बचपन में पिताजी 'ज़्यादा बोलने' और 'कम सुनने' पर मुझे खूब लताड़ते थे। उनका कहना था बेटा ऐसा करो, अपने कान दान दे दो। वजह, जब तुमने किसी की बात सुननी ही नहीं, तो इनको लटकाये रखने का फायदा क्या? साथ ही वो कहते थे कि भले ही स्कूटर की तरह ज़बान चलाने के लिए लाइसेंस की ज़रूरत नहीं, और न ही इसके बेलगाम होने पर चालान कटता है फिर भी हिदायत दूंगा कम बोला करो, वरना शादी के बाद पछताओगे!
इसके अलावा भी अनुशासनहीनता के तमाम घरेलू और सामाजिक मोर्चों पर जो समझाइश दी जाती थी, उसमें अंतिम धमकी शादी की ही होती थी। कपड़े खुंटी पर टांगों, जूते रैक में रखो, झूठे बर्तन सिंक में रखो, जल्दी उठो, जल्दी सोओ, इंसान बनो, वरना.......बीवी आकर सुधार देगी!
कुल मिलाकर शादी को लेकर इम्प्रैशन ये मिला कि ये एक संस्थान न हो कर पुरूषों के लिए रिहैब कैंप है, जहां बीवियां चुन-चुन कर उनकी बुरी आदतें छुड़ाती हैं! और बुरी आदत किसे कहते हैं इसकी परिभाषा भी बीवी ही देगी!
खैर, कुछ रोज़ पहले मेरी ज़िदंगी में भी वो वक़्त आया जब प्यार में धोखा खा-खा कर मेरा पेट भर गया, और धोखा देने के सारे गोदामों पर अंतरआत्मा ने 'कुछ तो शर्म करो' कह कर ताला जड़वा दिया। आखिरकार मैंने तय किया चलो रिहैब कैंप ज्वॉयन किया जाये।
शादी के मंच पर किराए की शेरवानी में मैं काफी अच्छा दिख रहा हूं। सामने बैठे लोगों की आंखों में खुद के लिए तारीफ और तरस दोनों पढ़ पा रहा हूं। इतने में कैंप इंचार्ज बगल में बैठती हैं। मैं तारीफ की शटल उनकी तरफ फेंकता हूं, अच्छी लग रही हो, रिटर्न का इंतज़ार कर रहा हूं, वो खामोश हैं.....फिर रिटर्न आता है.....ये क्या मतलब है......मतलब..... क्या हुआ डियर......डीजे पर पंजाबी गाने लगे हैं.....आपको पता है न......'हमारे यहां' किसी को पंजाबी समझ नहीं आती.....देखो...कोई भी नहीं नाच रहा..........सोचता हूं 'लव ऑल' पर एक और सर्विस की तो कहीं 'डब्ल फॉल्ट' न हो जाये, लिहाज़ा मैं चुप हूं!
इसके बाद मंडप में पंडित जी इनडायरैक्ट स्पीच में बता रहे हैं कि कन्या पत्नी बनने से पहले तुमसे आठ वचन मांगती है। अगर मंज़ूर हो तो हर वचन के बाद तथास्तु कहो। जो वचन वो बात रहे हैं उसके मुताबिक मैं अपना सारा पैसा, अपनी सारी अक्ल, या कहूं सारा वजूद कन्या के हवाले कर दूं। फिर एक जगह कन्या कहती है अगर मैं कोई पाप करती हूं, तो उसका आधा हिस्सा तुम्हारे खाते में जायेगा, और तुम जो पुण्य कमाओगे उसमें आधा हिस्सा मुझे देना होगा....बोलो मंज़ूर है! मैं पिता जी की तरफ देखता हूं....वो मंद-मंद मुस्कुरा रहे हैं, मानो कह रहे हो....कहा था न सुधर जाओ!
गुरुवार, 18 दिसंबर 2008
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3 टिप्पणियां:
अरे बाप रे.. आप तो डरा रहे है.. लगता है हम को भी अब सुधारना पड़ेगा.. इससे पहले की कोई और आकर सुधारे
वचनों का पालन कर भी रहे है या नही .ये अहम् मुद्दा है हजूर !
ha ha ha ha..
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