ख़बर है कि एनएसजी कमांडों को आदेश दिए थे कि ताज को आतंकियों से मुक्त कराने के बाद गृह मंत्रालय को शिवराज से मुक्त कराओ। इसी डर से शिवराज ने इस्तीफा दिया। जाते-जाते वो कह गए कि मैं नैतिकता के आधार पर इस्तीफा दे रहा हूं। राष्ट्र ने कहा सिर्फ इस्तीफा दे दो, तो भी चलेगा। मगर वो नहीं माने। नैतिकता के आधार पर इस्तीफा देने पर तुले थे। चार साल में बीस बड़े आतंकी हमलों के बाद उनकी नैतिकता जवाब दे गई। उसका पेट्रोल ख़त्म हो गया। कुछ देर रिज़र्व पर चलने के बाद आख़िरकार उसने इस्तीफा दे दिया।
ख़बर ये भी है कि हर आतंकी हमले के बाद उनकी 'नैतिकता' ने 'इंसानियत' के आधार पर उन्हें इस्तीफा सौंपा। मगर शिवराज ने उसे हर बार लौटा दिया। इस बात को लेकर उनका नैतिकता से झगड़ा हो गया। फिर किसी ने उनसे 'बेशर्मी' की सिफारिश की। उन्हें बताया कि बेशर्मी, नैतिकता जितनी डिमांडिंग नहीं है, सिर्फ बयान के आधार पर मान जाती है। बयान में भी वैरायिटी नहीं मांगती। एक ही बयान हर बार देने पर भी चलेगा। ऊपर से इसकी माइलेज भी ज़्यादा है। इसको आधार बनाइये बहुत दूर तक जाएंगे। इतनी दूर तक... जहां लोग कहेंगे....मेरे लिए तारे तोड़ कर लाना!
लोगों की बात ठीक निकली। उन्होंने लगभग अपना कार्यकाल पूरा कर लिया। मगर मेरी शिकायत ये है कि जब वो आख़िरी सालों में 'बेशर्मी' के आधार पर गृहमंत्री बने रहे तो उन्होंने नैतिकता के आधार पर इस्तीफा क्यों दिया ? उन्हें बेशर्मी के आधार पर ही इस्तीफा देना चाहिए था। राष्ट्र को बताना चाहिए था कि बेशर्मी को लेकर मेरा स्टेमिना इतना ही है। मैं और ज़लील नहीं हो सकता। ख़तरे का निशान ऊपर उठा-उठा कर मैं तंग आ चुका हूं। मेरे हाथ थकने लगे हैं और उन लोगों के भी जिनके हाथ अपने ऊपर होने की वजह से मैं अब तक गृहमंत्री बना रहा।
खैर शिवराज चले गए। मगर वो तरह-तरह के कपड़ों और एक जैसे बयानों के लिए हमेशा जाने जाएंगें। इस बात का अफसोस हमेशा रहेगा जो तालमेल उनकी ड्रेसिंग में देखा गया उसके लिए सुरक्षा एजेंसियां तरस गई। ये बात हमेशा रहस्य का विषय बनी रहेगी कि जो उठ नहीं पाए और जो वो उठा नहीं पाए, आखिर वो कौन से कड़े कदम थे? क्या 'कड़े कदम' से उनका मतलब हर आतंकी हमले के बाद वो ज़ोर-ज़ोर से पैर पटक कर चलना था। हो सकता है वो हर हमले के बाद ज़ोर-ज़ोर से पैर पटक कर चलते रहे हों और लोग उन्हें यूं ही लताड़ते रहे। इसमें दो राय नहीं शिवराज का जाना देश के लिए बड़ा झटका है, मगर ज़्यादा खुशी तब होती जब वो देश भारत होता!
(Dainik Hindustan 4 dec, 2008)
गुरुवार, 4 दिसंबर 2008
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1 टिप्पणी:
bilul nishane par..satik waar.
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