शुक्रवार, 10 अप्रैल 2009

अरमानों का अभिनय!

ख़बर है कि देवानंद की आगामी फिल्म 'चार्जशीट' में अमर सिंह गृहमंत्री की भूमिका निभा रहे हैं। अमर सिंह का कहना है कि देवानंद साहब ने उनसे सम्पर्क किया और वो मना नहीं कर सके। ख़बर पढ़ मेरे ज़ेहन में अनेक सवाल कौंधने लगे हैं। पहला ये कि जिस तरह मॉडल अपनी पहली ही फिल्म में मॉडल की भूमिका करती है तो उसके सामने कोई चुनौती नहीं होती। उसी तरह अगर नेता पहली फिल्म में नेता का ही रोल करता है तो उसके लिए क्या चुनौती होगी। उसे चुनौती लेनी ही है तो वो किसी फिल्म में 'इंसान' की भूमिका करे। फिल्म के माध्यम से ही सही कम से कम लोग को ये तो लगे कि ये भी हमारी तरह एक इंसान है! दूसरी बात ये कि फिल्म में अगर गृहमंत्री की कोई भूमिका थी तो इसके लिए शिवराज पाटिल को अप्रोच क्यों नहीं किया गया। उनसे पास फुरसत भी है और अनुभव भी। वैसे भी गृहमंत्री रहते हुए भी तो वो गृहमंत्री का अभिनय ही कर रहे थे। ऊपर से ग्लैमर को लेकर उनकी चाहत भी है और कपड़े बदलने का उन्हें शौक भी। मगर उन्हें इस रोल में लेने का एक नुकसान ये होता कि जनता पहले से जान जाती कि इस फिल्म में गृहमंत्री नेगिटिव रोल कर रहा है!


खैर, नेताओं के फिल्म में काम करने का ये विचार मुझे लगातार रोमांचित कर रहा है। अब भगवान न करें (बीजेपी का भगवान) आडवाणी साहब अब भी प्रधानमंत्री न बन पाए तो उनके सामने एक ही उपाय होगा कि वो किसी फिल्म में प्रधानमंत्री बन जाएं। ऐसा शख़्स जो शुरू में ग़लत मान लिया गया है मगर बाद में पूरा देश उसका जलवा देखता है। वो ग़लत मान लिए गए हैं, ये हक़ीकत है। दुनिया उनका जलवा देखे, ये उनकी ख़्वाहिश है। ऐसे में प्रधानमंत्री न बनने पर सिर्फ फिल्म के माध्यम से ही दुनिया उनका जलवा देख पाए तो इसमें बुराई क्या है।

इसी तरह देश के तमाम नेता अपनी सारी भड़ास या अरमान फिल्म में रोल कर निकाल सकते हैं। जैसे-लालू यादव किसी भोजपुरी फिल्म में प्रधानमंत्री की भूमिका कर सकते हैं। उनके साले साधु यादव किसी फिल्म में बागी साले का रोल कर सकते हैं। ऐसा साला जो हर हाल में अपने जीजा को सबक सीखाना चाहता है। फिल्म का नाम होगा....स्साला जीजा! आरएलडी सुप्रीमो अजित सिंह को भी सिद्धांत-विवादी आदमी की भूमिका ऑफर की जा सकती है। फिल्म का नाम होगा-यत्र तत्र सर्वत्र! इसी तरह वरूण गांधी भी महात्मा गांधी पर बनी एक फिल्म के सिक्वल में आ सकते हैं। सिक्वल का नाम होगा- मैंने गांधी को भी नहीं छोड़ा! एंड लास्ट बट नॉट द लीस्ट अर्जुन सिंह भी कांग्रेस अध्यक्ष की अनुमति के बाद किसी फिल्म में राष्ट्रपति का रोल कर सकते हैं। सुधी पाठकों को यहां बताना ज़रूरी है कि पुराने कांग्रेसी काल्पनिक भूमिकाएं भी पार्टी प्रमुख की सहमति के बाद निभाते हैं। यहां तक कि सपने में भी खुद को किसी बड़े पद पर बैठ देख लें तो अगले दिन दस जनपथ पर जा कर माफी मांगते हैं।

(दैनिक हिंदुस्तान, 10 अप्रेल,2009)

(सौंवी प्रकाशित रचना)

7 टिप्‍पणियां:

अनिल कान्त ने कहा…

:) :)
bahut sahi bhai

मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

jitendra ने कहा…

poori filmi hain

jitendra ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
कुश ने कहा…

antim 3 lines to mast hai.. overall mazedaar !!

Udan Tashtari ने कहा…

बेहतरीन..पकाशित रचनाओं के शतक के लिए मेरी खास बधाई और ऐसे ही जमाये रहो अनेक शतक.

शुभकामनाऐं.

Fighter Jet ने कहा…

sahi kaha aapne..kabhi kabhi sochata hun..apne manmohan singh jee..apni dhadi kaise khujate honge..bechare ko baar baar madam se puchana padta hoga!

अखिलेश चंद्र ने कहा…

Badhiya Neeraj ji. Shatak lagaane k liye badhai !