हर उम्मीदवार से लोगों को कुछ न कुछ शिकायत रहती है और यही शिकायत बाद में उन्हें वोटिंग के प्रति उदासीन बनाती हैं। मसलन, नेता जी दावा तो करते हैं कि वो पांच साल में इलाके का नक्शा बदल देंगे मगर उनकी हालत देख लगता नहीं कि पांच महीने भी और निकाल पाएंगें। वो कहते तो हैं कि गुंडागर्दी ख़त्म कर देंगे, मगर वो खुद फॉर्म से भरने से दो दिन पहले ज़मानत पर रिहा हुए हैं। राजनीति में निष्ठा की महत्ता पर दो-दो घंटे भाषण दे सकते हैं, बावजूद इसके की वो हर बडी पार्टी में छे-छे महीने प्रोबेशन पर बीता आए हैं। ऐसे में सवाल ये है कि क्या इसी तरह छले जाना हमारी नियति है या फिर चारा घोटाले के इतने सालों बाद भी पास कोई चारा बचा है। मेरी समझ में इसका एक इलाज ये है कि स्कूल विद्यार्थियों की तरह नेताओं के भी कुछ टेस्ट लिए जाएं। उसके बाद ही उनकी उम्मीदवारी फाइनल की जाए। कुछ संभावित टेस्ट या सर्टिफिकेट इस तरह से हो सकते हैं।
मेडिकल टेस्ट-जिस तरह बीमा कम्पनियां बीमा करने से पहले हमारे मेडिकल टेस्ट करवाती हैं उसी तरह नामांकन से पहले चुनाव आयोग सभी उम्मीदवारों के मेडिकल करवाए। आख़िर जनता को पता तो हो कि जो शख़्स उनके जीवन की गारंटी ले रहा है खुद उसकी क्या गारंटी है। लिहाज़ा नेताओं से उनकी ब्लैड प्रशेर रिपोर्ट, डायबिटिक रिपोर्ट और एनजियोग्राफी का ब्यौरा मांगा जाए। उनसे पूछा जाए कि तुम्हें कोई बड़ी बीमारी तो नहीं। है तो कब से है। नेताओं में सबसे बड़ी बीमारी मानी जाती है... शॉर्ट टर्म मैमरी लॉस। एक सर्वे के मुताबिक आज़ादी के बाद से तिहतर फीसदी भारतीय सांसद शॉर्ट टर्म मैमरी ल़ॉस का शिकार पाए गए हैं। गजनी के आमिर से ये बीमारी इस तरह अलग है कि उन्हें सिर्फ पंद्रह मिनट ही सब याद रहता था और फिर भूल जाते थे। वही नेताओं को चुनाव से पंद्रह दिन पहले सब याद आ जाता है और फिर पांच साल तक सब भूल जाते हैं। इस तरह नेताओं में ये बीमारी शॉर्ट टर्म और लांग टर्म मैमरी लॉस के रूप में बारी-बारी काम करती है। मेडिकल साइंस अगर इतने सालों में कैंसर का इलाज नहीं ढूंढ पाई तो पॉल्टिक्ल साइंस सैंकड़ों सालों भी नेताओं के शॉर्ट टर्म मैमरी लॉस का कुछ नहीं उखाड़ पाई।
कैरेक्टर सर्टिफिकेट- न दिखाई देने के बावजूद राजनीति में चरित्र की आवश्यकता हमेशा से रही है...लिहाज़ा....नामांकन से पहले नेताओं से उनका चरित्र प्रमाण पत्र मांगा जाए। मगर इस अनिवार्यता के पीछे दिक्कत ये है कि चरित्र प्रमाण पत्र स्कूल-कॉलेज जारी करते हैं और ज़्यादातर भारतीय नेता शिक्षा के दकियानूसी विचार से असहमत होने के चलते जीवनपर्यंत स्कूल का रूख नहीं करते। ऐसे में इन नेताओं से कहा जाए कि जिन-जिन मौहल्लों में ये आज तक रहे हैं वहां कि लड़कियों से 'नो ऑब्जैक्शन' सर्टिफिकेट ले कर आएं। जब वो लिख कर दे दें कि ये शख़्स जो सांसद बनने की हसरत पाले है.. इसने आज तक मेरे साथ कभी कोई छिछोरी हरकत नहीं की, तभी उनकी उम्मीदवारी पर आयोग विचार करें।
वाणी सर्टिफिकेट- आप कन्फयूज न हो, ये वो सर्टिफिकेट नहीं है जो प्रसार भारती जारी करती है। दरअसल वैश्विक मंदी का सीधा असर हमारे नेताओं की अक्ल-मंदी पर भी पड़ा है। इसलिए जब भी वो कुछ बोलने लगते हैं उनका दिमाग उनकी ज़ुबान का साथ छोड़ देता है नतीजतन वो कुछ ऐसा कह देते हैं जिस पर टीवी में बीप की आवाज़ आती है और अख़बार में***** डालना पड़ता है। इसलिए ज़रूरी है कि इन नेताओं को इनके विपक्षी की तस्वीर दिखा नॉन स्टॉप पांच मिनट तक बोलने के लिए कहा जाए। अब हमारे नेताओं में भाषा और गालियों के जैसे संस्कार है उसमें वो दो मिनट तक तो सभ्यता का ढोंग कर सकते हैं मगर तीसरे मिनट ही वो 'अपनी वाली' पर उतर आएंगे। इस अपनी वाली को पकड़ने के लिए ही ये वाणी सर्टिफिकेट जारी किया जाएं।
नार्को टेस्ट-जिस तरह हर क़त्ल के पीछे मक़सद होता है। उसी तरफ राजनेता के हर क़दम के पीछे एक मकसद होता है। अब नेता से ये उम्मीद करना कि वो कभी असल मक़सद बता देंगा, मूर्खता होगा। लिहाज़ा ये ज़रूरी है कि नेताओं का वक़्त-वक्त पर नार्को टेस्ट करवाया जाए। पारदर्शिता के लिए इस नार्कों टेस्ट का टीवी पर लाइव प्रसारण हो। जनता जाने कि फलां जी ने आख़िर क्यों अपनी पार्टी छोड़ी। क्यों वो ए समूह को लतिया बी की गोद में जा बैठे हैं। ये साफ हो पाए कि उनकी सीडी से छेड़खानी की गई है या वो सच में ऐसा सोचते हैं। क्या सच में साम्प्रदायिक ताकतों को हराना ढिमकाना जी का उनका मक़सद है या फिर तीसरे मोर्चे के अस्तित्व में आने के बाद वो ब्लैकमेलिंक की रणनीति अपना रहे हैं। उसी तरह अगर नेता अचानक अपनी कोई ग़लती कबूल कर लें तो मंच पर ही उसका अल्कोहल टेस्ट होना चाहिए जिससे पता चल सकें कि कहीं वो नशे में तो नहीं है।
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3 टिप्पणियां:
बहुत बढिया पोस्ट लिखी है।काश! ऐसा हो जाए तो मजा़ आ जाएगा;)
बहुत अच्छा उपाय और नियम , अगर ये लागु हो जाते तो सारे देश का भला हो जाये .
बहुत बढिया ... पर आपके नियम नेता लागू होने दें तब न।
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