हाल ही में एक सर्वे में ये बात सामने आई कि बत्तीस फीसदी लोग ऑफिस से छुट्टी लेने के लिए झूठ बोलते हैं। इन आंकडों पर मुझे हैरानी हुई। मुझे कतई उम्मीद नहीं थी कि अड़सठ फीसदी लोग छुट्टी के लिए सच बोलते होंगे!
वजह बेहद साफ है। ऑफिस से छुट्टी के पीछे सबसे बड़ी वजह है नीयत। अक्सर हमारा ऑफिस जाने का दिल ही नहीं करता। अगर किसी सुबह आप फोन कर बॉस से ये कहें कि सर, मैं आज ऑफिस नहीं आ सकता क्योंकि मेरा दिल नहीं कर रहा तो क्या लगता है...बॉस क्या कहेगा...ऐसा वाहियात काम कर कोई भी बोर हो सकता है...चलो, तुम छुट्टी ले लो...नहीं...बॉस ऐसा हरगिज़ नहीं कहेगा। वो यही पूछेगा कि इस्तीफा तुम ऑफिस आ कर दोगे या घर से ही फैक्स करोगे। यही वजह है कि ज़्यादातर लोगों को छुट्टी के लिए झूठ बोलना पड़ता है।
यूं तो झूठ किसी भी विषय पर बोला जा सकता है मगर ये ज़रूरी है कि बॉस के पास उसकी कोई काट न हो। ऐसे में सबसे लोकप्रिय बहाना है, बीमारी। एक सर्वे में ये बात भी सामने आई कि भारत में अब तक स्वाइन फ्लू से भले ही कुछ-एक हज़ार लोग संक्रमित हुए हों, लेकिन देश भर के दफ्तरों में लाखों कर्मचारी स्वाइन फ्लू की आशंका दिखा छुट्टी ले चुके हैं। नाम न छापने की शर्त पर इस ख़ाकसार को कुछ लोगों ने बताया कि दस साल की नौकरी में पहली बार उन्हें महज़ एक छींक पर खुद बॉस ने आगे बढ़कर कहा कि तबीयत ठीक नहीं है तो छुट्टी ले लो। छुट्टी के आग्रह के साथ ऐसे-ऐसे लोग मेरे हिस्से का काम करने आगे आए, जो खुद अपने हिस्से का काम कभी वक़्त पर नहीं करते।
झूठी बीमारी के अलावा, फर्ज़ी एग्ज़ाम के नाम पर भी मैंने लोगों को साल में तीन-तीन बार छुट्टियां लेते देखा है। मैं कभी नहीं समझ पाया कि आख़िर ये कौन सी यूनिवर्सिटी है जो साल में तीन-तीन बार परीक्षा लेती है। जो भी हो, एग्ज़ाम के नाम पर छुट्टियां मिलने का सफलता प्रतिशत काफी अच्छा है। इस अपराधबोध के साथ कोई भी मालिक नहीं जी सकता कि मेरी वजह से इसका वर्तमान तो ख़राब हो ही रहा है, कहीं इसका भविष्य भी ख़राब न हो जाए!
लेकिन, बहाने बनाते समय कुछ सावधानियां बरतनी बेहद ज़रूरी हैं। मसलन, बरसों पहले गुज़र चुके दादा-नाना का छुट्टी के लिए ज़रूरत से ज़्यादा इस्तेमाल करने से बचें। मेरे एक परिचित को तो उसके बॉस ने एक बार कह भी दिया था कि मुझे समझ नहीं आता कि हर बार दीपावली के आसपास ही तुम्हारे नानाजी की डैथ क्यों होती है। बहानों में अति भावुकता से भी बचें। जैसे, छुट्टी के लिए नज़दीकी रिश्तेदार की शादी या दोस्त की ख़राब तबीयत की आड़ न लें। एक बात समझ लें कि जिस शख़्स को आप इमोशनल कर छुट्टी लेने की सोच रहे हैं, वो सारे इमोशन्स का गला घोंट कर ही इस पद तक पहुंचा है। ऐसे बहानों पर अक्सर आपको सुनने को मिल सकता है कि या तो रिश्तेदारियां निभा लो या नौकरी कर लो।
दोस्तों, छुट्टियों की ये कशमकश नौकरी का स्थायी भाव है। भले ही भारत में साल में डेढ़ सौ छुट्टियां होती हों, मगर हमारी लड़ाई तो बाकी बचे दो सौ दिनों से है। जब तक दिलो में कामचोरी का जज़्बा है, रगों में मक्कारी का लहू है और बहाने बनाने के लिए कल्पनाशक्ति का चकला मौजूद है, हमें झूठ बोल कर छुट्टियां लेते रहना है। हमारा मक़सद दो वीकली ऑफ नहीं, दो वर्किंग डे है... हमें तो पांच वीकली ऑफ चाहिए।
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5 टिप्पणियां:
जब कर्म करके फल की चिंता छोड़ना ही जीवनसार है तो फिर इसके व्यापय पैमाने पर स्वीकृत रूप और सरलीकरण के लिए छुट्टियां संजीवनी का काम करेंगी। एक ही ध्येय एक ही लक्ष्य छुट्टी!
पढ़कर आए हैं भास्कर में
टिप्पणी देने चले आए हैं इहां।
छुट्टी लेने के मामले में
झूठ की खुली छूट का
दुरुपयोग नहीं हो रहा है
यह जानकर अच्छा लगा
अब इतनी दाल काली हो
या दाल में काला हो
सब चलता है
पर मुंह नहीं काला होना चाहिए
झूठ पता नहीं चलना चाहिए
लगता है बाकी का पता नहीं चलता है।
आपने अच्छा विश्लेषण किया है .. अविनाश जी भास्कर में पढकर टिप्पणी देने यहां पहुंचे हैं .. आपको बधाई !!
हा हा!! बहुत सटीक...वैसे मुझे भी ६८%ज्यादा ही नहीं बल्कि बहुत ज्यादा लगता था. :)
मेरे विचार से, छुट्टी के लिए झूठ बुलवाया जाता है...सच कहने पर छुट्टी दे दी जाए तो !
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