सर्दी बढ़ने के साथ ही स्नानवादियों का खौफ भी बढ़ता जा रहा है। हर ऑफिस में ऐसे स्नानवादी ज़बरदस्ती मानिटरिंग का ज़िम्मा उठा लेते हैं। जैसे ही सुबह कोई ऑफिस आया, ये उन्हें ध्यान से देखते हैं फिर ज़रा सा शक़ होने पर सरेआम चिल्लाते हैं... क्यों..... नहा कर नहीं आये क्या? सामने वाला भी सहम जाता है...अबे पकड़ा गया। वो बजाय ऐसे सवालों को इग्नोर करने के सफाई देने लगता हैं। नहीं-नहीं... नहा कर तो आया हूं...बिजली गई हुई थी.. आज तो बल्कि ठंडें पानी से नहाना पड़ा।
लानत है ऐसे डिफेंस पर और ऐसी 'गिल्ट' पर। सवाल उठता है कि न नहाने पर ऐसी शर्मिंदगी क्यों? जिस पानी से हाथ धोने की हिम्मत नहीं पड़ रही...क्या मजबूरी है कि उससे नहाया जाये। एक तरफ प्रकृतिवादी कहते हैं कि नेचर से छेड़छाड़ मत करो और दूसरी तरफ बर्फीले पानी को गर्म कर नहाने की गुज़ारिश करते हैं। आख़िर ऐसा सेल्फ टोरचर क्यों? क्यों हम ऊपर वाले की अक्ल को इतना अंडरएस्टिमेट करते हैं। उसने सर्दी बनायी ही इसलिए है कि उसकी 'प्रिय संतान' को नहाने से ब्रेक मिले। सर्दी में नहाना ज़रुरत नहीं, एडवेंचर है। अब इस कारनामे को वही अंजाम दें, जिन्हें एडवेंचर स्पोर्ट्स में इंर्टस्ट है।
मगर जनाब नहाने की महिमा बताने वाले बड़े ही ख़तरनाक लोग हैं। ये लोग अक्सर ग्रुप में काम करते हैं। जैसे ही इन्हें पता चला कि फलां आदमी नहा कर नहीं आया..लगे उसे मैन्टली टॉर्चर करते हैं। बात उनसे नहीं करेंगे, लेकिन मुखातिब उनसे ही होंगे।
मसलन....भले ही कितनी सर्दी हो हम एक भी दिन बिना नहाये नहीं रह सकते। दूसरा एक क़दम आगे निकलता है। तुम रोज़ नहाने की बात करते हो...हम तो रोज़ नहाते हैं और वो भी ठंडें पानी से। साला एक आधे-डब्बे में तो जान निकलती है, फिर कुछ पता नहीं चलता। सारा दिन बदन में चीते-सी फुर्ती रहती है। अब वो बेचारा जो नहाकर नहीं आया...उसे इनकी बातें सुनकर ही ठंड लगने लगती है। उसका दिल करता है फौरन बाहर जाकर धूप में खड़ा हो जाऊं।
एक ग़रीब मुल्क का इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या होगा कि उसके धरतीपुत्र अपनी अनमोल विल पॉवर, सर्दी में नहा कर वेस्ट करें। इसी विल पॉवर से कितने ही पुल बनाये जा सकते हैं, कितनी ही महान कृतियों की रचना की जा सकती थी। लेकिन नहीं...हम ऐसा कुछ नहीं करेंगें। हम तो चार डिब्बे ठंडें पानी के डालकर ही गौरवान्वित होंगे।
नहाने में आस्था न रखने वाले प्यारे दोस्तों वक़्त आ गया है कि तुम काउंटर अटैक करो। देश में पानी की कमी के लिए इन नहाने वालों को ज़िम्मेदार ठहराओ। किसी भी झूठ-मूठ की रिपोर्ट का हवाला देते हुए लोगों को बताओ कि सिर्फ सर्दी में न नहाने से देश की चालीस फीसदी जल समस्या दूर हो सकती है। अपनी बात को मज़बूती से रखने के लिए एक मंच बनाओ। वैसे भी मंच बनने के बाद इस देश में किसी भी मूर्खता को मान्यता मिल जाती है। प्रिय मित्रों, जल्दी ही कुछ करो...इससे पहले की एक और सर्दी, शर्मिंदगी में निकल जाये !
बुधवार, 6 जनवरी 2010
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9 टिप्पणियां:
स्नानवादियों के कपड़े उतरवाकर देखिए,
काई लगी मिलेगी !
हाहा! जल, बिजली, ईंधन, साबुन और समय की बचत करने का इससे बेहतर तरीका क्या हो सकता है?
घुघूती बासूती
दिल्ली में पानी हो तब न हम नहायें.... रोज़ साला यही डर लेके उठता हूँ की नल में पानी आ रहा है या नहीं ...
आपने तो अजीब दुविधा में डाल दिया... सोच रहे है अब नहाये कि नहीं.. ?
चलो गिल्ट नहीं है अब .....सन्डे देखते है
sardiyon me nahan ek adventure hai..bahut khub lika .....sach me koi adventure se kam nahi!!
एडवेंचर स्पोर्ट्स की संज्ञा बहुत मज़ेदार लगी। बस हंसी ही व्यंग्य का तोहफा होती है और आप सबको हंसा रहे हो। यूं ही हंसाते रहना।
पसन्द आया मगर लाइक का बटन किधर है?
अभय जी लाइक का बटन फेसबुक पर है:)
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