भारत एक स्वादिष्ट चीज़ है। पूरा देश एक बड़ी सी मैस है। देश टेबल पर पड़ा है। खाने वालों की लम्बी कतार है। सब देश खाना चाहते हैं। जीभें लपलपा रही है। देश मुर्गे की तरह फड़फड़ा रहा है। खाने वाले ज्यादा है, देश छोटा। हर किसी को उसका हिस्सा चाहिए। समस्या संगीन है। मगर लोग होशियार। उच्च दर्ज़े के न्यायाधीश। वो किसी को भूखा मरने नहीं देंगे। जानते हैं सब एक साथ देश पर टूट पड़े तो अराजकता फैलेगी।
तय हुआ है कि देश के टुकड़े कर लो और कोई चारा नहीं। सभी की भूख शांत करनी है। हर किसी का टेस्ट अलग है। सब ने अपने-अपने हिस्से की पहचान कर ली है। किसी की नज़र कश्मीर पर है तो किसी की असम पर। कोई उड़ीसा चाहता है तो कोई महाराष्ट्र।
कुछ हिस्से ऐसे हैं जिन पर एक से ज़्यादा की नज़र है। मांग की जा रही है इनके अलग से टुकड़े हों। आंध्र को तोड़ कर तेलंगाना बना दो। असम से बोडोलैंड अलग हो। बंगाल से गोरखालैंड निकाला जाए। यूपी से हरित प्रदेश। लोग बेचैन हो रहे हैं। भूख बढ़ रही है। आवाज़े आ रही हैं जल्दी करो। देश को काटने की तैयारी हो रही है। कुछ कह रहे हैं कि इसे काटो मत, ये ठोस है कटेगा नहीं इसे तोड़ दो। देश को तोड़ा जा रहा है वो नहीं टूट रहा। फिर किसी ने बताया कि देश तो लोगों से बना है। इसे तोड़ा नहीं जा सकता। लोगों को अलग कर दो ये अपने आप बिखर जाएगा। जिन्हें तोड़ना है उनकी पहचान हो गई है।
भाषा, जाति, धर्म, संस्कृति जो देश की सबसे बड़ी विशेषता थी उसे ही इसे तोड़ने का हथियार बना लिया गया है। देश तोड़ने की पूरी तैयारी हो चुकी है। बिना किसी निविदा के समाजसेवियों ने रुचि के मुताबिक ठेके ले लिए हैं। महाराष्ट्र में भाषा के नाम पर देश तोड़ने का काम राजठाकरे ने लिया है तो असम में उल्फा ने। जाति के आधार फूट डालने के क्षेत्र में कर्नल बैंसला ने उल्लेखनीय काम किया है। वहीं धर्म के आधार पर फूट डालने में मारा-मारी मची है। मोदी, लालू, अमर सिंह पासवान जैसे कितने ही आईएसआई मार्का देश तोड़ू काम में जुटे हैं। कई फ्रेंचाइज़ी खुली है। राज्य प्रयोगशाला बन गए हैं,कार्यकर्ता शोधार्थी। देश लैब में पड़ा है महाप्रयोग जारी है। उम्मीद करते हैं जैसे 'भारत छोड़ो आंदोलन' के ज़रिए हमने अंग्रेज़ों को भारत से बाहर भेजा था वैसे ही इस 'भारत तोड़ों आंदोलन' के ज़रिए भारत को भी भारत से बाहर निकाल देंगे।
बुधवार, 22 अक्तूबर 2008
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3 टिप्पणियां:
वाह ! एकदम सही ! लाजवाब लिखा है आपने.लगता है हमारे ही भावनाओं को शब्द मिल गए.आपका साधुवाद.
बहुत बढ़िया लिखा है भाई.
देश तोड़ो कार्यक्रम ऐसे ही चलता रहेगा. हमलोग विविधता पर गर्व करते रहेंगे. और देश तोड़क लोग विविधता का सहारा लेकर ही तोड़ते रहेंगे. आख़िर स्वादिष्ट देश है.
बहुत दिन बाद दिखे मगर इतने बेहतरीन लेख के साथ- इसलिए सब माफ. कुछ तो नियमित लिखो, मित्र.
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