मेरा मानना है कि हर समझौते में बराबर न्याय होना चाहिए। मतलब किसी सांसद को ख़रीदते वक़्त अगर कहा गया कि तुम हमें वोट दो, हम तुम्हें नोट देंगे, नोट नहीं तो पद देंगे। तो उसे टाइमली पेमेंट होनी चाहिए। इएमआई का कोई टंटा नहीं, एक मुश्त, लम-सम जितना बने, दे के नक्की करो। वैसे भी ऐसा सांसद जो किसी लालच में पार्टी से विश्वासघात कर आया हो, पैसे न मिलने पर किसी और पर विश्वासघात का इल्ज़ाम नहीं लगा सकता। जैसे झारखंड के राजनीतिक विवाद में भी मेरी पूरी हमदर्दी आदरनीय सोरेन के साथ थी। मैं बराबर तिलमिलाता रहा कि भाई उन्हें मुख्यमंत्री बना क्यों नहीं रहे। उन्होंने 'देश हित' को देखते हुए सरकार के पक्ष में वोट दिया और मधु कोड़ा थे कि 'देश हित' सधने नहीं दे रहे। आख़िर में देशभक्त सोरने की जीत हुई और वो मुख्यमंत्री बने।
मगर ये कहानी एक हिस्सा था। जिनको पद, पैसा मिलना था मिला। पर सवाल ये था कि जिस महान उद्देश्य के लिए ये सब किया जा रहा था उसकी प्राप्ति तो बाकी थी। मेरी हमदर्दी अब कांग्रेस के साथ हुई। बेचारी ने क्या नहीं किया। कितने ईमान खरीदे, कितने घर उजाड़े, कितना निवेश किया, कितने सपने तोड़े(पीएम बनने के), कितनों से धमकी देने का सुख छीना, कितनी लानतें झेलीं सिर्फ इसलिए कि परमाणु डील कर देश तरक्की कर पाए।
ये सोच कर ही मैं कांप जाता था कि इस सबके बावजूद अगर डील नहीं हुई तो कांग्रेस कैसे अपना मुंह, जो पहले ही दिखाने लायक नहीं बचा था, किसी को दिखाएगी। शिबू सोरेने का देश हित तो सध चुका अब किस मुंह से उन्हें उनके पद से हटाते। न ही सांसदों से अपील की जा सकती थी कि चूंकि डील नहीं हुई इसलिए 50 परसेंट पैसे वापिस दो। ये वाकई उसके लिए कष्टदायक होता। लेकिन जैसा कि सब जानते हैं ऊपर वाला किसी के साथ अन्याय नहीं करता। अगर कांग्रेस ने अपने सारे वादे पूरे किए तो उसको भी मनचाहा नतीजा मिला। वैसे भी कहानी फिल्मी हो या असली हम भारतीय विपरित अंत नहीं चाहते। एंटी-क्लाइमेक्स से हमें सख़्त नफरत है। हम सुखांत के आदी हैं। और हमें एनएसजी के देशों, अमेरिकी कांग्रेंस और अमेरिकी दबदबे का शुक्रिया अदा करना चाहिए जिन्होंने ये सुखांत दिखाया। और रही बात सबक की। तो तब तक ख़ैर मनाए जब तक कोई अमेरिकी राष्ट्रपति ये न कह दे..... पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त....
शुक्रवार, 3 अक्तूबर 2008
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2 टिप्पणियां:
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व्यंग्य के रूप मे सच्चाई ब्यान कर दी आपने। बहुत सटीक लिखा है।बधाई।
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