दो हज़ार दस कॉमनवेल्थ खेलों की तैयारी में सरकार जी-जान से जुटी है। इन खेलों के बहाने हमें दुनिया को अपनी ताकत दिखानी है। यही वजह है कि इस आयोजन पर अब तक करोड़ों रूपया लग चुका है और करोड़ों लगाया जाना है। सरकार अपनी तरफ से कोई कमी नहीं रखना चाहती, यहां तक कि उसने दिल्लीवासियों को अगले एक साल में पिछले साठ सालों की गंदी आदतें सुधारने की हिदायत भी दे दी है। ये सब ठीक हैं, मगर मेरा मानना है कि अगर वाकई भारत इन खेलों के ज़रिए अलग छाप छोड़ना चाहता है तो उसे कुछ ऐसा करना चाहिए जिसमें पूरी तरह भारतीयता झलके। मतलब ऐसे खेल करवाए जाएं जो पूरी दुनिया में कहीं और नहीं हो सकते, जिनमें पूरी तरह दिल्ली का फ्लेवर हो। पेश है ऐसे ही कुछ खेलों के सुझाव-
1.जैसा की ख़बर है, साइकलिंग ट्रेक अभी तैयार नहीं हुआ है। मेरा मानना है कि उसे तैयार करवाने की ज़रूरत भी नहीं है। कॉमनवेल्थ खेलों में ये इवेंट दिल्ली की सड़कों पर करवाया जाए। बिल्कुल असल माहौल में। बिना सड़कें खाली करवाए। इधर, बीस-पचास साइकिल सवार एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में हैं। पीछे से ब्लू लाइन बस पीं-पीं कर रही है। सामने सरिए लहराता हुआ ट्रक जा रहा है। साथ में दो किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से गाय चल रही है। वहीं सड़क किनारे कुछ नटखट कुत्ते भौं-भौं कर रहे हैं। इन सबके बीच बिना गिरे, बिना डरे और सबसे महत्वपूर्ण बिना मरे जो फिनिशिंग लाइन तक पहुंचेगा, वही विजेता होगा।
2.दोस्तों, मेरा मानना है कि असली खिलाड़ी वो नहीं है जो पोल वॉल्ट में सात मीटर की छलांग लगा ले या फिर सौ मीटर की फर्राटा दौड़ नौ सैकेंड में पूरी कर दे, असल खिलाड़ी वो है जो पीक आवर में ब्लूलाइन की बस में सीट ढूंढ लें। इसलिए एक इवेंट इससे जुड़ा भी होना चाहिए। आठ-दस खिलाड़ियों को सुबह के वक़्त किसी बस स्टॉप पर खड़ा किया जाए और उन्हें पीछे से आती किसी भीड़ भरी बस में घुस कर सीट ढूंढनी पड़े। जो जिस क्रम में सीट ढूंढेगा उसी क्रम में वो स्वर्ण,रजत और कांस्य का हक़दार होगा।
3.एथलेटिक स्पर्धाओं में एक इवेंट पैदल दौड़ का भी होता है। पैदल दौड़ के लिए यूं तो दिल्ली में कई जगहें उपयुक्त हैं मगर सदर बाज़ार इलाके का कोई सानी नहीं है। इसमें प्रतिस्पर्धी की चुनौती ये है कि उसे पैदल दौड़ना तो है, मगर दौड़ते वक़्त किसी से टकराना नहीं है और अगर टकरा भी गया तो गाली नहीं खानी है। अब टकराना या न टकराना आपकी काबिलियत पर निर्भर करता है जबकि गाली खाना आपकी किस्मत पर। इस तरह ये दौड़ हुनर और किस्मत का मेल होगी। वैसे भी इन दोनों के मेल के बिना इस शहर में कौन सरवाइव कर सकता है। खैर, आख़िर में जो भी प्रतिस्पर्धी सबसे कम धक्के और गालियां खा दौड़ ख़त्म करेगा वही विजेता होगा।
4.दिल्लीवासी होने के नाते मेरी ये हमेशा शिकायत रही है कि जब गंगा नदी में इतने सारे एडवेंचर स्पोर्ट्स होते हैं तो यमुना में क्यों नहीं। लिहाज़ा मैं आयोजन समिति से मांग करूंगा कि वॉटर स्पोर्ट्स से जुड़ी सभी स्पर्धाएं यमुना में करवाई जाएं। जिसमें पचास मीटर फ्री स्टाइल स्विमिंग से लेकर बैक स्ट्रोक,बटरफ्लाई और चार गुना सौ मीटर रिले सब शामिल हों।
यमुना की हालत देख अगर कोई इसे नदी मानने के लिए तैयार न हो तो उसे इतिहास की किताबें दिखाई जाएं, उसका पौराणिक महत्व बताया जाए। इसके बावजूद कोई गंदगी की बात करे तो उसे पिछले सालों में इसकी सफाई पर खर्च पैसे का ब्यौरा दिया जाए। उससे पूछा जाए कि आप ही बताएं, करोड़ों रूपये खर्च करने के बाद भी ये गंदी कैसे हो सकती है।
दोस्तों, इस तरह खेल करवाने का सबसे बड़ा फायदा ये होगा कि ज्यादातर खेलों में सबसे ज़्यादा स्वर्ण पदक भारत ही जीतेगा। ऐसे में उन लोगों के मुंह भी बंद हो जाएंगे जो ये कहते हैं कि खेल आयोजन करवाने से खेलों का स्तर नहीं सुधरता, उसके लिए खिलाड़ियों को परफॉर्म करना पड़ता है। अब आप ही बताएं, दिल्ली की भीड़ भरी सड़कों पर दौड़ने, घटिया ट्रांसपोर्ट में सफर करने और सांस रोक यमुना में तैरने में, हमसे बढ़िया भला पूरी दुनिया में कौन परफॉर्म कर सकता है!
शुक्रवार, 20 नवंबर 2009
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4 टिप्पणियां:
नीरज जी अपने मिजाज की तरह दिल्ली के कॉमनवेल्थ गेम्स का मिजाज भी बदलना चाह रहे हैं, वैसे यह आज की आवश्यकता भी है। इसी प्रकार के रोमांचक खेलों के कारण ही तो दोबारा दिल्ली को दिलवालों का खिताब बरकरार रखने में कतई परेशानी नहीं आएगी और परेशानी में भी समझे शान, वही तो है मेरी दिल्ली महान।
आप देखते जाइये क्या तमाशा होने वाला है ? दिल्ली तो फिलहाल खुद को महंगी राजधानी कहलाने पर तुली हुई है... लोगों को फील गुड का एहसास कराया जा रहा है आप दिल्ली में रह रहे हो... इसलिए बस वाले भी बेरहमी से टिकट वसूल रहे हैं... अब उमें भी ज्यादा फुर्ती दिखाई देती है... हाँ २ साल बाद भी डी टी सी घाटे में ही चलेगी ये पक्का है... तो देखते जाइये क्या तमाशा होने वाला है ?????
पता नही क्यों मुझे दुष्यंत जी का शेर याद आ जाता है ..." कल नुमाइश मे मिला था वो चीथड़े पहने हुए ..
bahut sandar..bahut hi badhiyan
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