रविवार, 30 मई 2010

अपनी-अपनी पहचान! (व्यंग्य)

दुनिया को एक बड़ा-सा क्लास रूम माना जाए और अलग-अलग देशों को स्टूडेन्ट्स तो बड़ी रोचक तस्वीर उभरती है। कक्षा में जहां जापान जैसे कुछ मेहनती बच्चे हैं, जिन्होंने सिर्फ पढ़ाई-लिखाई के दम पर पहचान बनाई है जो सिर्फ अपने काम से काम रखते हैं तो वहीं अमेरिका जैसी अमीर बाप की औलादें भी हैं, जिनका ध्यान पढ़ाई में कम और नेतागिरी में ज़्यादा है। जो ‘पैसा फेंक और पर्चा खरीद’ में माहिर हैं। एक इंग्लैंड है, जिसका ज़्यादातर वक़्त अमीर दोस्त अमेरिका की चमचागिरी में बीतता है तो वहीं यूरोपीय देशों के छात्रों का एक गुट भी है जो अमेरिकी दादागिरी से बचने के लिए साथ खाता-पढ़ता है।

ये सब बच्चे पहली दुनिया के देश कहलाते हैं जो या तो अपनी मेहनत के दम पर टिके हैं, पैसे के दम पर या फिर एक दूसरे के दम पर। वहीं इस क्लास में कुछ ऐसे बच्चे भी हैं, जो स्कूल क्यों जा रहे हैं, वो खुद नहीं जानते। उन्हें पता है कि दसवीं के बाद उन्हें गल्ले पर बैठ पिताजी की दुकान संभालनी है। मगर ये सब भी कुछ न कुछ करने में लगे हुए हैं। कक्षा में अगर किसी बच्चे के इम्पोर्टेंट नोट्स चोरी हो गए हैं और इसके एवज़ में कोई छात्र पैसे मांग रहा है तो मान लें कि ये सोमालिया होगा। क्लास में अगर चोरी छिपे जर्दे-तम्बाकू के पाउच आ गए हैं तो ये नाइजीरियाई छात्र की करतूत होगी। वहीं बड़े डौलों की धौंस दिखा, ड्रैगन छपी टी-शर्ट पहन, हर दूसरे छात्र को डराने वाला निश्चित तौर पर चीन ही होगा। अमेरिकी और यूरोपीय छात्रों को पीटने की अगर कहीं प्लानिंग चल रही है तो उसके पीछे पाकिस्तानी होगा और वहीं पूरी कक्षा में जिसका कोई दोस्त नहीं, जिसे सब से शिकायत है, साथी बैंच वालों से भी जिसका झगड़ा है, जिसकी हर कोई बेइज़्ज़ती कर जाता है, जो औसत होने के बावजूद दंभी है... जी हां, वो मेरा भारत महान है।

4 टिप्‍पणियां:

दिलीप ने कहा…

America ko ameer baap ki aulaad kehna galat hai wo bhi kabhi ghulaam the unki ichchashakti ne unhe yahan tak khada kiya hai...yunhi sabse shaktishaali rashtra nahi hai wo...

Shekhar Kumawat ने कहा…

PESA BOLTA HE CHAHE PADAI HO YA KAMYABI

SACHI YAHI HE

Udan Tashtari ने कहा…

सन्नाट!!

वीरेंद्र रावल ने कहा…

achchhi post lagi neeraj bhai .
bahut dhanywad lagta hai school time me aapne desho ki theory par kafi dhyan diya hai .