जिस दुकान पर कल मैं सामान लेने गया, वहां एक जनाब अपने पपी के साथ कुछ खरीद रहे थे। वहां मौजूद एक लड़का जैसे ही पपी के पास से गुज़रा, तो वो जनाव बोल पड़े: देख के भइया, देख के... पैर मत रख देना इस पर…वरना खड़े-खड़े दस हज़ार का नुकसान हो जाएगा! हिंदी भाषा से अनजान पुअर पपी अब भी मालिक का जूता चाट रहा था, कायदे से जिस पर उसे अब तक सूसू कर देना चाहिए था!
मैं सोचने लगा कि इस शख़्स ने भी ‘थ्री इडियट्स’ देखी होगी। करीना के ‘प्राइज़ टैग’ मंगेतर पर ये भी हंसा होगा। इसने भी सोचा होगा कि कैसा घटिया आदमी है? बिना ये सोचे की जैसा ये घटिया है, वैसा ही मैं भी तो हूं, या फिर हॉल में ठहाके लगाते दो-तीन सौ लोगों पर इसे गुस्सा आया होगा? आख़िर आदमी अच्छा खाता-पहनता किसलिए है, इसीलिए न कि वक़्त आए (न भी आए) तो बता सके कि उसका दाम क्या है?
मैं सोचता हूं...पपी पर वयस्क आदमी पांव रख दे तो क्या होगा?....सुनने में भले ही लगे कि इस सवाल का ताल्लुक जीव विज्ञान से है, मगर इसका आर्थिक पक्ष भी है। और अगर कोई इन्हें कहे कि पपी कितना ‘क्यूट’ है तो ये उसे समझाएंगे कि इसका सम्बन्ध जीव विज्ञान से नहीं, अर्थशास्त्र से भी है। ‘क्यूट’ है तभी तो दस हज़ार का है! क्यूटनेस पपी से प्यार की नहीं, उसे घर लाने की भी नहीं, उस सवाल की वजह है जिसका जवाब है, 'ये दस हज़ार का है’! मैं सोचता हूं कि मानवीय या सामाजिक बुराईयों का ‘गवाह’ और ‘शिकार’ होना एक बात है और उसकी आलोचना कर या खिल्ली उड़ा खुद को ज़मानत देना दूसरी! सच...ऐसों का बीमार बाप भी मर जाए तो पहले मुंह से यही निकलेगा कि हाय! दो लाख का नुकसान हो गया....इतना पैसा लगा था दवाई पर!
मंगलवार, 9 मार्च 2010
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
6 टिप्पणियां:
सच है कुछ लोग हमेशा पैसे की ही बात करते हैं और सभी की कीमत आंकते हैं। बढिया प्रस्तुति। कितनी कीमत की है?
बहुत बढ़िया,
स्टेटस सिम्बल जब कुत्ता हो जाता है तो वो ही
आदमी से भी बढ़ कर लगने लगता है!
ये कमाल और भी हो जाता है जब हम किसी कुत्ते को तो गोद में उठा सकते है,अपनी रसोई में घुमा सकते है,पर एक आदमी को घर में भी घुसने नहीं देते,गले लगाना तो बहुत दूर की बात है!
स्टेटस के चक्कर में हम खुद को ना जाने क्या समझने लगते है?
कुंवर जी,
ये हुई ना लाख रूपये की बात
सही बात कही आपने
क्या बात कही आपने.....
जी..एक लाख की बात कही है आपने ... ।
एक टिप्पणी भेजें