दीपावली से पहले पुलिस ने इतनी जगह छापेमारी कर नकली मावा, नकली घी और नकली पनीर भारी मात्रा में पकड़ा। मगर, वो संगठित अपराधियों की ऐसी जमात नहीं पकड़ पाई, जो हर दीपावली लाखों-करोड़ों लोगों का जीना हराम करती है। ये कौम है-मोबाइल मैसेज माफिया की। हर त्योहार से पहले ये लोग हिंदी-अंग्रेजी के सैंकड़ों मैसेज फॉरवर्ड कर समाज में हाहाकार मचा देते हैं। घड़ी की सुई के बारह पर पहुंचते ही परिचितों के इनबॉक्सों पर हमला कर देते हैं। जिन लोगों को अंग्रेज़ी में ‘हाय’ लिखना नहीं आता, वो तीन-तीन पंक्तियों में शेक्सपियराना अंदाज़ में बधाई संदेश लिखते हैं। ऐसे संदेश मिलते ही मेरे तन-बदन में आग लग जाती है। दिल करता है कि उसी वक़्त स्कूटर पकड़ उस आदमी के घर जाऊं और उसे चप्पलों से पीटना शुरू कर दूं। कॉलर पकड़ उसे धमकाऊं कि आइंदा तुमने ऐसा कोई बनावटी बधाई संदेश फॉरवर्ड किया तो असली बम फेंक तुम्हारी जान ले लूंगा।
मैसेज फॉरवर्ड करने के पीछे भेजने वाले के छिपे प्यार और मानसिकता को मैं कभी नहीं समझ पाया। दोस्त-रिश्तेदारों को ऐसे निराले संदेश भेज हमें ये थोड़ा ही न बताना है कि अगला ‘निराला’ मैं ही हूं। वैसे भी जिसे संदेश भेजा जा रहा है, वो आपका दोस्त या रिश्तेदार ही है न कि कोई बड़ा प्रकाशक, जिसे आप अपनी काव्य-प्रतिभा से चमत्कृत कर किताब छपवाने की भूमिका बांध रहे हैं। ऐसा ही एक संदेश कहता है-आपकी उम्मीदों का प्रकाश, सफलता का आकाश और लक्ष्मी का वास...जीवन में हो सबसे ख़ास-शुभ दीपावली। मेरा मानना है कि इसके पीछे भावना भले ही नेक है मगर ऐसी तुकबंदी करने वाले को फौरन बंदी बना लेना चाहिए। ऐसे आकाश, प्रकाश और वास वाले मैसेज मुझे कभी नहीं आते रास। किसी और के भेजे बनावटी संदेश को फॉरवर्ड कर, बिना सामने वाले को सम्बोधित किए, भावनाएं कैसे सम्प्रेषित हो सकती हैं, मेरी समझ से परे हैं।
रैंप पर चलते हुए एक मॉडल अपना पूरा कॉरियर एक अदद प्लास्टिक मुस्कान के सहारे निकाल देती है। हिंदी फिल्मों के कितने ही जम्पिंग जैक कुछ-एक प्लास्टिक एक्सप्रेशन्स के ज़रिए तीन सौ से ऊपर फिल्में कर गए। असली जैसे दिखने वाले सैंकड़ों-हज़ारों की तादाद में प्लास्टिक फूल हर दिन सड़कों पर बेचे जाते हैं। मगर जहां तक भावनाओं के इज़हार की बात है, वहां तो हमें इन प्लास्टिक शुभकामनाओं से बचना चाहिए। किसी आयुर्वेदिक या होम्योपैथिक डॉक्टर ने ऐसी हिदायत नहीं दी और न ही कोई वास्तुविद् ऐसा करने के लिए कहता है, शास्त्रों में भी इसका कोई ज़िक्र नहीं, फिर भी, ऐसी प्लास्टिक बधाइयों का कारोबार ज़ोरो पर है। ज़रूरत है कि पॉलीथिन की तरह इन प्लास्टिक बधाइयों पर भी बैन लगा देना चाहिए।
गुरुवार, 22 अक्तूबर 2009
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6 टिप्पणियां:
बैन लगाना नहीं चाहिए
वैन चला देनी चाहिए
जिस पर लादकर फिक्स
मिक्स बधाईयां
जिनसे उड़ती हैं सिर्फ
चेहरे की हवाईयां
को ऐसी जगह भेज दिया जाए
जहां से ये लौटकर न आएं
पर ऐसा होना संभव नहीं है।
यह बाजार है
बाजार में सब बिकता है
खरीदने वाले सबके हैं
बेचने वाले सब बेचते हैं
जिसमें मुनाफा मिलता है
इसमें ही इनका मुनाफा है
बतलाइये कैसे रोकेंगे
इन पर न दें ध्यान
शायद खुद ब खुद ही
ये हो जायें एक दिन अंतर्ध्यान।
जब सारी चीजे हो नकली
इन्सानो के जीवन मे
असली बधाई किसे पचेगी
पानी भी नही पीनें मे
लाख टके की बात.. दिवाली पर जब आपका एस एम् एस मुझे मेरे नाम से मिला तो वाकई बहुत ख़ुशी हुई थी.. .. खुद मैंने किसी को भी कोई फॉरवर्ड किया हुआ मेसेज नहीं भेजा था.. ये पोस्ट तो मस्त रही.. बहुत ही 'निराली'
खासे खफा लगते हो। भाई ये प्लासटिक संदेश नहीं रुकने वाले। ज्यादा मेमोरी का एक मोबाइल फोन ले लो।
ये शुभकामनाएँ झेलने के लिए होती हैं। पॉलीथीन की तरह ही। मुझे भी ये बहुत नकली सी लगती हैं।
घुघूती बासूती
किन्तु यह प्लास्टिक संदेश नहीं है भई कि आपके ब्लॉग को प्रिंट मीडिया में स्थान दिया गया है।
अधिक जानकारी के लिए आप इस लिंक पर जा सकते हैं।
बधाई।
बी एस पाबला
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