साफ हो गया है कि आवाम चाहें तो भी सरकार और अदालतें उसे सुधरने नहीं देंती। बरसों से हमारे माथे पर एक कंलक लगा था। हमने सोचा.... बहुत हुआ... चलो अपने 'पुरुषार्थ' से इसे धोया जाये। ये राष्ट्रीय सम्मान का मामला था। कोई भला कैसे कह सकता है कि हम 'सॉफ्ट नेशन' हैं।
हर क्रांति की तरह इसकी शुरुआत भी हमने घर से की। पहले हमने बीवियों को पीटना शुरु किया। बीवियों को पीटने के दौरान हमने पाया कि सॉफ्ट नेशन के इल्ज़ाम की 'मुख्य अभियुक्त' तो वहीं है। बीवी तो एक सामाजिक सम्बन्ध का नाम है, असल में वो हमारे लिए 'मुफ़्त की नौकरानी' बनी रहती है। जो न रोटी बनाने का पैसा ले, न सफाई करने का। बहरहाल, शाम होते ही वो पति का इंतज़ार करती हैं कि वो आयें तो उन्हें खाना खिलाये। पति आता है साथ ही कई कुंठायें भी लाता है। काम की कुंठा है, तनख्वाह का रोना है, बॉस की ज़्यादती । क्या करें कोई रास्ता नहीं दिखता। चलो बीवी को पीटा जाये। वैसे भी उसे शरण दे कर जो एहसान उस पर किया है उसके लिए हज़ार पिटाइयां भी कम हैं।
बीवियां पिटती हैं और खुश रहती हैं। पिछले रोज़ एक बड़ी पत्रिका के सर्वे में ये बात सामने आयीं कि ज़्यादातर औरतों को पति की पिटाई से एतराज़ नहीं, इसे तो वो रिश्तों का हिस्सा मानती हैं।
अब आप बतायें ऐसी औरत जात का भला क्या किया जाये। जो खटती भी है, पिटती भी है और खुश रहती है। ऐसे में 'सॉफ्ट नेशन' के इल्ज़ाम की 'मुख्य अभियुक्त' उन्हें क्यों न कहा जाये। लिहाज़ा पुरुषों ने तय किया कि घर में औरत नाम का एक ही प्राणी काफी है। फिर हमने कन्या भ्रूण हत्याओं का दौर शुरु किया। न लड़की पैदा हो, न बड़ी हो, न किसी की बीवी बने, और न ही किसी के हाथ पिट कर देश को बदनाम करवाये!
लेकिन इस देश की सरकार और अदालतें न जानें क्या चाहती हैं। सरकार कहती है कि कन्या भ्रूण हत्या अपराध है। अदालत कहती है कि बीवी को पीटा.. तो जुर्माना होगा।
ठीक है नहीं पीटते। लेकिन सरकार हमारी मजबूरी भी तो समझे। आख़िर क्यों पैदा होने दो हम बच्चियों को? क्यों पढायें लिखायें? पढ़-लिख कर नौकरी भी करेंगी तो हमारे किस काम की? और फिर शादी पर दहेज का बंदोबस्त कौन करेगा? आख़िर इतने 'आक्रमक' तो हम हो नहीं पाये कि अपने स्वार्थों और सामाजिक रुढ़ियों से लड़ पायें। इतना आत्मबल तो हममें अभी नहीं आया कि अपनी कुंठाओं से ऊपर उठ पायें। तो आप ही बतायें एक रुढ़िवादी, कुंठित, दिशाहीन और दम्भी पुरुष न पीटे बीवियों को, न करें भ्रूण हत्याएं तो आख़िर क्या करे? हमें लड़ना होगा। लेकिन.......... हम तो सॉफ्ट नेशन हैं। क्या करें.... सरकार और अदालतें हमें आक्रमक भी तो नहीं होने देती!
(Archive)
सोमवार, 19 जनवरी 2009
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
7 टिप्पणियां:
bhaiya soft nation ki duhai de de kar , sahishnuta ka path padha- padha kar hame aaj is kagar pa la diya gaya hai ya yun kahe ham bhi andho ki bhanti dusro ke sahare chal pade ...................
बाहर से देखकर कहा जा सकता है कि बीबियाँ प्रताडित होकर भी विद्रोही क्यों नही होती.....इसके लिए बस इतना ही कहा जा सकता है कि .....अगर हम अनवरत आतंक की घटनाओं को सहते हुए ,मुठ्ठियाँ भींचते,दांत पीसते,हाथ मलते, खौलते रहकर,दुश्मन को पहचान कर भी कुछ नही कर पा रहे.
और कर इसलिए नही पा रहे कि हम अकेले डंडा उठाये अपने अकेले के दम पर उस खलनायक का कुछ नही बिगाड़ सकते.....बस यही अवस्था उस अकेली पिटती औरत की भी होती है.
ranjana jee se sehmat hun..
waise aapne mazzak mazzak men hi bahut badi baat uthaayi hai...
jamana badsal raha...ab bibiyan bhi samazne lagi hai....bhale 100 me koi ek hi sahi..par aise hi..sudhar hota hai..aur aise hi hamko bhi sudharna hoga..nahi to bane rahege hathn me chidya pahan kar soft nation aur agle 1000 saal tak...jaise pichle 5000 saal se bane hue hai.
इतनी गहरी बात आप व्यंग्य में कह गये..
ज़रूरत है शिक्षा की. अपने अधिकारो को पहचाने की.. और आतं विश्वास की..
बहुत बढ़िया लिखा है नीरज. सॉफ्ट स्टेट की हमारी धारणा इन्ही बातों में परिलक्षित होती है.
हर क्रांति की तरह इसकी शुरुआत भी हमने घर से की। पहले हमने बीवियों को पीटना शुरु किया। बीवियों को पीटने के दौरान हमने पाया कि सॉफ्ट नेशन के इल्ज़ाम की 'मुख्य अभियुक्त' तो वहीं है। बीवी तो एक सामाजिक सम्बन्ध का नाम है, असल में वो हमारे लिए 'मुफ़्त की नौकरानी' बनी रहती है। जो न रोटी बनाने का पैसा ले, न सफाई करने का। बहरहाल, शाम होते ही वो पति का इंतज़ार करती हैं कि वो आयें तो उन्हें खाना खिलाये। पति आता है साथ ही कई कुंठायें भी लाता है। काम की कुंठा है, तनख्वाह का रोना है, बॉस की ज़्यादती । क्या करें कोई रास्ता नहीं दिखता। चलो बीवी को पीटा जाये.......ek sacchai jo aapne byan ki....pr kitane log samajhte hain is bat ko....?
एक टिप्पणी भेजें