कई दिनों की जद्दोजहद के बाद साफ हो गया कि सरकार बीसीसीआई के आईपीएल के लिए अलग से सुरक्षा मुहैया नहीं करा सकती। लिहाज़ा बीसीसीआई ने तय किया कि आईपीएल भारत से बाहर होगा। ठीक भी है। अब मायावती या पासवान तो ग्लासगो या जोहानसबर्ग में चुनावी रैलियां कर नहीं सकते। रैलियां कर भी लें तो भी कानपुर से केपटाउन हज़ारों समर्थकों को ट्रक में ले जाना थोड़ा मुश्किल होगा। गाडी वहां तक चलती नहीं और हवाई जहाज में कार्यकर्ताओं के जबरन सफर की परम्परा अभी पड़ी नहीं। रही बात हवाई जहाज की छत्त पर लटक कर सफर करने की...तो इसकी भी इजाज़त मिल पाती। इसीलिए मेरी इस मामले में सरकार से कोई शिकायत नहीं हैं। अलबत्ता, मुझे बीसीसीआई से कुछ शिकायत ज़रूर है।
मेरा मानना है कि बीसीसीआई के पास इतिहास रचने का सुनहरा मौका था जो उसने गंवा दिया। आईपीएल को इंग्लैंड या दक्षिण अफ्रीका ले जाने की बात कर उसने दुनिया को फिर से ये कहने का मौका दे दिया देखो...दक्षिण एशिया अशांत क्षेत्र है। मेरा ख़्याल से अगर आईपीएल को अगर भारत से बाहर जाना ही था तो उसे पाकिस्तान शिफ्ट किया जाना चाहिए था। पाकिस्तान में भी पूरे का पूरा आईपीएल स्वात घाटी में करवाया जाता। इसके लिए बाकायदा तालिबान से बात की जाती। सिक्योरिटी एजेंसी के तौर पर लश्कर-ए-तैय्यबा के लड़ाकों को हायर किया जाता। ए क्यू खान स्कियोरिटी इंचार्ज बनाए जाते। स्कूलों में इसी सिद्धांत पर सबसे शरारती बच्चे को क्लास मॉनिटर बनाया जाता है।
स्वात घाटी में आइपीएल होने से उद्घघाटन समारोह में आतिशबाज़ी का खर्चा भी बचता। असली बम फोड़ चकाचौंध पैदा की जाती। ए-के-47 और हैंडग्रेनेड थामे तालिबानी लड़ाके बाउंड्री लाइन पर चीयर ब्वॉय की भूमिका निभाते। मुशर्रफ खिलाड़ियों को पुरस्कार बांटते। जरदारी,महिला मेहमानों से हाथ मिला उनकी खूबसूरती की तारीफ करते। वहीं सरकार को नीचा दिखाने के लिए विपक्षा नेता पाकिस्तान जा कर मैच देखते। छवि सुधार अभियान के तहत संघ 'पाकिस्तान चलो' का नारा देता। कैसा हसीन दृश्य होता... ब्रेट ली की गेंद पर सहवाग चौके-छक्के लगाते और दर्शक दीर्घा में साथ-साथ बैठे सोहन भागवत और मुल्ला उमर उछल-उछल कर तालियां बजाते।
आईपीएल के पाकिस्तान में होने से सुरक्षा के सारे झंझट ख़त्म हो जाते। बाहरी आतंकी आईपीएल में व्यस्त रहते। स्थानीय आतंकी अपने चुनाव क्षेत्रों के दौरों पर होते। जनता टीवी पर मैच देखती और देश भर में डेढ़ महीने के लिए पूर्ण शांति हो जाती।
5 टिप्पणियां:
बहुत अच्छा व्यंग और सुझाव दिया आपने काश बी सी सी आई इसे मान ले तो मज़े आ जाये .
आपको इत्ते गंभीर लेख पर हास्य व्यंग्य लेबल लिखने की राय किसने दी है बस ये बताये :)
ये लेख आप दस दिन पहले लिख देते तो काग्रेस सरकार ये काम कब का कर डालती खैर अब वो अपनी चुनाव सिमितियो मे तालीबानियो को ही काम दे रही है
"sthaniya aatanki.."..bahut badiya ..bilkul satik namkarna kiya hai apne.
मैं तो कहता हू लोकसभा चुनाव भी पाकिस्तान में कराने चाहिए.. लोकतंत्र के लिए इस से बड़े सम्मान क़ी बात और क्या होती?? :)
नीरज जी,
मजबूरी है, हर पोस्ट पर एक जैसा कमेंट नहीं दे सकता।
इसलिए एक पर ही लिख रहा हूँ कि मुस्कुराहट छुपाये नहीं छुप रही।
कम लिखा ज़्यादा समझना
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