बूटा सिंह कह रहे हैं कि उन पर इस्तीफे का दबाव डाला गया तो वे जान दे देंगे। वैसे ही, जैसे लड़की के घरवालों से परेशान लड़का धमकी देता है कि अगर किसी ने उन्हें अलग करने की कोशिश की तो वो अपनी जान दे देगा। प्रेमी की जान लड़की में बसती है। बूटा सिंह की जान कुर्सी में। उनका कहना है कि वे ऐसे नैतिकतावादी नहीं हैं कि इस्तीफा दे दें। पर, यही तो आपत्ति है। आख़िर वो ऐसे नैतिकतावादी क्यों नहीं हैं? और अगर वो ऐसे या वैसे, कैसे भी नैतिकतावादी नहीं हैं तो क्यों न बेटा और बूटा पर लगे आरोप सच माने जाएं! लोग तो कहने भी लगे हैं, बेटा-बेटा, बूटा-बूटा हम हाल तुम्हारा जाने हैं, माने न माने तुम ही न माने, संसार तो सारा माने हैं।
अपने बचाव में उनका कहना है कि उनके ख़िलाफ राजनीतिक साज़िश की जा रही है। ये बात भी अपने आप में शोध का विषय है। शोध इस पर नहीं होना चाहिए कि साज़िश किसने की, बल्कि इस पर होना चाहिए ‘मेरे खिलाफ साज़िश का बयान’ भारतीय राजनीति में आज तक कितनी बार दिया गया है। इस वाक्य के विन्यास और अर्थ में आख़िर कौनसी मिश्र धातु लगी है जो इसे हर नेता की पसंदीदा ढाल बनाता है। उस घटना का भी पता लगाना चाहिए जिसके बाद नेताओं की अदृश्य शक्तियों के खिलाफ खानदानी दुश्मनी शुरू हुई। तभी तो हर बार पकड़े जाने पर अदृश्य शक्तियों की चुगली की जाती है। मामला ठेकेदार का था। निपटाना बूटा ने था। दलाली बेटे ने की। गिरफ्तारी सीबीआई ने और इल्ज़ाम लगा अदृश्य शक्तियों पर। सुभानअल्लाह!
अभी लोग इन अदृश्य शक्तियों को ढूंढ ही रहे थे कि वीर भद्र सिंह की वीरता सामने आ गई। वीर भद्र ने भी भद्रता दिखाते हुए अपने कांडों का श्रेय राजनीतिक साजिश को दे दिया। उनके मुताबिक हिमाचल के मुख्यमंत्री धूमल उनकी छवि धूमिल करना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि वे महज़ आरोपों के आधार पर इस्तीफा नहीं देंगे। ये सुन मुझे बड़ी तसल्ली हुई।
दरअसल संक्रमण काल से गुज़रने का एहसास सबसे बुरा होता है। इस दौरान बड़ी माथा-पच्ची करनी पड़ती है। हर घटना के पीछे के कारण को समझना होता है। बदलाव की दिशा जाननी होती है। इसलिए जब श्रीधरन और उमर अब्दुल्ला ने नैतिकता के आधार पर इस्तीफा दिया तो भम्र हुआ कि शायद हम संक्रमण काल से गुज़र रहे हैं। ईमानदारी के नए दौर में प्रवेश कर रहे हैं। मगर नहीं...बूटा और वीर भद्र ने इस आशंका को नकार दिया। इस्तीफे से इंकार किया। हमें संक्रमण काल में जाने से बचा लिया। आइए, इसके लिए दोनों का शुक्रिया अदा करें!
शनिवार, 8 अगस्त 2009
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6 टिप्पणियां:
इसपे भी कमाल ये की स्वीटी (बूटा सिंह के सुपुत्र )सुना है कोर्ट से उनकी बेल इसलिए हुई है की जेल में गलत संगत में रहकर उनके बिगाड़ने का डर है .....
बेचारी सी बी आई एक तो पहले कहते है जांच कराओ .जैसे सी बी आई वाले वेल्ले बैठे है ....फिर कहते है वे फंसा रहे है .......ओर हाँ शपथ ग्रहण के समय ही ऐसा कुछ सिस्टम हो की अगर लफडा हुआ तो ये डाइलोग बोलने का ...अब कुछ डाइलोग बदलने चाहिए ...जनता उब रही है....
बूटा सिंह बाई दे वे जान कैसे देंगे .?यूँ ही पूछ रहा हूँ.जिज्ञासा वश
bahut sateek
राजनीति व नैतिकता दो परस्पर विरोधी बातें हैं.
शपथ और इस्तीफा तवायफ के कोठे का गज़रा है सुबह पहना शाम को उतार दिया और फिर से पहन के मसनद के सहारे उल्टे हो लिए। इस्तीफा देने की दो कंडीशन्स होती हैं। एक जब पता हो कि दोबारा वापसी इससे बड़े बहुमत से होगी, तो इस्तीफा देने में अब्दुल्ला जैसे नहीं हिचकिचाते, और जब पता हो कि जनता दोबारा मौका नहीं देने वाली तो वीरभद्र जैसे मुकरते हैं। भाई बूटा सिंह का सम्मान करो, संवैधानिक पद पर हैं। उनकी गरिमा का ठेस न पहुंचाओ। ग्यूबरनैटोरियल ज़िम्मेदारियां संभाल रहे हैं।
butto ko beta sahit boot cjhahiye....inlogo ko koi aatankwadi kyon nahi marta..koi maoist inse kyon nahi bhrta..sabhi ko..nirh aam aadmi ki gardan hi pakadni hoti hai.
लाजवाब जी लाजवाब !!! वैसे डाक्टर साहब की बातों में बड़ी जान है...हम भी janne को utsuk हो लिए हैं की boota khandaan जान किस vidhi देना chahenge...
वैसे तो कोई दिक्कत नहीं है जी,अभी pakda है फिर pakadne वाले ही hariyanvi style में kahenge .....oye ..जान दे,जान दे !!!dirama ख़तम,paisa hajam !!
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