टाइगर वुड्स के माफ़ीनामे के बाद अमेरिका और पश्चिमी देशों में ‘सच के सामने घुटने टेकने’ की कमज़ोरी एक बार फिर उजागर हुई है। समाजशास्त्रियों को ज़रूर विचार करना चाहिए कि आखिर क्यों ये लोग वे सब बातें सार्वजनिक रूप से स्वीकार कर लेते हैं, जो हम बंद कमरे में खुद के सामने भी स्वीकार नहीं कर पाते। ऐशो-आराम और तमाम व्यसनों का आख़िर मतलब क्या है, जब उनके इस्तेमाल पर इतना हंगामा होना है? इतना नाम-दाम क्या आदमी इसलिए कमाता है कि सिर्फ वो काम करे, जिसके बूते उसे ये सब मिला है। कतई नहीं!
ये समझना बहुत ज़रूरी है कि किसी भी सफल पुरूष के लिए अपनी प्रतिभा के दम पर किया गया सबसे बड़ा हासिल ‘औरत’ है! भले ही उसे रिझाना हो या किसी भी तरह पाना हो। आपने जो किया उस पर दोस्तों ने तारीफ कर दी, पैसा भी मिल गया, सम्मान भी ले लिए...अब? और जैसा कि खुद वुड्स ने अपने माफीनामे में कहा कि उन्हें लगता था कि जो सब उन्होंने हासिल किया उसके लिए उन्होंने काफी मेहनत की है, इसलिए उन्हें पूरा हक़ है अपनी ‘टेम्पटेशन्स’ को पाने का! और यहीं अमेरिका का दोगलापन साफ हो जाता है। आप उन ‘टेम्पटेशन्स’ की सुविधा तो देते हैं, जैसा कि वुड्स को दी, मगर पकड़े जाने पर ज़लील भी करते हैं। यहीं भारत पूरे अमेरिकी और यूरोपीय समाज पर लीड करता है। बात चाहे मीडिया की हो या फिर उन लोगों की जो ऐसे मामलों में शामिल होते हैं, कभी सेलिब्रिटी को शर्मिंदा नहीं होने देते!
इक्के-दुक्के मामलों को छोड़कर कभी किसी ने नहीं कहा कि फलां से मेरे नाजायज़ सम्बन्ध हैं। ये जानते हुए की फलां शादीशुदा है, सम्बन्ध तो बनाए जा सकते हैं, मगर इतना नहीं गिरा जा सकता कि दुनिया को बता दें। ऐसा नहीं है कि इतना गिरने पर कोई सरकारी रोक है मगर चरित्रहीनता, दुस्साहस मांगती है और वो किसी भी समाज में आते-आते ही आता है। पर्दा हमारी संस्कृति का अहम हिस्सा है इसलिए तमाम कुकर्म भी भी यहां पर्दे के पीछे ही रह जाते हैं। लिहाज़ा, ऐसे मामलों से कभी घूंघट नहीं उठता!
रही बात मीडिया की, तो वो अपने व्यावसायिक हितों के चलते ऐसा कोई रिस्क नहीं लेता। कालांतर में ये साबित भी हो चुका है कि कैसी भी सनसनी की तलाश में रहने वाले चैनल, राजनीतिक दबाव के चलते हाथ में सीडी होने के बावजूद उसे नहीं चलाते। चैनल चालू रहे इसलिए कभी-कभी किसी के चालू होने को नज़रअंदाज़ भी किया जा सकता है!
वैसे भी आइकॉन्स को हमारे यहां ईश्वर का दर्जा हासिल है, इसलिए उनसे जुड़ी ऐसी कोई बात हम सार्वजिनक करने से परहेज़ करते हैं, जिससे ईश्वर को शर्मिंदा होना पड़े। लिहाज़ा, ऐसे माहौल में सेलिब्रिटी को कभी पकड़े जाने का डर नहीं रहता। और यही एक प्रतिभाशाली व्यक्ति के साथ सही सलूक भी है। ऐसी शोहरत का आख़िर फायदा ही क्या जो आदमी को इतना ‘स्पेस’ भी न दे! तभी तो चाहे शेन वॉर्न हों, बिल क्लिंटन हों या टाइगर वुड्स, सभी के लिए मुझे बहुत बुरा लगा। वक़्त आ गया है कि योग के बाद पश्चिम अब सेलिब्रिटी आरक्षित भारत के इस ‘भोग’ को भी समझे।
गुरुवार, 25 फ़रवरी 2010
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8 टिप्पणियां:
सही कहा आपने ।
"सेलेब्रेटी आरक्षित भारत का भोग"
'भारत का रहने वाला हूँ भारत की बात सुनाता हूँ' वाला गीत याद आ रहा है जी,
कुंवर जी,
नीरज बधाई लेख पर। बहुत खूब।
शुक्रिया अंशु भाई!
ओर बिल क्लिंटन .मोनिका वहां सेलेब्रिटी हो गयी है ...टी.वि पर उनके इंटरव्यू है .किताबो की रोयल्टी अलग...क्लिंटन साहब तो इसके बाद भारत के कई दौरे कर चुके ..ओर गाँव की बूढी औरते .बच्चे उनके सामने सर झुकाए खड़े थे जैसे कोई कितना बड़ा आदमी आ रहा है........
ओर हमारी मोनिका ....हमारे राहुल महाजान ...पिता की म्रत्यु के चंद महीने बाद ही नशे की हालत में एक घर से पकडे जाते है .....अस्पताल में बेहोशी की हालत में एडमिट ..उनके दूसरे दोस्त की मौत .हो जाती है....उनकी पत्नी उनसे तलाक लेती है क्यूंकि वे नशे में मारपीट करते है....एक चैनल पर वे सरेआम फ्लर्ट करते है ...दो लडकियों से एक साथ ....उसके बाद उनका शादी का ड्रामा होता है ...क्यूंकि चैनल को वे व्यापारिक दृष्टि से एक बेचने की चीज़ लगे है ...ये चैनल देश के एक प्रतिष्टित चैनल का ही भाग है........ओर तो ओर उस्म एभाग लेने आई लडकिया भी है ....तो दुनिया सब जगह एक सी है .....
हम समझ रहे हैं यह भोग... यहाँ परदे के अँधेरे में अंधेर सदियों से हो रहा है... रसूखदार मर जायेंगे लेकिन अंतिम समय तक गाल बजाते रहेंगे की ऐसा नहीं था... असत्य को लेकर हमारा प्रेम शाश्वत है और इस परम्परा को आगे भी निभाएंगे.. क्लिंटन सिर्फ हिलेरी के अपराधी थे क्यों की वो उनकी पत्नी थी और ऐसे में वो ऐसा उनकी नज़र में नहीं कर सकते थे .... फजीहत तो बस इस काण्ड को ना मानने का कारण हुई थी... जैसे ही उन्होंने माना मामला शांत हो गया. हमारे यहाँ मान लेने के बाद कोई रास्ता नहीं बचता इसलिए नहीं मानते... जब मानते हैं तो सईने आहूजा जैसी हालत हो जाती है नहीं मानते हैं तो संजय दत्त जैसी... तो भैया सार यही की गलती किये जाओ और मानो मत...
बहुत खूब!!!
कुकर्मों पर पर्दा डालने का काम ये मुल्क भारत को आउटसोर्स कर सकते हैं. यहाँ डॉक्टर, स्पिन डॉक्टर, मीडिया डॉक्टर और न जाने कौन कौन मिल जायेंगे जो यह काम बड़ी आसानी से कर सकते हैं. देश के लिए विदेशी मुद्रा का एक और रास्ता खुल जाएगा.
solah aane sach...!
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