हाल-फिलहाल वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों के यहां पड़े आयकर विभाग के छापों के बाद से मैं काफी सहम गया हूं। उससे पहले मधु कोड़ा के यहां हुई छापेमारी में भी मुझे काफी घबराहट हुई थी। रोज़-रोज़ के तनाव से तंग आकर मैंने तय किया है कि हाईकोर्ट के जजों की तर्ज पर मैं भी अपनी सम्पत्ति घोषित कर देता हूं। इससे पहले की मैं अपने ‘साजो-सामान’ के बारे में मैं कुछ बताऊं ये कहना चाहूंगा कि ईर्ष्या भले सहज़ मानवीय गुण/अवगुण हो, फिर भी इससे बचा जाए तो बेहतर है। दिल थाम लें।
सम्पत्ति के नाम पर मेरे पास 70 के दशक का एक लैमरेटा स्कूटर है, जिसे पिताजी ने सन् सत्तर में सैकिंड हैंड खरीदा था। मशीनों को अगर इच्छामृत्यु की इजाज़त होती तो आज मैं इसकी 15 वीं बरसी मना रहा होता। जैसे ही इसे ले घर से निकलता हूं, पास-पड़ौस की कई महिलाएं पतीले ले बालकॉनी में आ जाती हैं, इस भ्रम में कि दूध वाला आ गया। मेरे पास तो पैसे नहीं थे मगर इस दुविधा से निजात दिलाने के लिए दूधवाले ने अपनी मोटरसाइकिल में साइलेंसर लगवा लिया। एक-आध बार मैंने इसे बेचने की कोशिश भी की मगर बदले में दुआओं से ज़्यादा कोई कुछ देने के लिए तैयार नहीं हुआ।
इसके अलावा अस्सी के दशक का एक कलर टीवी है। उसके कलर होने का रहस्य मेरे और टीवी के अलावा किसी को नहीं पता। जब इसे लिया था तब ये इक्कीस इंच था मगर अब घिसकर उन्नीस-साढ़े उन्नीस रह गया है। बुढ़ापे में जिस तरह दांत झड़ने लगते हैं, उसी तरह इसके भी बटन टूटने लगे हैं। मुझे विश्वास है कि अख़बार में इसके साथ मेरी फोटू छपने पर कोई अमीर शख़्स मुझे गोद ले सकता है या फिर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष गरीबी उन्मूलन फंड से मुझे दो करोड़ डॉलर दे सकता है।
इसके अतिरिक्त घर में एक फ्रिज है। है तो वो घर में मगर उसकी असली जगह नेशनल म्यूज़ियम में है। बर्फ तो उसमें हीर-रांझा के दिनों से नहीं जमी। अब तो पानी भी ठंडा नहीं होता। ये फ्रिज का कम और अलमारी का रोल ज़्यादा निभा रहा है। वैजिटेबल कम्पार्टमेंट में मैं जुराबें रखता हूं और फ्रिजर में बीवी चूड़ियां। दिल करता है कि फ्रिज की इस नामर्दानगी पर उसे भी दो-चार चूड़ियां पहना दूं।
अन्य सम्पत्तियों में एक डबल बेड भी है जिसकी हालत काफी बैड है। मगर वफादर इतना है कि सोने के बाद भी रातभर चूं-चूं कर घर की रखवाली करता है। ठीक उसके ऊपर एक पंखा है जो चलने के साथ ही चीं-चीं करता है। डबल उर्फ ट्रबल बेड की चूं-चूं और सीलिंग फैन की चीं-चीं जुगलबंदी कर हमें रात भर लोरियां सुनाते हैं।
नकदी की बात करूं तो मेरे पास, सुबह सब्ज़ी लाने से पहले, तीन सौ सत्तावन रूपये थे। ये देखते हुए कि महीना ख़त्म होने में दस दिन बाकी है इतनी रक़म ‘जस्टिफाइड’ है। बैंक में एक हज़ार रूपये हैं (जो न्यूनतम बैलेंस मैनटेन करने के लिए रखे हैं)। इसके अलावा घर में लोहे की अलमारी के लॉकर के सिवा, मेरे पास किसी बैंक मे कोई लॉकर नही हैं। उसमें भी मेरी और बीवी की दसवीं, बारहवीं और ग्रेजुएशन की मार्कशीट्स रखी हैं। रही ज़ेवरात की बात तो जिस सोने की कीमत 17 हज़ार तौला हो गई है, उससे मेरा कोई वास्ता नही है जिस सोने से किसी का बाप मुझे नहीं रोक सकता वो मैं खूब सोता हूं, बिना इस डर के कि कहीं घर में छापा न पड़ जाए!
बुधवार, 17 फ़रवरी 2010
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20 टिप्पणियां:
ये तो सरकारी किस्म की अनिवार्य, सरकारी घोषणा हो गई.
बाकी, जो बेनामी सम्पत्ति आपने इकट्ठा कर रखी है उसका क्या? :)
अपनी संपत्ति भी यही मार्कशीटें हैं. जिसे लेमिनेट करवा कर पछता रहे हैं... उतने का सिगरेट पी लेते तो अच्छा था... याद नहीं आता पिछली बार इसे किसने देखा था... एकलौता मैं ही हूँ जो घोर अवसाद में किसी संडे देख कर टाइम ख़राब कर लेता हूँ...
बेहतरीन व्यंग... मौके पर.. हमने भी अपनी संपत्ति घोषित कर दी.
पुराने स्कूटर बेचने की समस्या है? हम इन्हें दुआओं के बदले में नहीं रोकड़े के बदले में खरीदेंगे.
इसके अलावा अपना पुराना कबाड़ भी यहां बेच सकते हैं.
मलिक ट्रेडर्स
V-21 हरौला मार्केट सैक्टर 5 नौयडा
0120-2421346
Badhiya
नीरज जी, कितना शर्मिदा होंगे जनता के सेवक। बेचारे कितने कष्ट उठाकर करोडों इकट्ठा करते हैं कि आम आदमी कुछ सीखे और प्रेरणा ले। जनता जनार्दन है कि सीख्नना ही नहीं चाहती।
आनंद आ गया आपकी घोषणा पढकर।
achchha vyangya
उफ्फ्फ...हँसाकर मार डाला आपने.....
लाजवाब !!!
लेकिन एक बात है...आप अपनी इस पोस्ट को जरूर मढवा कर और पेटेंट कराकर रख लीजिये.. कहीं किसी नेता के हाथ पद गया तो इसे अपनी पूंजी का ब्यौरा बता चुनाव के पहले संपत्ति उद्घोषणा में इस्तेमाल कर लेगा...
हम्म आपके घर की मुखबिरी करना बनता है...यहां तो पुरातत्व महत्व का अथाह माल जमा है
घर तो आपका अपना ही लगता है.. ? क्यों
उम्दा, बढ़िया इंप्रोवाइजेशन किया है। रीठेल है लेकिन मज़ा आ गया।
bahut umda...in choro ki kartut pad man jinta gusase se bharjata hai..utha hi jyada maza is post ko padh ke aya..hstehaste lotpot ho gagaya :)
कमाल की पोस्ट लिखी हैं आपने । लामरेटा स्कूटर की याद दिलाकर आपने पुरानी दुनिया में वापसी करा दी । दुसरे पैराग्राफ में हंसी रुक ही नहीं रही थी । आपके इतनी अच्छी पोस्ट के परिश्रम के लिए हार्दिक धन्यवाद । इश्वर करे आप ऐसे ही लिखते रहे और आपकी व्यंग्य प्रतिभा ऐसे ही सार्थक रहे ।
बिलकुल लाजवाब कर दिया आपने नीरज भाई !!!!!!!!!!!!!
...और वह मकान जिसमे यह सारी संपत्ति रखी है, उसे छुपा ही गए!! बहरहाल लिख बढ़िया है, मज़ा आ गया पढ़ कर।
जनाब आप डरें तो डरें मगर आपको दूसरों को इस तरह डराने का कोई हक़ नहीं है। ये घबराहट सारे फक्कड़ लेखकों में फैल सकती है। आपने अच्छा नहीं किया अपनी घबराहट सार्वजनिक करके।
प्रमोद ताम्बट
भोपाल
http://vyangya.blog.co.in/
http://www.vyangyalok.blogspot.com/
http://www.facebook.com/profile.php?id=1102162444
बढ़िया व्यंग्य
beahtareen :D
नीरज़ जी इस को पढने के बाद आप पर से आयकर विभाग के छापे का भय तो दूर हो गया पर अब मुझे डर है कि कोइ जा कर इस पोस्ट को भारतीय पुरातत्व विभाग वालों को न पढा दे।
अच्छा किया पाठकों/श्रोताओं में व्यंग्यकारों की संपत्ति के संबंध में जिज्ञासा जगाने के लिए परंतु आपने उन व्यंग्यों का तो जिक्र ही नहीं किया जो कलमलाईन में हैं।
पसंद और प्रतिक्रिया के लिए सभी का शुक्रिया। वैसे भी ब्यौरा पढ़ने के बाद आप जान गए होंगे कि इस तारीफ के अलावा मेरे पास और कुछ है भी नहीं:)
नीरज भाई आपके पास लाखों नहीं करोड़ों नहीं अरोबो नहीं उनसे भी अधिक की वस्तु है जिसका पता अगर इनकम टैक्स वालों का लग गया ना तो बहुत दिक्कत हो जायेगी
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