सोसाइटी के बाहर एक बैनर टंगा है। न जाने कब से टंगा है। मगर मेरी नज़र आज ही इस पर पड़ी है। लिखा है... "वार्ड नम्बर 43 के सभी निवासियों को स्थानीय पार्षद बंटी भईया की तरफ से क्रिसमस, नववर्ष, लोहड़ी, मकर संक्रात और गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।"
मैं सोच में पड़ जाता हूं। कैलेंडर के मुताबिक इनमें चार शुभ घड़ियां निकल चुकी हैं और घड़ी बताती है कि सिर्फ एक ही शुभ घड़ी (गंणतंत्र दिवस) बाकी हैं। ये जान मुझे अफसोस भी हुआ और खुशी भी। अफसोस ये कि जो शुभकामनाएं अब तक मिली थी उनमें बैनर वाली शुभकामना को मैंने नहीं जोड़ा और खुशी ये कि चलो... मैं ज़्यादा लेट नहीं हुआ। गणतंत्र दिवस पर बैनर देख ज़रूर कह दूंगा....आपको भी!
बंटी भईया का ये जेस्चर मुझे कई तरह से छू गया। ऐसे समय जब हम नेताओं की फिज़ूलखर्ची और साम्प्रदायिकता का ज़िक्र करते हैं ये बैनर मिसाल के तौर पर सामने आता है। सौ रूपये के बैनर में उन्होंने पांच त्यौहार निपटा दिए। प्रासंगिकता का ज़बरदस्त ख़्याल रखा गया है। सोचिए, अगर बैनर में सिर्फ क्रिसमस की मुबारकबाद दी जाती तो ये 26 दिसम्बर को ही रेलवेंस खो बैठता। फिर नववर्ष पर अलग से बैनर लगवाते और अगर प्रकाशोत्सव, लोहड़ी, मकरसंक्रात और गणतंत्र दिवस पर भी सिलसिला दोहराया जाता तो लोग कहते.. क्या फिज़ूल आदमी है। कोई काम नहीं बचा इसके पास! सच है.....काम तो उनके पास अब भी कुछ नहीं है, मगर तब लोग कह बैठते।
एक साथ पांच-छह त्यौहारों की मुबारकबाद देने से उनकी धर्मनिरपेक्ष छवि भी सामने आई है। पढ़ पा रहा हूं कि उन्होंने क्रिसमस, प्रकाशोत्सव और संक्रात की बधाई दी है। मुस्लिम पर्व की बधाई नहीं दी तो सिर्फ इसलिए कि वो इस रेंज में नहीं आया और 'बाद में' देना अच्छा नहीं लगता। वरना इसी में ईद की 'बिलेटिड' मुबारकबाद भी दी जा सकती थी।
आप लेख में ज़रा पीछे जा फिर से बधाई संदेश पढ़े तो जानेंगे कि ये बधाईयां 'स्थानीय पार्षद' की तरफ से आई है। ये उनका अदम्य साहस ही था कि इस 'हैसियत' में भी वो इतनी बधाईयां अफोर्ड कर गए। मामूली पार्षद होता तो इस विचार से ख़ौफ खा जाता। वो डरता कि इस दुस्साहस से आलाकमान नाराज़ न हो जाए और स्थानीय विधायक भी उसी पार्टी का है तो वो इसे 'सीधी चुनौती' न मान ले।
पार्षद की महानता का ये बखान जब मैंने अपने एक वॉर्डवासी से किया तो सहमत होते हुए उन्होंने कहा... ठीक है....मगर और अच्छा होता अगर बधाईयों की तरह ये समस्याओं को लेकर भी प्रो-एक्टिव होते....छोड़ो यार.....रिएक्टिव ही होते तो काफी था!
शनिवार, 17 जनवरी 2009
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6 टिप्पणियां:
बंटी भईया का ये जेस्चर मुझे भी कई तरह से छू गया, फिर तो आपको जरुर छुआ होगा-काहे कि आप इतने संवेदनशील जो हैं.
सभी पर्वों की बधाई तो खैर हमारी तरफ से धर लें...
-स्थानीय ब्लॉगर समीर लाल
वाह! शानदार!
बंटी भईया प्रो-एक्टिव टाइप पार्षद हैं. अच्छा है अभी तक वार्ड नो.४३ तक ही हैं. हमारे शहर में तो ऐसी बधाइयां ऐसे लोग भी देते हैं जो पार्षद बनना चाहता हैं. बधाइयां देने की प्रैक्टिस कर रहे हैं.
कौन रोज-रोज हाथ जोड़ दांत निपोरे,
निपटाओ एक ही बार में।
पता नहीं बैनर बनाते समय ध्यान कर लिया जाता तो सारे साल के सभी त्योहारों, मेलों की सारी बधाईयां ही उस में डाल कर काम खत्म किया जाता --- वैसे ऊपर लिखी यह टिप्पणी भी बहुत बढ़िया है --कौन रोज-रोज हाथ जोड़ दांत निपोरे,
निपटाओ एक ही बार में।
mai to kahunga..agle sal ke liye 'banti bhaiyaa' isi baneer ko fir use kar sakte hai...fizul kharchi bhi bhachegi :)
बंटी भैया की जय...
और लोग कहते है की नेता क्रियेटिव नही होते.. लाहोल विला कूवत!
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