मुलायम सिंह यादव ने हाल ही में कहा कि हम उसी गठबंधन को समर्थन देंगे जो मायावती सरकार को बर्खास्त करेगा। बहुत-सी पार्टियों और मीडिया ने उनके इस बयान का विरोध किया और कहा कि ऐसी मांग संवैधानिक व्यवस्था का मज़ाक है। मगर मुझे इस मांग में कुछ ग़लत नहीं लगता। मैं पूछता हूं चुनावों के वक़्त जनता बुनियादी ज़रूरतें बताते हुए जब ये मांग रख सकती है कि हम उसी को वोट देंगे जो हमारे इलाके में सड़क बनाएगा, बंद पड़ी फैक्ट्री खुलवाएगा या रेलवे ओवरब्रिज का निर्माण करवाएगा तो नेता अपनी बुनियादी ज़रूरत बता समर्थन देने की बात क्यों नहीं कर सकते।
फैक्ट्री बंद होने से लोग बेरोज़गार हो सकते हैं तो सत्ता जाने पर मुख्यमंत्री क्यों नहीं। आप पूर्व मुख्यमंत्री होने की मजबूरी तो समझिए। पूर्व मुख्यमंत्री या तो प्रधानमंत्री हो सकता है या फिर कैबिनेट मंत्री। सरकार जाने पर वो परचून की दुकान तो नहीं खोल सकता। मेरा जानकारी में अग्रवाल एंड संस, वर्मा एंड संस नाम की तो कई दुकानें हैं लेकिन चीफ मिनिस्टर एंड संस के नाम से एक भी दुकान नहीं है। साफ है कि एक बार मुख्यमंत्री बन जाने पर आप न तो अनाज मंडी में आढ़तिया बन सकते हैं और न रेलवे स्टेशन पर कैंटीन का ठेका ले सकते हैं।
विदेशों में तो पूर्व प्रधानमंत्री आजीविका के लिए यूनिवर्सिटी, कॉलेज या कॉर्पोरेट हाउस में लेक्चर भी देते हैं मगर हमारे ज़्यादातर नेता तो लेक्चर मिस करके ही नेता बने हैं, वो भला छात्रों को क्या लेक्चर देंगे। वो बेचारे तो नेता के तौर पर दिए लेक्चरों की सफाई अब तक नहीं दे पाए हैं।
इसलिए मुलायम ने जो कहा उससे मुझे कोई शिकायत नहीं है उल्टे कुछ शिकायत कांग्रेस से ज़रूर है। जो कांग्रेस मायावती को, मेरे पास मां है स्टाइल में, हमारे पास है सीबाआइ है, की धमकी दे सकती है उसने मुलायम की मांग पर ऐसी तीखी प्रतिक्रिया क्यों दी। सत्ता में होने पर अगर सीबीआइ का दुरूपयोग हो सकता है तो धारा 356 का क्यों नहीं। ये समझना ज़रूरी है कि मौजूदा दौर गठबंधन की राजनीति का ही नहीं, बेशर्म राजनीति का भी है। इसलिए किसी भी मांग में स्वार्थ तलाशने के बजाए ये विचार होना चाहिए कि इसे पूरा कैसे किया जाए। सत्ता में आने पर जब थोक के भाव अधिकारियों के तबादले हो सकते हैं, सीबीआई का पार्टीकरण हो सकता है, राज्यपाल पालतू हो सकते हैं तो धारा 356 बेशर्मी की इस मुख्यधारा में शामिल क्यों नहीं हो सकती। सीमा तो बर्दाश्त की होती है, बेशर्मी की नहीं....वैसे भी हमने छोड़ा क्या है।
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5 टिप्पणियां:
अपने नेता तो लेक्चर मिस करके ही नेता बने है.. क्या बात कही है नीरज भाई..
उस दिन का इंतजार रहेगा
जिस दिन नेता की चाय की दुकान होगी
छोटे भटूरे की रेहड़ी होगी और
वो साईकिल या रिक्शा पर
बेच रहा होगा सब्जी
पर ईमानदारी
हो सकती है
इतनी इस नेताई जहां में।
बहुत सटीक ऑबजर्वेशन है.
:):)
gajab ki bearmi hai..niyam kanun tak pe rakh .ab neta log kutch bhi maang karne lage hai..sahi..yahi haal raha to..sayad isis 16 may koi..khulam khula kharid farokht hogi..MP logo ki..sonpur ke mele ki tarah
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