पाकिस्तान का कहना था, पहले सबूत दो। भारत ने कहा, ये लो। पाकिस्तान ने कहा, मिले नहीं। भारत ने कहा, भेज तो दिए। हमें और चाहिए....अरे और भिजवाए तो थे....क्या बकवास कर रहे हो...हमें कोई सबूत नहीं मिले।
तीन हफ्ते हो गए, दो देश ऐसे लड़ रहे हैं जैसे खाने का ऑर्डर दे कर आप रेस्टोरेंट वाले से लड़ते हैं। आधा घंटा हो गया अब तक खाना नहीं आया। सर, लड़का निकल चुका है, बस पहुंचता ही होगा। क्या पाकिस्तान के मामले में भी ऐसा ही है। लड़का निकल चुका है मगर पहुंचा नहीं।
एक नज़रिया ये है कि जिन ‘माध्यमों’ से सबूत मंगवाए जा रहे हैं कहीं उन्हीं में तो खोट नहीं। मसलन, जिस नम्बर पर सबूत फैक्स करवाए गए वो एमइए का न हो कर, रावलपिंडी के किसी पीसीओ बूथ का हो, जो ईमेल आईडी बताई गई, उसका इनबॉक्स फुल हो या जिस पते पर सबूत कूरियर करने को कहा गया हो वो किसी किराना स्टोर का हो। इधर सबूत का बंडल पहुंचा, उधर किराने वाले ने बंडल से पन्ने अलग कर उसमें खुला राशन बेचना शुरू कर दिया। काले चिट्ठे में काली मिर्च लपेट दी गई।
भारत ने भले ही पाकिस्तान के साथ क्रिकेट सीरीज़ खेलने से मना कर दिया हो लेकिन वो उससे ‘सबूत मिले नहीं, दे दिए’ टाइप एक बेतुके मैच में ज़रूर उलझा हुआ है, ऐसा मैच जो हर दिन नीरस होने के साथ-साथ ड्रा की ओर बढ़ रहा है।
सबूत के इस पूरे एपीसोड में कुछ बातें बहुत दिलचस्प हैं। पहला- ये मानना कि जो लोग (पाकिस्तान सरकार) कहते हैं हम आतंकवाद ख़त्म करना चाहते हैं, वो वाकई कुछ कर सकने की स्थिति में हैं! दूसरा-ऐसा करने के लिए उन्हें सबूत चाहिए। तीसरा-जो सबूत भारत उन्हें देगा वो उन्हें उत्तेजित करेंगे, वजह-उससे ज़्यादा सबूत तो खुद उनके पास है! किसी मां को ये बताना कि उसके बच्चे के दाएं कंधे पर तिल है और फिर उम्मीद करना कि वो इस जानकारी पर हैरान होगी, ये वाकई उच्च दर्जे का आशावाद और निम्न दर्जे की मूर्खता है।
आतंकी कहां से आए, किसने भेजा, कहां से पैसा आया, किसने ट्रेनिंग दी, क्या हम इतने दिनों से इस सबके सबूत पाकिस्तान को दे रहे हैं! उसकी आत्मकथा से उसका लाइफ स्कैच तैयार कर उसे पढ़ने के लिए दे रहे हैं।
अगर यही न्याय है तो बलात्कारियों और हत्यारों को भी ये छूट दी जाए। उनके अपराध के खिलाफ सबूत जुटा, उनके ही सामने पेश किए जाएं और सज़ा से पहले ये देखा जाए कि वो इन सबूतों से संतुष्ट हैं या नहीं। सबूतों से संतुष्टि अगर अपराधी की मौत है तो इस संतुष्टि का इंतज़ार आपकी मूर्खता!
गुरुवार, 25 दिसंबर 2008
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4 टिप्पणियां:
वाह, बहुत बढ़िया ! पाकिस्तान को सबूत देना या न देना बेकार है। अपने घर को स्वयं सुरक्षित रखना होगा। चोर से चोरी बन्द कर, बन्द कर की प्रार्थना , चेतावनी देना बेकार है या तो उसे पकड़कर सजा दो या अपने घर के ताले मजबूत करो।
घुघूती बासूती
बहुत बढ़िया.
सुबूत तो मिल गया. लेकिन पाकिस्तान चाहता है कि सुबूत के तौर पर आतंकवादियों की मीटिंग का वीडियो दिया जाय. आतंकवादियों द्बारा हमले के बारे में भारत सरकार को लिखा गया पत्र दिया जाय. आतंकवादी जब कराची से चले तो उनके बिदाई समारोह की रिकॉर्डिंग दी जाय.
अब ऐसे सुबूत कहाँ से लाये जाँय? और इन्ही सुबूतों को पुख्ता सुबूत माना जा सकता है.
कुछ भरोसा नही साहब ....कल को पाकिस्तान कह दे "जरदारी कौन "ये हमारे नही !
नीरजजी, अगर मैं ग़लत नहीं हूँ तो मैंने आपका लिखा अक्सर हिन्दी के एक दैनिक अखबार में पढ़ा है. और क्या खूब लिखते हैं आप. आपकी लेखन शैली और प्रस्तुतीकरण बहुत अच्छे होते हैं. बहुत बधाई!
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