़े सिपाही महात्मा गांधी के जन्मदिन के अगले दिन... गुलामी के सबसे बड़े प्रतीक कॉमनवेल्थ खेलों का जश्न शुरू हो रहा है...क्या इससे बड़ी शर्मिंदगी कुछ और हो सकती है!

HEART BREAKING NEWS.. अफ्रीकी देश TOKELAU ने भी कॉमनवेल्थ खेलों में न आने की धमकी दी है...अब और बर्दाश्त नहीं कर सकता...जा रहा हूं...क्वींस बैटन से आत्मदाह करने...
टूटती छतें, ढहते पुल, ऊफनती यमुना...BREAKING NEWS...विदेशी खिलाड़ियों के बाद विदेशी आतंकियों ने भी सुरक्षा कारणों से दिल्ली आने से मना कर दिया है!!!

कॉमनवेल्थ से जुड़ी तमाम बुरी ख़बरें देखकर दिल्ली शहर डूब मरना चाहता है और क्या ये महज़ इत्तेफाक है कि यमुना में कभी भी बाढ़ आ सकती है!

दिल्ली की सुरक्षा ख़ामी का इससे बड़ा सबूत और क्या हो सकता है कि सुरेश कलमाडी अब तक ज़िंदा घूम रहा है!
सोमालियाई लूटेरों ने कलमाडी को CHIEF CONSULTANT नियुक्त किया!

नाम पर सहमति न बन पाने के कारण कलमाडी साहब के हाथ से एक कुकरी शो का ऑफर निकल गया...चैनल शो का नाम 'खाना-खजाना' रखना चाहता था और कलमाडी इस ज़िद्द पर अड़े थे कि उसका नाम 'खाना खा जाना' रखा जाए!
वेटर-साहब, क्या खाएंगे?

कलमाडी-स्साला, अब भी तुम्हें ये बताना पड़ेगा कि हम क्या खाएंगे।

दिल्ली की रिकॉर्डतोड़ बारिश से प्रभावित हो, प्रधानमंत्री ने मणिशंकर अय्यर को बद्दुआ मामलों का प्रभारी बना दिया है!

कुकरी शो का ऑफर भले ही हाथ से निकल गया हो मगर कलमाडी साहब को FAIR & LOVELY का विज्ञापन मिल गया है...पंचलाइन है...धूप ही नहीं, कर्मों से काले हुए मुंह भी करे साफ!

कॉमनवेल्थ खेलों को भारत की शान बताने वाले अफसरों की ख्वाहिश है कि उनको मुखाग्नि भी क्वींस बेटन से दी जाए!

कलमाडी साहब दिल के बड़े नेक हैं...मैंने उनसे कहा सर, माफ कर दो... मैंने आप पर इतने जोक बनाए...वो बोले बेटा, मैंने कुछ 'नहीं बनाने' पर भी माफी नहीं मांगी और तुम 'बनाने' पर मांग रहे हो!!!

"सुरेश कलमाडी एक ईमानदार, कुशल, मेहनती और देशभक्त आदमी है। उस जैसा सच्चा आदमी आज तक इस देश ने नहीं देखा...पूरे देश को उस पर नाज़ है" ....ऐसी ही फनी और मज़ेदार चुटकुलों के लिए SMS करें...5467 पर!

AND LAST BUT NOT THE LEAST…..कलमाडी की 'लोकप्रियता' का आलम ये है कि लोग दिल्ली के बाद मुन्नी की बदनामी के लिए भी उन्हें ही कसूरवार ठहरा रहे हैं!!!

मंगलवार, 21 सितंबर 2010

भरोसेमंद सुरक्षा!

खेलों से पहले दिल्ली में सुरक्षा कड़ी कर दी गई है। किसी भी संभावित रासायनिक और आणविक हमले से बचाने के शहर के चप्पे-चप्पे पर पुलिसवाले ‘लाठियां’ लिए मौजूद हैं। सिर्फ लाठी के सहारे दुश्मन को ख़ाक कर देने के ख़ाकी वर्दी के कांफिडेंस पर मैंने एक पुलिसवाले से बात की। श्रीमान, रामलीला की तरह खेलों से पहले भी आप सिर्फ लाठी के सहारे हालात पर नज़र रखे हुए हैं...क्या वजह है? देखिए, मुझे नहीं लगता कि हमें इसके अलावा किसी और चीज़ के ज़रूरत है। जहां तक रिक्शे से हवा निकालने की बात है तो उसके लिए किसी एके-47 की ज़रूरत नहीं पड़ती, उसके लिए हमारे हाथ ही काफी है। रही बात ठेले वालों की... उन स्सालों ने अगर कोई बदमाशी की तो उनके लिए हमारे पास ये लठ है...तो आपको लगता है कि सुरक्षा के लिहाज़ से सबसे बड़ी चुनौती रिक्शे और ठेले वाले हैं। जी हां, बिल्कुल।

और जितने बड़े बदमाश हैं, उनसे कैसे निपटेंगे? जनाब हम पुलिसवाले हैं...बदमाशों को हम आपसे ज़्यादा बेहतर समझते हैं। गुंडे-बदमाश तभी आक्रामक होते हैं, जब उन्हें जायज़ हक़ नहीं मिलता, मुख्यधारा में उनके लिए कोई जगह नहीं होती। मगर प्रभु कृपा से हमारी व्यवस्था में ऐसी कोई असुरक्षा नहीं है। माल में हिस्सेदारी ले, हम उन्हें चोरियां करने देते हैं। अपराध के मुताबिक पैसा खा, मामला दबा दिया जाता है। सबूत इक्ट्ठा न कर, उन्हें ज़मानत दिलवा दी जाती है। अब जब इतनी फैसिलिटीज़ उन्हें दी जा रही हैं, तो क्या उनकी बुद्धि भ्रष्ट हुई है, जो वो हमारे लिए कोई सिर दर्द पैदा करेंगे। लेकिन सर, आपको क्या लगता है...अगर आतंकी आए... तो वो क्या लाठियां ला, आपके साथ डांडिया खेलने आएंगे...उनका क्या करेंगे आप। पुलिसवाला-ऐसा कुछ नहीं होगा..हमें पूरा भरोसा। मगर किस पर...उसी पर... जिसके भरोसे ये देश चल रहा है...कौन...भगवान!

शनिवार, 11 सितंबर 2010

भावनाओं को समझो!

स्पॉट फिक्सिंग कांड के बाद पूरी दुनिया में पाक खिलाड़ियों पर थू-थू हो रही है। हालात इतने बिगड़ गए हैं कि पाकिस्तान के बाद इंग्लैंड में भी बाढ़ की नौबत आ गई है! खुद पाकिस्तान में जो इलाके बाढ़ से बच गए थे वो अब इस मामले की शर्मिंदगी से डूब गए हैं। तरह-तरह की बातें की जा रही हैं। कुछ का कहना है कि बीसीसीआई ने 2015 तक का भारतीय टीम का कैलेंडर जारी कर रखा है तो वहीं पीसीबी ने 2015 तक के पाक टीम के नतीजे। और भी न जाने क्या कुछ....हर कोई नो बॉल के बदले नोट लेने की आलोचना कर रहा है।

मगर मैं पूछता हूं कि इसमें ग़लत क्या है? दुनिया भर के गेंदबाज़ों को नो बॉल के बदले फ्री हिट देनी पड़ती है, अब इसी काम के लिए कोई उन्हें पैसा दे रहा है, तो क्या प्रॉब्लम है। आख़िर आदमी सब करता तो पेट की ख़ातिर ही है। वैसे भी पाकिस्तानी खिलाड़ियों को जब से आईपीएल में भी नहीं चुना गया, उनमें एक तिलमिलाहट थी...जैसे-तैसे खुद को बेच कर दिखाना था। सो वो बिक गए। मगर अफसोस दुनिया तो दूर, खुद पाकिस्तानी सरकार उनकी इस भावना को समझ नहीं रही। समझती तो फिक्सिंग कांड को भारत को ‘मुहंतोड़ जवाब’ के रूप में देखती।

दूसरा ये कि अगर वो पैसे लेकर मैच हारे भी तो इसमें बुराई क्या है। ये समझना होगा कि किसी भी देश की कला-संस्कृति और खेल वगैरह को वहां की राजनीति का आईना होना चाहिए। ख़ासतौर पर किसी भी अराजक देश में तो हुक्मरानों को ख़ासतौर पर नज़र रखनी चाहिए कि कुछ भी अच्छा न होने पाए। फिल्में बनें तो दूसरे देश की नक़ल कर बनें। खिलाड़ी खेलें तो पैसा लेकर हारें। परमाणु वैज्ञानिक एक ठंडी बीयर के बदलें परमाणु तकनीक बेच दें। इससे होगा ये कि जब हर जगह गुड़-गोबर होगा तो लोग नेताओं पर अलग से गुस्सा नहीं होंगे। ये नहीं सोचेंगे कि हमारे यहां हर जगह काबिल लोग भरे हुए हैं, बस नेता ही भ्रष्ट है। उन्हें बैनिफिट ऑफ डाउट मिल जाएगा। उसी तरह जैसे शकूर राणा के वक़्त पाक बल्लेबाज़ों को अक्सर मिल जाया करता था!

(दैनिक हिंदुस्तान 11, सितम्बर, 2010)

और अंत में...

कलमाडी 'साहब' घर पहुंचे तो काफी भीग चुके थे...बीवी ने चौंक कर पूछा...इतना भीग कर कहां से आ रहे हैं...क्या बाहर बारिश हो रही है...कलमाड़ी-नहीं....तो फिर...कलमाड़ी-क्या बताऊं...जहां से भी गुज़र रहा हूं...लोग थू-थू कर रहे हैं!!!!!

शुक्रवार, 10 सितंबर 2010

एंटरटेनमेंट के लिए कुछ भी चाहेगा!

यह रविवार की एक औसत सुबह है। रिमोट को सारथी बना मैं टीवी पर कुछ सार्थक ढूंढ़ रहा हूं। पर ज़्यादातर टीवी कार्यक्रम मेरी सुबह से भी ज़्यादा औसत हैं। धार्मिक चैनलों पर बाबा महिलाओं को शांति और संयम का पाठ पढ़ा रहे हैं। न्यूज़ चैनल बता रहे हैं कि कैसे एक बाबा ने संयम का पाठ पढ़ने आई शिष्या को एक्सट्रा क्लास देने की कोशिश की। वहीं मनोरंजन चैनल्स पर सास-बहुएं एक-दूसरे को नीचा दिखाने के ऊंचे काम में लगी हैं, दूसरों का खून पी अपना हीमोग्लोबीन बढ़ा रही हैं। कल्पना के कैनवस पर हर क्षण षड्यंत्रों के दृश्य उकेर रही हैं। कभी-कभी हैरानी होती है कि धारावाहिकों में जिन परिवारों की कहानी देख हम अपना मनोरंजन करते हैं, खुद उन परिवारों में कितना तनाव है! आखिर क्या वजह है कि दूसरे का तनाव हमें आनन्द देता है। किसी का झगड़ा देख हम एंटरटेन होते हैं। क्या हम इतना गिर गए हैं...हमारे पास कुछ और काम नहीं बचा...इससे पहले कि मैं किसी महान् नतीजे पर पहुंचता, मुझे बाहर से झगड़ने की आवाज़ सुनाई देती है।

टीवी बंद कर मैं बालकनी में आता हूं। सोसायटी के दूसरे छोर पर एक महिला ज़ोर-ज़ोर से चीख रही है। उसके सास-ससुर बालकनी में चिल्ला रहे हैं तो वो अपार्टमेंट के नीचे। झगड़े के सुर के साथ-साथ दर्शकों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। शादी के निमंत्रण पत्र की तर्ज पर लोग ‘सपरिवार’ बालकनी में आ गए हैं। बीवी भी गैस बंद कर बाहर आ गई है। मैं कॉन्‍संट्रेट करता हूं मगर कुछ समझ नहीं पा रहा हूं। जो शब्द कान में पड़ रहे हैं, उनसे मेरी पहचान नहीं है। बीवी कहती है...साउथ इंडियन हैं... तमिल या तेलुगू में झगड़ रहे हैं। मुझे खीझ चढ़ती है। अपनी बेबसी पर रोना आता है। ऐसा लगता है कि बिना सबटाइटल के रजनीकांत की कोई एक्शन फिल्म देख रहा हूं। मैं आपा खोने लगता हूं। सोचता हूं कि नीचे जाकर उनसे इसी बात पर झगड़ूं। कहूं कि इतने लोग बीवी-बच्चों समेत तुम्हारा झगड़ा देख रहे हैं। खुद मेरी बीवी ने दो बार अपनी मां तक का फोन नहीं उठाया। बच्चा आधे घंटे से नाश्ते के लिए रो रहा है। हम लोग क्या पागल हैं जो तुम्हारे चक्कर में अपना संडे ख़राब कर रहे हैं। झगड़ना है तो हिंदी में झगड़ो। वरना अंदर जाकर लड़ो-मरो।

मगर इससे पहले कि मैं नीचे जाने के लिए चप्पल खोजता, महिला गाड़ी स्टार्ट कर वहां से चली गई। ये देख पूरी सोसायटी में निराशा छा गई। मैं भी भारी अवसाद में था। अंदर आया। टीवी चलाया। वही सास-बहू के सीरियल वाले झगड़े। फिर वही ख़्याल...यार, ये लोग हमेशा झगड़ते क्यों रहते हैं...लोगों को इनका झगड़ा देखने में मज़ा भी क्या आता है मगर मन में यही बात फिर दोहराई तो शर्म आने लगी।

यह सच है कि सीरियल के न सही, पर असल झगड़े देखने में मुझे भी खूब आनन्द आता है। मगर गुस्सा तब आता है, जब ये झगड़े अंजाम तक नहीं पहुंचते। दिल्ली में ब्लू लाइन के सफर के दौरान मैंने सैंकड़ों झगड़े देखे। कंडक्टर ‘सवारी’ से टिकट लेने के लिए कहता। वो बाद में लेने की ज़िद्द करती। फिर लम्बी बहस होती। सामर्थ्य के मुताबिक सुर ऊंचा किया जाता। संस्कारों और सामान्य ज्ञान के आधार पर बेहिसाब गालियां दी जाती। ये देख रूटीन लाइफ से बोर हो चुकी ‘सवारियों’ की आंखों में चमक दौड़ जाती। सब को लगता कि अब झगड़ा होगा। कुछ एक्साइटिंग देखने को मिलेगा। दोस्त-यारों को सुनाने के लिए एक किस्सा मिलेगा। मगर अफसोस...तभी नई सवारियां चढ़ने के साथ बात आई-गई हो जाती। इन सालों में न जाने ऐसी कितनी ही बहसें, जिनमें झगड़ा बनने की पूरी संभावना थी, मेरी आंखों के सामने आई-गई हुई हैं। मगर मैंने उम्मीद नहीं छोड़ी है। यह स्वीकारने में मुझे कोई शर्मिंदगी भी नहीं है। आख़िर इंसान मूलतः है तो जानवर ही जो सभ्य बनने की कोशिश कर रहा है। अब इस कोशिश से बोर हो, वो और उसके भीतर का जानवर कभी-कभार झगड़ा देख, मनोरंजन करना चाहें, तो क्या बुराई है! एंटरटेनमेंट के लिए जब कुछ भी करने में हर्ज नहीं, तो चाहने में क्या प्रॉब्लम है!

(नवभारत टाइम्स 10,सितम्बर,2010)

गुरुवार, 2 सितंबर 2010

मच्छर को बनाएं राष्ट्रीय कीट!

भारत में हम जिस भी चीज को राष्ट्रीय महत्व से जोड़ते है, कुछ समय बाद उसका अपने आप बेड़ा गर्क हो जाता है। हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है लेकिन देश में कुछ लोग सिर्फ इसलिए कत्ल किए जा रहे हैं कि वे हिंदी भाषी हैं। मोर हमारा राष्ट्रीय पक्षी है मगर आज हालत यह है कि सम्पूर्ण मोर बिरादरी जेड श्रेणी की सुरक्षा मांग रही है। हॉकी के एनकाउंटर के लिए हम भले ही के पी एस गिल को क्रेडिट दें या फिर हॉकी से जुड़ी तमाम संस्थाएं इसका श्रेय लें, मगर हॉकी की शहादत के पीछे असल वजह उसका राष्ट्रीय खेल होना ही है। वहीं खुद को राष्ट्रपिता का वारिस बताने वालों ने साठ साल से ' गांधी ' को तो पकड़ रखा है, लेकिन ' महात्मा ' को भूल बैठे हैं।


मतलब पहले किसी भी चीज को सिर-आंखों पर बैठाओ, फिर सिगरेट के ठूंठ की तरह पैरों तले मसल दो। मेरा मानना है कि जब यह सिद्धांत इतना सीधा है तो क्यों न हम तमाम बड़ी समस्याओं को राष्ट्रीय महत्व से जोड़ दें, वे खुद-ब-खुद खत्म हो जाएंगी। जैसे हाल-फिलहाल मच्छरों का भयंकर आतंक है। दिल्ली सरकार समझ नहीं पा रही कि कॉमनवेल्थ खेलों से पहले इनसे कैसे निपटा जाए। मेरा मानना है कि अगर हमें मच्छरों का हमेशा के लिए नामोनिशान मिटाना है तो उसे राष्ट्रीय कीट घोषित कर देना चाहिए।

सरकार घोषणा करे कि राष्ट्रीय कीट होने के नाते मच्छरों का संरक्षण किया जाए। उसे
'गंदगी बढ़ाओ, मच्छर बचाओ ' टाइप कैम्पेन चलाने चाहिए। निगम कर्मचारियों को आदेश दिए जाएं कि वे अपनी अकर्मण्यता में सुधार लाएं। जिस गली में पहले हफ्ते में दो बार झाडू लगती थी, वहां महीने में एक बार से ज्यादा झाडू न लगे। गंदगी बढ़ाने के लिए पॉलिथीन के इस्तेमाल को प्रोत्साहन दिया जाए ताकि अधूरी चौपट सीवर व्यवस्था पूरी तरह चौपट हो पाए। गटर-नालियां जितने उफान पर होंगी, उतनी तेजी से मच्छर बिरादरी फल-फूल पाएगी। मच्छर को चीतल के समान दर्जा दिया जाए और प्रावधान किया जाए कि एक मच्छर मारने पर पांच साल का सश्रम कारावास और दो लाख का आर्थिक दण्ड दिया जाएगा। कानून का आम आदमी में खौफ पैदा करने के लिए ' एक मच्छर आदमी को जेल भिजवा सकता है ' टाइप थ्रेट कैम्पेन भी चलाए जाएं। इसके लिए किसी बड़े स्टार की सहायता ली जा सकती है।
किसी सिलेब्रिटी को मच्छर अम्बेसडर घोषित किया जा सकता है। आप इसे कोरी बकवास न समझें। आपको जानकर हैरानी होगी कि जब इस योजना को मैंने सरकार के सामने रखा तो उसने फौरन देश के 156 जिलों में प्रायोगिक तौर पर इसे लागू भी कर दिया और जो नतीजे आए वे बेहद चौंकाने वाले थे।
निगम कर्मचारियों तक जैसे ही सरकार का फरमान पहुंचा उनका खून खौल उठा। उन्होंने तय किया कि अब वे कभी अपनी झाडू पर धूल नहीं चढ़ने देंगे। जो कर्मचारी पहले सड़क पर झाडू नहीं लगाते थे, वो खुंदक में अपने घर पर भी सुबह-शाम झाडू लगाने लगे। वहीं पॉलिथीन का ज्यादा इस्तेमाल करने के सरकारी आदेश के बाद महिलाएं पति की पुरानी पैंट का थैला बनाकर बाजार से सामान लाने लगीं। शाही घरानों के़ लड़कों ने, जो पहले जंगल में शेर का शिकार करने जाते थे, अब जीपों का मुंह शहर के गटरों की तरफ कर दिया। अब वह बंदूक के बजाय शिकार पर बीवी की चप्पलें ले जाने लगे और उनसे चुन-चुनकर मच्छर मारने लगे। इस सबके बीच उन लोगों की मौज हो गई जो एक वक्त कमजोर डील-डौल के चलते मच्छर कहलाते थे, अब वो इसे कॉम्प्लीमेंट की तरह लेने लगे।
खैर, नतीजा यह हुआ कि लागू करने के महज तीन महीने के भीतर ही योजना बुरी तरह फ्लॉप हो गई और सभी 156 जिले पूरी तरह मच्छरों से मुक्त करवा लिए गए। योजना की असफलता से उत्साहित कुछ लोगों ने प्रस्ताव रखा है कि इसी तर्ज पर भ्रष्टाचार को राष्ट्रीय आचरण और दलबदल को राष्ट्रीय खेल घोषित किया जाए। इसी तरह 'अतिथि देवो भव' का स्लोगन बदलकर 'अतिथि छेड़ो भव' किया जाए। ऐसा करने पर ही इन समस्याओं से मुक्ति मिल पाएगी।