सरकारों को लेकर हमारी नाराज़गी हमेशा बनी रहती है। महंगाई से लेकर भ्रष्टाचार तक हर चीज़ के लिए हम उसे ज़िम्मेदार मानते हैं। हर पार्टी हमें अपनी दुश्मन लगती है। अपनी हर तकलीफ का श्रेय हम उसे देते हैं। मगर ये सब कहतें वक़्त हम शायद ये भूल जाते हैं कि सरकार जो कुछ करती है, हमारी बेहतरी के लिए करती हैं। हर संभव तरीके से हमारा जीना हराम कर दरअसल वो इस जीवन से ही हमारा मोहभंग करवाना चाहती है!
नाम न छापने की शर्त पर एक नेता ने कहा भी कि दरअसल हम चाहते हैं कि आम आदमी जीवन की व्यर्थता को समझे। इसलिए अपने स्तर पर हमसे जो बन पड़ता है, हम करते हैं। भले ही वो सब्ज़ियों से लेकर रसोई गैस के दाम बढ़ाने हों या फिर पानी-बिजली की कटौती हो। हमारी कोशिश रहती है कि आम आदमी का वो हाल करें कि उसे अपने पैदा होने पर अफसोस हो और जिस पल उसके अंदर ये भाव जागृत उसी क्षण उसे मोक्ष का ख्याल आएगा। जन्म-मरन के झंझट से मुक्ति का, मोक्ष ही उसका एक रास्ता दिखेगा। वो सद्कर्मों की तरफ मुड़ेगा, ईश्वर में उसकी आस्था गहरी होगी।
मैंने बीच में टोका, नेताजी आप कैसी बात करते हैं, समाजशास्त्र का नियम है कि समस्या बढेंगी तो समाज में अपराध भी बढ़ेगा। फिर आप कैसे कह सकते हैं कि भूखा और बेरोज़गार इंसान ईश्वर की तलाश में घर से निकलेगा। भूखे पेट तो आदमी शर्ट के बटन नहीं बंद कर सकता वो भला मोक्ष की क्या सोचेगा? नेताजी- तो तुम्हें क्या लगता है हम यहीं उसका जीवन स्वर्ग कर, उसे धर्म के रास्ते से हटा दें। मोक्ष की तलाश तो आम आदमी को करनी ही होगी...यही उसके लिए बेहतर है मगर इससे पहले उसे जीवन से मुक्ति कैसे मिले, उसका इंतज़ाम हम कर देंगे!
गुरुवार, 1 अप्रैल 2010
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4 टिप्पणियां:
नाम न छापने की शर्त पर... पत्रकारिता में यह लाइन बड़ा कॉमन है.
मोक्ष की तलाश में जा रहे है.. वापस आकर टिपण्णी करेंगे
:) chitaa bhi apna paat bhi apni..kya baat hai...
एकदम सही कहा...एकदम एकदम सही...
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