बुधवार, 18 जून 2008

प्यार के साइड इफेक्ट्स! (हास्य-व्यंग्य)

कॉलेज चुनने को लेकर लड़कों के सामने एक सवाल यह भी होता है कि गर्लफ्रेंड किस कॉलेज में जा रही है। वो कौन-सा सब्जेक्ट ले रही है। अच्छे-भले पढ़ाकू भी प्यार में बेकाबू हो जाते हैं। बनना तो कलेक्टर चाहते थे, मगर दाखिला होम साइंस मे ले लिया। इस पर भी मज़ा ये कि जिस रुपमती के लिए करियर दांव पर लगा दिया, उसे कानों-कान इसकी ख़बर नहीं।


चार साल स्कूल में साथ गुज़ारे। कॉपियों के पीछे तीर वाला दिल बना उसका नाम लिखा। दोस्तों में उसे ‘तुम्हारी भाभी’ कहा। स्कूल में ही पढ़ने वाले ‘उसकी सहेली के भाई’ से दोस्ती की। उसी मास्टर से ट्यूशन पढ़ी जहां वो जाती थी। इस हसरत में कि घंटा और पास रहेंगे, बावजूद इसके बात करने की हिम्मत नहीं।

फिर एक रोज़ ‘प्रेम पत्रों के प्रेमचंद’ टाइप एक लड़के से लैटर लिखवाया। सोचा, आज दूं, कल दूं, स्कूल में दूं या बाहर दूं। डायरेक्ट दूं या सहेली के भाई से कूरियर करवाऊं जिससे इसी दिन के लिए दोस्ती गांठी थी। मगर किया कुछ नहीं। बटुए में पड़े-पड़े ख़त की स्याही फैल गई। पता जानने के बावजूद उसकी डिलीवरी नहीं हो पाई। वो पर्स में ही पड़ा रहा। और ये बेचारा बिना महबूब का नाम पुकारे हाथ फैलाए खड़ा रहा।


मगर अब कॉलेज में पहुंचे गए हैं। दोस्तों ने कहा रणनीति में बदलाव लाओ। रिश्ते की हालत सुधारना चाहते हो तो पहले अपना हुलिया सुधारो। दर्जी से पैंटें सिलवाना बंद करो, रेडीमेड लाओ। अपनी औकात भूल आप उनकी बात मानते हैं। बरबादी के जिस सफर पर आप निकले हैं उस राह में हाइवे आ चुका है। आप गाड़ी को चौथे गीयर में डालते हैं।

और इसी क्रम में आप गाड़ी के लिए बाप से झगड़ा करते हैं। वो कहते हैं कि बाइक की क्या ज़रुरत है? 623 कॉलेज के आगे उतारती है। इस ख़्याल से ही आप भन्ना जाते हैं। अगर उसने बस से उतरते देख लिया तब वो मेरे वर्तमान से अपने भविष्य का क्या अंदाज़ा लगाएगी। आप ज़िद्द करते हैं। मगर वो नहीं मानते। आप इस महान नतीजे पर पहुंचते हैं कि सैटिंग न होने की असली वजह मेरा बाप है। और ऐसा कर वो खुद को बाप साबित भी कर रहा है। इधर जिस लड़की के लिए आप बाप को पाप मान बैठे हैं उसे इस दीवाने की अब भी कोई ख़बर नहीं।


हो सकता है फिर एक रोज़ आपको लड़की के हाथ में अंगूठी दिखे और आप सोचें कि करियर की बेहतरी के लिए उसने पुखराज पहना है। पर सवाल ये है कि पुखराज ही पहना है तो सहेलियां उसे बधाई क्यों दे रही हैं!

7 टिप्‍पणियां:

डॉ .अनुराग ने कहा…

aise side effects bhi hote hai...kya bat hai?aapka andaje byaan pasand aaya.

कुश ने कहा…

नीरज भाई खूब नब्ज़ पकड़ी है आपने प्यार की.. बहुत दिनो बाद नज़र आए.. क्या बात है

Abhishek Ojha ने कहा…

ऐसे किसी का इतिहास सबके सामने छाप देना अच्छी बात नहीं है :-)

pallavi trivedi ने कहा…

वाह...मज़ा आ गया! सचमुच ही ये तो प्यार के साइड इफेक्ट हैं !

हरिमोहन सिंह ने कहा…

अपने पर जी बीती उसे इस तरह से प्‍यार के साइड इफैक्‍ट के नाम पे बताना आने वाली नस्‍ल की आँखे खोलना है ,आने वाली पीढी आपकी सदा सदा आभारी रहेगी

Udan Tashtari ने कहा…

हा हा!! कैरियर पुखराज से कनफर्म हो गया, उसी की बधाई दे रही होंगी और क्या. अपने तो मन की खिचड़ी पकने दो.

बहुत गजब लिखा है, बधाई.

Arun Arora ने कहा…

यानी मामू बन ही गये जी :)