मैं तय नहीं कर पा रहा हूं कि ये किस तरह का जनादेश है। एक गठबंधन को पूर्ण बहुमत मिल जाना कहां का न्याय है। उम्मीद की जा रही थी कि एक बार फिर अगली सरकार में लेफ्ट बड़ी भूमिका निभाएगा, छोटी पार्टियां बड़ी मह्तवाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए टुच्ची हरक़ते करेंगी और आंकड़ों के खेल में लगने वाली बोली में अनजान निर्दलीय अपनी कीमतों से आइपीएल के नामी सितारों को भी शर्मिंदा करेंगे। मगर मूर्ख मान लिए गए वोटरों ने अचानक परिपक्वता का महंगा शौक फरमा इन सबकों को कहीं का नहीं छोड़ा। एक साथ कई हसरतों का गर्भपात हो गया। वरना, जीत की उम्मीद पाले कितने ही दल-बदलू माथे पर एमआरपी की चिट चिपका चुके थे, वामपंथी इतराने-रूठने की दसियों नई मुद्राओं का अभ्यास कर चुके थे, आधा दर्जन पीएम इन वेटिंग दर्ज़ी को शेरवानी का नाप दे आए थे। मगर हाय री किस्मत....वेटिंग कंफर्म होना तो दूर आरएसी में भी तब्दील नहीं हो पाया। शेरवानी का ऑर्डर कैंसिल करवा पोते की चार निकर सिलवानी पड़ी। छह दशक की राजनीतिक साधना तो व्यर्थ गई ही, चार मीटर कपड़ा भी ख़राब हो गया।
मगर ईमानदारी से कहूं तो मुझे इन सबसे ज़्यादा व्यंग्यकारों की अपनी बिरादरी की चिंता है। जिस तरह से जनता ने एक गठबंधन को पूर्ण बहुमत दिया है उसके बाद कई व्यंग्यकार संन्यास की सोचने लगे हैं। ऐसी सरकार जिसके अंदर या बाहर वामपंथी न हों, सत्ता के सुपर दलाल बिना शर्त समर्थन की बात कर रहे हों, मंत्री पद का फैसला प्रधानमंत्री पर छोड़ दिया गया हो, आप समझ सकते हैं ऐसे में व्यंग्य के लिए क्या कुछ सम्भावना बचती है।
मेरा मानना है कि ये जनादेश बीजेपी या लेफ्ट से ज़्यादा व्यंग्यकारों के ख़िलाफ है। यही नहीं मुझे तो इन नतीजों के पीछे अंतरराष्ट्रीय साज़िश लगती है। वरना क्या ये सिर्फ इत्तेफाक है कि पहले अमेरिका से बुश की विदाई हुई, पाकिस्तान से मुशर्रफ की और फिर व्यंग्यकारों के फेवरेट शिवराज पाटिल की डोली भी उठ गई और जो कुछ उम्मीद खंडित जनादेश की आशंका में बची थी, वो भी स्पष्ट बहुमत की भेंट चढ़ गई। आख़िर में शिशु व्यंग्यकार के नाते मैं नेताओं और जनता से आग्रह करता हूं कि समझदारी या मूर्खता और स्थिर और अस्थिर सरकार में से किसी एक का अंतिम रूप से चुनाव कर लो। वरना मैं धमकी देता हूं कि विधा के रूप में व्यंग्य साहित्य में मेरा आख़िरी चुनाव नहीं है....मैं कविता भी लिख सकता हूं!
गुरुवार, 21 मई 2009
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13 टिप्पणियां:
अरे नीरज, चार-पांच दिन से नीद नहीं आ रही. बड़ी आफत है. जनता से नेताओं को तो पटका ही, व्यंगकारों को तो उठाकर पटक दिया.
मेरे एक मित्र मिले. बोले; "तुम्हारी तो वाट लगा दी जनता ने."
मैंने कहा; "मैंने तो इलेक्शन नहीं लड़ा, जनता मेरी वाट कैसे लगा सकती है?"
वे बोले; "भोले बनने की एक्टिंग मत करो. तुम्हें पता है कि मैं क्या कहना चाहता हूँ."
तब से सर खुजा रहा था. ये सोचते हुए कि वे क्या कहना चाहते थे? ये तो आपकी पोस्ट पढ़कर पता चला कि वे क्या कहना चाहते थे. लेकिन कोई बात नहीं.
नेता नहीं तो कोई बात नहीं. लेफ्ट नहीं तो भी कोई बात नहीं. जनता तो है. साथ में सरकार है. हाँ, अगर प्रधानमंत्री अपने वादे के मुताबिक सौ दिन में अर्थ-व्यवस्था को पटरी पर ला देंगे तब हमारे पास कोई चारा नहीं रहेगा. फिर सोचता हूँ, कविता तो है ही. डूबते को कविता का सहारा.....:-)
लो कल लो बात !!!!कल ममता दी ने नयी स्टोरी का आईडिया नहीं दिया आपको.....करुनानिनिधि...सारे मौके दे रहे है ....अभी बहुत सारे ट्विस्ट बाकी है भाई...
सही कह रहे हैं अनुराग जी मौके तो बन रहे हैं। मगर ये पोस्ट मैंने मंडे को लिखी थी, तब ये तस्वीर इतनी गुलाबी नहीं थी।
नीरज, आपकी कविता लिखने वाली धमकी को सबसे गम्भीरता से करुणानिधिजी ने लिया है। अपने बेटा, बेटी और भतीजे के लिए रूठ गए हैं। वैसे संकट की स्थिति तो है भाई।
अरे नीरज जी की धमकी को कोई और भी तो गम्भीरता से ले।
इसी बहाने हम उनकी कविता के रंग भी ले लें।
व्यंगकार को कभी कमी नहीं होती। ज्यादा थक गए हों तो जनता को ही विषय बना लो।
हिन्दुस्तान में व्यंगय के मुद्दों की क्या कमी.. फिर आपने तो क्रांतिकारी की चप्पलो से लेकर इशांत शर्मा कीई हेयर स्टाइल और मच्छर को राष्ट्र कीट बनाने तक धांसू लेख लिख मारे.. बाकी व्यंग्यकारों की वात तो लगी ही है.. तो कम से कम इस वात पर ही आठ दस हज़ार व्यंग्य हो जाये.. बाकी के बारे में बाद में सोचलेंगे
व्यंग्य लिखने के लिये मुद्दों की क्या कमी है एक बार मजमा (संसद सत्र) जमने दो...
समस्या जायज है लेकिन इत्ती हालत खराब न होगी कि कविता लिखनी पड़े।
ha ha ha...nirajee....jayad chinta na kare...jaise andhe ke hath bater lagti hai waise hi..janta ke hatho samazdari lag gayi...par chinta nahi..neta aur minister ke hath bhi aisi samazdari hath lag jaye..ye mumkin nahi..aakhir lambi bimari itne jaldi thodi na khatam hoti hai !
Haan bhai jis tarah ka Vyang janta ne kiya hai uss se to lagta hai is desh ko ab Vyangistan kehna chahiye.....
Veeru ki tarah dhamaki de rahe hain!!!
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